ऑस्कर नामित वृत्तचित्र में संगठन के बारे में आधा अधूरा दिखाया गया : संपादक

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लखनऊ} ग्रामीण मीडिया के समूह खबर लहरिया ने कहा है कि ऑस्कर में नामित एक डॉक्यूमेंट्री (वृत्तचित्र) राइटिंग विद फायर में हमारे बारे में जो कुछ दिखाया-बताया गया है, वह अधूरा है। खबर लहरिया की संपादक कविता बुंदेलखंडी ने शनिवार को पीटीआई- को बताया, हमें इस बात पर बहुत गर्व है कि हमारे संगठन पर इस तरह की डॉक्यूमेंट्री बनाई गई है, लेकिन हमें इस बात का दुख है कि उन्होंने केवल हमारे काम का एक हिस्सा दिखाया है। उल्लेखनीय है कि फिल्म निर्माता रिंटू थॉमस और सुष्मिता घोष द्वारा बनाए गए वृत्तचित्र राइटिंग विद फायर को कई अंतरराष्ट्रीय प्रकाशनों में अनुकूल समीक्षा मिली है और 94 वें अकादमी पुरस्कारों में वृत्तचित्र श्रेणी में नामांकित किया गया है। उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से यह डाक्यूमेंट्री फ़िल्म एक सशक्त दस्तावेज़ है, लेकिन इसमें खबर लहरिया को एक ऐसे संगठन के रूप में पेश किया गया है जिसकी रिपोर्टिंग एक पार्टी विशेष और उसके इर्द-गिर्द संस्थागत रूप से केंद्रित है, जो ग़लत है। बुंदेलखंडी ने कहा, हम जानते हैं कि स्वतंत्र फ़िल्म निर्माताओं के पास यह विशेषाधिकार है कि वे अपने ढंग से कहानी पेश कर सकते हैं, लेकिन हमारा यह कहना है कि पिछले बीस वर्षों से हमने जिस तरह की स्थानीय पत्रकारिता की है या करने की कोशिश की है, फिल्म में वह नज़र नहीं आती। उन्होंने कहा, हम अपनी निष्पक्ष और स्वतंत्र पत्रकारिता की वजह से ही अपने समय के अन्य मुख्यधारा की मीडिया से अलग हैं। यह फिल्म हमारे काम के महज़ एक हिस्से पर केन्द्रित है, जबकि हम जानते हैं कि अधूरी कहानियां पूरी तस्वीर पेश नहीं करतीं, बल्कि कई बार तो अर्थ के अनर्थ हो जाने का खतरा पैदा हो जाता है। उन्होंने बताया कि खबर लहरिया, देश का इकलौता ग्रामीण मीडिया समूह है जिसका नेतृत्व महिलाओं के हाथ में है। खबर लहरिया का प्रकाशन कभी स्थानीय के अखबारों की श्रृंखला के रूप में हुआ करता था, लेकिन अब यह यूट्यूब पर साढ़े पांच लाख से अधिक सब्सक्राइबर वाला पूर्णतया डिजिटल ग्रामीण न्यूज़ चैनल है, जिसे हर महीने औसतन एक करोड़ लोग देखते हैं। बुंदेलखंडी ने कहा कि इस मीडिया समूह का नेतृत्व यूं तो दलित महिलाएं करती हैं, लेकिन हमारी टीम में मुस्लिम, अन्य पिछड़ा वर्ग और उच्च जातियों की महिलाएं भी शामिल हैं। उन्होंने कहा कि इस साल ख़बर लहरिया ने अपने बीसवें वर्ष में प्रवेश किया है और यह दो दशकों का सफ़र दर्शाता है कि किसी स्वतंत्र मीडिया संस्थान की वास्तविक विविधता कैसी हो सकती है। उन्होंने ने कहा, ‘‘यह साल हमारे लिए ख़ास है। इस साल हम अपने बीसवें स्थापना दिवस का जश्न मना रहे हैं और इसके ज़रिये यह बताना चाह रहे हैं कि एक स्थानीय और ग्रामीण नारीवादी मीडिया संगठन होने का क्या अर्थ है।’’ इस साल ख़बर लहरिया को एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म में फीचर किया गया है जिसका चयन ऑस्कर पुरस्कार के लिए किया गया है।

लखनऊ} ग्रामीण मीडिया के समूह खबर लहरिया ने कहा है कि ऑस्कर में नामित एक डॉक्यूमेंट्री (वृत्तचित्र) राइटिंग विद फायर में हमारे बारे में जो कुछ दिखाया-बताया गया है, वह अधूरा है।

खबर लहरिया की संपादक कविता बुंदेलखंडी ने शनिवार को पीटीआई- को बताया, हमें इस बात पर बहुत गर्व है कि हमारे संगठन पर इस तरह की डॉक्यूमेंट्री बनाई गई है, लेकिन हमें इस बात का दुख है कि उन्होंने केवल हमारे काम का एक हिस्सा दिखाया है।

उल्लेखनीय है कि फिल्म निर्माता रिंटू थॉमस और सुष्मिता घोष द्वारा बनाए गए वृत्तचित्र राइटिंग विद फायर को कई अंतरराष्ट्रीय प्रकाशनों में अनुकूल समीक्षा मिली है और 94 वें अकादमी पुरस्कारों में वृत्तचित्र श्रेणी में नामांकित किया गया है।

उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से यह डाक्यूमेंट्री फ़िल्म एक सशक्त दस्तावेज़ है, लेकिन इसमें खबर लहरिया को एक ऐसे संगठन के रूप में पेश किया गया है जिसकी रिपोर्टिंग एक पार्टी विशेष और उसके इर्द-गिर्द संस्थागत रूप से केंद्रित है, जो ग़लत है।

बुंदेलखंडी ने कहा, हम जानते हैं कि स्वतंत्र फ़िल्म निर्माताओं के पास यह विशेषाधिकार है कि वे अपने ढंग से कहानी पेश कर सकते हैं, लेकिन हमारा यह कहना है कि पिछले बीस वर्षों से हमने जिस तरह की स्थानीय पत्रकारिता की है या करने की कोशिश की है, फिल्म में वह नज़र नहीं आती।

उन्होंने कहा, हम अपनी निष्पक्ष और स्वतंत्र पत्रकारिता की वजह से ही अपने समय के अन्य मुख्यधारा की मीडिया से अलग हैं। यह फिल्म हमारे काम के महज़ एक हिस्से पर केन्द्रित है, जबकि हम जानते हैं कि अधूरी कहानियां पूरी तस्वीर पेश नहीं करतीं, बल्कि कई बार तो अर्थ के अनर्थ हो जाने का खतरा पैदा हो जाता है। उन्होंने बताया कि खबर लहरिया, देश का इकलौता ग्रामीण मीडिया समूह है जिसका नेतृत्व महिलाओं के हाथ में है

खबर लहरिया का प्रकाशन कभी स्थानीय के अखबारों की श्रृंखला के रूप में हुआ करता था, लेकिन अब यह यूट्यूब पर साढ़े पांच लाख से अधिक सब्सक्राइबर वाला पूर्णतया डिजिटल ग्रामीण न्यूज़ चैनल है, जिसे हर महीने औसतन एक करोड़ लोग देखते हैं।

बुंदेलखंडी ने कहा कि इस मीडिया समूह का नेतृत्व यूं तो दलित महिलाएं करती हैं, लेकिन हमारी टीम में मुस्लिम, अन्य पिछड़ा वर्ग और उच्च जातियों की महिलाएं भी शामिल हैं।

उन्होंने कहा कि इस साल ख़बर लहरिया ने अपने बीसवें वर्ष में प्रवेश किया है और यह दो दशकों का सफ़र दर्शाता है कि किसी स्वतंत्र मीडिया संस्थान की वास्तविक विविधता कैसी हो सकती है।

उन्होंने ने कहा, ‘‘यह साल हमारे लिए ख़ास है। इस साल हम अपने बीसवें स्थापना दिवस का जश्न मना रहे हैं और इसके ज़रिये यह बताना चाह रहे हैं कि एक स्थानीय और ग्रामीण नारीवादी मीडिया संगठन होने का क्या अर्थ है।’’

इस साल ख़बर लहरिया को एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म में फीचर किया गया है जिसका चयन ऑस्कर पुरस्कार के लिए किया गया है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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