विरोधियों के लगातार बाउंसर झेलने के बाद 'क्लीन बोल्ड' हो गए कैप्टन, ऐसे खोया टीम का विश्वास

 Amarinder Singh

कैप्टन अमरिंदर सिंह को जानकारी भी नहीं थी कि शनिवार को कांग्रेस विधायक दल की बैठक होने वाली है और जब उन्हें इसकी जानकारी मिली तो उन्होंने कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी से फोन पर बात की और नाराजगी जताई।

चंडीगढ़। कैप्टन अमरिंदर सिंह के ऊपर आखिर गाज क्यों गिरी ? क्या मौजूदा स्थिति के लिए कैप्टन खुद जिम्मेदार हैं ? इस तरह के सवाल राजनीतिक गलियारों में घूम रहे हैं। हालांकि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने रविवार को दुख जताया कि वो किसान आंदोलन के दौरान मारे गए 150 किसानों के परिजन को नियुक्ति पत्र नहीं दे पाए। इन दिनों पंजाब समेत पूरे देश में किसान अहम मुद्दा है। तभी तो कैप्टन ने किसानों को नियुक्ति पत्र नहीं दे पाने पर दुख जताया तो दूसरी तरफ नवनियुक्त मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने किसानों ने पानी और बिजली के बिल माफ करने का ऐलान किया। 

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कैप्टन ने खोया विधायकों का विश्वास

कैप्टन अमरिंदर सिंह को जानकारी भी नहीं थी कि शनिवार को कांग्रेस विधायक दल की बैठक होने वाली है और जब उन्हें इसकी जानकारी मिली तो उन्होंने कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी से फोन पर बात की और नाराजगी जताई। इसके बाद उन्होंने अपने आवास पर विधायकों की बैठक बुलाई लेकिन 29-30 विधायक ही शामिल हुए। जिसके बाद अपमानित महसूस होते हुए उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया।

शिअद-भाजपा के 10 साल पुरानी सत्ता को कैप्टन अमरिंदर सिंह ने साल 2017 में उखाड़ फेंका था और सूबे में कांग्रेस की सरकार बनाई थी। हालांकि कुछ महीनों के बाद ही उनके खिलाफ माहौल बनना शुरू हो गया था और धीरे-धीरे विधायकों से उनकी पकड़ भी कमजोर होने लगी थी।

विधायकों ने की थी कैप्टन से जांच की मांग

कैप्टन के मुख्यमंत्री बनने के कुछ वक्त बाद 33 विधायकों ने उन्हें पत्र लिखा था। इस पत्र के जरिए विधायकों ने अकाली नेता बिक्रम सिंह मजीठिया के खिलाफ जांच की मांग की थी। दरअसल, मजीठिया के खिलाफ ड्रग से जुड़ा हुआ एक केस था लेकिन कैप्टन ने उन पर कोई कार्रवाई नहीं की। जिसके चलते विधायक नाराज थे।

वहीं गुरुग्रंथ साहिब के साथ बेअदबी के खिलाफ पंजाब के लोगों में काफी रोष था। जिसको लेकर साल 2015 में विरोध प्रदर्शन हुआ। इस दौरान पंजाब पुलिस ने की गोलीबारी में दो लोगों की मौत हो गई थी। इस मामले को लेकर भी कैप्टन पर भारी दबाव था। सिद्धू ने तो सीधे-सीधे कैप्टन को घेरते हुए मामले की जांच कराए जाने की मांग की थी। 

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वहीं साल 2019 में सिद्धू ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था और कैप्टन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। लगभग हर एक मौके पर सिद्धू ने कैप्टन को घेरा। आगामी चुनाव को देखते हुए आलाकमान भी इस विवाद को जल्द-से-जल्द सुलझाना चाहती थी। ऐसे में कैप्टन के न चाहते हुए भी सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया। इसके बाद भी सिद्धू ने कैप्टन को निशाने पर लेने का सिलसिला समाप्त नहीं किया और अंत में कैप्टन को मुख्यमंत्री पद त्यागना पड़ा।

आइसोलेट हो गए थे कैप्टन

कहा जाता है कि कोरोना महामारी से तड़पते पंजाब को छोड़कर कैप्टन ने अपने फॉर्म हाउस का रुख कर लिया था और वो लोगों से मिलना जुलना भी कम कर चुके थे। सचिवालय में भी बहुत कम ही दिखाई देते थे। कहा तो यहां तक जाता है कि आईएएस अफसर सुरेश कुमार उनका दफ्तर चलाते थे, जिन्हें कैप्टन ने बाद में अपना चीफ प्रिंसिपल सेक्रेटरी बना दिया था।

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