Ratle Hydroelectric Project में 29 कर्मचारियों के आतंकी संपर्क निकले, राष्ट्रीय महत्व की परियोजना की सुरक्षा से हो रहा था खिलवाड़

Ratle Hydroelectric Project
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रतले परियोजना, जिसकी लागत लगभग 3,700 करोड़ रुपये है और जिसे सितंबर 2026 तक पूरा किया जाना है, पहले ही दो साल की देरी का शिकार हो चुकी है। हरपाल सिंह का आरोप है कि विधायक शगुन परिहार के हस्तक्षेप और स्थानीय दबावों के कारण परियोजना लगातार बाधित हो रही है।

रणनीतिक महत्व की परियोजनाएँ अपने आप में ही उच्च जोखिम पर होती हैं। वह दुश्मन देशों की नजर में रहती हैं, आतंकी संगठनों के निशाने पर होती हैं और इसलिए उनकी सुरक्षा सबसे बड़ी प्राथमिकता मानी जाती है। लेकिन हालात तब और खतरनाक हो जाते हैं, जब इन परियोजनाओं को बाहर से नहीं, बल्कि भीतर से ही खतरा पैदा होने लगे। सवाल तब उठता है कि अगर किसी राष्ट्रीय महत्व की परियोजना में वही लोग काम कर रहे हों, जिनके तार आतंकी गतिविधियों या आपराधिक पृष्ठभूमि से जुड़े हों। देखा जाये तो यह सिर्फ प्रशासनिक चूक या परियोजना निर्माण में लगी कंपनी की साधारण चूक नहीं बल्कि सीधे-सीधे राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ खिलवाड़ है?

हम आपको बता दें कि जम्मू-कश्मीर पुलिस द्वारा मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड को लिखे गए पत्र ने ठीक इसी डरावनी हकीकत को उजागर किया है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक 1 नवंबर को जम्मू-कश्मीर पुलिस ने मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (एमईआईएल) को एक गंभीर पत्र लिखकर आगाह किया था कि किश्तवाड़ के द्राबशल्ला क्षेत्र में निर्माणाधीन 850 मेगावाट की रतले जलविद्युत परियोजना में काम कर रहे 29 कर्मचारियों के कथित तौर पर आतंकी संबंध हैं या उनकी आपराधिक पृष्ठभूमि है। यह पत्र किश्तवाड़ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) नरेश सिंह की ओर से एमईआईएल के जनरल मैनेजर को लिखा गया था। इसमें कहा गया था कि परियोजना में कार्यरत स्थानीय कर्मचारियों का नियमित पुलिस सत्यापन किया गया, जिसमें 29 लोग “विध्वंसक/राष्ट्रविरोधी गतिविधियों” में संलिप्त पाए गए। एसएसपी ने स्पष्ट शब्दों में चेतावनी दी थी कि ऐसे लोगों को परियोजना में रखने से उसकी सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है, क्योंकि इनके आतंकी संपर्क या आपराधिक रिकॉर्ड हैं।

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पत्र में यह भी रेखांकित किया गया था कि जलविद्युत परियोजनाएं रणनीतिक और राष्ट्रीय महत्व की होती हैं तथा दुश्मन देशों के लिए उच्च जोखिम वाले लक्ष्य बन सकती हैं। ऐसे में पुलिस ने एमईआईएल को सलाह दी थी कि इन कर्मचारियों की नियुक्ति पर पुनर्विचार किया जाए, उनकी गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखी जाए और किसी भी संदिग्ध गतिविधि की तत्काल सूचना पुलिस को दी जाए। हम आपको बता दें कि इन 29 में से पांच के बारे में पुलिस रिपोर्ट में आतंकी संपर्क का उल्लेख है। इनमें क्षेत्र के एक कुख्यात आतंकी के तीन रिश्तेदार, एक संदिग्ध ओवरग्राउंड वर्कर का बेटा और एक आत्मसमर्पित आतंकी का बेटा शामिल है। साथ ही एक व्यक्ति पर जलस्रोतों को दूषित करने और दस्तावेजों की जालसाजी का आरोप है, जबकि बाकी 23 लोगों पर आपराधिक मामलों जैसे अवैध घुसपैठ, नुकसान पहुंचाने और सार्वजनिक अथवा व्यक्तिगत संपत्ति को क्षति पहुंचाने के आरोप दर्ज हैं।

इस पूरे मामले ने तब और तूल पकड़ लिया जब किश्तवाड़ से भाजपा विधायक शगुन परिहार ने कहा कि पुलिस का यह पत्र उनके पहले से लगाए जा रहे आरोपों की पुष्टि करता है। हम आपको बता दें कि इस विवाद की शुरुआत तब हुई थी जब एमईआईएल के मुख्य परिचालन अधिकारी (सीओओ) हरपाल सिंह ने सार्वजनिक रूप से शगुन परिहार पर परियोजना में देरी कराने का आरोप लगाया था।

इस बीच, मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक हरपाल सिंह ने स्वीकार किया है कि पुलिस का पत्र उन्हें मिला है और कंपनी ने आश्वासन दिया है कि वह संदिग्ध गतिविधियों पर नजर रखेगी। हालांकि, उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि बिना अदालत में दोष सिद्ध हुए या केवल किसी के रिश्तेदार के आतंकी होने के आधार पर किसी कर्मचारी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कैसे की जा सकती है।

हम आपको बता दें कि रतले परियोजना, जिसकी लागत लगभग 3,700 करोड़ रुपये है और जिसे सितंबर 2026 तक पूरा किया जाना है, पहले ही दो साल की देरी का शिकार हो चुकी है। हरपाल सिंह का आरोप है कि विधायक शगुन परिहार के हस्तक्षेप और स्थानीय दबावों के कारण परियोजना लगातार बाधित हो रही है। वहीं, शगुन परिहार ने इन आरोपों को गैर-जिम्मेदाराना बताते हुए इसे कंपनी की अक्षमता छिपाने की कोशिश करार दिया है।

देखा जाये तो रतले जलविद्युत परियोजना का विवाद केवल 29 कर्मचारियों की नियुक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जम्मू-कश्मीर में विकास, सुरक्षा और राजनीति के घातक त्रिकोण को बेनकाब करता है। सवाल सीधा और तीखा है कि क्या राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े प्रोजेक्ट में संदेह के लाभ की कोई गुंजाइश होनी चाहिए? एक ओर पुलिस लिखित रूप में चेतावनी दे रही है कि परियोजना की सुरक्षा से समझौता हो रहा है, दूसरी ओर कंपनी कानूनी तकनीकियों का हवाला देकर हाथ खड़े कर रही है।

बहरहाल, कंपनी का यह तर्क कि जब तक अदालत दोषी न ठहराए, तब तक कुछ नहीं किया जा सकता, सुनने में भले लोकतांत्रिक लगे, लेकिन जमीनी हकीकत में यह घातक लापरवाही है। राष्ट्रीय महत्व की परियोजनाएं कोई साधारण फैक्ट्री नहीं होतीं। यहां एक छोटी सी चूक भी बड़े विध्वंस का कारण बन सकती है।

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