डिजिटल मीडिया को जिम्मेदारी से निभानी चाहिए अपनी भूमिका - रीता बहुगुणा जोशी

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डिजिटल मीडिया आज के समय का अहम पहलू है। मीडिया की भी चौथे स्तंभ के तौर पर अहम भूमिका होती है। आजादी से पहले भी समाचार पत्र निकलते थे, जिनकी मदद से राष्ट्र के विषयों को आगे बढ़ाया गया। मीडिया की भूमिका लोकतंत्र में सबसे ऊपर है। स्वतंत्र भारत में भी प्रिंट मीडिया ने वर्षों तक अपनी भूमिका निभाई।

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क की 21वीं वर्षगाँठ पर आयोजित विचार मंथन कार्यक्रम की परिचर्चा का विषय है आजादी के अमृत काल में संसदीय लोकतंत्र को मजबूत करने में डिजिटल मीडिया की भूमिका। लोकतंत्र की जननी भारत की लोकतांत्रिक मर्यादाओं की पूरी दुनिया में सराहना होती है। भारत और भारतीय परम्पराओं की महानता अनंत काल तक कायम रहे इसके लिए निश्चित रूप से सबका साथ और सबका प्रयास जरूरी है। डिजिटल होते इंडिया में डिजिटल मीडिया का विस्तार तो तेजी से हुआ है लेकिन फेक न्यूज जैसी बुराई ने भी उसी तेजी से पांव पसारे हैं। एक फेक न्यूज उस अफवाह के समान है जोकि माहौल बिगाड़ने की ताकत रखती है। इसलिए डिजिटल मीडिया को क्या सावधानियां बरतनी होंगी और कैसे लोकतांत्रिक परम्पराओं को मजबूत करने में डिजिटल मीडिया अपनी भूमिका निभा सकता है। इस विषय पर प्रयागराज संसदीय क्षेत्र की सांसद रीता बहुगुणा जोशी ने अपने विचार व्यक्त किए। 

हाल ही में पीएम नरेंद्र मोदी ने भी फेक न्यूज की समस्या को चिन्हित किया था और इसपर चिंता व्यक्त की थी। इस मुद्दे पर रीता बहुगुणा जोशी ने कहा कि हमारे लोकतंत्र में विश्व के सभी संविधानों की महत्वपूर्ण बातों का समावेश किया गया है। मीडिया की भी चौथे स्तंभ के तौर पर अहम भूमिका होती है। इतिहास के पन्नों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि आजादी से पूर्व भी प्रिंट मीडिया की भूमिका अहम रही थी। आजादी से पहले भी समाचार पत्र निकलते थे, जिनकी मदद से राष्ट्र के विषयों को आगे बढ़ाया गया। मीडिया की भूमिका लोकतंत्र में सबसे ऊपर है। 

उन्होंने कहा कि स्वतंत्र भारत में भी प्रिंट मीडिया ने वर्षों तक अपनी भूमिका निभाई। इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया की अहमियत रही। वर्ष 2014 के बाद सोशल मीडिया का बड़ा प्रभाव पड़ा है। आजकल सोशल मीडिया का जमाना है और अपनी राय रखने के लिए प्लेटफॉर्म की कोई कमी नहीं है। ऐसे में ये जिम्मेदारी भी बढ़ती है कि इन प्लेटफॉर्म का उपयोग समझदारी के साथ किया जाए। 

अत्यधिक इंफॉर्मेशन के दौर में यूजर्स तक अच्छी और सच्ची खबरें पहुंचना जरुरी है मगर ये संभव नहीं हो रहा है। उन्होंने दर्शकों को भी सुझाव दिया कि सोशल मीडिया पर आ रहे विचारों का विश्लेषण करने के बाद ही उसपर विचार व्यक्त करने चाहिए। उन्होंने सोशल मीडिया ऐप व्हाट्सएप का उदाहरण देते हुए कहा कि इसपर आने वाले वायरल मैसेजों को भी सत्य मान लिया जाता है, मगर ऐसा नहीं होना चाहिए। आज के जमाने में विश्वस्नीय खबरें नहीं आती है। एक असल पत्रकार के लिए जरूरी है कि वो तथ्यात्मक जानकारी बिना बदलाव के दर्शकों को परोसे और दर्शकों पर ही इसका विश्लेषण करना सोचे। सोशल मीडिया कई मामलों में सामाजिक कुरीतियों को भी खत्म करने में अहम भूमिका निभाते है। ये जानकारी का त्वरित प्रसार करती है। एक तरफ जहां आजादी दिलाने में पत्रकारिता ने मदद दिलाई है। उन्होंने अंत में कहा कि आज के समय में 21वीं सदी के भारत को बनाने में साथ मिलना चाहिए।

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