सहमति के बावजूद विवाद वाली जगहों से पीछे नहीं हटा चीन, जवाब देने के लिए भारतीय सेना ने भी तैयार की 'खास रणनीति'
भारतीय सेना को प्रत्येक साल लद्दाख में तकरीबन 30 हजार मैट्रिक टन राशन राशन की आवश्यकता होती है। लेकिन इस बार वहां हजारों सैनिकों की तैनाती की वजह से दोगुने राशन की आवश्यकता है। सेना के कैंप में राशन और रसद पहुंचाने के प्रकिया शुरू हो गई है।
शांति निर्बल कभी नहीं ला सकता। कमजोर शांति की पहल नहीं कर सकता। वीरता ही शांति की पूर्बल शर्त होती है। लेह में जवानों के बीच प्रधानमंत्री मोदी का ये संदेश हिन्दुस्तान के दुश्मन के लिए था। अब उसी विश्व शांति के लिए ये देश दृढ़संकल्प है। पहले मोदी ने एलएसी की निगेहबानी करने वाले जवानों की हौसला अफजाही की और फिर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी चीन को ललकारा। चीन की सेना एलएसी से पीछे हटने को तैयार नहीं है। लेकिन चीन की चालबाज़ी को देखते हुए भारतीय सेना ने दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब देना के लिए कमर कस ली है। चीन जैसे दुश्मनों को सबक सिखाया के लिए फाइटर प्लेन राफेल भी भारत आ रहा है। इसके साथ ही लद्दाख के मौसम को देखते हुए भारतीय सेना ने सारी तैयारियां पूरी कर ली है।
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राशन स्टॉक की प्रक्रिया प्रारंभ
एक सीनियर आर्मी ऑफिसर के हवाले से अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसके अनुसार भारतीय सेना को प्रत्येक साल लद्दाख में तकरीबन 30 हजार मैट्रिक टन राशन राशन की आवश्यकता होती है। लेकिन इस बार वहां हजारों सैनिकों की तैनाती की वजह से दोगुने राशन की आवश्यकता है। सेना के कैंप में राशन और रसद पहुंचाने के प्रकिया शुरू हो गई है। सेना एक एक अधिकारी ने कहा कि पूर्व लद्दाख क्षेत्र में तापमान बहुत कम रहता है, ऐसे में वहां चुनौती अधिक है। हमने राशन स्टॉक करने की प्रक्रिया आरंभ कर दी है।
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बर्फबारी के चलते मुश्किल
भारत-चीन के बीच सीमा पर तनाव को देखते हुए मई से ही भारत ने तीन गुना ज्यादा सैनिकों की तैनाती की है। इनमें ज्यादातर इलाके 15 हज़ार फीट की ऊंचाई पर है। बर्फबारी के चलते नवंबर के बाद यहां पहुंचना मुश्किल चुनौती होती है। आमतौर पर उत्तर भारत से ट्रक के जरिए यहां सामान दो रास्तों से भेजा जाता है। ये रास्ते सिर्फ मई से लेकर अक्टूबर तक ही खुले रहते हैं। इसके तहत ठंड के कपड़े, जैकेट, और स्पेशल टेंट समेत गाड़ियों के लिए ईंधन जमा करने की प्रकिया जारी है।
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