सचिन पायलट के आने से भाजपा को होगा फायदा, इन दो समुदायों को साधने में मिलेगी मदद

सचिन पायलट
अंकित सिंह । Jul 14 2020 10:29PM

राजनीतिक विशेषज्ञ यह दावा करते है कि वह सचिन पायलट का ही करिश्मा था जिसने राजस्थान की सियासत में दो ध्रुव कहे जाने वाले गुर्जर और मीणा समुदाय के बीच की दूरियों को कम किया।

राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चल रही लड़ाई पर भाजपा करीबी नजर बनाई हुई है। फिलहाल सचिन पायलट को कांग्रेस अध्यक्ष पद और उपमुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया है। ऐसे में अगर सचिन पायलट कांग्रेस को छोड़ते हैं और भाजपा में शामिल हो जाते हैं तो इससे पार्टी को बहुत फायदा हो सकता है। पार्टी इस बात की उम्मीद कर रही है कि यदि सचिन पायलट भाजपा में आते हैं तो कम से कम 49 सीटों पर इसका सीधे तौर पर फायदा होगा। उधर, सचिन पायलट लगातार बीजेपी के संपर्क में होने की अटकलों को खारिज कर चुके है। उनके साथ वाले विधायक भी यह लगातार कह रहे हैं कि वह कांग्रेस में है और कांग्रेस में ही रहेंगे पर गहलोत मंजूर नहीं है।

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राजनीतिक विशेषज्ञ यह दावा करते है कि वह सचिन पायलट का ही करिश्मा था जिसने राजस्थान की सियासत में दो ध्रुव कहे जाने वाले गुर्जर और मीणा समुदाय के बीच की दूरियों को कम किया। अतीत में आरक्षण के मुद्दे पर दोनों समुदायों के बीच हिंसक झड़पें हुई थी जिसमें कई लोगों की जान चली गई थी। दोनों समुदायों के बीच कटुता इस कदर बढ़ गई थी कि ऐसा कहना मुश्किल ही था कि कभी यह दोनों समुदाय एक साथ आ सकते है। लेकिन ऐसा हुआ और इस काम को सचिन पायलट ने बखूबी कर दिखाया। 2004 में सांसद बनने के साथ ही सचिन पायलट ने दोनों समुदायों के बीच की दूरियों को कम करने के लिए मुहिम की शुरुआत की। गुर्जर और मीणा समुदाय के बीच की दूरियों को कम करने के लिए पायलट ने ताबड़तोड़ एकता रैलिया भी की थी। सचिन पायलट की ही वजह से 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस दोनों ही समुदायों से वोट हासिल कर पाई। भाजपा को सत्ता से हाथ धोना पड़ गया।

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राजस्थान की सियासत में गुर्जर और मीणा अहम भूमिका में है। सचिन पायलट का ही कमाल है कि आज गहलोत के खिलाफ लड़ाई में पांच मीना विधायक उनके साथ हैं। राजस्थान की सियासत में गुर्जर और मीणा की अहम भूमिका है। राज्य की आबादी में 9 प्रतिशत के करीब गुर्जर तो 7 से 8 प्रतिशत के करीब मीणा हैं। अगर सचिन पायलट भाजपा में आते हैं तो पार्टी को दौसा, सवाई माधोपुर, भरतपुर, जयपुर ग्रामीण और करौली में दोनों ही जातियों का वोट हासिल करने में मदद मिलेगी। खुद गुर्जर होने के बावजूद भी सचिन पायलट मीणा को साथ जोड़ने में पीछे नहीं हटे। इसलिए 2018 विधानसभा चुनाव में गुर्जर और मीणा के गढ़ कहे जाने वाले क्षेत्रों में भाजपा को मुंह की खानी पड़ी। गुर्जर और मीणा बहुल सीटों वाले 49 सीटों में से कांग्रेस 42 सीटों को जीतने में कामयाब रही। भाजपा सत्ता से बाहर हुई तो इसका कारण भी यही था। अब जब पायलट कांग्रेस में हाशिए पर जा चुके हैं तो देखना होगा कि उनकी आगे की राह क्या होती है? क्या वह भाजपा में शामिल होते हैं या नई पार्टी बना कर एनडीए को मजबूत करते हैं?

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