औरंगजेब की कब्र, संभाजी नगर, सियासी फेर में फंसी अस्तित्व की पहचान, कुछ ऐसा है भारत के इतिहास का अमर बलिदान

Sambhaji
अभिनय आकाश । May 17 2022 5:18PM

संभाजी से नाराज उनका साला गनोजी शिर्के धोखे से अपने जीजा को मुगलों के हवाले कर देता हैं। उन्हें बंधक बनाकर औरंगजेब के सामने पेश किया जाता है। उन्हें कई दिन तक अमानवीय यातनाएं दी जाती हैं। सबसे पहले तो संभाजी महाराज की जीभ काट कर उन्हें रात भर तड़पने के लिए छोड़ दिया गया।

हमारे देश में इतिहास को लेकर नए सिरे से दिलचस्पी पैदा हो गई है या पैदा की जा रही है। जिसका जैसा मत उसकी वैसी व्याख्या। इसके इर्द-गिर्द सियासत, राजनीति व अस्तित्व की पहचान है। और इन सब के बीच सरकार और कोर्ट की दहलीज है जहां पर इन पुराने मसले सुलझाने की जुगत होती आई है और आगे भी होती रहने की उम्मीद है। देश के इतिहास में कई ऐसे मोड़ भी आए जिन्होंने पूरी दशा और दिशा को बदलकर रख दिया। आप अंजाती की गुफाओं में जाएं और वहां की टूटी हुई मूर्तियों को देखें, नालंदा के भगनावशेष को देख हरेक के मन में एक किस्म का कोप्त भी पैदा होता है और क्रोध भी आता है कि कैसे मूर्ख शासक थे। अपने धर्म को महान बताते के फेर में किसी ने लाइब्रेरी जलवा दी तो किसी ने मूर्तियों को खंडित कर दिया। इन बातों को देख हम कई बार भावुकता में ये सोचने भी लग जाते हैं कि काश ऐसा नहीं होता तो कितना अच्छा होता। बहरहाल, इतिहास में जो हुआ, उसे रोका नहीं जा सकता। लेकिन ऐसी घटनाओं का महत्व यही है कि वर्तमान दौर में उनसे सबक लिया जाए और ऐसी गलतियों की नौबत दोबारा न आए जिसकी वजह से इस देश के सीने पर कई आघात लगे हैं। 

इसे भी पढ़ें: MNS ने की औरंगजेब के कब्र को जमींदोज करने की मांग, कहा- फिर इनकी औलादें यहां माथा टेकने नहीं आएंगी

वैसे तो अकबर, औरंगजेब के परदादा थे लेकिन असदुद्दीन ओवैसी के छोटे भाई और एआईएमआईएम नेता अकबरुद्दीन जब औरंगाबाद पहुंचे तो उन्होंने औरंगजेब की कब्र पर सिर झुका लिया। फूल चढ़ाएं और फातिहा भी पढ़ा। लेकिन छोटे ओवैसी के इस कदम को लेकर अब सियासत गर्म हो गई है। एक तरफ जहां महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि औरंगजेब की पहचान पर कुत्ता भी पेशाब नहीं करेगा। इसके अलावा देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर भी निशाना साधा। अब राज ठाकरे की पार्टी महराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने भी औरंगजेब की कब्र के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। मनसे की तरफ से औरंगजेब की कब्र को जमींदोज करने की मांग की गई है। ताकी फिर इनकी औलादें यहां माथा टेकने नहीं आ पाए। इतिहास का जिक्र होता है तो औरंगजेब और उसकी क्रूरता के किस्सों का जिक्र भी अक्सर होता है। 

इसे भी पढ़ें: ज्ञानवापी मामले में अदालत को अपना काम करने देना चाहिए, नेता विवाद में कूदेंगे तो तनाव बढ़ेगा

औरंगजेब की कब्र 

वैसे तो अकबर, औरंगजेब के परदादा थे लेकिन असदुद्दीन ओवैसी के छोटे भाई और एआईएमआईएम नेता अकबरुद्दीन जब औरंगाबाद पहुंचे तो उन्होंने औरंगजेब की कब्र पर सिर झुका लिया। फूल चढ़ाएं और फातिहा भी पढ़ा। लेकिन छोटे ओवैसी के इस कदम को लेकर अब सियासत गर्म हो गई है। एक तरफ जहां महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि औरंगजेब की पहचान पर कुत्ता भी पेशाब नहीं करेगा। इसके अलावा देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर भी निशाना साधा। अब राज ठाकरे की पार्टी महराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने भी औरंगजेब की कब्र के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। मनसे की तरफ से औरंगजेब की कब्र को जमींदोज करने की मांग की गई है। ताकी फिर इनकी औलादें यहां माथा टेकने नहीं आ पाए। इतिहास का जिक्र होता है तो औरंगजेब और उसकी क्रूरता के किस्सों का जिक्र भी अक्सर होता है। इसके साथ ही जिक्र होता है औरंगजेब की कब्र वाले शहर औरंगाबाजद के नाम को लेकर भी। जिसे शिवाजी महाराज के बेटे सांभाजी के नाम पर करने की मांग भी की जाती है। 

 शिवाजी की मृत्यु के बाद औरंगजेब को दिखा अवसर

ये उस समय की बात है जब औरंगजेब की दक्षिण भारत को जीतने की महत्वकांक्षा हिलोरें मार रही थी। करीब 3 लाख सैनिकों की भारी सेना को लेकर वो बुरहानपुर में डेरा डाल कर बैठा हुआ था। शिवाजी की मृत्यु के बाद उत्साहित मुगल बादशाह औरंगजेब को लगता है कि मराठों को हराने का इससे बढ़िया मौका नहीं मिलेगा। उस दौर में सारे षड़यंत्रों से लड़ते हुए आखिरकार शिवाजी के पुत्र सांभाजी महाराज ने मराठा साम्राज्य पर काबिज होने में सफलता पाई थी। अपने ही लोगों ने गद्दारी कर उन्हें मारना चाहा था और उनके छोटे भाई राजाराम को छत्रपति बना दिया था। राजाराम तब 10 साल के ही थे। हालाँकि, परिवार और राज्य में दुश्मनों से घिरे होने के बावजूद संभाजी महाराज ने गद्दी संभाली। लगातार आठ साल तक लड़ने के बावजूद औरंगजेब मराठों के गौरव रायगढ़ सहित उनके सैकड़ों किलों का कुछ नहीं बिगाड़ पाता है। इससे वह इतना ज्यादा निराश होता है कि मराठों को घुटने टेकने पर मजबूर करने तक अपने सिर के ताज को त्यागने का प्रण ले लेता है। लेकिन इसके बाद जो हुआ वो बहुत ही कायरता पूर्ण और निर्मता की सारी हदों को पार करने वाला था।

 संभाजी को दी इस्लाम न कबूल करने की सजा

संभाजी से नाराज उनका साला गनोजी शिर्के धोखे से अपने जीजा को मुगलों के हवाले कर देता हैं। उन्हें बंधक बनाकर औरंगजेब के सामने पेश किया जाता है। उन्हें कई दिन तक अमानवीय यातनाएं दी जाती हैं। सबसे पहले तो संभाजी महाराज की जीभ काट कर उन्हें रात भर तड़पने के लिए छोड़ दिया गया। फिर लोहे की गर्म सलाखें घोपकर उनकी आंखें तक निकाल ली जाती हैं, लेकिन वे मुगलों के सामने घुटने नहीं टेकेते हैं। अपनी जान और राजपाट बचाने के लिए इस्लाम स्वीकार नहीं करते हैं और धर्म एवं राष्ट्र की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहूति दे देते हैं। वो मार्च 11, 1689 का दिन था, जब उनकी मृत्यु हुई। उनके सिर को लेकर दक्खिन के कई प्रमुख शहरों में घुमाया गया। औरंगज़ेब ने अपना डर कायम रखने के लिए और हिन्दुओं की रूह कँपाने के लिए ऐसा किया। संभाजी ने महज 32 साल की उम्र में मातृभूमि के लिए खुद को उत्सर्ग कर दिया, लेकिन वे जब तक जिए शेर की तरह रहे।  

इसे भी पढ़ें: औरंगजेब की कब्र पर अकबर का फातिहा, मनसे ने दी चेतावनी, फडणवीस ने कहा- जाकी रही भावना जैसी

औरंगाबाद विवाद की टाइमलाइन 

आजाद भारत में औरंगाबाद का नाम संभाजी नगर करने की मांग उठती रही है। 1988 में शिवसेना द्वारा सांभाजी नगर किए जाने की मांग की गई। 1988 में औरंगाबाद नगरपालिका के चुनाव में शिवसेना को 27 सीटों पर जीत हासिल हुई थीं। इसके बाद बाला साहेब ठाकरे ने सांस्कृतिक मण्डल ग्राउंड में एक विजय रैली को संबोधित किया। इसी रैली में उन्होंने ऐलान किया कि औरंगाबाद का नाम संभाजीनगर रखा जाएगा।

1995 में औरंगाबाद कॉपोरेशन मे संभाजीनगर रिशॉल्यूशन पास किया। 

1995 में महाराष्ट्र में शिवसेना-बीजेपी गठबंधन की सरकार था। महाराष्ट्र सरकार की अधिसूचना जारी करते हुए सुझाव और आपत्ति मांगें। औरंगाबाद का नाम संभाजीनगर करने के प्रस्ताव को कैबिनेट ने मंज़ूर कर लिया था।

उसी साल एएमसी कॉरपोरेटर मुश्ताक अहमद ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी। लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया गया। लेकिन इस बीच बीजेपी-शिवसेना गठबंधन चुनाव हार गया और औरंगाबाद को संभाजीनगर करने का मामला लटक गया। मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख ने औरंगाबाद का नाम संभाजीनगर करने की अधिसूचना रद्द कर दी।

शिवसेना की सांसद के विवादित बोल

उच्च न्यायालय ने साल 2015 में वाजुल में 6 धार्मिक स्थानों को हटाने का आदेश दिया था। इन्हें हटाने वाली टीम का नेतृत्व तहसीलदार रमेश खुद कर रहे थे। मंदिर तोड़े जाने के बाद सांसद चंद्रकांत ने तहसील को 'औरंगजेब की औलाद' कहा और फिर भद्दी गालियां भी दीं। महाराष्ट्र सरकार द्वारा मार्च 2020 में औरंगाबाद एयरपोर्ट का नाम बदल कर छत्रपति संभाजी महाराज एयरपोर्ट कर दिया। महाविकास अघाड़ी सरकार ने औरंगाबाद हवाई अड्डे का नाम बदल कर संभाजी महाराज के नाम पर रखने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा लेकिन इसे मंजूरी नहीं मिली है।

शहर और उसका नाम

औरंगाबाद का निर्माण 1610 में निजामशाही वंश के मलिक अंबर ने करवाया था। मुगल बादशाह औरंगजेब ने इसका नाम बदलकर औरंगाबाद कर दिया जब उन्होंने इसे अपनी राजधानी बनाया। 

-अभिनय आकाश 

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़