Omar Abdullah ने दुष्प्रचार फैलाने के लिए जैसे ही कदम बढ़ाया, Amit Shah ने कर दी तगड़ी खिंचाई
उमर अब्दुल्ला के सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर किए गए पोस्ट का जवाब देते हुए अमित शाह के कार्यालय ने कहा, “उमर अब्दुल्ला का ट्वीट भ्रामक और अटकलों से भरा है। इसमें जरा-सी भी सच्चाई नहीं है क्योंकि ऐसा कोई प्रस्ताव ही नहीं है।”
जम्मू-कश्मीर में नयी सरकार बनने से पहले केंद्र शासित प्रदेश में अफवाहों और अटकलों का दौर शुरू हुआ है जिसको वहां के नेता ही हवा देकर आगे बढ़ा रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला जोकि इस बार हार के डर से दो विधानसभा सीटों से चुनाव लड़े उन्होंने एक ट्वीट के जरिये दुष्प्रचार करना चाहा लेकिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ऐसा जवाब दिया कि उमर बगलें झांकने लगे। हम आपको बता दें कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस बात को सिरे से खारिज कर दिया है कि जम्मू-कश्मीर में जल्द ही गठित होने वाली सरकार या मुख्यमंत्री की शक्तियों में कटौती करने का प्रयास किया जा रहा है। मंत्रालय ने कहा कि इस बात में रत्ती भर भी सच्चाई नहीं है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के कार्यालय ने जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की उस टिप्पणी के बाद यह कड़ा बयान जारी किया है जिसमें उमर ने केंद्र शासित प्रदेश के नौकरशाहों से कहा था कि वे आगामी निर्वाचित सरकार को ‘और अधिक कमजोर’ करने के किसी भी दबाव का विरोध करें।
उमर अब्दुल्ला के सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर किए गए पोस्ट का जवाब देते हुए अमित शाह के कार्यालय ने कहा, “उमर अब्दुल्ला का ट्वीट भ्रामक और अटकलों से भरा है। इसमें जरा-सी भी सच्चाई नहीं है क्योंकि ऐसा कोई प्रस्ताव ही नहीं है।” गृह मंत्रालय ने कहा कि भारत की संसद द्वारा पारित जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 में जो प्रावधान है उन्हीं के मुताबिक कार्य किया जा रहा है। हम आपको बता दें कि पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा था, “भाजपा ने जम्मू-कश्मीर में हार को स्पष्ट रूप से स्वीकार कर लिया है। अन्यथा मुख्य सचिव को सरकार के संचालन नियमों में परिवर्तन कर मुख्यमंत्री/निर्वाचित सरकार की शक्तियों में कटौती कर उसे उपराज्यपाल को सौंपने का काम क्यों सौंपा गया?''
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जहां तक कांग्रेस की ओर से अटकलें शुरू करने वाले बयान दिये जाने की बात है तो आपको बता दें कि पार्टी ने जम्मू-कश्मीर में सरकार गठन से पहले पांच विधायकों के मनोनीत करने के कदम का कड़ा विरोध किया है और उसने ऐसे किसी भी निर्णय को लोकतंत्र और संविधान के मूल सिद्धांतों पर हमला करार दिया है। हम आपको बता दें कि खबरों के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में पहली बार नयी सरकार के गठन में पांच मनोनीत विधायकों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। केंद्र शासित प्रदेश में एक दशक के अंतराल के बाद चुनाव हुए हैं। गृह मंत्रालय की सलाह के आधार पर उपराज्यपाल (एलजी) इन सदस्यों को नामित करेंगे। जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 में पिछले साल 26 जुलाई, 2023 को संशोधन करने के बाद यह प्रक्रिया शुरू की गई। पांच विधायकों को मनोनीत किए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर विधानसभा की सदस्य संख्या 95 हो जाएगी, जिससे सरकार बनाने के लिए बहुमत का आंकड़ा 48 हो जाएगा।
जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस कमेटी (जेकेपीसीसी) के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और मुख्य प्रवक्ता रवींद्र शर्मा ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘हम जम्मू-कश्मीर में सरकार गठन से पहले उपराज्यपाल द्वारा पांच विधायकों को मनोनीत करने का विरोध करते हैं। ऐसा कोई भी कदम लोकतंत्र, जनादेश और संविधान के मूल सिद्धांतों पर हमला करने के समान है।’’ उन्होंने इस मुद्दे पर अपनी असहमति और विरोध जताया तथा इसका डटकर मुकाबला करने की घोषणा की। इस दौरान पार्टी नेता रमन भल्ला भी मौजूद थे। रवींद्र शर्मा ने कहा, ‘‘संविधान के मुताबिक, उपराज्यपाल को मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करना चाहिए। चुनाव के बाद बहुमत या अल्पमत की स्थिति को बदलने के लिए मनोनयन के प्रावधान का दुरुपयोग करना हानिकारक होगा।’’ उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के अनुसार, उपराज्यपाल के पास कश्मीरी पंडितों और पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर (पीओके) के शरणार्थियों सहित पांच विधायकों को नामित करने का अधिकार है।
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