कर्नाटक के नाटक का नया अध्याय: क्यों चुनाव घोषित होते ही टल गए ?

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17 विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट में कर्नाटक की विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष केआर रमेश कुमार के फैसले को चुनौती देते हुए याचिका दाखिल की थी।

कर्नाटक का सियासी नायक कब थमेगा यह तो खुद कर्नाटक के नेता और जनता दोनों को ही नहीं पता है। क्योंकि स्थाई सरकार की चाहत लिए प्रदेश की जनता विधानसभा चुनाव में मतदान करती है लेकिन समीकरण ऐसे बनते हैं कि पार्टियों को समर्थन प्राप्त कर सरकार बनानी पड़ती है या फिर अपने दम पर अगर किसी पार्टी ने सरकार बनाई तो वह 2-3 सालों में गिर जाती है। अक्सर ऐसा ही देखा जाता रहा है। रही बात अयोग्य ठहराए गए 17 विधायकों की तो उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा है कि उन्हें भी उपचुनाव का हिस्सा बनाया जाना चाहिए।

चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान करते हुए देश के अलग-अलग हिस्सों में खाली पड़ी विधानसभा सीटों के लिए भी उपचुनाव की घोषणा की। जिसके मुताबिक 21 अक्टूबर को मतदान होने वाले हैं और 24 अक्टूबर को नतीजे आएंगे। लेकिन मामला जरा अटक गया है। अरे चिंता न करें यह मामला सिर्फ कर्नाटक को लेकर फंसा हुआ है। क्योंकि चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि कर्नाटक विधानसभा की 15 सीटों के लिये होने वाले उपचुनाव को वह टाल देगा।

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दरअसल, 17 विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट में कर्नाटक की विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष केआर रमेश कुमार के फैसले को चुनौती देते हुए याचिका दाखिल की थी। अब इस मामले की अगली सुनवाई 22 अक्टूबर को होगी। चुनाव आयोग ने फिलहाल कर्नाटक की 15 सीटों पर होने वाले उपचुनाव को टाल दिया है क्योंकि अयोग्य विधायकों से जुड़े मामले की सुनवाई अभी चल रही है।

कहां से शुरू हुआ था मामला

जुलाई में कांग्रेस-जेडीएस की गठबंधन वाली एचडी कुमारस्वामी सरकार के खिलाफ विश्वासमत प्रस्ताव लाया गया था। उससे पहले ही विधानसभा स्पीकर केआर रमेश कुमार ने 17 विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया था। परिस्थिति ऐसी बनी कि कुमारस्वामी सदन में विश्वास मत पर खरे नहीं उतर सकते थे ऐसे में उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की सरकार गिर गई।

इसके बाद प्रदेश भाजपा प्रमुख बीएस येदियुरप्पा ने राज्यपाल वजुभाई बाला से मुलाकात कर। सरकार गठित करने का समय मांगा और फिर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। यह मामला तभी से चल रहा है। फिलहाल अयोग्य ठहराए गए विधायकों ने 21 अक्टूबर को होने वाले उपचुनाव को लड़ने की अनुमति प्राप्त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। 

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चुनाव बिगाड़ सकता थी पार्टियों की स्थिति

कर्नाटक विधानसभा में सदस्यों की संख्या कुल 225 है। जिनमें से एक मनोनीत सदस्य है। ऐसे में सीटों का आंकड़ा घटकर 224 हो जाता है। आपको बता दें कि पूर्व विधानसभा अध्यक्ष केआर रमेश कुमार द्वारा 17 विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने के बाद चुनाव आयोग ने 15 सीटों के लिए उपचुनाव का ऐलान किया था।

अगर 15 सीटों पर मतदान होता तो सीटों का आंकड़ा 222 हो जाता और वर्तमान में भाजपा के पास 106 सदस्यों का समर्थन है। जिनमें एक निर्दलीय सदस्य भी शामिल है। जबकि कांग्रेस के पास 66 सदस्य तो जेडीएस के पास 34 सदस्य हैं। बसपा ने 1 सीट पर जीत दर्ज की थी। 

चुनाव होने की स्थिति में 15 सीटों में से कम से कम भाजपा को 6 सीटों पर जीत दर्ज करने की जरूरत होती। अगर ऐसा नहीं होता तो येदियुरप्पा सरकार मुश्किल में आ जाती।

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क्या कहते हैं राजनीतिक विशेषज्ञ

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि कर्नाटक में उपचुनाव टलने की वजह से भाजपा सरकार को प्रदेश में अपनी स्थिति मजबूत करने का मौका मिल गया है। क्योंकि जब से बीएस येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बने हैं तब से प्रदेश में बाढ़ जैसी परिस्थितियां बनी हुई हैं और वह उन्हीं चुनौतियां का लगातार सामना कर रहे हैं। ऐसे में उन्हें पार्टी को मजबूत बनाने के लिए ज्यादा समय नहीं मिल पाया है। 

चुनाव आयोग पर कुमारस्वामी ने उठाए सवाल

पूर्व मुख्यमंत्री और जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी ने कहा कि चुनाव आयोग का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने पहली बार स्वेच्छा से कहा कि वे चुनाव को टालने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग एक संवैधानिक निकाय है और उसके फैसले ने देश में व्यवस्था को नीचा दिखाया है। 

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अगर चुनाव हो भी जाते और कुमारस्वामी के पक्ष में नतीजे आते तो क्या कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन करके सरकार बनाती ? यह बड़ा सवाल है क्योंकि जेडीएस प्रमुख एचडी देवेगौंड़ा ने हालही में कहा था कि हम उपचुनाव अकेले ही लड़ेंगे। कांग्रेस के साथ चुनाव में किसी भी तरह का गठबंधन नहीं होगा। 

राजनीतिक विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर दोनों पार्टियां अपने-अपने उम्मीदवार उतारती तो फायदा भाजपा को होता क्योंकि ये दोनों पार्टियां आपस में ही एक-दूसरे के वोट काटती। ऐसा इसलिए कहा गया क्योंकि लगभग ढाई साल तक प्रदेश में कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन की सरकार थी और उसके गिरने के बाद भाजपा ने सत्ता संभाली। जनता के सामने छवि बनी थी कि दोनों पार्टियां मिलकर प्रदेश का उद्धार करेंगी लेकिन जब वो आपस में ही चुनाव लड़ेंगी तो जनता भाजपा पर भरोसा जताएगी क्योंकि वह अभी सत्ता में बनी हुई है।

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