Middle East New War: इजरायल को Mohra फिल्म के सुनील शेट्टी की तरह यूज कर रहा अमेरिका, ईरान अटैक को क्यों इसे कहा जा रहा मदर ऑफ ऑल वॉर?

मीडिल ईस्ट जंग का मैदान बनता नजर आ रहा है और इस बार प्रथम दृष्टया बारी ईरान की नजर आ रही है। ईरान की न्यूक्लियर वेपन को लेकर अमेरिका ने साफ कह दिया है कि वो ऐसा नहीं होने दे सकता और अमेरिका से ज्यादा चिंता इस बात की इजरायल को है।
1994 में राजीव राय की फिल्म मोहरा आपने देखी है। नहीं देखी तो हम बता देते हैं। फिल्म में मिस्टर जिंदाल का किरदार निभाने वाले नसीरुद्दीन शाह विशाल यानी सुनील शेट्टी को जेल से छुड़ाने के बाद एक फाइल सौंपते हैं। इस फाइल में दो प्रतिस्पर्धी गिरोहों के सदस्यों की तस्वीर होती है। उन्हें मारने का जिम्मा विशाल को सौंपा जाता है। विशाल एक एक करके अपराधियों को खत्म करता है। लेकिन बाद में विशाल को पता चलता है कि इस फाइल के आखिरी पन्ने पर किसी की तस्वीर लगी होती है। जिसके बारे में बताते हुए जिंदाल कहता है कि वो शख्स वो है जो सबकुछ जानते हुए भी अनजान बनने का ढोंग कर रहा है। उसने ही इन जैसे मुजरिमों को शह दे रखी है। ये और कोई नहीं बल्कि खुद मिस्टर जिंदाल ही होते हैं। बहरहाल, फिल्मों से निकलकर रियल लाइफ में चलते हैं। सीधे किसी देश में कार्रवाई के लिए सैनिक भेजने वाले पिछले इराक और अफगानिस्तान वाले कदम के बाद अमेरिका ने अपनी नीति में बदलाव करते हुए कुछ कुछ मोहरा फिल्म की स्टाइल में सुनील शेट्टी के रूप में इजरायल को आगे कर दिया है। हमास से जंग कौन लड़ेगा इजरायल, यमन के हूती विद्रोहियों से कौन भिड़ेगा इजरायल, हिजबुल्ला से टक्कर कौन लेगा इजरायल, यानी अपने वजूद बचाने के लिए हर किसी से इजरायल लड़ता-भिड़ता नजर आ रहा है और अमेरिका का मकसद अपने आप पूरा होता जा रहा है। मीडिल ईस्ट जंग का मैदान बनता नजर आ रहा है और इस बार प्रथम दृष्टया बारी ईरान की नजर आ रही है। ईरान की न्यूक्लियर वेपन को लेकर अमेरिका ने साफ कह दिया है कि वो ऐसा नहीं होने दे सकता और अमेरिका से ज्यादा चिंता इस बात की इजरायल को है। अमेरिका और ईरान के बीच वार्ता के 9 दौर चल चुके हैं। शुरू में बहुत सी चीजों की तरह डोनाल्ड ट्रंप को लग रहा था कि वो ईरान के ऊपर हावी हो जाएंगे। प्रतिबंध हटाने के दम पर ईरान मान जाएगा। लेकिन ईरान नहीं मान रहा और ट्रंप भी कह चुके कि मैं कॉन्फिडेंस नहीं हूं। अब इजराइल ने 13 जून को ईरान के खिलाफ हमले शुरू किए। इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि उनकी सेना ने ईरान के परमाणु संवर्धन कार्यक्रम के केंद्र पर हमला किय। उन्होंने कहा कि ऑपरेशन राइजिंग लॉयन का उद्देश्य इजराइल के अस्तित्व के लिए ईरानी खतरे को खत्म करना था।
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क्यों कहा जा रहा मदर ऑफ ऑल वॉर
इसे मदर ऑफ ऑल वार कहा जा रहा है। अब तक जितने भी अटैक हुए हैं, चाहे हमास पर इजरायल का अटैक या फिर गाजा पर हमला। चाहे रूस की तरफ से यूक्रेन पर किया गया विध्वंसक हमला हो। इसमें आप भारत के आतंकियों पर किए गए पाकिस्तान में घुसकर ऑपरेशन सिंदूर को भी रख सकते हैं। लेकिन इसे मदर ऑफ ऑल अटैक इसलिए कहा जा रहा है कि पहली दफा ऐसा हुआ है कि दो बराबर टक्कर के देश एक दूसरे के खिलाफ युद्ध में हैं। जैसे रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो हर किसी को पता था कि रूस पावरफुल है। भारत ने पाकिस्तान पर स्ट्राइक की तो दुनिया के सभी देश जानते थे कि इसमें 20 कौन साबित होगा। इजरायल के हमास पर अटैक का अंजाम सभी को पता था कि कौन भारी पड़ेगा। लेकिन इस बार की भिड़ंत थोड़ी अलग है। मिसाइल पावर में ईरान इजरायल से किसी भी मामले में कम नहीं है। उसके पास मिसाइलों का पूरा जखीरा है जो किसी भी दुनिया के पावरफुल देश को टक्कर दे सकता है।
ईरान के पास प्रॉक्सीज की कमी नहीं
इसके अलावा ईरान के पास हमास, हिजबुल्ला, हूती जैसे प्रॉक्सी हैं। ये अलग अलग देशों में ईरान के प्रॉक्सी हैं और लड़ाईयां लड़ रहे हैं। इसमें दिलचस्प होगा कि भले ही कमांडरों के खात्मे की खबर आती रहती है, हूती के हिज्बुल्ला के और हमास के लेकिन अमेरिका हो या इजरायल अभी तक इन ग्रुप्स के लड़ाकों पर पूरी तरह से काबू नहीं पा सका है। ऐसे में जब आप किसी देश के लड़ाकों पर काबू नहीं पा सके हैं तो आप सीधे उस देश पर काबू पा लेंगे?
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अमेरिका को क्यों चुभता है ईरान
अमेरिका के लिए आंखों का कांटा ईरान लंबे समय से है। अमेरिका की तरफ से ईरान पर कई सारे प्रतिबंध भी लगाए गए हैं। वहीं मीडिल ईस्ट में ईरान के बढ़ते प्रभाव कई सारे चरमपंथी जमात यमन में हूती, लेबनान में हिजबुल्लाह, इराक के अंदर चरमपंथी समूहों को ईरान का खुला समर्थन है, जिन्होंने क्षेत्र में अपनी मजबूत उपस्थिति स्थापित की है। अमेरिका के लिए ये समूह बड़ी चुनौती साबित हो रहे हैं। अब उसका मानना है कि बिना ईरान में सत्ता बदले बिना इराक और अफगानिस्तान में दबदबा नहीं कायम हो सकेगा।
ईरान के पास दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल भंडार
ईरान के पास तेल और गैस का बड़ा भंडार है। ईरान के पास दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल भंडार है। वहीं, गैस के मामले में वह दुनिया में दूसरे नंबर पर है। इसके साथ ही ईरान में दूसरे खनिज पदार्थ भी बड़ी मात्रा में हैं। ईरान की सीमा पाकिस्तान, अफगानिस्तान, अजरबैजान, इराक, तुर्की, आर्मेनिया और रूस से मिलती हैं। इस क्षेत्र में खनिज पदार्थों का विशाल भंडार है, जो बेशकीमती है। ईरान के जरिए ही खनिज से समृद्ध मध्य एशिया में पहुंचा जा सकता है। ईरान में प्रभुत्व स्थापित किए बिना यह संभव नहीं है। ईरान के पास तमाम प्रतिबंधों के बावजूद पैसों की कमी नहीं है। कई कच्चे तेल खरीदने वाले देश हैं। दुनिया का इकलौता शिया देश है और खुमैनी को अपना गुरु मानते हैं।
अब क्या?
यूरोपीय देशों और अमेरिका के विपरीत, तकनीकी रूप से इजरायल के पास किसी वार्ता पर अपनी अधिकतम शर्तें थोपने का कोई अधिकार नहीं है, जिसका वह पक्ष नहीं है। ईरान के खिलाफ इजरायल के गुप्त और (कभी-कभी) खुले अभियानों ने प्रतिशोध और हिंसा के एक स्व-पूर्ति चक्र में योगदान दिया है, जिसने पहले से ही उस कमजोर आधार को और कमजोर कर दिया है जिस पर तेहरान और वाशिंगटन एक-दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं। यह देखते हुए कि ईरान तेल अवीव और वाशिंगटन के साथ मिलकर काम करने के अपने दृष्टिकोण पर अड़ा हुआ है, अराघची सहित उच्चतम स्तर के ईरानी अधिकारियों ने स्पष्ट रूप से स्पष्ट कर दिया है कि वे ईरानी परमाणु स्थलों पर किसी भी इजरायली हमले के लिए अमेरिका को जिम्मेदार ठहराएंगे। ईरान रिव्ल्यूशनरी गार्ड के अनुसार, यह क्षेत्र में अमेरिकी सैन्य बुनियादी ढांचे सहित लक्ष्यों पर विनाशकारी और निर्णायक प्रतिक्रिया" को आमंत्रित करेगा। अतीत में, इराक में अमेरिकी ठिकाने आमतौर पर ईरान का पहला लक्ष्य (प्रॉक्सी या सीधे) रहे हैं।
अमेरिका खुद को दूर दिखाता, बैकडोर से करता सपोर्ट
इजरायल की तरफ से अटैक ऐसे वक्त में हुआ है जब अमेरिका ने इजरायली हमले की योजनाओं से खुद को बार-बार दूर रखा है, कम से कम सार्वजनिक तौर पर। अप्रैल में ही ट्रंप ने ईरान के परमाणु ढांचे पर हमला करने की इजरायली योजना का विरोध किया था और इस तरह के हमले का समर्थन करने से इनकार कर दिया था। अमेरिका आगे आकर तो कह रहा है कि हम कोई लड़ाई नहीं लड़ेंगे। सीधा हमला नहीं करेंगे वहीं दूसरी ओर बैकडोर से इजरायल का साथ भी दे दिया। इजरायल में इस वक्त प्रधानमंत्री अंदरूनी राजनीति से भी जूझ रहे हैं। नेतन्याहू ने संसद को भंग करने और समय से पहले चुनाव कराने के नेसेट के प्रयास को 63-51 के मामूली अंतर से जीत लिया। अपने गठबंधन पर भारी दबाव के साथ, इजरायल के प्रधानमंत्री ने चुनाव न कराने को सही ठहराने के लिए गाजा और ईरान पर दबाव बढ़ाने की कोशिश की है। उनके गठबंधन ने कहा कि गाजा में युद्ध और "ईरानी मुद्दे" को देखते हुए, इस समय चुनाव "देश को पंगु बना देंगे"। ईरान के खिलाफ इजरायली हमले इस तर्क को और बल देंगे।
ईरान-अमेरिका परमाणु वार्ता का अब क्या रह गया कोई मतलब?
अगर ईरान एनपीटी से हट जाता है, तो यह लगभग तय है कि ईरान-अमेरिका परमाणु वार्ता टूट जाएगी। संयुक्त राज्य अमेरिका का 1978 का परमाणु प्रसार रोकथाम अधिनियम वाशिंगटन को किसी भी रियायत की पेशकश करने से रोक देगा, जिसके लिए वह अन्यथा तैयार हो सकता है। वर्तमान में, बोर्ड पर सभी टुकड़े बंद स्प्रिंग्स के साथ बैठे हैं। क्या वे खुलेंगे - और क्षेत्र में संघर्ष को बढ़ावा देंगे - यह इस बात पर निर्भर करेगा कि संबंधित राज्य कैसे और कब कार्रवाई करने का फैसला करते हैं: क्या इज़राइल हमला करता है, यूरोप स्नैप-बैक प्रतिबंध लागू करता है, ईरान एनपीटी से हट जाता है, या अमेरिका वार्ता से हट जाता है।
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