Yes Milord: ईवीएम-VVPAT पर SC ने क्या फैसला दिया? रामदेव के बहाने एलोपैथी डॉक्टरों को भी अदालत ने कर दिया टाइट, जानें इस हफ्ते कोर्ट में क्या-क्या हुआ

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अभिनय आकाश । Apr 27 2024 2:23PM

इस सप्ताह यानी 22 अप्रैल से 27 अप्रैल 2024 तक क्या कुछ हुआ? कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट और टिप्पणियों का विकली राउंड अप आपके सामने लेकर आए हैं। कुल मिलाकर कहें तो आपको इस सप्ताह होने वाले भारत के विभिन्न न्यायालयों की मुख्य खबरों के बारे में बताएंगे।

सुप्रीम कोर्ट से लेकर लोअर कोर्ट तक के वीकली राउंड अप में इस सप्ताह कानूनी खबरों के लिहाज से काफी उथल-पुथल वाला रहा है। 30 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में फिर पेश होंगे बाबा रामदेव। केजरीवाल की गिरफ्तारी पर ED ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया हलफनामा। सुप्रीम कोर्ट में EVM-VVPAT के 100% मिलान की मांग खारिज कर दी। प्राइवेट प्रॉपर्टी पर सरकारी कब्जे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हुई बहस। स सप्ताह यानी 22 अप्रैल से 27 अप्रैल 2024 तक क्या कुछ हुआ? कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट और टिप्पणियों का विकली राउंड अप आपके सामने लेकर आए हैं। कुल मिलाकर कहें तो आपको इस सप्ताह होने वाले भारत के विभिन्न न्यायालयों की मुख्य खबरों के बारे में बताएंगे।

VVPAT वेरिफिकेशन की भी सभी याचिकाएं खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के माध्यम से डाले गये वोट का ‘वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल’ (वीवीपीएटी) के साथ पूर्ण सत्यापन कराने का अनुरोध करने वाली सभी याचिकाएं खारिज कर दीं। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने मामले में सहमति वाले दो फैसले सुनाये। न्यायमूर्ति खन्ना ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अदालत ने सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है जिनमें दोबारा मतपत्रों से चुनाव कराने की प्रकिया पुन: अपनाने का अनुरोध करने वाली याचिका भी शामिल है। इससे पहले अदालत ने कहा कि चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्थान है। उसके नियंत्रक अथॉरिटी के तौर पर कोर्ट काम नहीं कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि हम किसी अन्य संवैधानिक अथॉरिटी को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं। हम चुनाव को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं।

अदालत ने पतंजलि के माफीनामे पर कही ये बात

पतंजलि आयुर्वेद मामले में अपनी सुनवाई का दायरा बढ़ाते हुए उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को एफएमसीजी कंपनियों के भ्रामक विज्ञापनों पर कड़ा रुख अपनाया और तीन केंद्रीय मंत्रालयों से जनता के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाले इस तरह के चलन को रोकने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में जानकारी मांगी। योगगुरु रामदेव और उनके सहयोगी पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के बालकृष्ण ने न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ को बताया कि उन्होंने भ्रामक विज्ञापनों पर 67 समाचार पत्रों में बिना शर्त सार्वजनिक माफी मांगी है और वे अपनी गलतियों के लिए बिना शर्त माफी मांगते हुए अतिरिक्त विज्ञापन भी जारी करना चाहते हैं। पीठ ने कहा कि अखबारों में प्रकाशित सार्वजनिक माफी रिकॉर्ड पर नहीं है और यह दो दिन के भीतर दाखिल की जाए। इसने मामले में अगली सुनवाई के लिए 30 अप्रैल की तारीख निर्धारित की। पतंजलि मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि औषधि एवं जादुई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, औषधि एवं सौंदर्य प्रसाधन अधिनियम तथा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्रासंगिक प्रावधानों के कार्यान्वयन और संबंधित नियमों की भी बारीकी से पड़ताल की जरूरत है।

अरविंद केजरीवाल को क्यों किया अरेस्ट? ED ने सुप्रीम कोर्ट को  बताया

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि आम आदमी पार्टी (आप) दिल्ली की कथित आबकारी नीति घोटाले से संबंधित उत्पन्न ‘अपराध की आय’ की प्रमुख लाभार्थी है और उसने अपने राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल के जरिए धनशोधन का अपराध किया है। ईडी ने दावा किया कि अब तक हुई जांच से पता चला है कि अपराध की आय का एक हिस्सा - लगभग 45 करोड़ रुपये नकद - का उपयोग 2022 में आप के गोवा विधानसभा चुनाव अभियान में किया गया था। उच्चतम न्यायालय में दायर ईडी के हलफनामे पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए आम आदमी पार्टी ने आरोप लगाया कि जांच एजेंसी झूठ बोलने वाली मशीन बन गई है। कथित आबकारी नीति घोटाले से जुड़े धनशोधन मामले में अपनी गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली केजरीवाल की याचिका पर उच्चतम न्यायालय में दायर जवाबी हलफनामे में ईडी ने दावा किया कि गोवा में आप के अभियान में शामिल विभिन्न व्यक्तियों के बयानों से पता चला है कि सर्वेक्षण कार्यकर्ता, क्षेत्रीय प्रबंधक, विधानसभा प्रबंधक आदि के रूप में उनके द्वारा किए गए काम के लिए उन्हें नकद भुगतान किया गया था।

शिक्षक नियुक्ति केस सुप्रीम सुप्रीम कोर्ट पहुंचा

पश्चिम बंगाल सरकार ने 25753 टीचर और नॉन टीचिंग स्टाफ की नियुक्ति को अवैध ठहराने के कोलकाता हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। राज्य सरकार का कहना है कि हाई कोर्ट ने मनमाना तरीके से ये नियुक्तियां रद्द की हैं। हाई कोर्ट पूरी चयन प्रक्रिया को रद्द करने के असर को समझने में नाकाम रहा, जिसके परिणामस्वरूप कर्मचारियों को तत्काल प्रभाव से सीधे बर्खास्त कर दिया गया।

प्राइवेट प्रॉपर्टी पर क्या समुदाय या संगठन का हक है?

सुप्रीम कोर्ट ने 23 अप्रैल को नौ जजों की पैनल ने संविधान के अनुच्छेद 39बी की व्याख्या के लिए कार्यवाही शुरू कर दी है। इसका उद्देश्य ये स्पष्ट करना है कि क्या राज्य की नीति का ये निदेशक सिद्धांत सरकार को व्यापक सार्वजनिक कल्याण के लिए समुदाय के भौतिक संसाधनों के बहाने निजी स्वामित्व वाली संपत्तियों का प्रबंधन और पुनर्वितरण करने की अनुमति देता है। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से 24 अप्रैल को कहा कि संविधान का उद्देश्य सामाजिक बदलाव की भावना लाना है और यह कहना खतरनाक होगा कि किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति को ‘समुदाय का भौतिक संसाधन’ नहीं माना जा सकता और सार्वजनिक भलाई के लिए राज्य प्राधिकारों द्वारा उस पर कब्जा नहीं किया जा सकता। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ-सदस्यीय संविधान पीठ ने ये टिप्पणी की। पीठ में न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना, न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, न्यायमूर्ति राजेश बिंदल, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी शामिल थे।

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