Prabhasakshi NewsRoom: National Herald Case में अदालती टिप्पणी के बाद सिंघवी और रविशंकर प्रसाद आये आमने सामने

abhishek manu Singhvi and Ravi Shankar Prasad
ANI

अदालत ने यह भी कहा कि नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और अन्य आरोपियों को इस चरण में एफआईआर की प्रति देने का कोई अधिकार नहीं बनता। हालांकि, अदालत ने ईडी को आगे की जांच जारी रखने की अनुमति दे दी।

नेशनल हेराल्ड मामले में गांधी परिवार को बड़ी राहत मिली है जिसके बाद कांग्रेस ने कहा है कि सत्य की जीत हुई है जबकि भाजपा ने कहा है कि मामले से गांधी परिवार बरी नहीं हुआ है। हम आपको बता दें कि दिल्ली की राउज एवेन्यू अदालत ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा दर्ज कराई गई ताज़ा एफआईआर के आधार पर कार्यवाही पर संज्ञान लेने से इंकार कर दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि ईडी की जांच किसी नियमित एफआईआर से नहीं, बल्कि एक निजी शिकायत के आधार पर शुरू हुई है और ऐसे में इस स्तर पर संज्ञान लेना कानून के दायरे में नहीं आता।

अदालत ने यह भी कहा कि नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और अन्य आरोपियों को इस चरण में एफआईआर की प्रति देने का कोई अधिकार नहीं बनता। हालांकि, अदालत ने ईडी को आगे की जांच जारी रखने की अनुमति दे दी। अपने आदेश में अदालत ने रेखांकित किया कि यह मामला भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा दायर निजी शिकायत और उस पर मजिस्ट्रेट द्वारा जारी समन आदेशों से उपजा है, न कि किसी नियमित पुलिस एफआईआर से।

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इस फैसले के बाद कांग्रेस ने आक्रामक प्रतिक्रिया दी है। पार्टी ने ईडी की कार्यवाही को राजनीतिक रूप से प्रेरित और कानूनी रूप से टिकाऊ न होने वाला करार दिया। कांग्रेस का कहना है कि अदालत ने यह साफ कर दिया है कि बिना एफआईआर के ईडी की कार्यवाही अधिकार क्षेत्र से बाहर थी। कांग्रेस ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर लिखा कि “सच्चाई की जीत हुई है” और मोदी सरकार की “दुर्भावना और गैरकानूनी रवैये” का पर्दाफाश हो गया है।

कांग्रेस ने आगे दावा किया कि इस मामले में न तो मनी लॉन्ड्रिंग का कोई अपराध है, न ही अपराध से अर्जित संपत्ति (प्रोसीड्स ऑफ क्राइम) और न ही किसी संपत्ति का अवैध हस्तांतरण। पार्टी के मुताबिक, यह पूरा मामला राजनीतिक दुर्भावना, बदनाम करने की मुहिम और दुष्प्रचार का हिस्सा है, जिसे आज अदालत ने खारिज कर दिया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा है कि मैंने खुद यह अहम केस लड़ा था। यह बहुत महत्वपूर्ण फैसला है। उन्होंने कहा कि यह एक खोखला मामला था जिसे इतने ऊंचे लेवल तक ले जाया गया और आज इस पर संज्ञान भी नहीं लिया गया। उन्होंने कहा कि हमने कहा था कि यह एक ऐसा अजीब मामला है जिसमें कोई पैसे का स्थानांतरण नहीं हुआ, कोई पैसा इधर-उधर नहीं हुआ, कोई संपत्ति इधर-उधर नहीं हुई, तो मनी लॉन्ड्रिंग कहां है? उन्होंने कहा कि कोर्ट ने इस पर संज्ञान भी नहीं लिया, इसका मतलब है कि यह बहुत ही बेबुनियाद मामला है।

उधर, इस घटनाक्रम के बीच दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) ने ईडी की शिकायत पर सोनिया गांधी, राहुल गांधी और अन्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। यह एफआईआर नेशनल हेराल्ड से जुड़े कथित मनी लॉन्ड्रिंग मामले की जांच के सिलसिले में दर्ज की गई है। इस पर भी कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए भाजपा पर उत्पीड़न, डराने-धमकाने और बदले की राजनीति करने का आरोप लगाया।

कांग्रेस का कहना है कि “मोदी-शाह की जोड़ी” जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है और नेशनल हेराल्ड मामला पूरी तरह से फर्जी है। पार्टी ने भरोसा जताया कि अंततः न्याय की जीत होगी।

वहीं, भाजपा ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कांग्रेस के आरोपों को निराधार बताते हुए कहा कि जब निजी शिकायत दर्ज हुई थी, तब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं थे और यह मामला 2008 से जुड़ा हुआ है। रविशंकर प्रसाद ने कांग्रेस से आरोप-प्रत्यारोप छोड़कर कानून का सामना करने की नसीहत दी। उन्होंने कहा कि देश को यह जानना चाहिए कि दिल्ली पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर में सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर आपराधिक साजिश (धारा 120बी) और धोखाधड़ी (धारा 420) के आरोप लगाए गए हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि मामला पुराना होने के कारण एफआईआर पुरानी दंड संहिता के तहत दर्ज की गई है।

देखा जाये तो राउज एवेन्यू अदालत का यह फैसला केवल एक कानूनी आदेश भर नहीं है, बल्कि भारतीय राजनीति और जांच एजेंसियों की भूमिका पर एक बड़ा सवाल भी खड़ा करता है। हालांकि यह भी सच है कि अदालत ने ईडी को आगे जांच की अनुमति दी है, जिससे यह मामला पूरी तरह समाप्त नहीं होता। लेकिन शुरुआती स्तर पर ही प्रक्रिया पर सवाल उठना, जांच एजेंसी की कार्यप्रणाली को कठघरे में खड़ा करता है। बहरहाल, कांग्रेस इस फैसले को अपनी नैतिक और राजनीतिक जीत के रूप में पेश कर रही है, जबकि भाजपा इसे केवल एक तकनीकी अड़चन मान रही है।

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