Jama Masjid को स्मारक न घोषित करने के मनमोहन सिंह के फैसले वाली फाइल करें पेश, दिल्ली HC का केंद्र और ASI को निर्देश
दिल्ली हाईकोर्ट ने मंत्रालय से तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के उस फैसले वाली फाइल पेश करने को कहा जिसमें कहा गया था कि मुगलकालीन जामा मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित नहीं किया जाना चाहिए। दिल्ली हाईकोर्ट में मामले की अगली सुनवाई अक्टूबर में होगी।
दिल्ली हाईकोर्ट ने जामा मस्जिद को 'संरक्षित' स्मारक घोषित किए जाने से संबंधित मामले की सुनवाई की और केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को इससे संबंधित फाइल कोर्ट में पेश करने का आखिरी मौका दिया। दिल्ली हाईकोर्ट ने मंत्रालय से तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के उस फैसले वाली फाइल पेश करने को कहा जिसमें कहा गया था कि मुगलकालीन जामा मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित नहीं किया जाना चाहिए। दिल्ली हाईकोर्ट में मामले की अगली सुनवाई अक्टूबर में होगी।
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इससे पहले की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा था कि अगर अधिकारी कथित तौर पर गायब हुए दस्तावेजों को कोर्ट के समक्ष पेश करने में विफल रहते हैं तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। कोर्ट का यह आदेश तब आया जब उसे बताया गया कि अधिकारी गायब हुई फाइल का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं। ये महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं जो आपकी हिरासत में हैं और आपको इन्हें सुरक्षित रखना होगा। न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह और न्यायमूर्ति अमित शर्मा की पीठ ने कहा, "यह बहुत गंभीर मामला है और यदि दस्तावेज गायब हैं तो हम अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे।
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उच्च न्यायालय जनहित याचिकाओं (पीआईएल) की एक श्रृंखला पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें अधिकारियों को जामा मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित करने और इसके आसपास के सभी अतिक्रमणों को हटाने के निर्देश देने की मांग की गई थी। यह 16 मार्च, 2018 को याचिकाकर्ता सुहैल अहमद खान द्वारा दायर एक आवेदन पर भी विचार कर रहा था, जिसमें जामा मस्जिद से संबंधित संस्कृति मंत्रालय की फाइल पेश करने की मांग की गई थी। पीठ ने उल्लेख किया कि 27 फरवरी, 2018 को न्यायालय ने अपने 23 अगस्त, 2017 के आदेश को दोहराया था, जिसमें मंत्रालय को वह फाइल पेश करने का निर्देश दिया गया था, जिसमें जामा मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित न करने का निर्णय लिया गया था।
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