कांग्रेस के पास अहमद पटेल सा दूजा कोई और नहीं, पार्टी उनके शून्य को भरने के लिए कर रही संघर्ष
अहमद पटेल के करीबी के मुताबिक उनकी मृत्यु कांग्रेस के लिए दो राष्ट्रीय चुनावों में हार के बाद सबसे बड़ा झटका है।
नयी दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्षा सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव रहे अहमद पटेल के निधन के बाद पार्टी पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव का सामना कर रही है। तीन राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में मतदान हो चुका है लेकिन पश्चिम बंगाल में अभी चार चरण के मतदान बाकी है।
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रणनीतियां बना रही कांग्रेस
कांग्रेस की चुनावी रणनीतियों और महत्वपूर्ण विषयों पर अपनी राय रखने वाले अहमद पटेल को कोरोना वायरस महामारी ने कांग्रेस पार्टी से छीन लिया है। अंग्रेजी समाचार पत्र 'हिन्दुस्तान टाइम्स' की एक रिपोर्ट के मुताबिक कांग्रेस पार्टी सालों बाद अहमद पटेल की गैरमौजूदगी में चुनावी रणनीतियां तैयार कर रही है।
सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस 36 साल में पहली बार दिल्ली के 24 अकबर रोड स्थित पार्टी मुख्यालय में अहमद पटेल के बिना चुनावों का सामना कर रही है। ऐसे में कांग्रेस के कई युवा रणनीतिकार सामने आए हैं जो पार्टी की मदद में जुटे हुए हैं। हालांकि पिछले साल नेतृत्व को लेकर उठ रहे सवालों के साथ पार्टी को 'पत्र विवाद' का सामना करना पड़ा था। जिसमें कांग्रेस के 23 वरिष्ठ नेता शामिल थे। जिन्हें G23 का नाम दिया गया।
G23 के नेताओं ने सोनिया गांधी को पत्र लिखा था। जिसमें कांग्रेस के काम करने के तरीकों में व्यापक बदलाव की मांग की थी। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने बताया कि इससे पार्टी की चुनाव रणनीति के विकेंद्रीकरण में काफी हद तक कमी आई है।
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छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पूर्व केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह को पार्टी ने असम चुनाव की जिम्मेदारी सौंपी है। पार्टी पदाधिकारियों का मानना है कि इस टीम ने आलाकमान से कोई महत्वपूर्ण हस्तक्षेप के बिना गठबंधन सहित पूरी चुनावी रणनीति को संभाला है।
रिपोर्ट के मुताबिक राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पार्टी ने केरल भेजा। जबकि पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल और रणदीप सुरजेवाला को तमिलनाडु में सीट शेयरिंग की बातचीत के लिए दूत बनाकर भेजा था। जबकि मुकुल वासनिक, पृथ्वीराज चव्हाण और बीके हरिप्रसाद चुनावी सर्वेक्षण हैं।
राज्य स्तर पर तैयार हो रही रणनीतियां
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि अगर अहमद पटेल आज जिंदा होते तो दिल्ली का 15 गुरुद्वारा रकाबगंज रोड स्थित कार्यालय चुनावी रणनीतियों का केंद्र होता और यही पार्टी का वार रूम होता था, जहां पर पटेल उपस्थिति रहते थे।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक अहमद पटेल रणनीतिकारों से मुलाकात किया करते और स्थिति का जायजा लेते रहते थे। एक नेता ने बताया कि चुनाव के लिए जरूरी फंड का मुद्दा हो या फिर चुनौतियों की पहचान करना वो सबकुछ बड़े आराम से संभाला लिया करते थे। लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है। अब राज्य स्तर पर योजनाएं तैयार होने लगी हैं और नए के साथ-साथ युवाओं ने जिम्मेदारियां उठाईं हैं।
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इसका मतलब साफ है कि पार्टी की कमान अध्यक्षा सोनिया गांधी और राहुल गांधी के हाथों में है। रिपोर्ट के मुताबिक तमिलनाडु में सीट शेयरिंग फॉर्मूले को अंतिम रूप देने के लिए सोनिया गांधी ने द्रमुक अध्यक्ष एमके स्टालिन को दिल्ली बुलाया था। सूत्र बताते हैं कि अभी भी सोनिया गांधी कई विषयों पर फैसला करती हैं। जिनमें राज्यसभा के उम्मीदवारों का चयन और गठबंधन पार्टियों के साथ बातचीत इत्यादि शामिल है।
गांधी परिवार को नहीं मिला पटेल का विकल्प
गांधी परिवार के सबसे विश्वसनीय और पार्टी की रणनीतियां तैयार करने वाले अहमद पटेल के असामयिक मृत्यु के बाद सोनिया गांधी को कोई दूसरा विकल्प नहीं मिला है। दो वरिष्ठ नेताओं के हवाले से रिपोर्ट में यह जानकारी साझा की गई है।
साधारण जीवन व्यत्तीत करने वाले अहमद पटेल, कमलनाथ और भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ पार्टी के फंड मैनेज करने का काम देखा करते थे। लेकिन अहमद पटेल की अनुपस्थिति में अब उनके द्वारा किए जाने वाले कई सारे कार्यों को अलग-अलग लोगों में बांटा गया है। अहमद पटेल कांग्रेस के लिए 'वन मैन ऑर्मी' के समान थे। राहुल गांधी के करीबी सहयोगी वेणुगोपाल संगठन से जुड़े कार्यों की देखरेख करते हैं। जबकि पूर्व रेल मंत्री पवन बंसल को कोषाध्यक्ष की अतिरिक्त जिम्मेदारी दी गई है और जयराम रमेश, रणदीप सिंह सुरजेवाला पार्टी प्रबंधन के कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं।
लेकिन पार्टी पटेल की मृत्यु के बाद उनके शून्य को भरने की कोशिश में जुटी हुई है। अहमद पटेल के करीबी के मुताबिक उनकी मृत्यु कांग्रेस के लिए दो राष्ट्रीय चुनावों में हार के बाद सबसे बड़ा झटका है।
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