50% की SC की लिमिट, फिर नीतीश ने बिहार में 75 फीसदी आरक्षण कैसे दे दिया, ये कितना प्रैक्टिकल, क्या कोर्ट में मिलेगी चुनौती?

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Prabhasakshi
अभिनय आकाश । Nov 10 2023 1:34PM

बिहार में अब आरक्षण लिमिट 75 फीसदी होने जा रही है। ऐसे में आइए जानते हैं कि नीतीश कुमार का ये दांव कितना प्रैक्टिकल है और इससे पहले किन राज्यों ने भी इसी तरह की पहल की है।

आरक्षण किसी के लिए नौकरी पाने की उम्मीद है तो किसी की किसी के लिए यह नौकरी में बराबरी का मौका ना मिलने की वजह है। जो विरोध करते हैं उनके अपने तर्क हैं जो समर्थन करते हैं उनके अपने। जिस मकसद से आरक्षण लागू किया गया क्या वह पूरा हुआ? जवाब है- नहीं, अगर हो जाता तो वर्तमान में इस पर चर्चा करने की जरूरत ही नहीं होती। 1990 के दशक में मंडल कमीशन आया फिर आया सुप्रीम कोर्ट की तरफ से क्रीमी लेयर का सिद्धांत। लेकिन इन दिनों आरक्षण को लेकर जो चर्चा चल पड़ी है। बिहार में नीतीश कुमार ने एक बड़ा दांव चला है। नीतीश कैबिनेट ने आरक्षण की सीमा बढ़ाए जाने को लेकर नई घोषणा की है। उन्होंने कहा है कि ईडब्ल्यूएस यानी इकोनॉमिक वीकर सेक्शन को भी आरक्षण 10 फीसदी दिया जाए। ईडब्ल्यूएस को आरक्षण के बाद अब 75 फीसदी तक आरक्षण का प्रस्ताव नीतीश कुमार ने बिहार में रखा है। नीतीश कैबिनेट ने जाति आधारित आरक्षण 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी कर दिया है। इसके अलावा 10 प्रतिशत आरक्षण का लाभ आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग को मिलेगा। बिहार में अब आरक्षण लिमिट 75 फीसदी होने जा रही है। ऐसे में आइए जानते हैं कि नीतीश कुमार का ये दांव कितना प्रैक्टिकल है और इससे पहले किन राज्यों ने भी इसी तरह की पहल की है। 

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सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

शीर्ष अदालत ने इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ मामले में 1992 के अपने ऐतिहासिक फैसले में  जिसे मंडल आयोग के फैसले के रूप में जाना जाता है। सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत कर दी। अदालत की नौ-न्यायाधीशों की पीठ उस समय गठित सबसे बड़ी पीठ थी। शीर्ष अदालत ने पिछड़े वर्गों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण को बरकरार रखते हुए, उच्च जातियों के बीच आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए राज्य की नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षित करने की सरकारी अधिसूचना को रद्द कर दिया। फैसले में 'क्रीमी लेयर' की अवधारणा भी सामने आई। क्रीमी लेयर को इस प्रकार परिभाषित किया गया था। पिछड़े वर्ग के कुछ सदस्य जो उस समुदाय के बाकी सदस्यों की तुलना में सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से उन्नत हैं। वे उस विशेष पिछड़े वर्ग के अगड़े वर्ग का गठन करते हैं और उस वर्ग के लिए निर्धारित आरक्षण के सभी लाभों को खा जाते हैं, वास्तविक पिछड़े सदस्यों तक लाभ पहुंचने की अनुमति दिए बिना।

फैसले के बाद से क्या हुआ?

1992 के फैसले के बाद से, कई राज्यों महाराष्ट्र, तेलंगाना, तमिलनाडु, हरियाणा, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश और अब बिहार ने आरक्षण को 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक करने के लिए कानून पारित किया है। फिर, 2019 में केंद्र ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) को 10 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया। 8 और 9 जनवरी, 2019 को, लोकसभा और राज्यसभा ने एक विधेयक को मंजूरी दे दी, जिसमें आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) को प्रवेश और सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण दिया गया, जिसमें एससी/एसटी/ओबीसी श्रेणियों के गरीबों को शामिल नहीं किया गया। इसने एससी, एसटी और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को मौजूदा 50 प्रतिशत आरक्षण के अलावा ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण आवंटित किया। इससे विधेयक के खिलाफ दायर की जाने वाली याचिकाओं की बाढ़ आ गई। नवंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने एक और ऐतिहासिक फैसले में 2019 के 103वें संविधान संशोधन को बरकरार रखा। भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित के नेतृत्व वाली पांच सदस्यीय पीठ ने अदालती कार्यवाही की अध्यक्षता के अपने आखिरी दिन 3:2 से कहा कि कानून भेदभावपूर्ण नहीं है और संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन नहीं करता है। ललित और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट, दो न्यायाधीशों, जिन्होंने इसके खिलाफ फैसला सुनाया, ने माना कि एससी, एसटी और ओबीएस के गरीबों को इसके दायरे से बाहर करने के कारण संशोधन "संवैधानिक रूप से भेदभाव के रूपों को प्रतिबंधित करता है"। केंद्र ने स्वयं अदालत के समक्ष तर्क दिया है कि 50 प्रतिशत फैसला 'पत्थर की लकीर' नहीं है।

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बिहार सरकार का क्या कहना है?

नीतीश कुमार ने कहा कि बिहार में कोटा में वृद्धि जाति सर्वेक्षण के बाद हुई है जो इस सदन में प्रतिनिधित्व करने वाले सभी नौ दलों के बीच आम सहमति बनने के बाद आयोजित किया गया था। सर्वेक्षण ने हमें व्यापक डेटा प्रदान किया है। हम इसका उपयोग समाज के सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए और अधिक उपाय पेश करने के लिए करेंगे। मुझे खुशी होगी अगर केंद्र भी देश भर में जाति जनगणना और आरक्षण बढ़ाने पर सहमत हो जाए। विधेयकों के अनुसार, एसटी के लिए कोटा दोगुना कर दिया जाएगा, एक से दो प्रतिशत, जबकि एससी के लिए इसे 16 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत किया जाएगा। ईबीसी के लिए, कोटा 18 प्रतिशत से बढ़कर 25 प्रतिशत हो जाएगा, जबकि ओबीसी के लिए यह 12 प्रतिशत से बढ़कर 15 प्रतिशत हो जाएगा। जद (यू) नेता ने इस मौके का फायदा उठाते हुए बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की नई मांग उठाई और कहा कि प्राचीन काल में हमारी भूमि इतनी उन्नत थी। ऐतिहासिक कारकों के कारण इसमें स्थिरता आ गई। हमें अपना खोया हुआ गौरव वापस पाने के लिए कुछ मदद की जरूरत है।

आरक्षण की वर्तमान व्यवस्था क्या है

अभी 15 प्रतिशत आरक्षण अनुसूचित जाति को दिया जाता है। अनुसूचित जनजाति को 7.5 प्रतिशत आरक्षण है। वहीं 27 प्रतिशत आरक्षण अन्य पिछड़ा वर्ग यानी कि ओबीसी को दिया जाता है। इसके अलावा आर्थिक आधार पर 10% आरक्षण का प्रवाधान साल 2019 में किया गया। 1963 में एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आमतौर पर 50 फ़ीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता है। क्योंकि एक तरफ हमें मेरिट का ख़्याल रखना होगा तो दूसरी तरफ हमें सामाजिक न्याय को भी ध्यान में रखना होगा। 

अगल-अलग राज्यों में आरक्षण देने का तरीका अलग 

महाराष्ट्र में शिक्षा और सरकारी नौकरियों में मराठा समुदाय को 16% और मुसलमानों को 5% अतिरिक्त आरक्षण दिया गया। तमिलनाडु में सबसे अधिक 69 फीसदी आरक्षण लागू किया गया है। वहां पर रिजर्वेशन संबंधित कानून की धारा-4 के तहत 30 फीसदी आरक्षण पिछड़ा वर्ग, 20 फीसदी अति पिछड़ा वर्ग, 18 फीसदी एससी और एक फीसदी एसटी के लिए रिजर्व किया गया। झारखंड की हेमंत सोरेन की अगुवाई वाली सरकार ने भी राज्‍य में 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण बढ़ाने का फैसला लिया था। राज्य में कुल आरक्षण 77 फीसदी हो गया है। कर्नाटक में आरक्षण की सीमा 56% हो गई है। 

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