Matrubhoomi: क्या है पंचायती राज व्यवस्था का इतिहास और स्वशासन प्रणाली का असल लक्ष्य ? इसको कैसे मिला संवैधानिक दर्जा

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प्रतिरूप फोटो

पंचायती राज का तात्पर्य स्वशासन से है और यह व्यवस्था शासन के विकेंद्रीकरण की बात करती है। साधारण शब्दों में इसे इस तरह से देखा जाता है कि अगर देश के किसी गांव की हालत जर्जर है तो उस गांव को सशक्त बनाने के लिए ग्राम पंचायत सही कदम उठाएगी।

पंचायती राज व्यवस्था भारत में ग्रामीण स्थानीय स्वशासन की एक प्रणाली है और इसके पक्ष में खुद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी थे। पंचायती राज व्यवस्था कोई नई व्यवस्था नहीं है बल्कि यह प्राचीन काल और मध्यकाल में देखने को मिलती थी। हालांकि इसके जनक लॉर्ड रिपन को माना जाता है क्योंकि उन्होंने 1882 में स्थानीय संस्थाओं को उनका लोकतांत्रिक ढांचा प्रदान किया था। 

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पंचायती राज का तात्पर्य स्वशासन से है और यह व्यवस्था शासन के विकेंद्रीकरण की बात करती है। साधारण शब्दों में इसे इस तरह से देखा जाता है कि अगर देश के किसी गांव की हालत जर्जर है तो उस गांव को सशक्त बनाने के लिए ग्राम पंचायत सही कदम उठाएगी। जिसका मतलब है- शासन या फिर सत्ता को एक स्थान पर केंद्रित करने के बजाय उसे स्थानीय स्तरों पर विभाजित किया जाए।

भारत को आजादी मिलने के बाद भारतीय संविधान के भाग 4 में नीति निर्देशक तत्व के अनुच्छेद 40 में ग्राम पंचायत के गठन और शक्ति प्रदान करने की बात कही गई है। लेकिन पंचायती राज व्यवस्था को कोई संवैधानिक दर्जा नहीं दिया गया था। हालांकि पंचायतीराज व्यवस्था को सुधारने के लिए समय-समय पर समितियों का गठन किया गया।सबसे पहले साल 1957 में बलवंत राय मेहता समिति का गठन हुआ जिसने त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की बात कही थी।

त्रिस्तरीय पंचायती राज:-

  • ग्राम स्तर पर स्वशासन (ग्राम पंचायत)
  • ब्लाक स्तर पर स्वशासन (पंचायत समिति)
  • जिला स्तर पर स्वशासन (जिला परिषद्)

बलवंत राय मेहता समिति के सुझावों के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सबसे पहले दो अक्तूबर, 1959 को राजस्थान के नागौर ज़िले में पंचायती राज व्यवस्था को लागू किया गया और फिर कुछ दिनों के बाद आंध्र प्रदेश में इसकी शुरुआत हुई। हालांकि पंचायती राज व्यवस्था को शुरुआती दिनों में ज़्यादा सफलता नहीं मिली जिसके बाद 1977 में अशोक मेहता समिति ने अपनी रिपोर्ट पेश की। जिसमें उन्होंने द्विस्तरीय स्वशासन की बात कही। लेकिन देश में चल रही अस्थिरता के कारण इसे लागू नहीं किया गया था। 

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द्विस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था:-

  • मंडल स्तर पर मंडल पंचायत
  • जिला स्तर पर जिला परिषद्

इसके बाद पीवी के राय समिति ने 1985 में चार-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था का सुझाव दिया।

  • राज्य स्तर पर
  • जिला स्तर पर
  • मंडल स्तर पर
  • ग्राम स्तर पर

एल.एम. सिंघवी समिति ने 1986 में गठित किया गया था। जिसका उद्देश्य पंचायती राज व्यवस्था की जांच करना था। आज़ाद भारत में समय समय पर पंचायतों को सुधारने के लिए कई प्रावधान किये गये। साल 1992 के 73वें संशोधन अधिनियम के साथ पंचायती राजव्यवस्था को अंतिम रूप प्राप्त हुआ था।

भारत में पंचायती राज के गठन व उसे सशक्त बनाने की अवधारणा महात्मा गांधी के दर्शन पर आधारित है। महात्मा गांधी ने एक दफा कहा था कि- 'सच्चा लोकतंत्र केंद्र में बैठकर राज्य चलाने वाला नहीं होता, अपितु यह तो गांव के प्रत्येक व्यक्ति के सहयोग से चलता है।'

73वें संशोधन के तहत संविधान में भाग-9 जोड़ा गया था। जिसके अंतर्गत पंचायती राज से संबंधित उपबंधों की चर्चा की गई है। पंचायती राज संविधान के अनुच्छेद 243 (क से ण तक) से संबंधित उपबंध हैं। इसके साथ ही 11वीं अनुसूचि को संविधान में शामिल किया गया। आपको बता दें कि 11वीं अनुसूचि में पंचायतों के कार्य निर्धारण के लिए 29 विषय को शामिल किया गया।

73वें संविधान संशोधन 1993 के तहत बने कानून की मुख्य बातें:-

  • इस कानून के अंतर्गत 20 लाख से अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्र में पंचायती राज की त्रिस्तरीय व्यवस्था लागू करेगा।
  • इस कानून के तहत 5 साल के बाद पंचायतों का चुनाव होगा और अगर पंचायत को भंग किया जाता है या फिर किसी कारणवश वो भंग हो जाती है तो 6 महीने के अंदर चुनाव होंगे।
  • इस कानून के तहत ग्राम सभा को संवैधानिक अधिकार प्रदान किया गया है।
  • इस कानून के तहत अनुसूचित जातियों, जनजातियों व महिलाओं के लिए 1/3 सीटों का आरक्षण दिया गया।
  • इसके अलावा प्रत्येक राज्य में वित्त आयोग का गठन किया गया।

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आपको बता दें कि पंचायतों के सभी चुनाव कराने की शक्ति राज्य निर्वाचन आयोग के पास है। पंचायतों के पास पैसों का कोई भी मजूबत आधार नहीं है उन्हें इसके लिए राज्य सरकारों पर निर्भर रहना पड़ता है। हालांकि 73वें संविधान संशोधन के तहत ग्राम पंचायत को कुछ कर लगाने की शक्तियां दी गई हैं। इसके अतिरिक्त राज्य का राज्यपाल पंचायतों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा के लिए हर 5 साल पर राज्य वित्त आयोग का गठन करता है।

पंचायती राज दिवस

साल 2010 में पहली बार पंचायती राज दिवस मनाया गया था, तब से 24 अप्रैल के दिन हर साल पंचायती राज दिवस मनाया जाने लगा और इस दिन सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाली पंचायतों को पुरुस्कृत भी किया जाता है।

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