अमेरिका में मानवाधिकार कितना सुरक्षित? कैसे फॉरेन पॉलिसी और डिप्‍लोमेसी के किंग बन गए जयशंकर

Jaishankar
अभिनय आकाश । Apr 15 2022 6:06PM

मानवाधिकार का मामला हो या ऑयल डील का दोनों ही विषय पर भारत के विदेश मंत्री के जवाब ने अमेरिका को इस बात का भान करा दिया है कि अब भारत बदल गया है। उसकी फॉरेन पॉलिसी बदल गई है। वो जवाब देना भी जानता है और वो भी जोरदार ढंग से तथ्यों के साथ।

आज आपको बचपन में लिए चलते हैं। हमने-आपने अपने बचपन के दिनों में खिलौने से खूब खेला है। सबसे पसंदीदा खिलौना बंदूक, जिसे थाम कर अक्सर बच्चे कहा करते हैं कि मैं बड़ा होकर पुलिस बनूंगा। लेकिन क्या हो अगर कोई बच्चा वहीं खिलौने वाली बंदूक थामे घर या गली से बाहर निकले और तभी एक तेज आवाज के साथ आती गोली उसके सीने के पार निकल जाए। गोली चलाने वाला कोई और नहीं बल्कि वो शख्स हो जिसे हम नागरिकों के अधिकार और उसके जान की हिफाजत के लिए जानते हैं और पुलिस कहकर संबोधित करते हैं। ये कोई कपोर कल्पना नहीं बल्कि वास्तवकिता का कटु सत्य है। ये ) अमेरिकी राज्य ओहायो के क्लीवलैंड शहर की बता है। 22 नवंबर 2014 का दिन जब 12 साल का एक लड़का तामिर राइस एक खिलौना गन लेकर सड़क पर निकलता है। लेकिन वो थोड़ी ही दूरी पर पुलिस की गोली का शिकार हो जाता है। बाद में पता चलता है कि कॉल मिली थी कि एक अश्वेत लड़का गन लेकर रोड पर है और वो आते-जाते लोगों को निशाना बना सकता है। उसे रोककर पूछताछ की बजाय 46 साल के श्वेत पुलिसकर्मी टिमोथी लेमैन ने तामिर को सीधे गोली मार दी थी। इस वारदात से भी तब अमेरिका सुलग उठा था। लेकिन ये कोई पहली और एकलौती घटना नहीं है। आपको 8 मिनट 46 सेकेंड का वो वीडियो तो जरूर याद होगा जब पुलिस ऑफिसर डेरेक शॉविन जॉर्ज़ फ़्लॉयड की गर्दन को घुटने से दबाता नजर आया। इस दौरान जॉर्ज बार-बार कहता सुनाई दे रहा था कि उसे सांस लेने में दिक्कत हो रही है। आई कान्ट ब्रीद, आई कान्ट ब्रीद। सांस लेने में दिक्कत की वजह से जॉर्ज बेहोश हो गया और फिर उसकी मौत हो गई। नतीजा कई शहरों में भारी आगजनी और हिंसा के रूप में सामने आया। इसी साल न्यूयॉर्क के जॉन एफ कैनेडी इंटरनेशनल एयरपोर्ट के बाहर भारतीय मूल के एक सिख टैक्सी ड्राइवर के साथ मारपीट और पगड़ी उछालने की घटना सामने आई थी। आप कह रहे होंगे कि आज हम अमेरिका की इन घटनाओं का जिक्र क्यों कर रहे हैं। दो इसकी वजह साफ है कि कभी-कभी इतिहास के सहारे सामने वाले को आईना दिखाना जरूरी होता है। आज का पूरा विश्लेषण भारत की बदलती फॉरेन पॉलिसी, मानवाधघिकार पर अमेरिका के डबल स्टैंडर्ड और मोदी के गो टू मैन के ऊपर है। 

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भारत भी मॉनिटर कर रहा है अमेरिका के मानवधिकार वाले मुद्दे

विदेश मंत्री एस जयशंकर एक सवाल के जवाब में कहा कि बैठक के दौरान मानवाधिकार के मुद्दे पर बात नहीं हुई लेकिन अतीत में इस पर चर्चा हुई थी। उन्होंने कहा यह विषय पहले सामने आया था। यह तब सामने आया था, जब विदेश मंत्री ब्लिंकन भारत आए थे। मुझे लगता है कि अगर आप उसके बाद की प्रेस वार्ता को याद करे तो मैं इस तथ्य को लेकर बेहद मुखर था कि हमने इस मुद्दे पर चर्चा की और मुझे जो कहना था वह कहा। लोग हमारे बारे में अपना विचार रखने का हक़ रखते हैं। लेकिन उसी तरह हमें भी उनके बारे में अपना विचार रखने का हक़ है। हमें उन हितों के अलावा लॉबियों और वोट बैंक पर भी बोलने का अधिकार है, जो इन्हें हवा देते हैं। हम इस मामले में चुप नहीं रहेंगे. दूसरों के मानवाधिकारों को लेकर भी हमारी राय है। ख़ासकर जब इनका संबंध हमारे समुदाय से हो। मैं आपको कह सकता हूँ कि अमेरिका समेत बाक़ियों के यहाँ मानवाधिकार की स्थिति को लेकर हमारे पास कहने के लिए है। दरअसल, पूरा मामला मानवधिकार से जुड़ा है और खुद को इसका सेल्फ डेक्लेयर्रड चैंपियन मानने वाले अमेरिका से भी। 

क्या है पूरा मामला

अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा है कि अमेरिका भारत में कथित रूप से कुछ सरकारी अधिकारियों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन की घटनाओं में बढ़ोतरी समेत ‘‘हालिया कुछ चिंताजनक घटनाक्रम’’ पर नजर रख रहा है। ब्लिंकन ने सोमवार को यहां ‘टू प्लस टू’ मंत्रिस्तरीय बैठक के समापन के बाद अमेरिका के रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन और भारतीय समकक्षों विदेश मंत्री एस जयशंकर और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में यह टिप्पणी की। ब्लिंकन ने अपनी प्रारंभिक टिप्पणी में कहा, ‘‘हम सरकार, पुलिस और जेल के कुछ अधिकारियों द्वारा मानवाधिकार हनन के मामलों में वृद्धि समेत भारत में हाल के कुछ चिंताजनक घटनाक्रम पर नजर रख रहे हैं।’’ बहरहाल, उन्होंने इस बारे में विस्तार से जानकारी नहीं दी। ब्लिंकन ने कहा, ‘‘हम मानवाधिकारों की रक्षा करने जैसे हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम इन साझा मूल्यों को लेकर हमारे भारतीय साझेदारों के नियमित संपर्क में रहते हैं।’’ 

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दिशा रवि, मुनव्वर फारुकी की हिरासत पर सवाल

ब्लिंकन का बयान अमेरिकी विदेश विभाग की तरफ से भारत पर जारी 2021 की मानवधिकार रिपोर्ट को लेकर था। इस रिपोर्ट में भारत में मनमानी गिरफ्तारी, हिरासत में मौत, अल्पसंख्यकों के खिलाफ धार्मिक हिंसा, अभिव्यक्ति की आजादी, मीडिया पर प्रतिबंध, पत्रकारों पर मुकदमें और  बहुत ज्यादा प्रतिबंधात्मक कानूनों को लेकर चिंता जताई गई है। रिपोर्ट में इसके साथ ही कहा गया है कि सभी मुद्दों को पहले भी उठाया गया है लेकिन इसके बावजूद सरकार की तरफ से कोई जवाब नहीं दिया गया। इसके साथ ही रिपोर्ट में किसान आन्दोलन के दौरान सामने आई देश विरोधी टूलकिट के मामले में गिरफ्तार दिशा रवि का नाम है। कॉमेडी के नाम पर हिंदू देवी-देवताओं का मजाक बनाने वाले मुनव्वर फारूकी का जिक्र है। जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की बार-बार नजरबंदी का जिक्र है। इसके अलावा भीमा कोरेगांव विरोध के सिलसिले में कैद किए गए 15 कार्यकर्ताओं में से अधिकांश को जमानत देने से इनकार किया गया, इस पर भी विस्तृत चर्चा है। 81 वर्षीय कव‍ि वरवर राव और स्टेन स्वामी के मामलों की भी चर्चा है जिन्‍हें विशेष एनआईए (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) अदालत ने मेडिकल आधार पर कई गई जमानत याचिकाओं को भी खारिज कर दिया। इस रिपोर्ट में भारत सरकार के ट्विटर को किसान आंदोलन के दौरान फर्जी खबरें फैलाने वाले पत्रकारों के अकाउंट को बंद करने का निर्देश देने वाले फैसले की भी आलोचना की गई है। लेकिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश को मानवाधिकार के मुद्दे पर ज्ञान देने वाली रिपोर्ट में अमेरिकी की किसी भी घटना का कोई जिक्र नहीं है। यूएस स्टेट डिपार्टमेंट की इस रिपोर्ट में दुनिया के 194 देशों में मानवाधिकारों की स्थिति की समीक्षा की गई है। लेकिन अपने ऊपर उसने एक बार भी कोई नजर डालने की कोशिश नहीं की। अपने देश में घटित होने वाली घटनाओं को पूरी तरह अनदेखा कर दिया। 

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अमेरिका में मानवाधिकार की स्थिति को इन घटनाओं से समझें

अमेरिका को आइना भी उन्हीं की अंदाज में दिखाते हैं और खुद के ही पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा का बयान दोहराते हैं। जब अमेरिका में नस्ल, धर्म, वंश आदि के आधार पर होने वाले भेदभाव और मानवाधिकार की बढ़ती घटनाओं से वो इस कदर आहत हो गए थे कि इसका दर्द बयां करने से खुद को नहीं रोक पाए थे। उन्होंने कहा था कि लाखों-करोड़ों अमेरिकियों के साथ उनके रंग, धर्म, नस्ल आदि के आधार पर भेदभाव का शिकार होना पड़ता है। अमेरिकी जनमानस ने इन भेदभावों को सामान्य मान लिया है। अब जरा आपको मानवाधिकार के उल्लंघन के मामले में अमेरिका के श्याम इतिहास से रूबरू करवाते हैं। अफ्रीकी मूल की 26 साल की महिला ब्रियोना टेलर की घटना को भला कौन भूल सकता है। जब टेलर की हत्या पुलिस ने उसके घर में घुसकर कर दी थी। पुलिस की तरफ से टेलर को आठ गोलियां मारी गई थीं। इसी तरह 23 अगस्त, 2020 को 29 वर्षीय अफ्रीकन अमेरिकन जैकब ब्लैक कार में बैठ रहा था तब पुलिस वालों ने उस पर सात गोलियां दागीं। इस गोलीबारी में जैकब बुरी तरह जख्मी हो गया था।  अमेरिका की खुफिया एजेंसी एफबीआई की जारी एक रिपोर्ट में कहा गया कि वर्ष 2019 में 8,302 घृणा आधारित अपराध पुलिस में दर्ज हुए और इनमें 57.6 प्रतिशत अपराध नस्लीय, जातीय और वंशवादी भेदभावों पर आधारित थे। कुछ ऐसा ही हुआ था 43 साल के श्वेत व्यक्ति एरिक गार्नर के साथ। 17 जुलाई, 2014 की बात है, घड़ी में करीब साढ़े तीन बजे होंगे। एरिक गार्नर नाम का व्यक्ति, उम्र, 43 साल। उसका किसी से झगड़ा हो रहा था। वहां से गुज़र रहे पुलिसवालों की नज़र पड़ी। वे उस ओर बढ़े। उन्होंने एरिक को घेर लिया, कहने लगे, तुम खुली सिगरेट बेच रहे हो। ये सुनकर एरिक झल्ला पड़े। उन्होंने कहा- हर बार मुझे देखते ही तुम लोग मुझसे भिड़ जाते हो। इससे मैं थक गया हूं, मैंने कुछ नहीं किया, कुछ नहीं बेचा। प्लीज, मुझे अकेला छोड़ दो। न्यूयॉर्क सिटी पुलिस डिपार्टमेंट के ऑफिसर ने  एरिक को हथकड़ी लगाने की कोशिश की। जवाब में  एरिक ने हथकड़ी लगाने के लिए हाथ आगे बढ़ाने से मना कर दिया था। इसके बाद एक पुलिस ऑफिसर ने उसे जमीन पर गिराकर उसकी गर्दन को कोहनी से दबा दिया। जूडो में इस तरह गर्दन को लपेटना चॉकहोल्ड कहलाता है। गंभीर अस्थमा के मरीज एरिक गिड़गिड़ाते हुए कहने लगे- आई कान्ट ब्रीद, आई कान्ट ब्रीद.. एक स्वर में, बिल्कुल छटपटाते हुए लगातार, और आठ बार, और फिर वो बेहोश हो गया। कुछ मिनटों बाद वहां ऐम्बुलेंस आई। ये पता होते हुए कि एरिक दम घुटने से बेहोश हुए हैं, ऐम्बुलेंस के लोगों ने न उन्हें ऑक्सीजन दिया, न उनका कोई इमरजेंसी उपचार किया। बेहोश एरिक बस स्ट्रेचर पर लादकर ऐम्बुलेंस में डाल दिए गए। कुछ मिनटों बाद जब ऐम्बुलेंस रिचमंड यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर पहुंची, तो एरिक दुनिया से जा चुके थे। जिसके बाद तीन शब्द उसके जीवन के आख़िरी तीन शब्द बन गए। लेकिन ये तीन शब्द आपको 244 साल पहले आज़ाद हुए एक देश का ऐसा कुरूप चेहरा दिखाते हैं जो उसके दावों से उलट न तो महान है और न गौरवशाली।

रूस के साथ ऑयल डील पर अमेरिका को दिखाया आईना

ये तो हो गई मानवाधिकार के मुद्दे की बात लेकिन विदेश मंत्री एस जयशंकर की अमेरिका की यात्रा के दौरान एक और वाक्या काफी चर्चित रहा। यूक्रेन और रूस के जंग के बीच भारत किसका साथ दे। इसको लेकर तमाम तरह के विश्लेषक से लेकर अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार और पूर्व डिप्लोमैट की अपनी-अपनी राय है। अमेरिकी प्रतिबंधों के बीच रूस से तेल खरीदने के मुद्दे को लेकर भी चर्चा खूब होती है। खुद को सुपरपॉवर मुल्क कहने वाला अमेरिका भी इसको लेकर वक्त बे वक्त आंखे दिखाता रहता है। लेकिन भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस मुद्दे को लेकर भी अमेरिकी की कलई पूरे विश्व के सामने खोलकर रख दी। जब जयशंकर ने दो टूक कहा कहा कि कि भारत रूस से जितना तेल एक महीने में खरीदता है, संभवत: उतना तेल तो यूरोपीय देश उससे एक दोपहर तक खरीद लेते हैं। आपने तेल खरीद का उल्लेख किया और आप रूस से ऊर्जा खरीद की बात कर रहे हैं...मैं आपको सुझाव दूंगा कि आप यूरोप पर ध्यान दें। हम ईधन सहित कुछ ऊर्जा खरीद करते हैं जो हमारी ऊर्जा सुरक्षा के लिये जरूरी है। लेकिन अगर आंकड़ों पर गौर करें तब संभवत: हमारी एक महीने की (रूसी तेल की) खरीद यूरोप की एक दोपहर की खरीद से कम है।

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तीन साल में जयशंकर ने किया साबित- विदेश मंत्री पद के लिए वे बेस्ट चॉइस

मानवाधिकार का मामला हो या ऑयल डील का दोनों ही विषय पर भारत के विदेश मंत्री के जवाब ने अमेरिका को इस बात का भान करा दिया है कि अब भारत बदल गया है। उसकी फॉरेन पॉलिसी बदल गई है। वो जवाब देना भी जानता है और वो भी जोरदार ढंग से तथ्यों के साथ। अमेरिका को दोनों ही बार दो टूक जवाब देने वाले एस जयशंकर मोदी सरकार पार्ट 1 में सुषमा स्वराज के साथ काम करते हुए पीएम के अनऑफिशियल एडवाइजर के  रूप में सक्रिय थे। लेकिन 2019 में जब सुषमा स्वराज की जगह किसी और को विदेश मंत्री बनाए जाने की बात आई तो पीएम मोदी ने एस जयशंकर पर भरोसा जताया। इसके पीछे की भी एक दिलचस्प कहानी है। आपको याद होगा वो दौर जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। सीएम रहते हुए मोदी ने कई देशों की यात्रा की। लेकिन कई देशों के राजदूतों से उस दौरान मोदी को उचित प्रोटोकॉल नहीं मिला। वजह विश्व के चौधरी अमेरिका का 2002 के गुजरात दंगों की वजह से वीजा नहीं दिया जाना रहा। लेकिन 2012 का चीन दौरा मोदी के लिए काफी खास रहा। चीन के गणमान्य हस्तियों से मोदी की मुलाकात हुई और इसकी शुरुआत से लेकर पूरी पटकथा जिस शख्स ने लिखी उसका नाम एस जयशंकर ही है। जो उस वक्त बतौर भारतीय राजदूत चीन में तैनात थे। कहा जाता है कि वहीं से दोनों के बीच जो कैमेस्ट्री बनी उसका उपयोग ज्योग्राफिक्ल इक्वेंशन को साधने के लिए हालिया दिनों में किया जा रहा है। करीब तीन साल के कार्यकाल में जयशंकर ने साबित कर दिया है कि वह इस पद के लिए बेस्‍ट चॉइस थे। सिर्फ अमेरिका ही नहीं, चीन के बारे में भी जयशंकर की डिप्‍लोमेटिक समझ के लोग कायल हैं। हाल के दिनों में यूक्रेन और रूस की जंग के बीच जिस तरह से जयशंकर ने रूस और अमेरिका दोनों को साध रखा है। एक भारत की तरफ से मध्यस्थता की बात करता नजर आता है तो दूसरा उसे अपना अहम साझेदार बताया है। 

-अभिनय आकाश 

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