हाथी पर इंदिरा, ट्रेन में राजीव ने किया सफर, पैदल ही निकल पड़े चंद्रशेखर, जब पदयात्राओं ने बदल दी भारत की सियासी तस्वीर

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अभिनय आकाश । Sep 8 2022 5:49PM

कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस लोगों से संवाद बनाने निकली है या फिर अपनी पहचान बचाने निकली है, इसकी जवाब तो हमें आने वाले वक्त में मिल जाएगा। लेकिन आपको बता दें कि राहुल गांधी जैसी पदयात्राएं देश में पहले भी हुईं हैं।

कांग्रेस के लिए निराशा और हताशा से भरी लंबी रात की सुबह कब होगी? नए अध्यक्ष के चुनाव और भारत जोड़ो यात्रा की बदौलत पार्टी तमाम बाधाओं से उबरकर पार्टी खुद को खड़ा कर सकेगी? आज की सियायत में ये सवाल देश में सबसे अधिक पूछा जा रहा है। देश में गौतमबुद्ध, शंकराचार्य, गुरुनानक से लेकर महात्मा गांधी और विनोबा भावे तक की पदयात्रा का अपना स्वर्णिम इतिहास रहा है। महात्मा गांधी जब चला करते थे तो लोग जुड़ते चले जाते थे। वो कारवां इतना बड़ा हुआ करता था कि परिवर्तन की दिशा इस देश को आजादी में ले गई। लेकिन इससे इतर राजनीतिक दलों के नेताओँ की तरफ से भी पदयात्रा निकाली गई। यात्राएं इस देश की भीतर बहुत हुईं हैं और हर यात्रा का कोई न कोई प्रतिफल उस राजनीतिक दल या नेता के भीतर जरूर आया है। देश में अब तक कई सियासी यात्राएं हुई है, उनमें से कुछ ने राष्ट्रीय या राज्य सियासत पर अपनी गहरी छाप छोड़ी है। लोगों ने उनसे संवाद बनाया। उनके अपने सरोकार लोगों से जुड़े और एक संवाद की स्थिति ने सत्ता तक भी पहुंचाया है। असल में जब भी कोई पार्टी या कोई नेता चुनावी राजनीति में कमजोर होता है तो वो इस तरह की पदयात्राओँ पर निकल पड़ता है। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस लोगों से संवाद बनाने निकली है या फिर अपनी पहचान बचाने निकली है, इसकी जवाब तो हमें आने वाले वक्त में मिल जाएगा। लेकिन आपको बता दें कि राहुल गांधी जैसी पदयात्राएं देश में पहले भी हुईं हैं। चाहे वो उनकी दादी इंदिरा गांधी के द्वारा की गई हो या फिर पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की तरफ से निकाली गई एकता यात्रा हो। यात्राओँ के उस सिलसिले में इतिहास के पन्नों को खोलते हुए आज आपको देश की अहम सियासी यात्राओं के बारे में बताएंगे। 

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हाथी पर चढ़कर सत्ता में लौटी इंदिरा

वर्ष 1977 के लोक सभा चुनाव में इंदिरा गांधी बुरी तरह हार गई थीं और ये कहा जाने लगा था कि अब उनका राजनीतिक करियर समाप्त हो जाएगा। लेकिन तभी बिहार में 500 की आबादी वाले गांव में दलितों का नरसंहार हुआ था जिसके बाद इंदिरा गांधी ने बेलछी जाने का फैसला किया और दिल्ली से हवाई जहाज के जरिए सीधे पटना और वहां से कार से बिहार शरीफ पहुंच गईं। तब तक शाम ढल चुकी थी और मौसम बेहद खराब था। नौबत इंदिरा गांधी के वहीं फंस कर रह जाने की आ गई लेकिन वे रात में ही बेलछी पहुचने की जिद पर डटी रहीं। स्थानीय कांग्रेसियों ने बहुत समझाया कि आगे रास्ता एकदम कच्चा और पानी से लबालब है लेकिन वे पैदल ही चल पड़ीं।मजबूरन साथी नेताओं को उन्हें जीप में ले जाना पड़ा मगर जीप कीचड़ में फंस गई और फिर उन्हें ट्रैक्टर में बैठाया गया और जब ट्रैक्टर भी फंस गया तो इंदिरा गांधी ने वो किया जिसे देखकर साथी कांग्रेसी भी हैरान रह गए, इंदिरा गांधी ने अपनी साड़ी थामकर पैदल ही चल दीं तब  किसी ने हाथी मंगाकर इंदिरा गांधी और उनकी महिला साथी को हाथी की पीठ पर सवार किया। बिना हौदे के हाथी की पीठ पर उस उबड़-खाबड़ रास्ते में इंदिरा गांधी ने बियाबान अंधेरी रात में जान हथेली पर लेकर पूरे साढ़े तीन घंटे लंबा सफर तय किया। जब वे जब बेलछी पहुंची तो खौफजदा दलितों को ये दिलासा हुआ कि कोई नेता है जिन्हें उनकी फिक्र है औऱ जो सिर्फ दिल्ली में ही बैठ कर भाषण नहीं देता बल्कि दिल्ली से चलकर उनके बीच पहुंच जाता है। बेलछी यात्रा की इस यात्रा के बाद लोग आधी रोटी खाकर उन्हें सत्ता वापस लाने की बात करने लगे।

चंद्रशेखर की भारत एकता यात्रा और फिर प्रधानमंत्री का सफर

एक यात्रा आज से 39 साल पहले एक नेता ने की थी जिसे इंदिरा गांधी का युवा तुर्क कहा जाता था। उसने भी बिखरती पार्टी और कार्यकर्ताओँ में जोश भरने के लिए भारत एकता यात्रा की थी। जिसके बाद वो आगे चलकर देश का प्रधानमंत्री बना। चंद्रशेखर ने 6 जून 1983 को कन्याकुमारी के विवेकानंद स्मारक से भारत यात्रा की शुरुआत की। गुलाम भारत में जैसे गांधी ने पदयात्राओं के जरिये भारत की थाह लिए उसी तरह आजाद भारत की समस्याओं को चंद्रशेखर ने अपने पैरों से नापने की कोशिश की थी। जब चंद्रशेखर साल 1983 में तमिलानडु के एक गांव से गुजर रहे थे तो वहां पगडंडी पर एक बुजुर्ग महिला लालटेन लेकर खड़ी थी। गांव की एक बुजुर्ग महिला ने पूछा- पानी कब मिलेगा? पीने का पानी गांव में आता नहीं है। चंद्रशेखर ने कहा कि दिल्ली जाकर कहूंगा। जब संसद में वो भाषण देने के लिए खड़े हुए तो उन्होंने 6 चीजें ही बताई- रोटी, कपड़ा, मकान, पढ़ाई, दवाई और पानी। चंद्रशेखर ने संसद में कहा कि सरकारें चाहे जो आंकड़े पेश कर लें लेकिन देश की अधिकाशं आबादी आज भी इन बुनियादी चीजों से महरूम है। गांव की पगडंडियों और कस्बों से होते हुए करीब 3700 किलोमीटर की ये पद यात्रा 25 जून 1984 को दिल्ली के राजघाट पर समाप्त हुई। चंद्रशेखर ने भारत यात्रा की शुरुआत 3500 रुपए से की थी। इस दौरान खर्च यात्रा में शामिल लोग उठाते थे। वीपी सिंह की सरकार गिरने के बाद कांग्रेस ने चंद्रशेखर को पीएम पद के लिए समर्थन किया और 10 नवंबर 1990 को वो प्रधानमंत्री बने।

जब ट्रेन की सेंकेंड क्लास बागी में बैठ राजीव गांधी

1989 में चुनाव में हार मिलने के बाद राजीव गांधी ने साल 1990 में भारत यात्रा की शुरुआत की थी।1990 में पूर्व पीएम राजीव गांधी ने भारत रेल यात्रा की। उन्होंने ट्रेन के दूसरे दर्जे में बैठकर देशभर का दौरा किया, जिसके बाद उनका सियासी कद काफी बढ़ गया। हालांकि उनकी यात्रा उम्मीदों के मुताबिक परिणाम देने में कारगर साबित नहीं रही। कांग्रेस के अंतर्विरोध की वजह से यात्रा को सफल बनाने में उतनी कामयाबी हासिल नहीं हो पाई। जितनी उम्मीद की जा रही थी। राजीव आम लोगों के साथ अपनी यात्रा के जरिए जुड़ना चाह रहे थे। लेकिन पार्टी के भीतर गुटबाजी की वजह से भारत यात्रा को सफल बनाने में कामयाब नहीं हो पाए।

आडवाणी की रथ यात्रा

अयोध्या का जिक्र होता है तो साथ ही जिक्र राम मंदिर आंदोलन का भी होता है और साथ ही इससे जुड़े किरदारों का भी। रामजन्म भूमि आंदोलन का शंखनाद करने वाली लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा जिसने देश की राजनीति को हमेशा के लिए बदल कर रख दिया। गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक की ये यात्रा कई मायनों में ऐतिहासिक है। सितंबर 1990 में उन्होंने राम जन्मभूमि आंदोलन को आगे बढ़ाते हुए दक्षिण से अयोध्या तक 10 हजार किलोमीटर लंबी रथयात्रा शुरू की थी। इसका फायदा न सिर्फ आडवाणी को, बल्कि बीजेपी के सत्ता तक पहुंचने का रास्ता भी बना।

कांग्रेस की भारत जोड़ोयात्रा

आज़ादी की लड़ाई से आजादी के बाद तक विभिन्न दलों की लोगों तक पहुंच बनाने की कोशिश कहीं न कहीं रंग लाती दिखी है। कांग्रेस ने अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन की तर्ज पर भारत जोड़ो यात्रा की परिकल्पना का दावा किया है। कांग्रेस को लग रहा है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में होने वाली इस यात्रा का सियासी फायदा उनके पूर्व अध्यक्ष को भी होगा। कांग्रेस इसके जरिए संदेश देना चाह रही है कि पीएम नरेंद्र मोदी के सामने अगर कोई खड़ा हो सकता है तो राहुल गांधी ही है। नेताओं में फिलहाल राहुल ऐसे अकेले नेता है, जो लगातार संघ,बीजेपी खासकर पीएम मोदी को घेर रहे हैं। उनसे सवाल कर रहे हैं। आजादी के 36 बरस बाद एक प्रधानमंत्री चंद्रशेखर गद्दी संभालने से पहले भारत यात्रा पर निकले थे। कमोबेश राहुल का भी वही रूट है जिस पर चंद्रशेखर ने अपनी यात्राएं की थी। मसलन, चंद्रशेखर की यात्रा राजघाट पर खत्म हुई थी और राहुल गांधी  की यात्रा कश्मीर में खत्म होगी। 

अपने प्रदेश में जब नेता पदयात्रा पर निकले

कांग्रेस नेता वाई एस राजशेखर रेड्डी ने अप्रैल, 2003 में आंध्र प्रदेश में 1400किलोमीटर की यात्रा निकाली थी। इस यात्रा का व्यापक असर हुआ और राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी। 

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह की नर्मदा यात्रा एक धार्मिक और आध्यात्मिक यात्रा थी, हालांकि अपनी 3300 किलोमीटर लंबी पदयात्रा के दौरान उन्होंने मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से 100 से अधिकसीटों का दौरा किया। इस दौरान सिंह जनता से भी मिले और उनकी समस्याएं भी सुनी। इस यात्रा के बाद 2018 के आखिर में हुए मप्र विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 15 साल बाद जीत मिली। 

भाजपा ने जन आशीर्वाद यात्रा निकाली।इसमें 39 केंद्रीय मंत्रियों ने हिस्सा लिया और उन्होंने 22 राज्यों के 212 लोकसभा क्षेत्रों का दौरा किया और केंद्र सरकार की नीतियों के बारे में लोगों को बताया।

आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के जगनमोहन रेड्डी ने अपने पिता की तरह ही राज्यव्यापी पदयात्रा निकाली और इसके बाद 2019 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी की शानदार विजय हुई। 

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