बिहार चुनाव: महागठबंधन हो या एनडीए, छोटे दलों पर भरोसा नहीं कर पा रहे बड़े दल

ऐसा लग रहा है कि महागठबंधन में पप्पू यादव की भी बात नहीं बन पा रही है और वह तीसरे विकल्प की बजाय चौथे विकल्प में जाना पसंद करेंगे। फिलहाल चिराग पासवान एनडीए में आंखें तो दिखा रहे पर निर्णय लेने की स्थिति में नहीं है। ऐसे में देखना होगा कि चिराग क्या निर्णय आने वाले दिनों में लेते हैं।
बिहार में विधानसभा चुनाव के लिए सरगर्मियां तेज हो गई हैं। मुख्य मुकाबला दो गठबंधनों के बीच में है। लेकिन फिलहाल बवाल इस बात को लेकर है कि दोनों ही गठबंधनों में छोटे दल या तो नाराज चल रहे है या उससे बाहर हो चुके है। ऐसा लग रहा है कि दोनों गठबंधन में शामिल बड़ी पार्टियां छोटे दलों पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं। सबसे ज्यादा बवाल महागठबंधन में है। यही कारण है कि महागठबंधन से पहले जीतन राम मांझी निकले और फिर उसके बाद उपेंद्र कुशवाहा। आपको याद होगा कि लोकसभा चुनाव के वक्त महागठबंधन बिहार में मजबूती से चुनावी मैदान में खड़ा था। पर इस बार के विधानसभा चुनाव में पहले से ही उसकी नैया डगमगा रही है।
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महागठबंधन में फिलहाल मुकेश सहनी असमंजस में फंसे हुए हैं। हालांकि वह एनडीए के भी संपर्क में है। लेकिन यह बिखराव सीट शेयरिंग को लेकर नहीं है बल्कि भरोसे को लेकर है। महागठबंधन में आरजेडी और कांग्रेस यह तय नहीं कर पा रहे है कि छोटे दलों को कितनी सीटें दी जाए और अगर सीटें दी भी जाती है तो कहीं यह खुद के लिए जोखिम बुलाना तो नहीं होगा। इसके अलावा दोनों पार्टियों को इस बात का भी संदेह है कि मोल भाव के दौर में वह ना जाने कब अपना पाला बदल लें। इसीलिए इन दलों की जीत के लिए कोई बड़ा दांव भी ना लगाया जाए।
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बड़े दलों का छोटे दलों से इसलिए भी मोह भंग हो रहा है क्योंकि छोटे दल अपनी मांगों को लेकर अतिरिक्त दबाव बनाने की कोशिश कर रहे है। चाहे महागठबंधन में जीतन राम मांझी हो, उपेंद्र कुशवाहा हो या फिर मुकेश सहनी हो, या एनडीए में चिराग पासवान हो। महागठबंधन में टकराव बढ़ने के बाद जितन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा ने अपने लिए अलग रास्ते बना लिए है। जहां जीतन राम मांझी एनडीए में वापस लौट आए तो वही उपेंद्र कुशवाहा मायावती की पार्टी के साथ गठबंधन कर बिहार चुनाव में जाने की बात कर रहे है। ऐसा लग रहा है कि महागठबंधन में पप्पू यादव की भी बात नहीं बन पा रही है और वह तीसरे विकल्प की बजाय चौथे विकल्प में जाना पसंद करेंगे। फिलहाल चिराग पासवान एनडीए में आंखें तो दिखा रहे पर निर्णय लेने की स्थिति में नहीं है। ऐसे में देखना होगा कि चिराग क्या निर्णय आने वाले दिनों में लेते हैं।
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बिहार चुनाव में छोटे दलों का बड़े दलों पर दबदबा इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि छोटे दल जाति आधारित पार्टिया होती हैं। इन दलों का किसी एक जाति या धर्म के वोटरों में अच्छी पकड़ होती है। ऐसे में बड़े दल इस बात को लेकर आशंकित रहते हैं कि इनके बिना उस जाति या धर्म का वोट नहीं मिल पाएगा और इसी चीज का फायदा छोटे दल उठाते है। इसका असर हम सीट बंटवारे में साफ तौर पर देख सकते है। बिहार में चुनावी सरगर्मियों के बीच सभी दल जनता के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में है। लेकिन यह भी बात सच है कि बिहार में बड़ा दल हो या फिर छोटा दल, कोई भी अकेले अपने दम पर चुनाव मैदान में नहीं उतरना चाह रहा।
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