कृषि क्षेत्र में सुधार के बिना किसानों की आय में नहीं हो सकती वृद्धि: मगनभाई पटेल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर देश के हर राज्य के हर गांव के 75 प्रतिशत किसान जैविक खेती करें, यह सुनिश्चित करने के लिए शुरू किए गए अभियान के लिए प्रधानमंत्री और उनकी टीम बधाई के पात्र हैं। आज जब देश में “आजादी का अमृत महोत्सव” की बात है।
ऑल इण्डिया एमएसएमई फेडरेशन के अध्यक्ष मगनभाई एच.पटेल ने भारत सरकार के कृषि और किसान कल्याण विभाग के केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को एक पत्र लिखकर कृषि विषयक एव पशुपालन निति के बारेमे एक निवेदन में कहा है की देश में 49.4 करोड़ एकड़ कृषि योग्य भूमि है, जो अमेरिका के बाद दुनिया में सबसे बड़ी है। यदि सभी कृषि योग्य भूमि को सिंचित किया जाए, तो भारत पूरी दुनिया को खाद्यान्न आपूर्ति करने की क्षमता रख सकता है। वर्तमान में देश की 50 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि मानसून पर निर्भर है । यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि कृषि क्षेत्र में सुधार के बिना किसानों की आय में वृद्धि नहीं हो सकती है। विकासशील भारत में आज कृषि क्षेत्र में डिजिटल कृषि, जैविक खेती, नैनो-उर्वरक की अत्यधिक आवश्यकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर देश के हर राज्य के हर गांव के 75 प्रतिशत किसान जैविक खेती करें, यह सुनिश्चित करने के लिए शुरू किए गए अभियान के लिए प्रधानमंत्री और उनकी टीम बधाई के पात्र हैं।
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आज जब देश में “आजादी का अमृत महोत्सव” की बात है तो हमें किसान के पास जाकर देखना और उसे समझना पड़ेगा कि देश के किसान का क्या हाल है, जिसे हम "अन्नदाता" जैसे सम्मानजनक शब्दों से जानते हैं। यहां जो किसान खुद खेती करता है उस किसान की बात है । जिसकी चमड़ी धूप से झुलसी हुई होती है, जिसके घर की भी हालत बिलकुल ठीक नहीं होती है, जिसके घर में बारिश के दिनों में छत से बारिश का पानी टपकता रहता है,ऐसे किसान के परिवारमे लगभग ४ से ६ सदस्य एक छत के नीचे रहते है। यहाँ उस किसान की बात हे जो सहकारी बैंक का कर्जदार होता है जिसने बच्चों की शिक्षा एव शादी के लिए अपने रिश्तेदारों से पैसे लिए होते है। देश स्वतंत्र होने से पहले जिसके घर मे खाने के लिए तांबा-पीतल जैसे कीमती धातु के बर्तन थे, आज उस के घर के अंदर मिट्टी के बर्तन और प्लास्टिक के बर्तन है।
देश की आज़ादी के बाद हमने सम्पूर्ण रूप से किसानो का शोषण किया है केंद्र सरकारने कृषि विधेयक, जो कि किसानों के हित के लिए विकास का एक विकल्प था उसे देश का अहित करने वालोने पारित नहीं होने दिया जो हमारे देश की सबसे बड़ी कमनसीबी है। कुछ समय पहले, जब दिल्ली, पंजाब, हरियाणा में किसान विधेयक के खिलाफ किसानों का आंदोलन चल रहा था, इस आंदोलन को देखकर बिल का विरोध करनेवाले कुछ किसान नेताओं और विरोधी राजनीतिक दलों से हम पूछना चाहते है की क्या आप जानते है की आज हमारे देशमें किसान की क्या परिस्थिति है ? इस के बारे में इस का विरोध करने वालो को क्यू नहीं विचार आया ? इसके लिए वर्तमान केंद्र सरकार के पहेले की सरकारे जिम्मेवार है। जो लोग किसानों के नाम पर नेता बन गए है, जिन्होंने किसानों को वोट बैंक बनाया है, जिन लोगोंने मंडी से सरकारी लाभ लिया है, ऐसे किसानोंने खुद किसानों का शोषण किया है, जिसका एहसास हमें प्रबंध सदस्यों, पदाधिकारियों, सहकारी समिति के सदस्यों की संपत्तियों का सर्वेक्षण करने से होगा। अगर हम कृषि उत्पादन की बात करें तो किसानों को सब्जियों और फलों के बाजार मूल्य का केवल10% से 15% ही मिलता है और अन्य उत्पादनो में भी येनकेन प्रकार से बाजार में उच्च मूल्य लेकर पूरी तरह से ठगे जाते हैं। उनमें से 10% शिक्षित किसान हैं जो बुद्धिमान हैं। वे ठगे नहीं जाते और इसीलिए समृद्ध हैं क्योंकि उनके पास कृषि के अलावा अन्य आय है।
आज कश्मीर में 20 रुपये प्रति किलो बिक रहे सेब मुंबई, दिल्ली, कोलकाता और अहमदाबाद जैसे शहरों के खुदरा बाजारों में 200 रुपये प्रति किलो के भाव से बिक रहे हैं। जो इस व्यवस्था को जारी रखकर साथ-साथ में अन्य व्यवस्था प्रारंभ करने का कृषि विधेयक में मोदी सरकार द्वारा जो अभिगम रखा गया, जिसे लोग और किसान नहीं समझते हैं, यह सिर्फ कृषि विधेयक का विरोध करने के अलावा नेता बनने का एक तरीका है। आज देश में दूध, घी, तेल में मिलावट की जाती है और आम, केला, तरबूज, खरबूज जैसे फलों में केमिकल डालकर पकाया जाता है, जिसका सीधा असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ता है। सौंफ में से जीरा बनाया जाता है। सभी प्रकार के उत्पादों को किसानों से एकत्र किया जाता है और बिचौलियों द्वारा रसायनों के साथ मिलाया जाता है। एक आम आदमी अच्छी सब्जियां, फल, दूध, घी आदि खाना चाहता है लेकिन उसे शुद्ध चीजें नहीं मिलती हैं। आज जब मॉल का कॉन्सेप्ट आया तो देश के शहरों के लोग मॉल से मिलने वाले उत्पादों पर निर्भर हैं, जिसमें किसान को कीमत भी मिलती है और उपभोक्ता को उत्पाद का सबसे अच्छा और पर्याप्त वजन मिलता है। जबकि शहरों में सब्जी या फलों की दुकान रखने वाले लोग सभी खर्चे काटकर हर महीने 10 से 15 हजार रुपये तक कमाते हैं। इसके अलावा जिन लोगों के पास सब्जी या फलों को बेचने के ठेले है उनकी स्थिति बहुत खराब है, क्योंकि जहां वे खड़े होते हैं वहां उन्हें पुलिस या निगम के लोगों को किराया या किश्त देनी पड़ती है। उन्हें फ्री में सब्जियां देनी पड़ती हैं, ठेला हटानेवाली गाड़िया जब आती है तब उसे छुड़वाने के लिए भी पैसे देने पड़ते हैं, वे साहूकारों ब्याजखोरो से 5 प्रतिशत प्रति माह ब्याज से पैसा लेते हैं। यदि उनके परिवार के सदस्यों को मार्केटिंग यार्ड, सहकारी समितियों या ऐसे मॉल में नौकरी मिले तो घर का एक व्यक्ति 15000 रुपये प्रति माह कमा सकता है और सम्मानजनक जीवन व्यतीत कर सकता है। पशुपालन अर्थात गाय, बैल, भैंस, भेड़, बकरी, ऊंट जैसे पशुओ का पालन करके राज्य और देश के पशुपालक इसी पर जीविकोपार्जन करते थे।
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देश में करीब 20 फीसदी लोग इसी पेशे से गुजारा करते थे। आज देश में नकली दूध, घी, मक्खन जैसे डेयरी उत्पाद मटनटेलो से लेकर यूरिया तक के हानिकारक पदार्थों से बनाए जाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में दुधारू पशुओं और कृषि में काम करने वाले पशुओं के पालन-पोषण के रोजगारोन्मुखी व्यवसाय के बजाय अब स्थिति बहुत दयनीय हो गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ लोगों के काम करने की अनिच्छा के कारण कृषि क्षेत्र के किसान खुद खेती नहीं करते बल्कि बाहर से मजदूरों को बुलाते हैं और घर पर बैठकर टिका-टिप्पणी करते रहते हैं। इस अर्थव्यवस्था में योगदान देने वाले लोग सरकार से मिलने वाले प्रोत्साहन का दुरुपयोग कर रहे हैं। गौ आधारित खेती करनी है तो कुछ जगहों पर सरकार को व्यावहारिक कदम उठाने होंगे।उदाहरण के तोर पर जहां 10 एकड़ जमीन हो, वहां कर्ज लेकर ट्रैक्टर ले सकते हैं और सब्सिडी पा सकते हैं। जब छोटे दो-तीन एकड़ जमीनधारक चार लोग एक ट्रैक्टर के साथ मिलकर काम कर रहे हों तो उस व्यवस्था को बंद कर देना चाहिए। ऐसे छोटे सीमांत किसान बैल, हल, साती और बैलगाड़ी चलाकर खेती करेंगे और २ एकड़ जमीन में गाय और बैल की खाद डालकर सब्जियां, फल जैसी चीजें लगाएंगे तो ऐसे जैविक उत्पादों की कीमत दोगुनी मिल सकती है और अगर सरकार ऐसे छोटे किसानों की मदद करेगी तो यह कॉन्सेप्ट अवश्य सफल हो सकता है। आज इसी तरह देश में पशुपालन और कृषि का व्यवसायीकरण कर दिया गया है। देश में किसानों के प्रकार इस तरह से होने चाहिए :
1. जो खुद अपने परिवार के साथ खेती करता हो ऐसे किसानों को आयकर और अन्य पूर्ण किसान प्रोत्साहन में 100 प्रतिशत छूट दी जानी चाहिए।
2. जो लोग यदि स्वयं बीज, खाद, पानी आदि उपलब्ध कराये और साझा करे, ऐसे किसानों को 10 प्रतिशत आयकर स्लैब में ले जाना चाहिए और कृषि में उपलब्ध अन्य प्रोत्साहनों मे 50 प्रतिशत छूट देनी चाहिए।
3. जो किसान अपनी जमीन को वार्षिक निश्चित मूल्य पर किराए पर देते हैं, उन्हें 15 प्रतिशत आयकर स्लैब में रखा जाना चाहिए और खेती करने वाले किसान को छोड़कर किसी भी प्रकार का कृषि प्रोत्साहन इन लोगो को नहीं दिया जाना चाहिए। आज अगर देश में आयकर के लाभ के लिए बन बैठे किसानों से जो फंड प्राप्त होता है तो ऐसे फंड का उपयोग कृषि में काम करने वाले किसान खेत मजदूरों और अन्य छोटे किसानों के आवास, शैक्षिक, स्वास्थ्य या रोजगारोन्मुखी कार्यों के लिए किया जा सकता है। यानी किसानों के लिए एक कल्याण कोष की स्थापना की जा सकती है। इस कल्याण कोष का उपयोग कृषि उपज के समर्थन मूल्य में भी किया जा सकता है। हमारी बात केवल खेती करने वाले किसानों के लिए है।
हमारे अनुभव अनुसार खेती नहीं करनेवाले गैर एव बन बैठे किसानो के पास व्यवसाय, अच्छी नौकरी या अन्य आय होती है। यदि ऐसे लोगों का धार्मिक या सामाजिक अनुसार काउंसेलिंग किया जाए तो हम कई खेतिहर मजदूरों और छोटे किसानों के साथ न्याय कर सकते हैं। आज देश में बहुत से लोग किसानों के नाम पर अपनी बहीखातों में प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष प्रविष्टियाँ कर रहे हैं। ऐसे तथाकथित किसानों के लिए आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्रभाई मोदीजी की सरकारने इस प्रक्रिया पर रोक लगा दी है, वह बधाई के पात्र है, लेकिन आज भी कई लोग किसानों के नाम पर झूठे सरकारी लाभ लेकर किसानों का हिस्सा दूसरे लोग छीन रहे हैं। वर्तमान केंद्र सरकार ने छोटे किसानों के लिए बजट मे कई प्रावधान किए हैं लेकिन आज भी देश में बन बैठे किसानों द्वारा इसका लाभ उठाया जाता है और छोटे किसान इन सरकारी लाभों से वंचित रह जाते हैं और उनके साथ अन्याय होता है।
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किसान का अर्थ है "जो खुद खेती करे वह किसान" लेकिन वर्तमान किसान या उनके परिवार यह नहीं जानते कि कृषि का सही अर्थ क्या है,कृषि में कौन से औजारों का उपयोग किया जाता है, खेती क्या है , उसे देखा नहीं है ऐसे किसान शहरो में कमाई कर के आते है इसलिए ऐसे किसानों को किसान कहना बहुत दुखद विषय है। उदहारण के तोर पर एक किसान के खेत में एक एकड़ मे 40 मण कपास की पैदावार होती है, जिसके बगल में एक व्यापारी किसान के खेत एक एकड़ में 80 से 100 मण की पैदावार होती है उसके बिल मार्केटिंग यार्ड से जितने चाहिए उस मात्रा मे मिलते है, जिसे किसान के नाम पर देश की सबसे बड़ी टैक्स चोरी माना जा सकता है। इसी तरह अगर बड़े शहरों की बात करें तो शहरों, जिलों की जमीनों को ऐसे बन बैठे किसान लोगो ने लेकर रखी हुई होती है वहां किसी भी प्रकार की खेती या पैदावार न होने के बावजूद भी ऐसी जमीनों को पांच साल बाद बेचकर आयकर में जो 100% छूट मिलती है उसका उपयोग अधिकांश बिल्डर, उद्योग, अधिकारी और राजकारणी बिना टैक्स चुकाए अपनी पूंजी का निर्माण करते हैं।
ऐसे लोगों के पास जो पूंजी है उसका 50 प्रतिशत पूंजी कृषि की बिक्री से, अगर तो कृषि भूमि की बिक्री से प्राप्त हुई होती है, जो वास्तव में बहुत दुखद है। किसानों के नाम पर चल रही समितियों, को-ओप सोसायटीयो द्वारा यूरिया, पोटाश आदि जैसे उर्वरक किसानों को दिए जाते हैं, विक्रेता किसानों के नाम पर बिल बनाकर ऐसी सामग्री बिना बिल के उच्च कीमत पर मटीरियल उद्योगों को देते हैं। मार्केटिंग यार्ड, सोसायटी, प्राइवेट सेलर्स, एग्रोबेस इंडस्ट्रीज किसानों को एडवांस पैसा देकर 1-2 महीने के फायनान्स के तोर पर 25 प्रतिशत कम कीमत पर किसानों से माल ले लेते हैं। सरकारने किसानों को कार्यालय, गोदाम देने के लिए मार्केटिंग यार्ड की जो नीति स्थापित की है, जो केवल किसानों के लिए है, लेकिन अधिकांश सदस्य स्वयं सरकारी योजना का लाभ उठाकर कार्टेल बनाते हैं और माल खराब है, वापस ले जाओ जैसे कारण रख कर कम कीमत पर माल हड़प लेते हैं। "अन्नदाता" जैसे शब्दों से सम्मानित होने वाले किसान की देश में आज स्थिति बहुत खराब है, आज ऐसी स्थिति पैदा हो गई है कि किसान अपने घर का खर्च भी नहीं उठा सकता, तो हम सभी को उन लोगों पर रोक लगाने की जरूरत है जो कानून की गलत व्याख्या करते हैं और आज महगाई से पीड़ित किसान अपने परिवार की संभाल रख सके इसके लिए किसान को उचित न्याय मिले और उसकी जवाबदारी आजके किसान नेताओ और सरकार की है।
आज कई उदाहरण आज दिए जा सकते हैं जिसमें गुजरात राज्य के पालनपुर और दिसा के आसपास के किसान, आलू उत्पादन में बड़ी कंपनियां बीज, उर्वरक के लिए अग्रिम भुगतान देकर एमओयू करती हैं और उन्हें सामान्य बाजार मूल्य से दोगुना मूल्य मिलता है, किसानों की यह स्थिति बहुत प्रशंसनीय है। आज ऐसे कई सारे प्रश्न हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी टीमने देश के किसानों के हितों की रक्षा के लिए जो कानून बनाने का प्रयत्न किया है,उससे कहीं ओर ज्यादा करने की आवश्यकता है। ऐसे राष्ट्रविरोधी तत्वों को बेनकाब करना होगा और देश के विकास की परियोजनाओं को फलदायी बनाने के लिए लोगों के साथ-साथ शासन अधिकारियों को भी बहुत सख्ताई से काम करने की आवश्यकता है। केंद्र में मोदी सरकारने देश के किसानों के हित के लिए कुछ प्रभावी कदम उठाए हैं जैसे प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, प्राकृतिक खेती, नैनो उर्वरक, पीएम किसान, कृषि अवसंरचना कोष इत्यादि स्वागत योग्य कदम हैं। इन सभी योजनाओं जैसे गहरी सिंचाई, ग्रीन हाउस, बेहतर बीज, उर्वरक और जैविक खेती का वैज्ञानिक क्रियान्वयन आवश्यक है।
पशुओं के गोबर, मूत्र और घास के कचरे से बनी खाद जिसे हम जमीन में गाड़ देते हैं और उसमें पशुओं का गोबर, मूत्र और ऐसी मिट्टी मिलाकर खाद बनाते हैं जो कृषि के लिए बहुत उपयोगी है। लेकिन आज देश में कृषि में इस्तेमाल होने वाले उपकरण जैसे प्लास्टिक के वॉल्व, पाइप फिटिंग या अन्य उपकरण जो पूरी तरह से निम्न गुणवत्ता के होते हैं उन्हें 40% मिट्टी यानी फिलर से बनाया जाता है। एक वर्ष में खेत में किसानों के पाइप गर्मी या अन्य कारणों से लीक हो जाते हैं जिससे किसान दुखी हो जाता है इसके साथ ही ग्रीन हाउस में भी सामग्री निम्न गुणवत्ता की होती है। आज देश में कई कृषि विश्वविद्यालय हैं जिनमें डिप्लोमा कृषि, बी.एस.सी कृषि, एम.एस.सी कृषि, बी.ई कृषि, एम.ई कृषि जैसे कृषि अधिकारी और कृषि वैज्ञानिक हैं जो हमारे देश मे सरकारी और निजी कंपनियों में काम करके और सेवानिवृत्त होने पर पेंशन के समय निवृति लेकर सक्रिय नहीं रहते। जबकि अन्य सेक्टर में इंजीनियरिंग, प्लास्टिक, टेक्सटाइल, केमिकल, फार्मेसी जैसे कई क्षेत्र हैं जिनमें ये सभी इंजीनियर, तकनीशियन, वैज्ञानिक पूरी तरह से काम करते है जिस से इन क्षेत्रों का विकास होता है।
कृषि क्षेत्र में ऐसे बहुत कम उदाहरण हैं जहां किसी वैज्ञानिक ने अपना खेत बनाया हो, उसका आधुनिकीकरण किया हो और उसे जैविक खेती के माध्यम से विकसित किया हो। क्योंकि कृषि क्षेत्र में हमें गर्मी, सर्दी, बारिश जैसे वातावरण में खुले आसमान के नीचे काम करना पड़ता है जो हमारे देश के आलसी वैज्ञानिक इस क्षेत्र की मदद नहीं करते हैं, जो कि बहुत दुखद है। ऐसे वैज्ञानिकों को पढ़ाने से पहले उनके साथ एमओयू किया जाना चाहिए क्योंकि वातानुकूलित कार्यालय में बैठने से सेक्टर को मदद नहीं मिलेगी। हम कृषि से जुड़े हुए हैं और कृषि के साथ काम करके यहां पहुंचे हैं, अगर हम पिछड़े किसानों को यह मंच देते हैं, तो वे अपने बच्चों को शिक्षित करने में सक्षम होंगे, सामाजिक व्यवस्था बनाए रखेंगे और गरीबी से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या कम हो जाएगी। देश के विधायक, संसद सदस्य, जिला, तहसील पंचायत सरपंच, अधिकांश व्यवसाय और उद्योग के व्यापारी कृषि क्षेत्र से निकलते हैं, वे अपने माता-पिता की स्थिति जानते हैं। उस समय उनकी दूसरी और तीसरी पीढ़ी में भी उनके दादा किसान थे और उस समय कृषि में काम करते थे, उस समय 80% लोग कृषि कार्य में लगे हुए थे। तो आज जब देश को एक सकारात्मक सरकार मिली है, तो सब मिलकर छोटे-छोटे लोगों को सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी के साथ साझा करते हुए सरकार लाभ के कानूनों और लाभ के लिए फॉर्म भरने के लिए केंद्र खोलकर, उनकी गुणवत्ता और मात्रा का उत्पादन होने से एव बिचौलियों के कम होने से किसानों को भी बेहतर मूल्य मिलेगा।
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किसान स्वस्थ होगा तो देश भी स्वस्थ होगा और कृषि से जुड़े लोग भी स्वस्थ होंगे। किसानों के विकास के लिए ऑल इण्डिया एमएसएमई फेडरेशन की तरफ से हमारे सभी सुझाव हैं जिन पर विचार करने का अनुरोध है। हमारे पास जो सुझाव हैं वे हमारे अध्ययन के अनुभव के आधार पर सुझाव हैं, अगर लोग अपनी जिम्मेदारी को समझते हैं और उन्हें अधिकारों का उपयोग करना उनके सामने है, अगर वे कर्तव्य नहीं समझते हैं, तो किसी को अधिकार नहीं मिलेगा। अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। हमारे कर्तव्य दूसरों के अधिकार बन जाते हैं और दूसरों के कर्तव्य हमारे अधिकार बन जाते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि सरकार इसे बहुत सख्ती से लागू करे।
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