काबुल पर वार, दिल्ली की चाल और आतंक का नया चेहरा, South Asia में बिछी नई राजनीतिक शतरंज

एक और चौंकाने वाली ख़बर आई है कि Jaish-e-Mohammed ने अपनी महिला शाखा “Jamaat-ul-Mominaat” का गठन किया है, जिसका नेतृत्व खुद मसूद अजहर की बहन सदिया को सौंपा गया है। यह आतंक की रणनीति में नया और खतरनाक मोड़ है यानि “जिहाद का नारीकरण”।
जैसे ही अफगानिस्तान के विदेश मंत्री भारत की धरती पर उतरे, इस्लामाबाद बेचैन हो उठा। दिल्ली-काबुल के बीच कूटनीतिक संवाद गहराया और उसी समय पाकिस्तान ने काबुल पर हवाई हमले कर डाले। यह संयोग नहीं, संकेत है। दक्षिण एशिया में नई राजनीतिक शतरंज बिछ चुकी है। भारत अपनी भूमिका को नए सिरे से गढ़ रहा है और पाकिस्तान अपनी पुरानी “रणनीतिक गहराई” खोने के डर से बौखला उठा है।
हम आपको बता दें कि पाकिस्तानी विमानों ने तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के ठिकानों को निशाना बनाया, लेकिन असल संदेश अफगान सरकार और भारत दोनों को था कि इस्लामाबाद अब अपने “सुरक्षा क्षेत्र” में किसी और को दखल नहीं करने देगा। यह वही पाकिस्तान है जो एक ओर आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई का दावा करता है और दूसरी ओर उन्हीं संगठनों को खुला संरक्षण देता है जिनसे पूरा क्षेत्र अस्थिर होता है।
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इसी बीच, एक और चौंकाने वाली ख़बर आई है कि Jaish-e-Mohammed ने अपनी महिला शाखा “Jamaat-ul-Mominaat” का गठन किया है, जिसका नेतृत्व खुद मसूद अजहर की बहन सदिया को सौंपा गया है। यह आतंक की रणनीति में नया और खतरनाक मोड़ है यानि “जिहाद का नारीकरण”। महिलाओं को पर्दे के पीछे से वैचारिक और संगठनात्मक जिम्मेदारियाँ देकर आतंकवादी नेटवर्क अब समाज की नई परतों में प्रवेश कर रहे हैं। यह न केवल सुरक्षा एजेंसियों के लिए चुनौती है, बल्कि यह चरमपंथ को वैचारिक वैधता देने की सोची-समझी कोशिश भी है।
वहीं, भारत और अफगानिस्तान के बीच वार्ता ने नई दिल्ली की अफगान नीति को नया आयाम दिया है। भारत ने काबुल में अपने मिशन को पूर्ण दूतावास में उन्नत करने की दिशा में कदम बढ़ाया है। देखा जाये तो यह स्पष्ट संदेश है कि भारत न केवल मानवीय सहायता बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता की राजनीति में भी निर्णायक भूमिका निभाना चाहता है। पाकिस्तान को यह रास नहीं आ सकता।
इन तीनों घटनाओं— अफगान वार्ता, पाकिस्तानी हमले और जमाअत-उल-मोमिनात के गठन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि दक्षिण एशिया में सत्ता, सुरक्षा और रणनीति का समीकरण तेजी से बदल रहा है। भारत जहाँ कूटनीतिक परिपक्वता दिखा रहा है, वहीं पाकिस्तान अब भी पुराने डर और असुरक्षा में उलझा है। इसलिए सवाल यही है कि क्या यह क्षेत्र संवाद और स्थिरता की दिशा में आगे बढ़ेगा, या फिर एक बार फिर “आतंक, अविश्वास और अस्थिरता” की उसी पुरानी लय में लौट जाएगा? जवाब आने वाला समय देगा, पर संकेत साफ हैं कि भारत शांत रहकर खेल जीतना चाहता है, जबकि पाकिस्तान शोर मचाकर हार रहा है।
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