भीड़ हिंसा की हर घटना की जनहित याचिका में निगरानी नहीं की जा सकती: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

अदालत ने 15 जुलाई को पारित अपने निर्णय में कहा कि पीड़ित पक्ष के पास उच्चतम न्यायालय के दिशानिर्देशों को लागू कराने के लिए उचित सरकारी अधिकारी से संपर्क करने की स्वतंत्रता है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि भीड़ द्वारा हत्या किए जाने या भीड़ हिंसा की प्रत्येक घटना अलग घटना है और जनहित याचिका (पीआईएल) में इसकी निगरानी नहीं की जा सकती। न्यायमूर्ति सिद्धार्थ और न्यायमूर्ति अवनीश सक्सेना की पीठ जमीयत उलेमा-ए-हिंद द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या किए जाने की घटनाओं को रोकने के लिए उच्चतम न्यायालय के दिशानिर्देशों का अनुपालन करने की मांग की गई थी।
पीठ ने इस जनहित याचिका को निस्तारित करते हुए कहा कि तहसीन एस. पूनावाला बनाम केंद्र सरकार (2018) के मामले में उच्चतम न्यायालय का निर्णय राज्य सरकार और केंद्र पर बाध्यकारी है।
पीठ ने कहा इसलिए पीड़ित पक्ष के समक्ष इस अदालत का रुख करने से पहले सरकार से संपर्क करने का विकल्प खुला है। इस याचिका में याचिकाकर्ता ने तहसीन पूनावाला के मामले में उच्चतम न्यायालय के बाध्यकारी दिशानिर्देशों को लागू करने के लिए निर्देश जारी करने की मांग की थी।
वहीं दूसरी ओर, सरकारी वकील ने इस जनहित याचिका की पोषणीयता का विरोध किया। अदालत ने 15 जुलाई को पारित अपने निर्णय में कहा कि पीड़ित पक्ष के पास उच्चतम न्यायालय के दिशानिर्देशों को लागू कराने के लिए उचित सरकारी अधिकारी से संपर्क करने की स्वतंत्रता है।
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