Karnataka में चुनाव, रिजर्वेशन कैटेगरी में बदलाव, मुस्लिमों का 4% कोटा EWS में ट्रांसफर, इससे क्या असर होगा?

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Prabhasakshi
अभिनय आकाश । Mar 29 2023 5:30PM

कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा कि उन्हें आशंका है कि उन्हें एससी लिस्ट से हटा दिया जाएघा। मैंने ही आदेश दिया था कि वोवी, लमानी और अन्य समुदायों जैसे कोरचा और कोरमा को एससी लिस्ट में बनाए रखा जाए। उन्हें हटाने का सवाल ही नहीं उठता।

कर्नाटक विधानसभा का कार्यकाल 24 मई 2013 को खत्म हो रहा है। चुनाव आयोग की तरफ से चुनाव की तारीखों का ऐलान भी कर दिया गया है। लोकसभा की एक और विधानसभा की चार सीट के लिए उपचुनाव 10 मई को होंगे। राज्य की 224 विधानसभा सीटों के नतीजे 13 मई को आएंगे। बीजेपी ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव की तारीख का ऐलान होते ही जीत का दावा किया है। कांग्रेस पार्टी चुनाव से पहले अपनी जीत के लिए आश्‍वस्‍त नजर आ रही है। जेडीएस कुमारस्वामी के दम पर किंगमेकर बनने का ख्वाब देख रही है। इस बीच कर्नाटक की बीजेपी सरकार ने आरक्षण को लेकर कुछ ऐसे निर्णय लिए हैं, जिस पर बवाल खड़ा हो गया है। सड़क से लेकर संसद तक सरकार के खिलाफ कई आवाजें भी उठ रही हैं। मुसलमान कह रहे हैं कि उनके साथ अन्याय हुआ है। बंजारा जाति के लोग भी सड़कों पर नजर आए। इन सब के बीच विपक्ष की तरफ से इसे सरकार का खतरनाक खेल बताया जा रहा है। ऐसे में आइए जानते हैं कि कर्नाटक में आरक्षण का गणित कैसे बदल गया, सरकार का नया फैसला क्या है, इसका विरोध क्यों किया जा रहा है?

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क्या है आरक्षण का मामला

बीसी आरक्षण में 2बी श्रेणी केवल मुस्लिमों के लिए थी जिसे भाजपा सरकार ने समाप्त करते हुए कहा कि यह संवैधानिक रूप से वैध नहीं है। सरकार ने 2बी के तहत पूर्व में मुस्लिमों को दिए गए चार प्रतिशत आरक्षण को राज्य में प्रभावशाली वोक्कालिगा और वीरशैवा लिंगायत को क्रमश: 2सी और 2डी श्रेणी के तहत दो-दो प्रतिशत बांट दी। सरकार के फैसले के बाद 2बी श्रेणी समाप्त हो गई और वोक्कालिगा का आरक्षण चार प्रतिशत से बढ़कर छह प्रतिशत और लिंगायत समुदाय का आरक्षण पांच प्रतिशत से बढ़कर सात प्रतिशत हो गया। कर्नाटक कैबिनेट ने पिछले हफ्ते अनुसूचित जातियों के बीच आंतरिक आरक्षण शुरू करने का फैसला किया था। राज्य सरकार ने केंद्र को पत्र लिखकर ये सिफारिश भी की थी कि प्रस्ताव को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल किया जाए। 

बदलाव से क्या असर होगा?

आंदोलनकारियों ने आरोप लगाया है कि एससी आरक्षण को कम किया गया है। जिससे बंजारा समुदाय भी ताल्लुक रखता है। एससी कोटे को 15 से 17 फीसदी करने के बाद सरकार ने घोषणा की है कि एससी लेफ्ट सब कैटेगरी को 6 प्रतिशत और राइट को 5.5% कोटा दिया जाएगा। सामान्य को 4.5 और अन्य को 1% आरक्षण दिया जाएगा। 

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सरकार का क्या कहना है?

कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा कि उन्हें आशंका है कि उन्हें एससी लिस्ट से हटा दिया जाएघा। मैंने ही आदेश दिया था कि वोवी, लमानी और अन्य समुदायों जैसे कोरचा और कोरमा को एससी लिस्ट में बनाए रखा जाए। उन्हें हटाने का सवाल ही नहीं उठता। इसलिए आदेश पारित कर केंद्र सरकार को भेजा गया है। स्थानीय कांग्रेस नेता लोगों को भड़का रहे हैं। हर समुदाय के साथ किए गए सामाजिक न्याय को कांग्रेस पचा नहीं पा रही है और उसने हिंसा भड़काने का सहारा लिया है। बंजारा समाज को किसी अफवाह के झांसे में नहीं आना चाहिए। केंद्रीय गृह मंत्री ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की 2बी श्रेणी के तहत मुस्लिम समुदाय को मिले चार प्रतिशत आरक्षण को कर्नाटक सरकार द्वारा खत्म किए जाने के फैसले का बचाव करते हुए कहा कि धार्मिक आधार पर कोटा संवैधानिक रूप से वैध नहीं है। बीदर के गोरता गांव और रायचूर के गब्बूर में आयोजित जनसभाओं को संबोधित करते हुए शाह ने कथित ‘वोट बैंक की राजनीति’ के लिये मुस्लिमों को चार प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान करने के लिए कांग्रेस को आड़े हाथों लिया। 

आगे क्या रास्ता है?

कर्नाटक में इसी साल चुनाव हैं। ऐसे में आरक्षण का ये मसला बीजेपी सरकार के लिए सिरदर्द बन सकता है। मुख्यमंत्री बोम्मई ने कहा कि मेरा मानना है कि ये घटना किसी गलतफहमी के कारण हुई है। मैं बंजारा समुदाय के वरिष्ठ नेताओं को बुलाऊंगा। मैं उनसे उस भ्रम के कारणों पर भी चर्चा करूंगा जिसके कारण ये घटना हुई। बता दें कि बंजारा समुदाय के सदस्यों ने जिले के शिकारीपुरा कस्बे में भाजपा के कद्दावर नेता बीएस येदियुरप्पा के घर को निशाना बनाया और राज्य सरकार द्वारा अनुसूचित जातियों के लिए घोषित आंतरिक आरक्षण के विरोध में पथराव किया, जिसमें कुछ पुलिसकर्मी घायल हो गए थे। प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि बंजारा समुदाय से संबंधित अनुसूचित जाति को कम आरक्षण दिया गया है। 

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बीजेपी के लिए क्यों माना जा रहा है मास्टर स्ट्रोक?

 बीजेपी ने मुस्लिम कोटा खत्म करके वोक्कालिगा समुदाय का आरक्षण 4% से बढ़ाकर 6% करने की पहल की है। वहीं, लिंगायत समुदाय का कोटा 5% से बढ़ाकर 7% किया गया है। बीजेपी का लिंगायत समुदाय में मजबूत वोटबैंक है। वह वोक्कालिगा समुदाय को भी लुभाने की कोशिश कर रही है। पिछले लोकसभा चुनाव में वोक्कालिगा समुदाय की जहां पर अधिक संख्या है, वहां भी बीजेपी ने सीटें निकाली थीं। इसका मतलब है कि चुनाव से पहले राज्य की सत्ताधारी पार्टी ने इन दोनों समुदायों में अपना आधार मजबूत करने के लिए यह कदम उठाया है। सच यह है कि लिंगायत वोटर अस्सी के दशक के मध्य से ही विभिन्न कारणों से कांग्रेस से दूर होते चले गए। उसके बाद वे धीरे-धीरे बीजेपी की तरफ शिफ्ट हुए। आज लिंगायतों के सर्वमान्य नेता येदियुरप्पा हैं। इसलिए एक वोट बैंक बीजेपी के पास है लिंगायतों का। लेकिन इस समुदाय में भी कई उप-समुदाय हैं। उनमें से एक पंचमसाली समुदाय है। वह अपने लिए अलग से आरक्षण की मांग कर रहा था। जाहिर है, राज्य सरकार का ताजा फैसला झटपट में लिया गया निर्णय बिलकुल नहीं लगता। इस पर काफी समय से मंथन चल रहा होगा।

कांग्रेस की जवाबी रणनीति

कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार ने कहा कि हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे, हमारी सरकार 40 दिनों के बाद सत्ता में आएगी, हम इसे खत्म कर देंगे। लेकिन कांग्रेस पर पहले से ही अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के आरोप लगते रहे हैं। ऐसे में देखना होगा कि आगामी गहमागहमी के बाद भी कांग्रेस इस बात पर टिकी रहती है या नहीं। अगर सचमुच कांग्रेस सत्ता में आती है तो वो कोक्कालिगा और लिंगायत जो कर्नाटक में निर्णायक मतदाता समुदाय है, उन्हें नाराज करने का जोखिम उठा सकती है? राजीव गांधी के समय में लिंगायतों को नाराज करने का खामियाजा कांग्रेस को अभी तक चुकाना पड़ रहा है। ये 28 साल पुरानी बात है जब वीरेंद्र पाटिल कर्नाटक के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। उस वक्त लिंगायत समुदाय कांग्रेस के साथ हुआ करता था। फिर 1990 में कर्नाटक के कुछ हिस्सों में दंगे हुए। इस पर तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी ने वीरेंद्र पाटिल को एयरपोर्ट पर बुलाकर मुख्‍यमंत्री पद से इस्तीफा देने का आदेश दिया। अफवाह फैली कि राजीव ने पाटिल से बात तक नहीं कि और हटाने का फैसला सिर्फ कुछ मिनटों में ले लिया। फिर इस मुद्दे को चुनाव में लिंगायतों के बीच उनके अपमान के तौर पर वीरेन्द्र पाटिल ने प्रचारि‍त किया। नतीजा यह हुआ कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जनता दल के हाथों शिकस्त मिली।

अदालत में चुनौती देंगे मुस्लिम समुदाय के लोग

मुस्लिम नेताओं ने कहा है कि वे राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ अदालत का रुख करेंगे। सरकार के फैसले के बाद मुस्लिम समुदाय को अब आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) कोटे में प्रतिस्पर्धा करनी पड़ेगी जो पारिवारिक आय के आधार पर निर्धारित होता है। राज्य सरकार के फैसले पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए एक मुस्लिम नेता ने आरोप लगाया कि समुदाय के अधिकारों को छीना जा रहा है। वहीं, फैसले के खिलाफ कुछ मुस्लिम नेताओं ने बैठक की और राज्य सरकार के निर्णय को अस्वीकार करते हुए अदालत में चुनौती देने का संकल्प लिया। उन्होंने कहा कि भाजपा ने अगला विधानसभा चुनाव जीतने के लिए यह राजनीतिक कदम उठाया है। उलेमा काउंसिल के सदस्य और जामिया मस्जिद के मौलवी मकसूद इमरान ने कहा कि आज मुस्लिमों की शिक्षा में स्थिति अनुसूचित जाति(एससी) और अनुसूचित जनजाति(एसटी) से भी नीचे है। आप मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार का अंदाजा लगा सकते हैं। उन्होंने कहा कि हम सड़कों पर नहीं उतरेंगे न ही सड़कों पर हंगामा करेंगे। हम अपने अधिकार के लिए कानूनी लड़ाई लड़ेंगे।  

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