केजरीवाल अब नाम के CM रह जाएंगे, LG के मार्फत मोदी सरकार चलाएंगे ?

NCT Bill Ex
अभिनय आकाश । Mar 27 2021 12:19PM

दिल्ली के कानून के सेक्शन 21 में बदलाव किया गया है जो ये कहता है कि दिल्ली में सरकार का मतलब उपराज्यपाल है। वहीं सेक्शन 44 में भी बड़ा बदलाव है। दिल्ली सरकार या विधानसभा द्वारा किए गए किसी भी फैसले के क्रियान्वयंन के पहले उपराज्यपाल की राय लेना जरूरी हो जाएगा।

देश की राजधानी दिल्ली में ताकत की जंग एक बार फिर चरम पर है। नए एनसीटी एक्ट पर केंद्र और दिल्ली सरकार आमने-सामने है। दिल्ली सरकार को नए एक्ट में बीजेपी की चाल दिख रही है वहीं बीजेपी कह रही है कि कानून और संविधान के तहत केजरीवाल सरकार चलना नहीं चाहती है। संसद का बजट सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गया। इस दौरान राज्यसभा से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार संशोधन विधेयक पेश हुआ और पास हो गया। लोकसभा में यह दो दिन पहले ही पास हो गया। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है और दिल्ली सरकार के मुखिया अरविंद केजरीवाल और उनके डिप्टी मनीष सिसोदिया जमकर केंद्र पर आरोप लगा रहे हैं कि दिल्ली के सारे अधिकार केंद्र यानि कि नरेंद्र मोदी छीन लेना चाहते हैं और दिल्ली का पूरा राजपाट, पूरी सत्ता एलजी को सौंप देना चाहते हैं। वहीं कांग्रेस पार्टी का कहना है कि केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी खुद दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की वकालत करती रही है और दिल्ली को उसके अधिकारों  से क्यों वंचित कर रही है। ऐसे में आज हमने गर्वमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली (अमेंडमेंट) बिल 2021 से जुड़े तमाम प्रावधान, विपक्ष के ऐतराज और विश्व के तमाम संघीय देशों की राजधानियों में प्रशासनिक सिस्टम के बारे में एक विश्लेषण तैयार किया है। 

इस बिल में है क्या?

दिल्ली के कानून के सेक्शन 21 में बदलाव किया गया है जो ये कहता है कि दिल्ली में सरकार का मतलब उपराज्यपाल है। वहीं सेक्शन 44 में भी बड़ा बदलाव है। दिल्ली सरकार या विधानसभा द्वारा किए गए किसी भी फैसले के क्रियान्वयंन के पहले उपराज्यपाल की राय लेना जरूरी हो जाएगा।  सरकार ने जब इस बिल को लोकसभा में पेश किया तो इसके तहत दिल्ली सरकार के संचालन, कामकाज को लेकर कुछ बदलाव किए। जिसमें कहा गया कि ये बिल सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों को बढ़ावा देता है। जिसके तहत दिल्ली में राज्य सरकार और उपराज्यपाल की जिम्मेदारियों को बताया गया है। राज्य की विधानसभा द्वारा बनाए गए किसी भी कानून में सरकार का मतलब उपराज्यपाल होगा। बिल में कहा गया- राज्य सरकार कैबिनेट या फिर किसी मंत्री द्वारा कोई भी शासनात्मक फैसला लिया जाता है तो उसमें उपराज्यपाल की राय या मंजूरी जरूरी है। साथ ही विधानसभा के पास अपनी मर्जी से कोई कानून बनाने का अधिकार नहीं होगा।

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बिल से क्या आपत्ति है?

दिल्ली की सरकार यहां के जनता द्वारा चुनी गई है। सीएम केजरीवाल का कहना है कि दिल्ली की जनता ने हमें वोट देकर चुना है। हमें कुर्सी जनता की सेवा करने के लिए मिली है। ऐसा करके सारे अधिकार उपराज्यपाल को देर दिल्ली की जनता के साथ धोखा किया जा रहा है। वहीं डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने सबसे बुरा पक्ष या पहलू के बारे में उल्लेख करते हुए कहा कि दिल्ली सरकार अब याचिकाकर्ता रह जाएगी और उपराज्यपाल दिल्ली के बॉस बन जाएंगे। एलजी के पास हमें कोई भी फाईल उनकी मंजूरी के लिए लेकर जानी पड़ेगी। सिसोदिया ने कहा कि हम सिर्फ याचिका, निवेदन करते रह जाएंगे और सारा का सारा शासन उपराज्यपाल करेंगे। 

दिल्ली की प्रशासनिक स्थिति काफी पेचीदा

दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश होने के साथ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र भी है, जिसकी वजह से इसकी प्रशासनिक स्थिति काफी पेचीदा है। यहां चुनाव आयोग के द्वारा अन्य राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों की तरह चुनाव कराया जाता है और जनता के द्वारा चुनी हुई सरकार शासन करती है। लेकिन राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र होने की वजह से इसमें केंद्र सरकार का भी दखल रहता है। खासकर पुलिस, कानून व्यवस्था और भूमि अधिकार के संबंध में। मतलब दोनों के द्वारा मिलकर दिल्ली को चलाया जाता है और यहीं मामला अटक जाता है और कई बार विवाद को भी जन्म देता है। चुनाव जीतने वाली पार्टी का मुख्यमंत्री होता है तो केंद्र की तरफ से उपराज्यपाल यानी एलजी होता है। एक ही क्षेत्र में दो पॉवर सेंटर होने के कारण अधिकार क्षेत्र की लड़ाई हमेशा से देखने को मिलती है। 

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2018 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला  

दिल्ली हाई कोर्ट ने एलजी को दिल्ली का एडमिनिस्ट्रेटिव बॉस बताया था। जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। 4 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि दिल्ली में जमीन, पुलिस या पबल्कि ऑर्डर से जुड़े फैसलों के अलावा राज्य सरकार को उपराज्यपाल से मंजूरी लेने की जरूरत नहीं है। हालांकि दिल्ली सरकार के मंत्रिमंडल द्वारा लिए गए फैसले की सूचना उपराज्यपाल को दी जाएगी। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने अनुच्छेद 239एए की व्याख्या की थी। दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने कहा था कि अनुच्छेद 239 एए के तहत उपराज्यपाल के लिए अनिवार्य है कि वह मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करें या फिर मामले को राष्ट्रपति को रेफर करें, वह खुद स्वतंत्र तरीके से फैसला नहीं लेंगे। 

दिल्ली सरकार को क्या मिला?

  • 239 एए के तहत सुप्रीम कोर्ट ने व्याख्या की है कि मंत्रिपरिषद के पास एग्जीक्यूटिल पावर्स हैं। 
  • मंत्रिपरिषद राज्य और समवर्ती सूची में जो भी विषय है उसमें तीन अपवाद को छोड़कर बाकी मामले में स्वतंत्र होकर काम कर सकेगी। 
  • पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और लैंड को छोड़कर राज्य सूची में जो भी विषय हैं, उसमें राज्य सरकार कानून बना सकती है।
  • जो भी फैसला सरकार लेगी उसके बारे में वह एलजी को अवगत कराएगी, लेकिन एलजी की सहमति जरूरी नहीं है।
  • अपवाद के तहत एलजी किसी मामले को राष्ट्रपति को रेफर कर सकते हैं, लेकिन इसका अर्थ हर मामला नहीं है। यह सरकार के लिए राहत की बात है।

एलजी को क्या मिला?

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जजमेंट में दिए गए सिद्धांत को ध्यान में रखकर मामले को एलजी डील कर सकते हैं। यानी जजमेंट में जो व्यवस्था दी गई है, उसी दायरे में काम करना होगा।

विश्न के अन्य देशों की राजधानियों में प्रशासनिक सिस्टम

विश्व में इस वक्त हर शहरों को मजबूत स्वायत्त ढांचे में ढाला जा रहा है। राजधानी वाले शहरों में एक अलग तरह की व्यवस्था दुनिया के कई देशों में है। वैश्विक स्तर पर देखा जाए ऐसे कई बड़े शहर हैं जहां मजबूत उप राष्ट्रीय सरकारें हैं जिनके मेयर बिना राष्ट्रीय हित से समझौता किए सरकार के प्रमुख बने हए हैं। इसमें जकर्ता, सियोल, लंदन और पेरिस जैसे बड़े शहर हैं। इसी कड़ी में भारतीय शहरों को एक मजबूत व्यवस्था देने की कवायद चल रही है। दिल्ली देश की राजधानी है और केंद्र शासित प्रदेश भी है। इसलिए यहां कि व्यवस्था पहले से ही जटिल थी और इसलिए इसमें सुधार की गुजाइंश ज्यादा थी। अब तमाम दलों की ओर से बीजेपी पर इस बिल को लेकर दवाब बनाया जा रहा है लेकिन उन्हें यह भी स्मरण रखना होगा कि आज हमें भले ही दिल्ली की सत्ता में आप की सरकार है लेकिन भारतीय जनता पार्टी के द्वारा भी दिल्ली विधानसभा का चुनाव लड़ा जाता है। 

विपक्ष का विरोध सदन में क्यों बिखर गया

इस बिल को लेकर तमाम दलों की ओर से विरोध के स्वर उठ रहे हैं। लेकिन सदन में उनकी एकता बिखर कर रह गई। राज्यसभा में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार संशोधन विधेयक 2021 83 वोटों के साथ पास हुआ। वहीं इसके विरोध में 45 वोट पड़े। सबसे दिलचस्प बात ये रही कि जिस विपक्ष ने इस विधेयक को संघीय व्यवस्था के लिए खतरा बताया था, जब वोटिंग की बारी आई तो उसके खिलाफ में वोट करने की बजाय कई दलों ने किनारा करना ही बेहतर समझा। बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के सांसदों ने सदन से वॉकआउट कर दिया। जिससे इस विधेयक को सत्ता पक्ष ने आसानी से पास करा लिया। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह कानून बन जाएगा।- अभिनय आकाश

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