मनमोहन-बुश की सिविल न्यूक्लियर डील के 17 साल बाद भारत पर क्यों मेहरबान है अमेरिका

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अभिनय आकाश । Jul 19 2022 7:02PM

चीन हिंद महासागर में अमेरिका का सैन्य मुकाबला करना चाहता है। भारत के साथ सुरक्षा संबंधों को अमेरिका खतरे में नहीं डालना चाहता है। अमेरिका के साथ भारत की मिलिट्री डील पिछले कुछ दिनों में बढ़ी हैं। चीन को रोकने के लिए भारत को एस-400 जैसी ताकत की जरूरत है।

हिंद का वो सुरक्षा चक्र जिसका इंतजार लंबे अरसे से भारत कर रहा था। भारत की वो जरूरत जो दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए जरूरी था। मिसाइल डिफेंस की दुनिया में रूस का ये चमत्कार अब भारत की ताकत बन रहा है। लेकिन रूस के साथ हुए इस रक्षा सौदे से जुड़ी एक बहुत बड़ी खबर सामने आई है। जब यूक्रेन में परमाणु युद्ध के कारण रूस के खिलाफ पूरी दुनिया खड़ी है। जब रूस से किसी भी तरह के रिश्ते, सौदे और करार करने वालों पर अमेरिका की टेढ़ी नजर पड़ रही है। तब अमेरिका ने वो कानून बदल दिया, जिसके कारण भारत पर प्रतिबंध वाली तलवार लटक रही थी। 

चीन को सबक सिखाने के लिए अमेरिका तैयार है। भारत को रूस से एस 400 खरीदने की मंजूरी अमेरिका की तरफ से मिल गई है। अमेरिका के काटसा एक्ट की पाबंदियों से अमेरिका की तरफ से छूट दे दी गई है। इस फैसले से रूस भी खुश है क्योंकि उसकी भारत के साथ डील नहीं रूकेगी। भारत रूस से सबसे ज्यादा अपने मिलिट्री एक्यूपमेंट खरीदता है। बावजूद इसके अमेरिका भारत पर प्रतिबंध नहीं लगाएगा। दरअसल, जीओपॉलिटिक्स में कुछ भी फ्री में नहीं होता है। इसके पीछे अमेरिका का भी अपना मकसद है। अमेरिका ये भलि भांति जानता है कि एशिया में चीन को रोकने के लिए केवल और केवल भारत ही है जो उसके काम आ सकता है। ऐसे में अगर चीन के खिलाफ की जंग में भारत को दूर कर दिया तो फिर ड्रैगन के वर्चस्व को कैसे रोका जाएगा। 

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अमेरिका ने किस मजबूरी में रूस से एस-400 खरीदने की मंजूरी दी?

2018 में सौदा हुआ था। डॉनल्ड ट्रंप राष्ट्रपति थे। उन्होंने साफ धमकी दी थी कि भारत पर बैन लगाए जाएंगे। लेकिन इसके बावजूद ऐसा नहीं हुआ। इसके पीछे की वजह है कि हिंद महासागर से दुनिया का 75 फीसदी से अधिक का व्यापार होता है। यहां भारत के बहुत ही महत्वपूर्ण स्ट्रैटर्जी लोकेशन वाला देश है। पूर्वी एशिया, मिडल ईस्ट, अफ्रीका के संसाधन संपन्न देशों की सीमाएं यहां पर जुड़ती हैं। यहां पर भारत जैसा देश दोस्त अमेरिका को चाहिए। दुनिया की 14 फीसदी से अधिक जंगली मछलियों का घर भी है। जिनका चीन की तरफ से साउथ चाइना सी में शोषण कर रहा है। क्षेत्र में अमेरिका की छवि को चीन कमजोर करने पर तुला हुआ है। ऐसे में चीन के काउंटर में अमेरिका को कोई तो चाहिए। भारत-अमेरिका चीन संबंध ही चीन को पीछे धकेल सकते हैं। क्वाड में भी दोनों देश जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ शामिल हैं।

 भारत को रोककर अमेरिका कोई भूल नहीं करना चाहता

 चीन हिंद महासागर में अमेरिका का सैन्य मुकाबला करना चाहता है। भारत के साथ सुरक्षा संबंधों को अमेरिका खतरे में नहीं डालना चाहता है। अमेरिका के साथ भारत की मिलिट्री डील पिछले कुछ दिनों में बढ़ी हैं। चीन को रोकने के लिए भारत को एस-400 जैसी ताकत की जरूरत है। इसलिए भारत के साथ रूस के इस सौदे के बावजूद अमेरिका को कोई ऐतराज नहीं। भारत को रोककर अमेरिका कोई भूल नहीं करना चाहता है। इसलिए अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव में जब सिनेटर रो खन्ना ने बिल रखा तो ध्वनि मत से ये पारित हुआ। भारत और अमेरिका के रिश्तों को और मजबूत बनाने की पहल भारतीय मूल के अमेरिकी सांसद रो खन्ना ने की थी। जब उन्होंने नेशनल डिफेंस ऑर्गनाइजेशन में संशोधन के लिए प्रस्ताव रखा। उस पर अमेरिकी सदन ने अपनी मुहर भी लगा दी। दरअसल, भारत ने रूस से जब से एस 400 मिसाइल सिस्टम की डील की थी। तब से भारत पर अमेरिका के कानून काटसा के प्रावधानों की तलवार लटर रही थी।

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मनमोहन सिंह और जॉर्ज बुश की सिविल न्यूक्लियर डील

 इसी कानून का हवाला देकर अमेरिका भारत को रूस से एस 400 की डील कैंसिल करने का दबाव भी बना रहा था। डेढ़ दशक पहले वो मनमोहन सिंह और जॉर्ज बुश की जोड़ी थी जब सिविल न्यूक्लियर डील करके अमेरिका ने भारत की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया था। भारत के न्यूक्लियर पावर की आधिकारिक पुष्टि की थी और 17 साल बाद मोदी और बाईडेन की जोड़ी है। भारत का वही दम फिर दिखा है जब अमेरिका ने भारत और रूस के सौदे की खातिर अपना कानून बदल दिया है। 

भारत के लिए इस कानून को बेअसर करने का प्रस्ताव अमेरिकी जन प्रतिनिधि सभा के सदस्य ने 15 जुलाई को पेश किया है। अभी इसका अमेरिकी सीनेट से पारित होना बाकी है। सीनेट से पास होने के बाद इस पर अमेरिकी राष्ट्रपति की मुहर लगेगी। फिर भारत के लिए काटसा कानून का खतरा समाप्त हो जाएगा। काटसा को लेकर अमेरिका सरकार की दलील ये थी कि इस कानून में उसके हाथ बंधे हुए हैं। ये कानून अमेरिकी प्रशासन द्वारा नहीं बल्कि अमेरिकी कांग्रेस द्वारा बनाया गया है। डोनाल्ड ट्रंप के शासनकाल में भी यही तर्क दिए जाते रहे। इसके बाद जो बाइडेन के शासनकाल में भी इस कानून का डर दिखाया जाता रहा। लेकिन अब स्थितियां इससे ठीक उलट हैं। चीन खुलकर अमेरिका को चुनौती दे रहा है। 

भारत के लिए कितनी बड़ी कामयाबी

पिछले दो दशकों में भारत ने अमेरिका से 20 अरब डॉलर के सैनिक साजोसामान खरीदे भी हैं। लेकिन भारत के लिए रूस के साथ रक्षा संबंध को खत्म करना मुमकिन नहीं था। इससे भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा पर आंच आती। असल में, भारत के पास आज भी दो तिहाई हथियार रूसी मूल के हैं। इसलिए अचानक रूस से हथियार और रक्षा उपकरणों की खरीद रोकने पर भारत की मुश्किल बढ़ जाती। तीनों सेनाएं रूसी हथियारों पर आश्रित हैं। भारतीय वायुसेना का तीन चौथाई बेड़ा रूसी मूल का है। 

-अभिनय आकाश 

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