आखिर क्या है लिपस्टिक से लेकर शैंपू तक को मिलने वाला हलाल सार्टिफिकेशन?

halal certification
अभिनय आकाश । Jan 12 2021 5:34PM

मजहबी मान्यताओं के अनुसार पशु वध के तरीके (हलाल) से शुरू हुई थी अब वो दवाईयों से लेकर सौंदर्य उत्पाद जैसे लिपस्टिक और शैम्पू, अस्पतालों से लेकर फाइव स्टार होटल, रियल एस्टेट से लेकर हलाल टूरिज्म और तो और आटा मैदा बेसन जैसे शाकाहारी उत्पादों तक के हलाल सर्टिफिकेशन पर पहुंच गई।

हलाल एक अरबी का शब्द है जिसका मतलब होता है पाक। इस शब्द से किसी को कोई ऐतराज नहीं है और होनी भी नहीं चाहिए क्योंकि हम भी कहते हैं नमक हलाल और नमक हराम। ये भारत के स्थापित शब्द हैं। आम तौर पर हलाल शब्द मांस-वगैरह के संदर्भ में इस्तेमाल होता है। लेकिन इसका मतलब सिर्फ मांस तक सीमित नहीं है। कभी मीट के संदर्भ में इस्तेमाल होने वाला ये ठप्पा वेज आइटम, कास्मेटिक और दवाओं में लगा। इतना ही नहीं बल्डिंग को भी हलाल सर्टिफिकेशन के नाम से बेचने की कोशिश हुई। जिसके बाद से बीते कुछ समय से मजहबी मान्यताओं के आधार पर विभिन्न उत्पादों का हलाल  सर्टिफिकेशन राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा में रहा। तो आज आपको एमआरआई स्कैन के जरिए इन पांच सवालों के जवाब देंगे।

1. हलाल मीट क्या है?

2. इस्लाम में हलाल मीट पर जोर क्यों दिया जाता है? 

3. हलाल के अलावा और कौन सा मीट मिलता है?

4. इन सब तरीकों के मीट का अंतर क्या है?

5. हलाल सर्टिफिकेट क्या है?

हलाल मीट क्या है

हलाल की तकनीक विशिष्ट समुदाय (मुस्लिम) के निपुण लोग करते हैं। इसके लिए जानवर की गर्दन को एक तेज धार वाले चाकू से रेता जाता है। इसके बाद कुछ ही देर में जानवर की जान चली जाती है। हलाल में जानवर के शरीर से खून का अंतिम कतरा निकलने तक उसका जिंदा रहना जरूरी है। मुस्लिमों में हलाल विधि से काटे गए जानवरों को खासकर खाया जाता है। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार हलाल होने वाले जानवर के सामने दूसरा जानवर नहीं ले जाना चाहिए। एक जानवर के हलाल होने के बाद ही दूसरा ले जाना चाहिए। अगर मार्केट की भाषा में समझें तो हलाल का मतलब वह प्रोडक्ट है, जो शरिया कानूनों के मुताबिक है। 

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इस्लाम में हलाल मीट पर जोर क्यों

हलाल एक अरबी शब्द है जिसका प्रयोग कुरान में भोजन के रूप में स्वीकार करने योग्य वस्तुओं के लिए किया गया। इस्लाम में आहार संबंधी कुछ नियम बताए गए, जिन्हें हलाल कहा जाता है। हलाल का मतलब जायज और हलाल नहीं है उसका मतलब उनके इस्तेमाल में लाया जाना इस्लाम में नाजायज है। अगर बाजार की भाषा में समझें तो 'हलाल' का मतलब वह प्रोडक्ट है, जो शरिया (इस्लामी कानून) कानूनों के मुताबिक है। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक हलाल जानवरों को काटने का पारंपरिक तरीका है। हलाल के अलावा कोई भी मीट इस्लाम में प्रतिबंधित है। इसलिए भी हलाल मीट पहचानने के बहुत से तरीकों पर कई बार बहस भी हुई। 

झटका क्या है

झटका में जानवर के दिमाग को इलेक्ट्रिक शाॅक देकर सुन्न कर दिया जाता है, ताकि वो ज्यादा संघर्ष न करे। जिसके बाद अचेत अवस्था में धारदार हथियार से सिर धड़ से अलग कर दिया जाता है। मासाहांर खाने वाले हिंदू और सिखों में झटका मीट खाया जाता है। 

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हलाल सर्टिफिकेट क्या है?

भारत में अलग अलग वस्तुओं के लिए अलग अलग सर्टिफिकेट का प्रावधान है जो उनकी गुणवत्ता सुनिश्चित करते हैं। जैसे औद्योगिक वस्तुओं के लिए ISI मार्क,कृषि उत्पादों के लिए एगमार्क, प्रॉसेस्ड फल उत्पाद जैसे जैम अचार के लिए एफपीओ, सोने के लिए हॉलमार्क, आदि। लेकिन हलाल का सर्टिफिकेट भारत सरकार नहीं देती है। भारत में यह सर्टिफिकेट कुछ प्राइवेट संस्थान जैसे हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, जमायत उलमा ए हिन्द हलाल ट्रस्ट आदि।  भारतीय रेल और विमानन सेवाओँ जैसे प्रतिष्ठानों से लेकर फाइव स्टार होटल तक हलाल सर्टिफिकेट हासिल करते हैं जो यह सुनिश्चित करता है कि जो मांस परोसा जा रहा है वो हलाल है। मैकडोनाल्ड डोमिनोज़,जोमाटो जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियां तक इसी सर्टिफिकेट के साथ काम करती हैं।

लिपस्टिक से लेकर शैंपू तक हलाल सर्टिफाई

मजहबी मान्यताओं के अनुसार पशु वध के तरीके (हलाल) से शुरू हुई थी अब वो दवाईयों से लेकर सौंदर्य उत्पाद जैसे लिपस्टिक और शैम्पू, अस्पतालों से लेकर फाइव स्टार होटल, रियल एस्टेट से लेकर हलाल टूरिज्म और तो और आटा मैदा बेसन जैसे शाकाहारी उत्पादों तक के हलाल सर्टिफिकेशन पर पहुंच गई। जो भी कंपनी अपना सामान मुस्लिम देशों को निर्यात करती हैं उन्हें इन देशों को यह सर्टिफिकेट दिखाना आवश्यक होता है। अगर हलाल फूड मार्किट के आंकड़ों की बात करें तो यह वैश्विक स्तर पर 19% की है जिसकी कीमत लगभग 2.5 ट्रिलियन $ की बैठती है। आज मुस्लिम देशों में हलाल सर्टिफिकेट उनकी जीवनशैली से जुड़ गया है। वे उस उत्पाद को नहीं खरीदते जिस पर हलाल सर्टिफिकेट नहीं हो। हलाल सर्टिफिकेट वाले अस्पताल में इलाज, हलाल सर्टिफिकेट वाले कॉम्प्लेक्स में फ्लैट औऱ हलाल टूरिज्म पैकेज देने वाली एजेंसी से यात्रा। यहाँ तक कि हलाल की मिंगल जैसी डेटिंग वेबसाइट। 

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कैसे मिलता है हलाल सर्टिफिकेट

कोई भी कंपनी जब हलाल सर्टिफिकेट देने वाली जमायत उलमा ए हिन्द हलाल ट्रस्ट आदि संस्था से संपर्क करती है तो सबसे पहले देखा जाता है कि उसके पास FSSAI का लाइसेंस है या नहीं। फिर आॅडिट टीम जाकर चेक करती है कि कंपनी में बनने वाली चीजों में किन-किन चीजों का इस्तेमाल किया जा रहा है। आडिट टीम की रिपोर्ट में सब संतोषजनक होने पर सर्टिफिकेट दिया जाता है। इस पूरी सर्विस के लिए फीस ली जाती है। सर्टिफिकेट का कोई चार्ज नहीं होता। 

रेड मीट मैन्युल से हटा हलाल शब्द

वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत आने वाले कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने रेड मीट से संबंधित अपनी नियमावली से हलाल शब्द हटा दिया। अब इसकी जगह नियमावली में कहा गया है कि जानवरों को आयात करने वाले देशों के नियमों के हिसाब से काटा गया है। अभी तक मीट को निर्यात करने के लिए उसका हलाल होना एक महत्वपूर्ण शर्त रहा करती थी। फिलहाल बदलाव के बाद एपीडा ने स्पष्ट किया कि हलाल का प्रमाण पत्र देने में किसी भी सरकारी विभाग की कोई भूमिका नहीं है। 

हलाल का पैसा जिहाद में

ऑस्ट्रेलियाई नेता जॉर्ज क्रिस्टेनसेन ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि हलाल अर्थव्यवस्ता का पैसा आतंकवाद के काम में लिया जा सकता है। वहीं अंतरराष्ट्रीय लेखक नसीम निकोलस ने अपनी पुस्तक "स्किन इन द गेम" में इसी विषय पर " द मोस्ट इंटॉलरेंट विंस" (जो असहिष्णु होता है वो जीतता है) नाम का लेख लिखा है। इसमें उन्होंने यह बताया है कि अमरीका जैसे देश में मुस्लिम और यहूदियों की अल्पसंख्यक आबादी कैसे पूरे अमेरिका में हलाल मांसाहार की उपलब्धता मुमकिन करा देते हैं। अमरीका, ऑस्ट्रेलिया और योरोप के देश इस बात को समझ चुके हैं कि मजहबी मान्यताओं के नाम पर हलाल सर्टिफिकेट के जरिए एक आर्थिक युद्ध की आधारशिला रखी जा रही है जिसे हलालोनोमिक्स भी कहा जा रहा है। यही कारण है कि ऑस्ट्रेलिया की दो बड़ी मल्टी नेशनल कंपनी केलॉग्स और सैनिटेरियम ने अपने उत्पादों के लिए हलाल सर्टिफिकेट लेने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि उनके उत्पाद शुद्ध शाकाहारी होते हैं इसलिए उन्हें हलाल सर्टिफिकेशन की कोई आवश्यकता नहीं है। 

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किसी भी भोज्य पदार्थ चाहे वो आलू के चिप्स हो या कुछ और हलाल तभी माना जा सकता है जब उसकी कमाई का एक हिस्सा जकात में जाए। लेकिन हमारे पास ये जानने का कोई जरिया नहीं कि जकात के नाम पर गया पैसा जकात में ही जा रहा है या जिहाद में? और जिहाद तो काफिर के खिलाफ ही होता है, जब तक यह इस्लाम न स्वीकार कर ले! यानि जब कोई गैर मुस्लिम हलाल वाला भोजन खरीदता है तो वह इसका एक हिस्सा अपने ही खिलाफ होने जा रहे जिहाद में आर्थिक सहायता देने में खर्च करता है। - अभिनय आकाश

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