‘वोकल फॉर लोकल’ के साथ ‘आत्मनिर्भर भारत’ वाली दिवाली

Diwali

पिछले डेढ़ साल से अधिक, कोरोना महामारी के कारण लोग अपने घरों में ही रहे तथा एक दूसरे से मिलना भी बहुत कम रहा है। व्हाट्सअप और ज़ूम मीटिंग जैसे तकनीकी से भले ही लोग एक दुसरे से मिलते रहे हैं, पर आभासी दुनियां और वास्तविक दुनियां में बहुत अंतर है। त्योहार या किसी कार्यक्रम की रौनक वास्तविक दुनियां में अधिक है।

दिवाली का त्योहार बुराई पर अच्छाई के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इसके पीछे अनेक धार्मिक कथाएँ जुड़ी हुयीं हैं लेकिन साथ ही साथ इसमें एक सामाजिक उद्देश्य भी निहित है। इस त्योहार को सामाजिक सद्भावना के रूप में भी मनाया जाता है, आपसी मतभेद और मनभेद भूलकर लोग एक दुसरे से मिलते हैं और खुशियों का संचार होता है। आज के व्यस्त जीवनचर्या में विभिन्न तरह के त्योहार खुशियाँ लेकर आते हैं। भारत देश के प्रमुख त्योहारों में से एक दिवाली , सामाजिक समानता का भी परिचायक है। गरीब हो या अमीर सब लोग अपनों के साथ खुशियाँ बांटते हैं। त्योहारों के आने से बाजारों में रौनक भी खूब होती है। पिछले डेढ़ साल से अधिक, कोरोना महामारी के कारण लोग अपने घरों में ही रहे तथा एक दूसरे से मिलना भी बहुत कम रहा है। व्हाट्सअप और ज़ूम मीटिंग जैसे तकनीकी से भले ही लोग एक दुसरे से मिलते रहे हैं, पर आभासी दुनियां और वास्तविक दुनियां में बहुत अंतर है। त्योहार या किसी कार्यक्रम की रौनक वास्तविक दुनियां में अधिक है। इस महामारी ने त्योहारों की रौनक बहुत कम कर दी, लेकिन वैक्सीनेशन के बाद स्थितियां बदल रही हैं, फिर भी हम सबकी यह जिम्मेदारी है की कोविड सुरक्षा नियमों को ध्यान में रखते हुए दिवाली मनायें । यह त्योहार आज इस बात का भी प्रतीक होगा की देशवासी के रूप में हम सबने कोविड नियमों का पालन करते हुए इसपर जीत दर्ज की है अर्थात महामारी जैसे दानव पर देशवासियों ने विजय प्राप्त की है। और इस दिवाली को विजयोत्सव के रूप में मना रहे हैं।  

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कोरोना महामारी ने हमें ‘वोकल फॉर लोकल’ को भी आगे बढ़ाने का अवसर दिया है। त्योहार में प्रयोग आने वाले सामानों को हम सब स्थानीय दुकानदारों से खरीद कर उनके त्योहार में भी रंग भर सकते हैं। कोरोना के समय स्थानीय दुकानदारों ने हमारी दैनिक जीवन की जरूरतों को पूरा करने में बहुत मदद की है इसलिए हम सबका यह फर्ज बनता है की महामारी के बाद हम उनके लिए भी आगे आयें। इस दिवाली अपने आस-पास के स्थानीय दुकानदारों से खरीदारी करें और ‘मेड इन इंडिया’ सामानों का प्रयोग करें। हम लोगों द्वारा किया गया यह प्रयास धीरे-धीरे ‘आत्मनिर्भर भारत’ की संकल्पना को मजबूत करेगा। अपने  देश के बने प्रोडक्ट उपयोग करके, देश की आर्थिक तरक्की में योगदान दे सकते हैं। भारत देश को त्योहारों का देश कहा जाता है और इस दौरान करोड़ो-अरबों का व्यापार होता है। ऐसी अनेक विदेशी कम्पनियाँ हैं जो भारतीय बाज़ार को लक्ष्य बनाकर अपना कारोबार करती हैं और देश का धन बाहर जाता है। यदि हम सभी देशवासी अपने देश में निर्मित वस्तुओं, सेवाओं इत्यादि का प्रयोग करें तो देश की प्रगति में योगदान दे पाएंगे। इससे हमारे देश की आर्थिक व्यवस्था मजबूत होगी और देश की मुद्रा मजबूत होगी।

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दिवाली का यह प्रकाशपर्व आम जनमानस के जीवन में खुशियाँ लाये, यहाँ रोजगार के अवसर बनें और ‘आत्मनिर्भर भारत’ की संकल्पना साकार हो, एक भारतीय नागरिक के रूप में हम सभी को यह प्रयास करना चाहिए। आपने अपने परिवार में यह देखा होगा की जब घर का कोई सदस्य आत्मनिर्भर होता है अर्थात आर्थिक रूप से स्वयं सक्षम होता है तो उसको पूछने वाले बहुत लोग होते हैं। कुछ ऐसा ही आत्मनिर्भर भारत बनने के बाद हमारे देश के साथ भी होगा। क्योंकि आर्थिक उन्नति से ही हम एक देश के रूप में विकसित होते हुए विश्व में अपनी जगह बना पायेंगे और देश की विकास यात्रा में आप या हम, ‘लोकल के लिए वोकल’ होकर योगदान दे सकते हैं। दिवाली, खुशियाँ मनाने के साथ ही खुशियाँ बांटने का भी त्योहार है। इसलिए आईये मिलकर ‘आत्मनिर्भर भारत’ की ओर कदम बढाएं तथा आम जन-जीवन में उत्साह का प्रकाश फैलाते हुए, खुशियों के दीप जलाएं !   

सर्वेश तिवारी

( लेखक सक्षम चंपारण के संस्थापक और निर्भया ज्योति ट्रस्ट के महासचिव हैं और कृषि, पर्यावरण, शिक्षा एवं अन्य सामाजिक कार्य के लिए लगातार आवाज उठाते हैं।) 

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