एक पूर्व नक्सली के लोकसभा में कांग्रेस का नेता बनने की कहानी

adhir ranjan
अभिनय आकाश । May 5 2020 8:29PM

अधीर रंजन चौधरी नक्सली थे और स्कूली पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर नक्सलबाड़ी आंदोलन से जुड़ गए थे। इमरजेंसी के दौर में मीसा एक्ट के तहत गिरफ्तार हुए। 1977 में राज्य में ज्योति बसु की सरकार आई तो सैकड़ों नक्सलियों को माफी दी गई। अधीर रंजन उनमें से एक थे।

कोई उसे ‘रॉबिनहुड’ का नाम लेकर पुकारता है तो कोई ‘टाइगर ऑफ बंगाल’ कहकर पार्टी के अन्य नेताओं से मिलवाता है। जिसने बंदूक तो छोड़ी लेकिन आक्रामकता नहीं, जिसने नक्सलवाद का रास्ता तो त्यागा लेकिन लड़ाई नहीं, लड़ाई जो कभी सीपीआई (एम) के शासनकाल में तो कभी तृणमूल कांग्रेस द्वारा संचालित राज्य मशीनरी से, वो डटा रहा और कांग्रेस में अपना कद भी बढ़ाता रहा।

इसे भी पढ़ें: नवीन पटनायक के आवास पर भोज में साथ शामिल हुए अमित शाह और ममता बनर्जी

साल 2007 की बात है प्रतिभा देवीसिंह पाटिल को यूपीए की तरफ से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया गया और दिल्ली के अशोका होटल में सोनिया गांधी ने डिनर का आयोजन किया। वैसे तो इस डिनर का मुख्य मकसद सांसदों की प्रतिभा पाटिल से मुलाकात कराना था। लेकिन उस वक्त कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रियरंजन दास मुंशी के साथ बैठे एक नेता का परिचय सोनिया गांधी ने ‘टाइगर ऑफ बंगाल’ के रूप में कराया। आज उसी नेता की कहानी सुनाउंगा और साथ ही उसके नक्सली से लोकसभा का नेता बनने की पूरी दास्तां भी बताऊंगा। वो नाम है लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी...

इसे भी पढ़ें: शाह के इस्तीफे के सवाल पर ममता बोलीं- पहले समस्या का हल होना चाहिए, राजनीतिक चर्चा बाद में हो सकती है

1991 में पहली बार नबाग्राम विधानसभा चुनाव लड़े तो बंगाल में ज्योति बसु की सरकार चल रही थी और सीपीएम के 300 से ज्यादा कार्यकर्ताओं ने उनको खदेड़कर एक मतदान केंद्र में बंधक बना लिया था। 1991 का चुनाव 1401 वोट से हारे अधीर रंजन चौधरी ठेका से हो रही कमाई को रॉबिनहुड की तरह जरूरतमंद लोगों के इलाज, पढ़ाई, बेटियों की शादी में बांटते रहे।

इसे भी पढ़ें: राज्यसभा चुनाव में नए चेहरों को मौका देगी TMC, रेस में PK भी शामिल

साल था 1996 पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होने वाले थे कोलकाता में कांग्रेस के दफ्तर में मीटिंग चल रही थी उत्तरी बंगाल का एक जिला मुर्शिदाबाद सीट से पिछला विधानसभा चुनाव करीबी अंतर से हारने वाले नेता का नाम आगे किया जाता है उस वक्त की वरिष्ठ कांग्रेस नेता ममता बनर्जी ने उस नाम पर विरोध किया लेकिन तमाम विरोध के बावजूद अधीर रंजन चौधरी को टिकट मिल जाता है और वह चुनाव जीत भी जाते हैं। इसके बाद विधानसभा चुनावों से शुरू हुआ यह जीत का सिलसिला 3 साल बाद लोकसभा चुनाव में भी कायम रहता है। वो लगातार जीतते हैं। फिर आता है लोकसभा चुनाव 2019 का साल। टीएमसी के अखंड राज में जनता की ममता बीजेपी पर जमकर बरसी और 2 से उसकी सीटें बढ़कर 17 हो गई। लेकिन इस चुनाव में भी 1999 से लोकसभा चुनाव फतह करने वाले अधीर रंजन चौधरी ने अपना करिश्मा कायम रखा। चौधरी के बारे में इंडिया टुडे मैगजीन ने आज से डेढ़ दशक पहले एक रिपोर्ट की थी और उन्हें प्रिंस ऑफ मुर्शिदाबाद बताया था।

इसे भी पढ़ें: कोलकाता पुलिस ने अमित शाह की रैली के लिए अनुमति दी

नक्सली से नेता बनने की कहानी

अधीर रंजन चौधरी नक्सली थे और स्कूली पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर नक्सलबाड़ी आंदोलन से जुड़ गए थे। इमरजेंसी के दौर में मीसा एक्ट के तहत गिरफ्तार हुए। 1977 में राज्य में ज्योति बसु की सरकार आई तो सैकड़ों नक्सलियों को माफी दी गई। अधीर रंजन उनमें से एक थे और फिर बाद में राजीव गांधी के दौर में कांग्रेस में शामिल हो हुए।

इसे भी पढ़ें: केंद्र की पश्चिम बंगाल सरकार से PM किसान योजना में शामिल होने की अपील

जेल में रहते हुए लड़ा 1996 का चुनाव

वर्ष 1996 के विधानसभा चुनावों में एक सीपीएम नेता के परिजन की हत्या के आरोप में जेल में रहने के बावजूद चौधरी ने नबग्राम विधानसभा सीट जीत ली। मुर्शिदाबाद के एक पुराने कांग्रेसी नेता के अनुसार उस वक्त अधीर के भाषणों को जेल के भीतर रिकॉर्ड किया जाता था और उनको पार्टी की रैलियों में चलाया जाता था। अधीर वर्ष 1996 में पहली बार विधायक बने और उसके तीन साल बाद सांसद। उन्होंने ज़िले की बरहमपुर लोकसभा सीट से 1999 में उस समय चुनाव लड़ा था जब वर्ष 1951 के बाद वहां कांग्रेस कभी नहीं जीती थी। वह सीट आरएसपी की गढ़ थी। 1999 के लोकसभा चुनाव में आरएसपी के सिटिंग एमपी प्रोमोतेस मुखर्जी को हराकर पहली बार लोकसभा पहुंचे अधीर रंजन चौधरी को प्रोमोतेस ने 1993 में रेडिफ डॉट कॉम से क्रिमिनल, गुंडा, स्कूल ड्रॉप आउट और निरक्षर तक कहा था और आरोप लगाया था कि अधीर रंजन चौधरी ने क्राइम और ठेकों से करोड़ों रुपए कमाए हैं। जिससे वो लोगों को लुभाता है।

इसे भी पढ़ें: बंगाल में TMC-BJP के समर्थकों के बीच झड़प, सात घर आग के हवाले

अधीर रंजन चौधरी ने महज तीन साल में विधायक के तौर पर इतना काम किया कि इलाके के लोग उनके दीवाने हो गए और आरएसपी का गढ़ ध्वस्त करके जीते और लोकसभा पहुंचे। 1952 के संसदीय चुनाव से मात्र 1984 को छोड़कर आरएसपी की जीत का गवाह रही बहरामपुर सीट से दूसरी बार कांग्रेस का कोई कैंडिडेट जीता था जो तब से अब तक कभी नहीं हारा। सभी आरोपों से बेपरवाह अधीर चौधरी अगला चुनाव भी जीता, लगातार जीता, पांच बार जीता। 

इसे भी पढ़ें: बंगाल में TMC-BJP के समर्थकों के बीच झड़प, सात घर आग के हवाले

प्रणव की जीत के वास्तुकार

अधीर ने खुद तो इलाके में अपनी बादशाहत क़ायम रखी ही है, उनकी पहल पर ही कांग्रेस नेता प्रणब मुखर्जी ने भी वर्ष 2004 में ज़िले की जंगीपुर संसदीय सीट से अपने जीवन का पहला लोकसभा चुनाव लड़ा और जीता था। साल 2004 और 2009 में इस अल्पसंख्यक-बहुल सीट से प्रणब की जीत के असली वास्तुकार अधीर ही थे।

इसे भी पढ़ें: ममता का गंभीर आरोप, केन्द्र सरकार को ठहराया तापस पॉल की मौत का जिम्मेदार

बीजेपी में शामिल होने की लगी थी अटकलें

लोकसभा चुनावों से ठीक पहले आलाकमान ने प्रदेश कांग्रेस की कमान चौधरी से लेकर सोमेन मित्र को सौंप दी थी। इससे अधीर रंजन चौधरी की नाराज़गी स्वाभाविक थी। वे लेफ्ट फ्रंट और तृणमूल कांग्रेस के साथ किसी तरह के तालमेल के सख़्त ख़िलाफ़ थे। अधीर शुरू से ही राज्य की दोनों पुरानी पार्टी लेफ्ट और तृणमूल कांग्रेस से समान दूरी बरतने की वकालत करते रहे हैं। शायद यही वजह है कि अबकी लोकसभा चुनावों से पहले अधीर के बीजेपी में शामिल होने की अफवाहें काफी तेज थीं। लेकिन उन्होंने संयम बरता और अब उनको लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता के तौर पर इसका इनाम मिला।

इसे भी पढ़ें: विश्वविद्यालयों में जगह बनाने की फासीवादी ताकतों की योजना को करें नाकाम: आइशी घोष

निजी जीवन से जुड़े कई विवाद

पारिवारिक जीवन में अधीर रंजन चौधरी की पहली पत्नी अर्पिता मजूमदार चौधरी ने तलाक लेने के बाद तृणमूल कांग्रेस ज्वाइन कर लिया औ उनका भाई अभी भी तृणमूल में है। अधीर के खिलाफ होने के बाद वो उन्हें उसी जिले में चैलेंज भी करने लगीं। जनवरी 2019 में निधन हो गया। इससे पहले उनकी इकलौती बेटी श्रेयषी चौधरी की 2006 में अपार्टमेंट से कथित तौर पर कूदने से मौत हो गई थी। लोकसभा चुनाव में पर्चा भरे जाने के वक्त अधीर रंजन ने खुलासा किया कि उन्होंने अतासी चट्टोपाध्याय चौधरी से दूसरी शादी की है और उनकी एक बेटी है जिसे उन्होंने गोद ले लिया।

इसे भी पढ़ें: तृणमूल सांसद और विधायक EW मेट्रो उद्घाटन कार्यक्रम में नहीं जाएंगे: पार्टी सूत्र

अधीर अक्सर कहते रहे हैं कि वे एक पैदल सिपाही हैं जो युद्ध के मोर्चे पर हमेशा सामने खड़ा रहता है। इसलिए वह पैदल सिपाही की तरह लड़ते रहेंगे। लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता बनने के बाद भी उन्होंने यही बात दोहराई। । राजनीतिक पंडितों का कहना है कि कांग्रेस आलाकमान ने बंगाल में वर्ष 2021 के विधानसभा चुनावों से पहले चौधरी को लोकसभा में संसदीय दल का नेता बना कर राज्य में संगठन की मजबूती के लिए उनके करिश्माई व्यक्तित्व पर भरोसा जताया है। शायद अब आलाकमान ने भी मान लिया है कि बंगाल में अधीर ही पार्टी का भविष्य हैं।

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़