राजस्थान में धरे रह गए कर्ज माफी के दावे, 46 लाख में नीलाम हो गई किसान की 15 बीघा जमीन

Rajasthan Farmer
अभिनय आकाश । Jan 20 2022 1:23PM

कजोड़ मीणा ने राजस्थान मरुधरा ग्रामीण बैंक से करीब तीन लाख 87 हजार का कर्ज लिया था। लेकिन आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण वो लोन नहीं चुका सका। दो महीने पहले किसान कजोड़ मीणा की मौत हो गई। बैंक के नोटिस के बाद जब किसान परिवार कर्ज नहीं चुका पाया। तो बैंक ने जमीन नीलाम कर दी।

भाजपा कर्जमाफी के मुद्दे पर राजस्थान सरकार को घेरती ही आई है। नीलामी की खबरों ने उसके विरोध को और हवा दे दी है। पूरा मामला रामगढ़ पंचवाड़ा क्षेत्र के किसान की जमीन नीलामी का है। जहां कजोड़ मीणा ने राजस्थान मरुधरा ग्रामीण बैंक से करीब तीन लाख 87 हजार का कर्ज लिया था। लेकिन आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण वो लोन नहीं चुका सका। दो महीने पहले किसान कजोड़ मीणा की मौत हो गई। बैंक के नोटिस के बाद जब किसान परिवार कर्ज नहीं चुका पाया। तो बैंक ने किसान की जमीन नीलाम कर दी। 

क्या है पूरा मामला

एक लाचार किसान पर बैंक और प्रशासन की दोहरी मार देखिए कि किसान कजोड़ मीणा ने 3 लाख 87 हजार का कर्ज लिया था, जो ब्याज समेत 7 लाख हो गया। किसान परिवार को सरकार के किसान कर्ज माफी के वादे से उम्मीद बांधे रखी। इसी बीच, पिछले महीने उन्होंने जमीन को कुर्क किया। फिर  प्रशासन ने कर्ज न चुकाने पर किसान कजोड़ मीणा की 15 बीघा जमीन नीलाम कर दी। यानी 7 लाख के कर्ज के लिए 46 लाख में जमीन नीलाम कर दी गई। यह जमीन किरण शर्मा निवासी मंडावरी ने नीलामी के तहत छुड़वाई।

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बीजेपी ने उठाया मुद्दा 

जमीन नीलाम होने की सूचना मिलने के बाद भाजपा के राज्यसभा सदस्य डॉ. किरोड़ी लाल मीणा किसान परिवार के पास पहुंच गए। मीणा ने कहा कि वोट लेने के लिए सरकार ने कर्जमाफी का वादा किया था, लेकिन अब पूरा नहीं किया जा रहा है। वहीं, किसान नेता राकेश टिकैत ने भी किसान राजूलाल से फोन पर बात की।

वादे हैं वादों का क्या?

किसानों से किया गया वादा भले ही न निभाया गया हो लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं की कांग्रेस की सत्ता में वापसी का कर्जमाफी का बेहद अहम योगदान था। इसमें भी कोई शक नहीं कि सरकार ने करीब 15 हजार करोड़ के कर्ज माफ भी किए और इसमें भी संदेह नहीं कि वादा संपूर्ण कर्जमाफी का था। बहरहाल, मामले को राजनीतिक नजरिए से चाहे जैसे देखा जाए हकीकत ये भी है कि किसी भी योजना का लाभ सरकारी तंत्र से निकलकर किसान के दर तक पहुंचना भी एक टेढ़ी खीर ही रहा है। कितनी ही तकनीकि अड़चने अन्नदाता के सामने मुंह बाए खड़ी रहती है।  

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