CJI ने राव की नियुक्ति संबधी याचिका की सुनवाई से खुद को किया अलग

सीजेआई और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की एक पीठ राव को सीबीआई का अंतरिम निदेशक नियुक्त किए जाने के फैसले को चुनौती देने वाली गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘कॉमन कॉज’ की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
नयी दिल्ली। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने केन्द्रीय जांच ब्यूरो के अंतरिम निदेशक के रूप में एम नागेश्वर राव की नियुक्ति के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई से सोमवार को खुद को अलग कर लिया। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि वह जांच ब्यूरो के नये निदेशक का चयन करने वाली समिति का हिस्सा होंगे, इसलिए इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय उच्च स्तरीय समिति केन्द्रीय जांच ब्यूरो के नये निदेशक का चयन करेगी। इस समिति के अन्य सदस्यों में प्रधान न्यायाधीश या उनके द्वारा नामित शीर्ष अदालत के न्यायाधीश और सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता शामिल हैं।
CJI Ranjan Gogoi said that he is a member of the Selection Committee to pick new CBI Director. The plea will now be heard on January 24 by another bench. https://t.co/QO9B8Q8nUn
— ANI (@ANI) January 21, 2019
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ के समक्ष जांच ब्यूरो के अंतरिम निदेशक के रूप में नागेश्वर राव की नियुक्ति के खिलाफ गैर सरकारी संगठन कामन काज की जनहित याचिका सूचीबद्ध थी। इसी दौरान प्रधान न्यायाधीश ने इस याचिका की सुनवाई से हटने के निर्णय की जानकारी दी। भ्रष्टाचार और अपने कर्तव्यों के निर्वहन के प्रति लापरवाही के आरोपों में जांच ब्यूरो के निदेशक आलोक कुमार वर्मा को पद से हटाने के उच्चस्तरीय समिति के निर्णय के बाद भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी नागेश्वर राव को जांच ब्यूरो के नये निदेशक की नियुक्ति होने तक की अवधि के लिये दस जनवरी को अंतरिम निदेशक नियुक्त किया गया था।
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याचिका में जांच ब्यूरो के निदेशक की नियुक्ति की प्रक्रिया में पूरी पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये स्पष्ट व्यवस्था करने का अनुरोध किया गया है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि नागेश्वर राव की नियुक्ति उच्च स्तरीय समिति की सिफारिश के आधार पर नहीं की गयी है। याचिका में कहा गया है कि इससे पहले पिछले साल 23 अक्टूबर को नागेश्वर राव की जांच ब्यूरो के अंतरिम निदेशक के रूप में नियुक्ति को शीर्ष अदालत ने आठ जनवरी के फैसले में निरस्त कर दिया था।
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