1970 के मास्टर स्ट्रोक-1 की सफलता के पांच दशक बाद अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका का यूं रुख़सत होना मास्टर स्ट्रोक 2.0 वाला कदम?

Afghan taliban
अभिनय आकाश । Jul 20 2021 6:09PM

अमेरिका बिना शर्त रखे और बिना बताए रात के अंधेरे में उड़ गया।अमेरिका के इस कदम को गलत मान रहे लोगों को ये समझना होगा कि इस कदम के जरिये ही तो अमेरिका ने अपना दूसरा मास्टर स्ट्रोक चला है। अमेरिका के निकलते ही रूस पर अफगानिस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, तजाकिस्तान से सीमा पर दबाव बढ़ जाएगा।

आज की कहानी में उस जगह की बात करेंगे जिसे अंग्रेजी में लैंड ऑफ पॉमेग्रेनेट्स कहते हैं और हिंदी में कहे तो अनारों का देश। कितना अच्छा लगता है न सुनने में। खून बढ़ाने व रूप निखारने के काम आने वाला यह फल जिसका रस मुंह के रंग को एकदम लाल कर देता है। इसके सुर्ख लाल रंग को देख पहली नजर में बूझ पड़े कि मानो मुंह में खून लग गया हो। लेकिन विडंबना देखिए यही खून उस मुल्क की तकदीर बन गया है। तालिबान एक ऐसा क्रूर संगठन जिसकी विचारधारा धार्मिक कट्टरता और नफरत से भरी हुई है। एक ऐसा संगठन जिसने कई बार अपने मंसूबे को पूरा करने के लिए खून की होली खेली। कट्टरता के आधार पर लोगों के दिमाग से खेला और लोगों के जेहन में अपनी विचार-धारा ठूंस-ठूंस कर भरी। समाज को हैवानियत से भरे कैदखाने में तब्दिल कर दिया। महिलाओ का जीवन बर्बाद कर दिया। तालिबान के हमलों के बीच अफगानिस्तान से अमेरिकी सैन्य वापसी की खबरें इन दिनों सुर्खियों में हैं। अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों के अचानक से यूं ही रुखसत होने को कई विश्लेषक असफल ऑपरेशन या अमेरिका का मजबूरी में उठाया गया कदम बता रहे हैं। लेकिन वास्तविकता इससे ठीक उलट है और सैन्य वापसी और अफगानिस्तान में अशांति सोवियत संघ का भाग रहे देशों, उसके वास्तविक दौर में सबसे बड़े शत्रु चीन और अन्य खाड़ी देशों के लिए अमेरिका का मास्टर स्ट्रोक-2 है। 

क्या है तालिबान?

अरबी भाषा में एक शब्द है- तालिब, जिसका अर्थ होता है छात्र और इसी तालिब का बहुवचन है तालिबान। इसका मतलब है- छात्रों का समूह। ये 1970 की बात है कम्युनिस्ट सरकार को बचाने के लिए सोवियत संघ रूस ने अफगानिस्तान पर हमला किया। शीत युद्ध की वजह से अमेरिका की दुश्मनी रूस के साथ अपने चरम पर थी। फिर अफ़ग़ानिस्तान का भाग्य लिखने के लिए पाकिस्तान, सऊदी अरब और अमेरिका ने नया गठजोड़ बनाया। तीनों देशों को देवबंद और उसके पाकिस्तानी राजनीतिक पार्टी जमात-ए-उलेमा-ए-इस्लाम में उम्मीद नज़र आयी। पाकिस्तान के खैबर-पख्तूनख्वा के एक देवबंदी हक्कानी मदरसे और फिर देवबंद के कराची मदरसे में पढ़ने वाले मुहम्मद उमर को ज़िम्मेदारी देकर मुल्ला मुहम्मद उमर बनाया गया। किसी को खबर हीं नहीं लगी कि कब मुल्ला उम्र ने पहले पचास और 15 हज़ार छात्रों के मदरसे खोल लिए। इसके लिए पाकिस्तान, अमेरिका और सउदी अरबिया ने खूब पैसे खर्चने शुरू किए। अमेरिका ने 1980 में यूनाइटेड स्टेट एजेंसी फ़ॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट बनाया जिसके जरिए देवबंद के नफ़रती विचारों वाली शिक्षण सामग्री को छपवाकर देवबंदी मदरसों में बांटा जाने लगा। आमोहा की यूनिवर्सिटी ऑफ ने बरस्का इस ज़हर को छात्रों के दिलो दिमाग़ में बैठाने वाली अमेरिकी मदद वाली यूनिवर्सिटी बन गई। सोवियत से लड़ने के लिए अफ़गानिस्तान में मुजाहिदीनों की एक फ़ौज खड़ी हो गई। 1989 में सोवियत की वापसी के साथ इस युद्ध का एक पन्ना ख़त्म हो गया। सोवियत जा चुका था। मगर उससे लड़ने के लिए खड़े हुए मुजाहिदीन लड़ाकों ने हथियार नहीं रखे थे। वो अब अफ़गानिस्तान के अलग-अलग हिस्सों में वर्चस्व बनाने के लिए लड़ रहे थे।

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चोगा ओढ़ मुल्ला उमर ने तालिबान की नींव रखी

वक्त बीतता रहा और अफगानिस्तान के अलग-अलग हिस्सों में मुजाहिदीन लड़ाकों के वर्चस्व की जंग चलती रही। फिर आता है 1994 का साल शुक्रवार का यानी जुमे का दिन। एक दरगाह जिसके कई दरवाजे और तालों के भीतर रखा था एक प्राचीन चोगा। जिसे लोग पैगंबर मुहम्मद का चोगा कहते हैं। जिसे दशकों पहले एक राजा द्वारा बड़ी हिफाजत के साथ उस दरगाह के अंदर रखवाया था। कराची मदरसे में पढ़ने वाले मुहम्मद उमर ने दरगाह के भीतर दाखिल होकर सभी दरवाजे और तालों से दो-चार होते हुए आखिरकार उस चोगे को अपने अधिकार में लिया और इसके साथ ही मुनादी करवा दी कि अगले जुम्मे की रोज सभी सुबह 7 बजे पुरानी मस्जिद पहुंच जाएं। अगले जुमे के दिन अपने हाथों में चोगे को फंसाए उमर खड़ा था और उसे देखकर सभी ने एक स्वर में नारा लगाया- अमीर उल मोमिनीन-अमीर उल मोमिनीन। जिसका अर्थ होता है इस्लाम में आस्था रखने वालों का लीडर। इधर कश्मीर में अशांति फैलाने के लिए सहयोगी की आस में पाकिस्तान पाकिस्तानी आर्मी और आईएसआई ने तालिबान हथियार और पैसा मुहैया कराया और इसी मदद के सहारे सितंबर 1996 में तालिबान ने काबुल को भी जीत लिया। वो अफ़गानिस्तान का शासक बन गया। 

9/11 के बाद अमेरिका ने तालिबान को सबक सिखाने की ठानी

11 सितंबर 2001 को चार हवाई जहाजों को हाईजैक कर अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की इमारत और पेंटागन पर अल कायदा के आतंकियों ने हमला किया था। जिसमें करीब तीन हजार लोगों की मौत हुई थी।  जब इस आतंकी संगठन ने अमेरिका में 9/11 के हमले को अंजाम दिया तो फिर अमेरिका ने इस आतंकवादी संगठन को सबक सिखाने की ठानी। धीरे-धीरे अमेरिकी सेना ने वहां तालिबान की जड़े काट दी और इनको न सिर्फ सत्ता से बेदखल कर दिया बल्कि अमेरिकी सेना की एक बड़ी टुकड़ी ने वहां डेरा डाल लिया। ये सेना तालिबान की नापाक हरकतों पर लगातार नकेल कसती रही। 

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अफगान शांति समझौता और अमेरिकी सैनिकों की वापसी 

अमेरिका और तालिबान के बीच 29 फरवरी 2020 को शांति समझौते पर मुहर लग गई। समझौते के बाद अमेरिका ने लक्ष्य रखा कि वो चौदह महीने के अंदर अगानिस्तान से सभी बलों को वापस बुला ले। यह समझौता कतर के दोहा में हुआ। 20 साल बाद साल 2021 में अमेरिकी सेना अफगानिस्तान से वापस लौट रही है, लेकिन पीछे तालिबान का वही पुराना 'आतंक युग' छोड़ती जा रही है। तालिबान तेजी से अपने इलाकों को बढ़ाने में जुटा है और हालात ये हैं कि अफगानिस्तान की सरकार लगभग 85 प्रतिशत हिस्सों पर या तो जंग लड़ रही है या फिर तालिबान के हाथों इलाके को गंवा चुकी है।

अमेरिका का मास्टर स्ट्रोक 2.0

अमेरिका बिना शर्त रखे और बिना बताए रात के अंधेरे में उड़ गया। अफगानी सैनिक खुद को अकेला पा रहे हैं। अमेरिका के इस कदम को गलत मान रहे लोगों को ये समझना होगा कि इस कदम के जरिये ही तो अमेरिका ने अपना दूसरा मास्टर स्ट्रोक चला है। अमेरिका के निकलते ही रूस पर अफगानिस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, तजाकिस्तान से सीमा पर दबाव बढ़ जाएगा। चीन का बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट तो प्रभावित होगा ही, उसके शिनजियांग राज्य में आतंकवाद और अपराध बढ़ेगा।अब यह इलाक़ा अशांत होगा तो सब उलझे रहेंगे और अमेरिकी हथियारों की बिक्री भी बढ़ेगी और वर्तमान दौर में चीन की गोद में बैठे अमेरिका के पुराने साथी पाकिस्तान को भी अब अपनी पश्चिमी सीमा पर समय और संसाधन खर्च करने पड़ेंगे। रूस और पाकिस्तान का खर्च बढ़ने का सीधा मतलब है- चीन पर दबाव बढ़ना। इस एक कदम से चीन, रूस, ईरान और पाक का सुरक्षा संतुलन तितर-बितर हो रहा है। अमेरिका अब अपना पूरा ध्यान एशिया यानी ताइवान और दक्षिण चीन सागर पर केंद्रित करना चाहता है। -अभिनय आकाश

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