रोशनी एक्ट: अब्दुल्ला ने बनाया, मुफ्ती-आजाद ने बढ़ाया, भ्रष्टाचार के सबसे बड़े गठबंधन की कहानी

Roshni Act
अभिनय आकाश । Mar 19 2022 5:19PM

रोशनी जमीन घोटाले में 25 हजार करोड़ रुपये की जमीन का बंदरबाट हुआ है। 25 हजार करोड़ रुपये का घोटाला कितना बड़ा लगता है आपको? वो भी राष्ट्र के नहीं बल्कि राज्य के स्तर पर।

'आये थे हरिभजन को ओटन लगे कपास' उक्त कहावत मतलब काम कुछ और करना था करने लगे कुछ और। जम्मू कश्मीर का रोशनी जमीन घोटाला इसी कहावत का नायाब नमूना है। जो कानून सरकार ने गरीबों को सस्ती जमीन और राज्य में बिजली लाने के लिए बनाया। उससे ही राज्य के इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला हो गया। बताया जा रहा है कि रोशनी जमीन घोटाले में 25 हजार करोड़ रुपये की जमीन का बंदरबाट हुआ है। 25 हजार करोड़ रुपये का घोटाला कितना बड़ा लगता है आपको? वो भी राष्ट्र के नहीं बल्कि राज्य के स्तर पर। राज्य के स्तर के घोटालों की बात करें तो लालू प्रसाद यादव का चारा घोटाला 950 करोड़ रुपये का था लेकिन उसकी बदनामी वो आज तक झेल रहे हैं और फिलहाल जमानत पर रिहा हैं। ऐसे में 25 हजार करोड़ रुपये का आंकड़ा तो बहुत बड़ा हो जाता है। आज हम बात करेंगे एक ऐसे एक्ट की जिसे आज से 21 साल पहले मुख्यमंत्री रहते हुए फारूख अब्दुल्ला लाते हैं। 19 साल पहले महबूबा मुफ्ती के पिता सीएम रहते उसी एक्ट को आगे बढ़ाते हैं। 15 साल पहले कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहते गुलाम नबी आजाद उसी एक्ट को और आगे ले जाते हैं। फिर 2020 में एक लिस्ट आती है। आरोप लगता है जम्मू कश्मीर में सरकारी जमीन को कौड़ियों में हड़पने की लूट मची थी। आज हम बात करेंगे रोशनी एक्ट की यानी जम्मू कश्मीर राज्य भूमि अधिनियम जिसे फारुख अब्दुल्ला द्वारा साल 2001 में लाया गया था। जो कहता था कि यदि कोई सरकारी भूमि पर अतिक्रमण कर बैठा है तो उसे वो भूमि हस्तांतरित कर दिए जाएंगे और बदले में उससे कुछ पैसे वसूल किए जाएंगे। लेकिन जमीन को औने-पौने दाम पर नेताओं और नौकरशाहों को दे दिया गया और सरकार के हाथ आई कौड़ी। 

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रोशनी अधिनियम क्या था?

सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा ये लाइन आपने कई बार पढ़ी या सुनी होगी। जो लोग सरकारी जमीन पर कब्जा करके सालों साल रह रहे होते हैं और हटने का नाम नहीं लेते हैं। इन लोगों को हटाने और फिर रहने के लिए दूसरी जगह देने में प्रशासन का काफी वक्त जाया होता है। इसी के समाधान के तौर पर जम्मू कश्मीर में रोशनी एक्ट आया। औपचारिक रूप से जम्मू और कश्मीर राज्य भूमि (अधिभोगियों के स्वामित्व का अधिकार) अधिनियम, 2001, इसे फारूक अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली तत्कालीन नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार द्वारा 1990 के कट-ऑफ के साथ राज्य की भूमि के कब्जे वाले लोगों को स्वामित्व देने के लिए पारित किया गया था। चूंकि इसका उद्देश्य जल विद्युत परियोजनाओं के लिए संसाधन उत्पन्न करना था, इसलिए इसे रोशनी (प्रकाश) अधिनियम कहा गया। 2005 में मुफ्ती मोहम्मद सईद के नेतृत्व वाली पीडीपी-कांग्रेस गठबंधन सरकार ने इस समय सीमा को बढ़ाकर वर्ष 2004 कर दिया। बाद के संशोधन में गुलाम नबी आजाद सरकार ने बाजार दर के 25% पर प्रीमियम निर्धारित किया और जमीन पर कब्जे की सीमा बढ़ाकर वर्ष 2007 कर दी। मतलब जो भी सरकार में आया उसने अपने फायदे के लिए या अपने लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए एक्ट में संशोधन किया। सरकार ने कृषि भूमि पर कब्जा करने वाले किसानों को मुफ्त स्वामित्व अधिकार दिया, जिन्हें केवल 100 रुपये प्रति कनाल भूमि दस्तावेज शुल्क के रूप में भुगतान करने की आवश्यकता थी।

कितना ट्रांसफर हुआ और सरकार को क्या मिला?

जिस समय इसने अधिनियम पारित किया, सरकार को - जम्मू क्षेत्र में 16.02 लाख कनाल और कश्मीर में 4.44 लाख कनाल यानी कुल मिलाकर 20.46 लाख कनाल (1.02 लाख हेक्टेयर) राज्य भूमि के स्वामित्व को हस्तांतरित करने की उम्मीद थी। सरकार ने 25,000 करोड़ रुपये का लक्ष्य रखा। हालांकि, स्वामित्व के हस्तांतरण को केवल 6.04 लाख कनाल के लिए मंजूरी दी गई थी  और केवल 3.48 लाख कनाल भूमि वास्तव में हस्तांतरित की गई थी। सरकार ने अपने लक्ष्य को संशोधित कर 317.55 करोड़ रुपये कर दिया और केवल 76.46 करोड़ रुपये कमाए। जिसमें से  कश्मीर से 54.05 करोड़ रुपये (123.49 करोड़ रुपये का लक्ष्य) और जम्मू क्षेत्र से 22.40 करोड़ रुपये (लक्ष्य 194.06 करोड़ रुपये आए। कश्मीर में 33,000 कनाल के मुकाबले जम्मू क्षेत्र में 3 लाख कनाल (17,500 हेक्टेयर) का स्वामित्व निहित है। कश्मीर में, इस भूमि का अधिकांश भाग व्यावसायिक घरानों और आवासीय उद्देश्यों के लिए कुछ मामलों में लगभग 100 वर्षों के लिए पट्टे पर दिया गया था। 

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जम्मू-कश्मीर रोशनी अधिनियम विवादास्पद क्यों रहा?

कैग ने 2014 की अपनी रिपोर्ट में इस योजना को 25,000 करोड़ रुपये का घोटाला करार दिया था। इसने अनियमितताओं को चिह्नित किया और कहा कि राजनेताओं और प्रभावशाली लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए एक स्थायी समिति द्वारा कीमतों में मनमानी कमी की गई। वर्ष 2013-14 में कैग ृ की रिपोर्ट में ये खुलासा हुआ था कि जम्मू कश्मीर सरकार ने इससे कमाई का 25 हजार करोड़ रुपए का जो लक्ष्य रखा था, उससे सरकार को सिर्फ 76 करोड़ रुपये की कमाई हुई। सरकार द्वारा अधिनियम को मंजूरी दिए जाने के कुछ समय बाद ऐसे लोग जो मानदंडों को पूरा नहीं करते थे, लेकिन योजना के तहत भूमि के स्वामित्व में कामयाब रहे के खिलाफ तत्कालीन राज्य सतर्कता संगठन ने कुछ लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की। एक प्रमुख मामला गुलमर्ग भूमि घोटाले के रूप में जाना गया, जिसमें कई शीर्ष नौकरशाहों पर गुलमर्ग विकास प्राधिकरण की भूमि को निजी पार्टियों को अवैध रूप से स्थानांतरित करने का आरोप है। इस मामले के मुख्य आरोपियों में से एक आईएएस अधिकारी बसीर अहमद खान जिन्हें मार्च 2020 में जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल का सलाहकार नियुक्त किया गया था। जम्मू क्षेत्र में इसी तरह के मामलों में शीर्ष नौकरशाहों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। 17 प्राथमिकी के आधार पर अधिनियम के उल्लंघन की जांच के लिए उच्च न्यायालय में एक याचिका भी दायर की गई।

रोशनी अधिनियम कब समाप्त किया गया था?

अक्टूबर 2018 में तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने रोशनी अधिनियम को संभावित रूप से निरस्त कर दिया। उनके आदेश में कहा गया है, "अधिनियम के तहत सभी लंबित कार्यवाही तुरंत रद्द कर दी जाएगी। सितंबर 2019 में मलिक ने राज्य के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो द्वारा रोशनी योजना के तहत सभी सौदों की जांच का आदेश दिया। इसके बाद, उच्च न्यायालय में एक और याचिका दायर कर जांच को सीबीआई को स्थानांतरित करने की मांग की गई।

कोर्ट ने क्या कहा?

अक्टूबर 2020 में उच्च न्यायालय ने रोशनी अधिनियम को "अवैध, असंवैधानिक और अस्थिर" घोषित किया और अधिनियम के तहत आवंटन को शुरू से ही शून्य घोषित कर दिया। इसने स्वामित्व के हस्तांतरण की सीबीआई जांच का आदेश दिया, इसमें शामिल नौकरशाहों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की और सरकार से आवंटित भूमि के प्रमुख लोगों के नाम सार्वजनिक करने को कहा गया। रोशनी घोटाले में जम्मू-कश्मीर प्रशासन जैसे जैसे नाम सार्वजनिक कर रहा है वैसे वैसे नेशनल कॉफ्रेंस, पीडीपी, और कांग्रेस के नेताओं और उनके रिश्तेदारों के नाम सामने आने लगे। अब तक सार्वजनिक की गई लाभार्थियों की सूची में राजनेताओं, नौकरशाहों और व्यवसायियों के नाम माता-पिता के नाम, निवास, नौकरी प्रोफ़ाइल और संबद्धता के साथ शामिल थे।

जम्मू में समूहों ने रोशनी अधिनियम के खिलाफ अभियान चलाया गया

जम्मू में कुछ दक्षिणपंथी समूहों ने आरोप लगाया है कि रोशनी अधिनियम हिंदू बहुल जम्मू जिले की जनसांख्यिकी को बदलने के लिए था। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा था कि “अदालत के अवलोकन ने साबित कर दिया है कि जनसांख्यिकीय परिवर्तन हुआ था। राज्य सरकार के आदेश में भूमि हस्तांतरण के तीस हजार मामले दर्ज किए गए, जिनमें से 25,000 से अधिक मामले जम्मू से और केवल 4,500 कश्मीर से थे। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि जम्मू जिले में 44,912 कनाल के स्वामित्व अधिकार हस्तांतरित किए गए हैं - जो कि पूरी कश्मीर घाटी में हस्तांतरित भूमि से अधिक है।

-अभिनय आकाश 

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