समुद्र की लहरों का आत्मनिर्भर योद्धा INS विक्रांत विक्रांत इतना खास क्यों? 50 साल पहले इस नाम वाले जहाज से थर-थर कांपता था पाकिस्तान

INS Vikrant
अभिनय आकाश । Aug 7 2021 5:59PM

4 अगस्त को आईएनएस विक्रांत का पहला सी-ट्रॉयल किया गया। यानी ये एयरक्रॉफ्ट कैरियर कोच्चि शिपयार्ड से निकलकर सीधा समुद्र की लहरों से बात कर रहा था। विक्रांत की सबसे बड़ी खासियत इसका स्वदेशी होना है। विक्रांत के 70% से भी ज्यादा मटेरियल और इक्विपमेंट भारत में ही बनाए गए हैं।

हिन्दुस्तान की लंबी चौड़ी समुद्री सीमा की रखवाली का जिम्मा हिन्दुस्तान के रणबांकुरों ने पूरी सिद्धत से किया है। भारत का समुद्री इतिहास काफी समृद्ध रहा है। इस काम में नौसेना और उसके युद्धपोतों का बड़ा योगदान रहा है। किसी देश की फौजी ताकत में नौसैनिक बेड़े की अहम भूमिका होती है। इस वक्त अमेरिका के पास 11 ऑपरेशनल एयरक्राफ्ट कैरियर हैं।  चीन, इंग्लैंड, फ्रांस, रूस, स्पेन, ब्राजील और थाईलैंड के पास एक-एक ऑपरेशनल एयरक्राफ्ट कैरियर हैं। आईएनएस विक्रांत नेवी में कमीशन होने वाला चौथा एयरक्राफ्ट कैरियर बनेगा। हिन्दुस्तान में बना समुद्र का ये ताकतवर योद्धा अब समुद्र की लहरों को चीरने लगा है। 4 अगस्त को आईएनएस विक्रांत का पहला सी-ट्रॉयल किया गया। यानी ये  एयरक्रॉफ्ट कैरियर कोच्चि शिपयार्ड से निकलकर सीधा समुद्र की लहरों से बात कर रहा था। ये हिन्दुस्तान के ऐतिहासिक पल है। समुद्र में उतरकर आईएनएस विक्रांत ने बता दिया है कि हिन्दुस्तान की नौसेना हर मायने में आत्मनिर्भर हो चुकी है। करीब चालीस हजार टन का ये विशालकाय युद्धपोत जब समुद्र में उतरा तो लहरों को भी इसकी ताकत का अहसास हो गया। पानी के अंदर 1 लाख 10 हजार हौज पावर का इंजन इस एयरक्राफ्ट कैरियर को ताकत दे रहा था। 23 हजार करोड़ की लागत से बने आईएनएस विक्रांत का हर हिस्सा भारत में ही बनाया गया है। आधुनिक तकनीक से लैस ये एयरक्राफ्ट कैरियर अगले साल नौसेना में शामिल किया जा सकता है। करीब एक साल तक आईएनएस विक्रांत का सी ट्रायल चलेगा। इस दौरान इसे हर पैमाने पर परखा जाएगा।

INS विक्रांत का सी-ट्रायल

समुद्र में आईएएस विक्रांत की रफ्तार 

पानी पर तैरने की क्षमता

तीखे मोड़ पर घूमने की क्षमता

गियर शिफ्त की ताकत

एयरक्राफ्ट कैरियर का एंकर टेस्ट किया जाएगा

भार वाहन क्षमता देखी जाएगी

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स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर 

विक्रांत की सबसे बड़ी खासियत इसका स्वदेशी होना है। विक्रांत के 70% से भी ज्यादा मटेरियल और इक्विपमेंट भारत में ही बनाए गए हैं। इसी के साथ भारत दुनिया के उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया है, जिनके पास एयरक्राफ्ट कैरियर को बनाने की क्षमता है। कैरियर की डिजाइनिंग से लेकर असेंबलिंग तक का सारा काम कोच्चि के शिपयार्ड में किया गया है। इसका पूरा जिम्मा डायरेक्ट्रेट ऑफ नेवल डिजाइन (डीएनडी) के पास है। साथ ही कैरियर का निर्माण आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया के तहत हुआ है। इस वजह से इसकी कुल लागत (23 हजार करोड़) का 80-85% हिस्सा भारतीय मार्केट में ही खर्च हुआ है। आईएनएस विक्रांत समुद्र में उतरने को तैयार है लेकिन अभी इसकी ताकत बढ़ाने पर काफी काम किया जाना है। ये एयरक्राफ्ट कैरियर हिन्दुस्तान के दुश्मनों के लिए मौत का पैगाम लेकर आएगा। एयरक्राफ्ट पर तैनात लड़ाकू विमानों और दूसरे हथियारों के जरिये ये काम होगा। 

इन ताकतों से लैस होगा विक्रांत

मिग 29के का ट्रायल किया जाएगा

एमएच-60 आर हेलिकॉप्टर का ट्रायल होगा

एएलएच एडवांस लाइट हेलिकॉप्टर का ट्रायल होगा

ये सारे ट्रायल पूरे होने के बाद आईएनएस विक्रांत नौसेना में शामिल होने के लिए पूरी तरह से तैयार हो जाएगा। ताकत के फुल डो़ज और आधुनिक तकनीक से लैस होने के बाद आईएनएस विक्रांत समुद्र का सबसे ताकतवर योद्धा बन जाएगा। वक्त के साथ समुद्र में चुनौतियां भी बड़ी होती जा रही हैं। पाकिस्तान और चीन जैसे दुश्मन समुद्र के रास्ते साजिशे रचने में जुटे हैं। ऐसे में देश के समुद्री सीमा की रक्षा आईएनएस विक्रांत जैसा ताकतवर और भोसेमंद योद्धा ही कर सकता है। 

आईएनएस विक्रमादित्य

अभी समुद्री सरहदों की रक्षा की जिम्मेदारी भारत का एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रमादित्य उठा रहा है। आईएनएस विक्रमादित्‍य, 44,500 टन भार वाला, 284 मीटर लम्बा एवं 60 मीटर ऊँचा युद्धपोत है।।  तुलनातमक तरीके से देखा जाए तो इसकी लंबाई लगभग तीन फुटबॉल मैदानों के बराबर तथा ऊंचाई लगभग 22 मंजिली इमारत के बराबर है। यह युद्धपोत सामरिक महत्‍व के कारण काफी प्रेरणादायक व उत्‍साह बढ़ाने वाला है। इस पोत में कुल 22 नौका तल विद्यमान हैं। तत्कालीन रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने इसे गेमचेंजर बताया था। आने वाले वक्त में जब आईएनएस विक्रमादित्य को आईएनएस विक्रांत का साथ मिल जाएगा तो दुश्मन हिन्दुस्तान की तरफ आंख उठाने की हिम्मत नहीं करेगा। 

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 इस नाम वाले जहाज ने 50 साल पहले युद्ध में निभाई थी अहम भूमिका

जब इंडियन नेवी के जहाजों के योगदान को याद किया जाता है तो उसमें टॉप पर जिस जहाज का नाम आता है वो है आईएनएस विक्रांत। वो विक्रांत जिसके नाम से पाकिस्तान के पसीने छूट जाते थे। वो विक्रांत जिसकी सल्तनत के आगे हिन्द महासागर में किसी दुश्मन के फटकने तक की हिम्मत नहीं होती थी। विक्रांत का जैसा नाम था वैसा ही ये अपराजेय औऱ साहसी था। इस जहाज का निर्माण ब्रिटेन के वीकर्स आर्म्सस्ट्रांग शिपयार्ड में हुआ था। शुरू में इसका नाम एचएमएस हर्कुलस था। 1945 में इसे ब्रिटिश नौसेना में शामिल किया गया। जहाज को सक्रिय सैन्य अभियान में तैनात किया जाता। उससे पहले ही दूसरा विश्व युद्ध समाप्त हो गया। उसके बाद नौसेना की सक्रिय ड्यूटी से इस जहाज को हटा दिया गया। साल 1957 में इसे भारतीय नौसेना को बेच दिया गया। 4 मार्च 1961 को इसे भारतीय नौसेना में शामिल किया गया। आईएनएस विक्रांत ने साल 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान की नौसेना के लिए बड़ी मुसीबत था। 1965 के भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान ने कहा था कि उसने विक्रांत को डूबो दिया है जबकि वह मुंबई के नौसेना की पोतगाह में वह कुछ तब्दीलियों से गुजर रहा था। साल 1971 में हुए युद्ध के दौरान आईएनएस विक्रांत ने पाकिस्तान की नौसैनिक घेरेबंदी में अहम भूमिका निभाई थी।  बांगलादेश को आज़ाद करने का अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका के कारण इससे जुड़े अधिकारियों को दो महावीर चक्र और 12 वीर चक्र मिले। जनवरी 1997 में ये कहते हुए इसकी सेवा समाप्त कर दी गई कि पोत का रख-रखाव संभव नहीं है। सेवा मुक्ति के बाद भी आईएनएस विक्रांत आकर्षण का केंद्र रहा और कई देशों से लोग इसे देखने के लिए आते थे। 

क्यों इसे विक्रांत नाम दिया गया 

अब आप सोच रहे होंगे कि आईएएस विक्रांत नामक एयरक्राफ्ट कैरियर के नाम पर ही इस नए स्वदेशी कैरियर का नाम विक्रांत क्यों रखा गया। 1971 के युद्ध में जीत की भारत 50वीं सालगिरह मना रहा है। इसलिए नेवी ने अपने INS विक्रांत की याद में इस नए एयरक्राफ्ट कैरियर को भी विक्रांत ही नाम दिया है। - अभिनय आकाश

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