पूर्व में खारिज हुआ था अरावली पर्वतमाला के 100 मीटर का फॉर्मूला, अब इसकी सिफारिश क्यों: Gehlot

गहलोत ने कहा कि उनकी तत्कालीन सरकार ने न्यायपालिका के आदेश को स्वीकार किया और बाद में भारतीय वन सर्वेक्षण के माध्यम से अरावली क्षेत्र का मानचित्रण करवाया।
राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अरावली की परिको लेकर उपजे विवाद के बीच, रविवार को सवाल किया कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार ने उस ‘100 मीटर’ फॉर्मूले को क्यों मान्यता दी, जिसे उच्चतम न्यायालय ने 2010 में ही खारिज कर दिया था। उन्होंने सत्तारूढ़ पार्टी पर अरावली को खनन माफिया के हवाले करने की कोशिश कर राज्य के भविष्य को खतरे में डालने का आरोप लगाया।
गहलोत का 100 मीटर फॉर्मूले से तात्पर्य केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अंतर्गत गठित एक समिति की अरावली पर्वतमाला की परिसंबंधी हालिया सिफारिशों से था, जिसे उच्चतम न्यायालय ने 20 नवंबर को स्वीकार कर लिया था।
नयी परिके अनुसार, “अरावली पर्वतमाला, निर्दिष्ट अरावली जिलों में स्थित ऐसी स्थलाकृति है जिसकी ऊंचाई स्थानीय भू-भाग से 100 मीटर या उससे अधिक हो और 500 मीटर की दूरी के भीतर स्थित दो या दो से अधिक ऐसी पहाड़ियों का समूह है।”
गहलोत ने दोहराया कि नयी परिसे राज्य की 90 प्रतिशत पर्वतमाला नष्ट हो जाएगी। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने रविवार को कहा कि उच्चतम न्यायालय द्वारा अनुमोदित परिसे अरावली क्षेत्र का 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा ‘संरक्षित क्षेत्र’ के अंतर्गत आ जाएगा।
भाजपा के वरिष्ठ नेता राजेंद्र राठौर ने भी दिन में गेहलोत के दावे को ‘बेबुनियाद और भ्रामक’ बताते हुए कहा था कि नया ढांचा ‘पहले से अधिक सख्त’ और ‘अधिक वैज्ञानिक’ है।
गहलोत ने राठौर के बयान के बाद कहा कि 2003 में एक विशेषज्ञ समिति ने आजीविका और रोजगार के परिप्रेक्ष्य से ‘100 मीटर’ की परिकी सिफारिश की थी। उन्होंने कहा, “इस सिफारिश पर अमल करते हुए तत्कालीन राज्य सरकार ने 16 फरवरी 2010 को न्यायालय में एक हलफनामा दाखिल किया। हालांकि, न्यायालय ने केवल तीन दिनों के भीतर ही इस परिको खारिज कर दिया।”
गहलोत ने कहा कि उनकी तत्कालीन सरकार ने न्यायपालिका के आदेश को स्वीकार किया और बाद में भारतीय वन सर्वेक्षण के माध्यम से अरावली क्षेत्र का मानचित्रण करवाया।
उन्होंने कहा, “हमारी कांग्रेस सरकार ने अरावली में अवैध खनन का पता लगाने के लिए रिमोट सेंसिंग के उपयोग के निर्देश दिये थे। 15 जिलों में सर्वेक्षण के लिए सात करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया था।”
पूर्व मुख्यमंत्री ने साथ ही यह भी बताया कि पुलिस अधीक्षकों और जिलाधिकारियों को अवैध खनन पर अंकुश लगाने की सीधी जिम्मेदारी दी गई थी। गहलोत ने कहा, “अब सवाल यह है कि राजस्थान की वर्तमान सरकार ने केंद्र की एक समिति को उसी परिका समर्थन और सिफारिश क्यों की, जिसे न्यायालय ने 2010 में पहले ही खारिज कर दिया था।” उन्होंने आशंका जताई कि इसके पीछे दबाव या कोई बड़ी साजिश रही होगी।
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