नागरिक चिंता व्यक्त कर सकते हैं लेकिन कानून के दायरे में: दिल्ली उच्च न्यायालय

Delhi High Court
ANI

उच्च न्यायालय ने कहा कि नागरिकों द्वारा विरोध प्रदर्शन या प्रदर्शनों की आड़ में किसी भी ‘षड्यंत्रकारी हिंसा’ की अनुमति नहीं दी जा सकती। पीठ ने कहा कि ऐसी गतिविधियां ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ के दायरे में नहीं आतीं।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने फरवरी 2020 में हुए दंगों के पीछे की कथित साजिश के मामले में नौ आरोपियों की जमानत खारिज करते हुए मंगलवार को विधायी कार्रवाइयों के खिलाफ चिंता व्यक्त करने के नागरिकों के अधिकार को रेखांकित किया लेकिन आगाह किया कि ऐसी कार्रवाइयां ‘कानून की सीमाओं’ के भीतर होनी चाहिए।

उच्च न्यायालय ने कहा कि शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों में भाग लेना और सार्वजनिक सभाओं में भाषण देने का अधिकार अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत संरक्षित है लेकिन इसका गलत तरीके से इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।

न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति शलिंदर कौर की पीठ ने 133 पृष्ठों के अपने फैसले में कहा, “यह अधिकार पूर्णत: लागू नहीं होता क्योंकि यह संविधान द्वारा लगाए गए उचित प्रतिबंधों के अधीन है। अगर विरोध प्रदर्शन के अप्रतिबंधित अधिकार के प्रयोग की अनुमति दी गई तो यह संवैधानिक ढांचे को नुकसान पहुंचाएगा और देश में कानून-व्यवस्था की स्थिति को प्रभावित करेगा।”

उच्च न्यायालय ने कहा कि नागरिकों द्वारा विरोध प्रदर्शन या प्रदर्शनों की आड़ में किसी भी ‘षड्यंत्रकारी हिंसा’ की अनुमति नहीं दी जा सकती। पीठ ने कहा कि ऐसी गतिविधियां ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ के दायरे में नहीं आतीं।

पीठ ने कहा कि संविधान नागरिकों को विरोध प्रदर्शन या आंदोलन करने का अधिकार देता है बशर्ते कि ऐसे प्रदर्शन ‘व्यवस्थित, शांतिपूर्ण और बिना हथियारों के’ हों। फैसले में कहा गया, “नागरिकों को विधायी कार्रवाइयों के खिलाफ चिंताएं व्यक्त करने का मौलिक अधिकार है, जो शासन में नागरिकों की भागीदारी का संकेत देकर लोकतांत्रिक व्यवस्था को और मजबूत बनाता है।”

पीठ ने कहा, “यह अधिकार अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह नागरिकों को अपनी असहमति व्यक्त करने, शासन में खामियों को उजागर करने और राज्य के अधिकारियों से जवाबदेही की मांग करने का अधिकार देता है। हालांकि, ऐसी कार्रवाइयां कानून के दायरे में ही होनी चाहिए।”

पिछले पांच वर्ष से जेल में बंद कार्यकर्ता उमर खालिद, शरजील इमाम और सात अन्य आरोपियों को दिल्ली उच्च न्यायालय से कोई राहत नहीं मिली। पीठ ने शरजील इमाम, उमर खालिद, मोहम्मद सलीम खान, शिफा उर रहमान, अतहर खान, मीरान हैदर, अब्दुल खालिद सैफी, गुलफिशा फातिमा और शादाब अहमद की जमानत याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए ये बात कही।

खालिद, इमाम और अन्य पर फरवरी 2020 के दंगों का कथित तौर पर मुख्य षड्यंत्रकारी होने के आरोप में गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था। दंगों में 53 लोग मारे गए थे और 700 से अधिक घायल हुए थे। संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क उठी थी।

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