उच्चतम न्यायालय ने पेगासस जासूसी विवाद में व्यापक जांच का आदेश दिया

Supreme Court

शीर्ष अदालत के आदेश में कहा गया, ‘‘किसी सभ्य लोकतांत्रिक समाज के सदस्यों की निजता की तर्कसंगत अपेक्षा होती है। निजता पत्रकारों या सामाजिक कार्यकर्ताओं की इकलौती चिंता नहीं है। निजता के उल्लंघन के खिलाफ प्रत्येक भारतीय नागरिक को संरक्षण मिलना चाहिए।’’

नयी दिल्ली| उच्चतम न्यायालय ने इजराइली स्पाईवेयर ‘पेगासस’ के जरिए भारत में कुछ लोगों की कथित जासूसी के मामले की जांच के लिए बुधवार को विशेषज्ञों की तीन सदस्यीय समिति का गठन किया।

नागरिकों के निजता के अधिकार के विषय पर पिछले कुछ वर्षों के एक महत्वपूर्ण फैसले में प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि सरकार द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा की दुहाई देने मात्र से न्यायालय ‘‘मूक दर्शक’’ बना नहीं रह सकता।

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पीठ ने केन्द्र का स्वयं विशेषज्ञ समिति गठित करने का अनुरोध यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि ऐसा करना पूर्वाग्रह के खिलाफ स्थापित न्यायिक सिद्धांत का उल्लंघन होगा।

न्यायालय ने भारत में राजनीतिक नेताओं, अदालती कर्मियों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं सहित विभिन्न लोगों की निगरानी के लिए इजराइली स्पाईवेयर पेगासस के इस्तेमाल के आरोपों की जांच के लिए बुधवार को साइबर विशेषज्ञ, डिजिटल फॉरेंसिक, नेटवर्क एवं हार्डवेयर के विशेषज्ञों की तीन सदस्यीय समिति नियुक्त की। जांच की निगरानी शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर. वी. रवींद्रन करेंगे।

पेगासस के जरिए कथित जासूसी का मुद्दा सामने आने के बाद इस साल जुलाई में पेरिस की एक अदालत ने समाचार संस्थान मीडियामार्ट’ की उस शिकायत के बाद जांच के आदेश दिए थे, जिसमें संस्थान के दो पत्रकारों के मोबाइल फोन नंबर पेगासस की निगरानी सूची में मिलने का आरोप लगाया गया था।

पेरिस की अदालत ने पुलिस की एक विशेष शाखा को अवैध रूप से एक स्वचालित डेटा प्रोसेसिंग प्रणाली तक डेटा पहुंच समेत 10 आरोपों की जांच की जिम्मेदारी सौंपी थी। इससे पहले जुलाई में कैलिफोर्निया की एक अदालत ने इजराइल के एनएसओ समूह द्वारा उसके खिलाफ मुकदमा शुरू किए जाने का अनुरोध किया था जिसे अदालत ने ठुकरा दिया था। यह वाद व्हाट्सएप की तरफ से दायर किया गया था।

रिपोर्टों के अनुसार, व्हाट्सएप ने अक्टूबर 2019 में स्पाईवेयर विकसित करने के लिए एनएसओ पर मुकदमा दायर किया था, जिसने कथित तौर पर 121 भारतीयों सहित 1,400 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और वकीलों के मोबाइल को हैक करने के लिए व्हाट्सएप के मंच में सेंधमारी की।

हालांकि, एसएसओ ने खुद पर लगे सभी आरोपों को कई बार खारिज किया है। शीर्ष अदालत के आदेश में कहा गया, ‘‘किसी सभ्य लोकतांत्रिक समाज के सदस्यों की निजता की तर्कसंगत अपेक्षा होती है। निजता पत्रकारों या सामाजिक कार्यकर्ताओं की इकलौती चिंता नहीं है। निजता के उल्लंघन के खिलाफ प्रत्येक भारतीय नागरिक को संरक्षण मिलना चाहिए।’’

पीठ के लिए 46 पन्नों का आदेश लिखते हुए प्रधान न्यायाधीश ने राष्ट्रीय सुरक्षा, प्राधिकारों के अधिकार तथा ऐसे मामलों में न्यायिक समीक्षा की सीमित गुंजाइश के मुद्दों पर भी बात की और कहा कि इसका यह मतलब नहीं है कि हर बार सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा की दुहाई देकर बचने का मौका मिल जाए।

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पीठ ने इस मामले में ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’, जाने-माने पत्रकार एन. राम और शशि कुमार सहित अन्य की याचिकाओं को आगे की सुनवाई के लिए आठ सप्ताह बाद सूचीबद्ध किया है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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