डिफेंस के साथ ही होगा हिटबैक, गोल्डन डोम को लेकर कूद रहे थे ट्रंप, मोदी ने निकाल दिया सुदर्शन चक्र

15 अगस्त को लाल किले की प्रचारी से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक नई रक्षा प्रणाली 'सुदर्शन चक्र' की घोषणा की थी। पीएम ने बताया था कि ये देश की सुरक्षा के लिए एक मजबूत कवच बन सकती है। ये सिर्फ दुश्मन के हवाई हमलों से बचाव ही नहीं करेगा, बल्कि हिटबैक भी करेगा। जिसके बाद से ही इसकी तुलना अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के 'गोल्डन डोम' से की जाने लगी।
श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र के बारे में कौन नहीं जानता। उन्होंने गीता ज्ञान के बाद जब अर्जुन को पूर्णरूप में दर्शन दिए तब भी यह सुदर्शन चक्र उनकी शोभा बढ़ा रहा था। कुछ धर्मग्रंथों के मुताबिक इसका निर्माण ब्रह्मा, विष्णु और महेश की संयुक्त ऊर्जा से हुआ था और देवताओं के गुरु बृहस्पति ने इसे भगवान विष्णु को चक्र दिया था। वहीं इतिहास में इसको लेकर और भी कई सारी कहानियां हैं। लेकिन आज हम कहानियों पर नहीं जाते हैं। 15 अगस्त को लाल किले की प्रचारी से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक नई रक्षा प्रणाली 'सुदर्शन चक्र' की घोषणा की थी। पीएम ने बताया था कि ये देश की सुरक्षा के लिए एक मजबूत कवच बन सकती है। ये सिर्फ दुश्मन के हवाई हमलों से बचाव ही नहीं करेगा, बल्कि हिटबैक भी करेगा। जिसके बाद से ही इसकी तुलना अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के 'गोल्डन डोम' से की जाने लगी।
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एयर स्पेस सुरक्षा का लेकर दुनिया की सोच में बदलाव
दुनियाभर में एयर स्पेस सुरक्षा का लेकर फोकस बढ़ा है। इजरायल-हमास जंग ने एयरस्पेस सुरक्षा को लेकर दुनिया की सोच में बदलाव लाने का काम किया। साथ ही ऑपरेशन सिंदूर ने भी मजबूत एयर डिफेंस सिस्टम कितना जरूरी है, इसे हाइलाइट किया। अमेरिका ने भी पहले तो ऐलान किया था कि वे इजरायल के आयरन डोम सिस्टम की तरह ही गोल्डन डोम बनाएंगे। फिर अमेरिका ने अपने मिसाइल डिफेंस सिस्टम गोल्डन डोम का डिजाइन भी चुन लिया है। अब गोल्डन डोम का मकसद अमेरिका पर होने वाले संभावित हवाई हमलों के खतरे से निपटना है। गोल्डन डोम बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइलों से भी सुरक्षा दे पाएगा। यह सिस्टम अंतरिक्ष आधारित सेंसर से लैस होगा और गोल्डन डोम सैटेलाइट के एक पूरे नेटवर्क पर काम करेगा। यह आने वाले खतरों का पता लगाएगा, उन्हें ट्रैक करेगा और फिर नष्ट कर देगा। अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने कहा है कि अमेरिका ने भविष्य के 'गोल्डन डोम' मिसाइल डिफेंस सिस्टम के लिए एक डिजाइन चुन लिया है। यह सिस्टम उनके कार्यकाल के आखिर तक ऑपरेशनल हो जाएगा।
स्वदेशी IADWS एयर डिफेंस सिस्टम क्यों है खास?
बढ़ते वैश्विक खतरे और सीमापार से हो रही साजिशों को देखते हुए भारत ने एक और बड़ा कदम उठाया है। देश की वायु रक्षा को मजबूती देने के लिए डीआरडीओ ने 23 अगस्त को ओडिशा के तट पर इंटिग्रेटेड एयर डिफेंस वेपन सिस्टम आईएडीडब्ल्यूएस का पहला उड़ान परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा किया। ये उपलब्धि भारत की वायु रक्षा प्रणाली को और मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा रणनीतिक पड़ाव है। ये सिस्टम आधुनिक युद्ध के बढ़लते स्वरूप के अनुरूप तैयार किया गया है जो न केवल मिसाइलों से बल्कि ड्रोन, फाइटर जेट्स और अन्य हवाई खतरों से देश को सुरक्षित रखने में सक्षम है। डीआरडीओ ने इस उपलब्धि की जानकारी एक्स पर साझा करते हुए लिखा है कि इंटिग्रेटेड एयर डिफेंस वेपन सिस्टम के पहले उड़ान परीक्षण को 23 अगस्त को दोपहर लगभग साढ़े बारह बडे ओडिशा के तट पर पूरा किया गया। आईएडीडब्ल्यूएस से बहुस्तरीय वायु रक्षा प्रणाली है, जिसमें पूरी स्वदेशी तकनीकों से विकसित सर्फेस टू सर्फेस एयर मिसाइल, एडवांस वेरी शार्ट रेंज एयर डिफेंस सिस्टम और उच्च शक्ति वाली लेजर आधारित एनर्जी वेपन शामिल है।
मिसाइल खतरों और साइबर हमलों के विरुद्ध भारत की ढाल
भारत एकीकृत वायु कमान एवं नियंत्रण प्रणाली (IACCS) का संचालन करता है, जिसने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तानी मिसाइल हमलों का सफलतापूर्वक मुकाबला किया। इसने ऐसा सबसे पहले थल सेना, वायु सेना और नौसेना की वायु रक्षा प्रणालियों को एक ही प्रणाली में एकीकृत करके किया, जिससे वास्तविक समय में आने वाले खतरों पर नज़र रखी जा सके और उन्हें निष्क्रिय किया जा सके। IACCS ने भारत को एक "नेट-केंद्रित परिचालन क्षमता" प्रदान की, जो आज के युद्ध में अत्यंत महत्वपूर्ण है। मूलतः, IACCS वायु रक्षा प्रणालियों जैसे रडार, निगरानी प्रणालियाँ जैसे AWACS (एयरबोर्न वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम्स), और लड़ाकू विमानों का समन्वय, एकीकरण और नियंत्रण करता है। बदले में IACCS सेना की परिस्थितिजन्य जागरूकता को बढ़ाता है, जिससे उसे खतरे के प्रकार के आधार पर सैनिकों, उपकरणों या अन्य संसाधनों को तैनात करने में मदद मिलती है। कुछ रिपोर्टों के अनुसार, ऐसा माना जा रहा है कि सुदर्शन चक्र को भारत के मौजूदा हवाई रक्षा ढाँचे के साथ एकीकृत करने के लिए तैयार किया जाएगा। इसे IACCS के केंद्र में रखकर विकसित किए जाने की संभावना है, जिसमें सेना का स्वदेशी आकाशतीर नेटवर्क भी शामिल है। सुदर्शन चक्र उन्नत निगरानी, अवरोधन और जवाबी हमले की क्षमताओं को एकीकृत करेगा, जिससे हवा, ज़मीन, समुद्र और साइबरस्पेस में खतरों को तुरंत बेअसर किया जा सकेगा। विश्लेषकों के अनुसार, सुदर्शन चक्र पारंपरिक मिसाइल रक्षा से आगे भी जाएगा। पारंपरिक रक्षा प्रणालियों के विपरीत, सुदर्शन चक्र में एक आक्रामक घटक भी होने की उम्मीद है, जो सटीक प्रहार के साथ-साथ हमले को बेअसर करने में भी सक्षम होगा। यह कवच निगरानी, साइबर सुरक्षा और वायु रक्षा प्रणालियों की एक विस्तृत श्रृंखला को एकीकृत करके स्तरित सुरक्षा प्रदान करेगा, जो सीमाओं पर और प्रमुख बुनियादी ढाँचों के आसपास लंबी दूरी की मिसाइलों, विमानों और मानव रहित हवाई वाहनों का मुकाबला करने में सक्षम है। इसकी एक विशिष्ट विशेषता इसका सेंसर ग्रिड होगा, जो अंतरिक्ष, वायु और भू-आधारित सेंसरों के संयोजन से निर्मित होगा और न केवल पारंपरिक मिसाइलों, बल्कि स्टील्थ प्लेटफ़ॉर्म और हाइपरसोनिक वाहनों का भी पता लगाने में सक्षम होगा। 'मेक इन इंडिया' पहल के तहत पूरी तरह से विकसित, यह कार्यक्रम स्वदेशी अनुसंधान, विकास, विनिर्माण और उन्नयन पर आधारित होगा।
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भारत का सुदर्शन चक्र
यह घोषणा ऑपरेशन सिंदूर के बाद की गई है, जिसके दौरान पाकिस्तान ने भारतीय सैन्य प्रतिष्ठानों, लड़ाकू विमानों और शहरी केंद्रों को निशाना बनाने की कोशिश की थी। भारतीय रक्षा प्रणालियों ने इन हमलों को सफलतापूर्वक नाकाम कर दिया, जिससे देश की मौजूदा रक्षात्मक ताकत उजागर हुई। अपने संबोधन के दौरान, प्रधानमंत्री ने कहा था कि हमने दुनिया को अपनी क्षमताएँ दिखाई हैं और साबित किया है कि भारत किसी भी तरह के युद्ध का सामना करने के लिए तैयार है। हमने ऑपरेशन सिंदूर में इसका प्रदर्शन किया। पाकिस्तान ने हमारे सैन्य ठिकानों, नागरिक क्षेत्रों और हमारे मंदिरों पर हमला किया, लेकिन हमारी वायु रक्षा प्रणालियों हमारे सुदर्शन चक्र ने उनके सभी हमलों को विफल कर दिया। मिशन सुदर्शन चक्र, विशेष रूप से रक्षा और महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे के क्षेत्र में, आत्मनिर्भर भारत के लिए सरकार के व्यापक प्रयासों के अनुरूप है। यह घोषणा साइबर युद्ध, हाइब्रिड खतरों और रणनीतिक संपत्तियों की तोड़फोड़ को लेकर बढ़ती वैश्विक चिंताओं के बीच की गई है। प्रधानमंत्री मोदी का स्वदेशी तकनीक पर ज़ोर सुरक्षा ढांचे में राष्ट्रीय संप्रभुता को मज़बूत करता है। यह अत्याधुनिक रक्षा पहल राष्ट्र के भविष्य की सुरक्षा के लिए एक रणनीतिक प्रतिबद्धता है और सांस्कृतिक लोकाचार और अत्याधुनिक नवाचार के सम्मिश्रण को दर्शाती है, जो भारत को अगले दशक की चुनौतियों का सामना लचीलेपन और तकनीकी कौशल के साथ करने के लिए तैयार करती है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह रक्षा प्रणाली, जब चालू और तैनात हो जाएगी, तो हमारी रक्षा का एक महत्वपूर्ण स्तंभ होगी, जो तेजी से जटिल होते सुरक्षा परिदृश्य में उभरते हवाई खतरों का मुकाबला करने के लिए अत्याधुनिक स्वदेशी तकनीक का मिश्रण करेगी।
इंटिग्रेटेड एयर डिफेंस वेपन सिस्ट क्या है?
IADWS एक बहुस्तरीय वायु रक्षा प्रणाली है। यह एक एकल हथियार नहीं, बल्कि हवा से आने वाले खतरों को कम करने के लिए संगठित तत्वों का एक संयोजन है। रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि एक प्रभावी IADWS तीन कार्य करता है - वायु निगरानी, युद्ध प्रबंधन और हथियार नियंत्रण। वायु निगरानी को अक्सर वायु रक्षा प्रणाली की "आँखें" कहा जाता है। एक रडार IADWS के कवरेज क्षेत्र में प्रवेश करने वाले किसी विमान का "पता" लगाएगा, जबकि "आरंभ" फ़ंक्शन रडार रिटर्न को "ट्रैक" में बदल देता है। "पहचान" फ़ंक्शन ट्रैक की जाँच करता है और उसे मित्र, शत्रु या अज्ञात के रूप में वर्गीकृत करता है। निगरानी के बाद, IADWS युद्ध प्रबंधन में प्रवेश करता है, जो किसी खतरे की पहचान करने से लेकर उसके विरुद्ध कार्रवाई करने तक का संक्रमण काल है। कई देशों ने अपने स्वयं के IADWS विकसित किए हैं; अमेरिका के पास पैट्रियट मिसाइल प्रणाली के साथ-साथ टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस (थाड) भी है। रूस के पास S-400 है जबकि इज़राइल के पास आयरन डोम है।
IADWS का रणनीतिक महत्व
IADWS का सफल परीक्षण भारत की स्वदेशी रक्षा क्षमता में एक बड़ा कदम है। यह प्रणाली विभिन्न प्रकार के हवाई खतरों जैसे ड्रोन, क्रूज मिसाइल, हेलीकॉप्टर और कम ऊंचाई पर उड़ने वाले विमान को नष्ट करने में सक्षम है। इसकी रेंज 30 km तक है, जो इसे छोटी और मध्यम दूरी के खतरों से निपटने के लिए आदर्श बनाती है। यह प्रणाली न केवल छोटी दूरी के खतरों को रोकती है, बल्कि भविष्य में इसे लंबी दूरी के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। यह सुदर्शन चक्र मिशन की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है। इसका उद्देश्य 2035 तक एक मजबूत, स्वदेशी रक्षा कवच विकसित करना है, जो निगरानी, साइबर सुरक्षा और भौतिक सुरक्षा को एकीकृत करेगा।
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