दिल्ली छोड़ किसान चले गांव की ओर... ऐसी तस्वीरें देखकर टिकैत फिर रोने लगेंगे

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अभिनय आकाश । Feb 17 2021 4:14PM

सिंघू बाॅर्डर पर टेंट और ट्रैक्टर तो दिखाई दे रहे हैं लेकिन गिनती के। जहां लाखों किसानों का दावा किया जा रहा था अब दर्जन भर नजर आ रहे थे। मंच पर जहां भाषण हुआ करता था वहां अब गिनती के लोग दिखने लगे।

केंद्र के तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन को लगभग तीन महीने का वक्त हो गया है। ऐसे में किसानों के प्रमुख प्रदर्शन स्थलों सिंघू, टिकरी और गाजीपुर बाॅर्डर पर भीड़ कम होती नजर आ रही है। लेकिन किसान नेता अपने आंदोलन को पहले से ज्यादा मजबूत बता रहे हैं। गाजीपुर बाॅर्डर 28 तारीख के बाद किसान आंदोलन का केंद्र बन गया था लेकिन अब यहां कि स्थिति ऐसी हो गई है जहां टेंट तो है लेकिन उसमें लोग नहीं दिखाई देंगे। ऐसे टेंट यहां पर जगह-जगह लगे हैं लेकिन अब इस टेंट में लोग नहीं हैं। बाॅर्डर पर कितने किसान बचे हैं, सीधे-सीधे कहे कि इतने कि राकेश टिकैत ऊंगुली पर गिन सकते हैं। कहा जा रहा है कि खेती करने के लिए किसान गांव की ओर निकल पड़े हैं। जो भीड़ पहले थी अब वैसी भीड़ नहीं दिखाई दे रही है। ज्यादा लोग मंच के आस पास ही दिखाई देंगे। जहां पर पहले ट्रैक्टर-ट्राली की लंबी कतार होती थी वहां पर अब ट्रैक्टर ट्राली की संख्या कम हो गई है। जो तमाम तंबू यहां होते थे वो अब कम हो गया हैं और किसानों की संख्या भी काफी कम हो गई है। सिंघू बाॅर्डर पर टेंट और ट्रैक्टर तो दिखाई दे रहे हैं लेकिन गिनती के। जहां लाखों किसानों का दावा किया जा रहा था अब दर्जन भर नजर आ रहे थे। मंच पर जहां भाषण हुआ करता था वहां अब गिनती के लोग दिखने लगे। अब सवाल ये है कि 84 दिनों बाद ऐसी तस्वीर आई क्यों? किसान आंदोलन से भीड़ क्यों कम हो गई? किसान आंदोलन से ट्रैक्टर वाले किसान  चले गए? 

किसान क्यों हो गए कम और आंदोलन हुआ बेदम

ये आंदोलन राजनीतिक हो गया है- जब आंदोलन खड़ा हुआ था उस वक्त विपक्षी पार्टियों पर किसानों की बैकिंग करने के आरोप लगे थे। किसान नेताओं ने भी मंच पर राजनेताओं से दूरी रखने का दावा किया था। लेकिन 26 जनवरी की घटना के बाद दावा हवा हवाई हो गया। किसान आंदोलन के समर्थन में कई पार्टियां खुलकर सामने आ गई। आंदोलन स्थल पर कई नेता दिखाई दिएं, पार्टियां ट्विटर पर सरकार के खिलाफ उतर आई। महापंचायत के मंचों पर सरकार विरोधी आंदोलन में बदल गया। इसके बाद से ही ये लगने लगा कि किसानों के हित से ज्यादा आंदोलन राजनीतिक हो गया है। अकाली दल किसान वोट की खातिर एनडीए से नाता तोड़ चुका है। दिल्ली में आप आदमी पार्टी को आंदोलन की बीज से वोट की पैदावार दिखाई दे रही है। लेफ्ट शुरुआत से ही लाल झंडा लेकर आंदोलन के समर्थन में है। कांग्रेस किसानों की सबसे हिमायती बनने में जुटी है। राहुल गांधी किसान मुद्दे पर 40 से ज्यादा ट्वीट कर चुके हैं। किसानों के मुद्दों पर एक दर्जन से ज्यादा मीटिग कर चुके हैं राजस्थान दौरे पर किसानों के साथ 5 जनसभाएं की।

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मोदी की बात किसानों ने समझ ली- पीएम मोदी ने किसान आंदोलन पर सीधे तौर पर कुछ नहीं कहा था लेकिन कई बार नए कृषि कानूनों और इससे किसानों को होने वाले फायदे पर अपनी राय रखी। मन की बात में भी उन्होंने नए कृषि कानूनों की वकालत की थी। कई राज्यों के किसानों से वीडियो काॅन्फ्रेंसिंग के जरिये भी नए कृषि कानूनों की अच्छाई गिनाई। कई बार विभिन्न मंचों से उन्होंने कहा कि ये नए कानून किसानों के हक में है। कुछ लोग किसानों के बीच भ्रम फैला रहे हैं। यही वजह है कि प्रधानमंत्री के बयान की चर्चा हर जगह हुई। 

फसल का टाइम किसान चले गांव- उत्तर प्रदेश के गांवों में गन्ना रोपण का मौसम शुरू होने के साथ, गाजीपुर से कई प्रदर्शनकारी अपने घरों के लिए रवाना हो गए। भीड़ के कम होने का अंदाजा कर सेवा द्वारा चलाए जा रहे लंगर से पता चलचा है। जहां वर्तमान में 4 से 5 हजार प्रदर्शनकारियों को खिलाया जा रहा है। इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार लंगर में वालंटियर करने वाले किसान ने बताया कि पहले, लगभग 15,000-16,000 लोग यहाँ खाना खाने आते थे। एक अन्य किसान नवजोत सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा कि उन्हें अपने परिवार के साथ गन्ने की खेती के लिए गांव जाना पड़ सकता है। 

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आंदोलन राष्ट्र की कीमत पर नहीं- किसानों की टै्क्टर रैली के नाम पर दिल्ली में हुए तांडव और लाल किला प्रकरण के बाद से ही कुछ किसान संगठनों ने आंदोलन से किनारा कर लिया था। लेकिन उसके बाद ग्रेटा टूल किट मामला और जैसे-जैसे गिरफ्तारियां हो रही हैं, पुलिस की जांच में इंटरनेशनल एंगल भी सामने आने  लगे हैं और देश में अराजकता के सबूतों के साथ ही कई चेहरे भी बेनकाब होने लगे हैं। 

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