पिता की हत्या ने Shibu Soren को बनाया राजनीति का अबूझ खिलाड़ी, तीन बार संभाल चुके हैं झारखंड की सत्ता
जेएमएम प्रमुख शिबू सोरेन के करीब पांच दशक का राजनीतिक सफर काफी संघर्षपूर्ण रहा है। सोरेन का जन्म आज से ठीक 81 साल 11 जनवरी 1944 को हुआ था। बचपन में ही एक चिड़िया की मौत से उन्हें इतना दुःख हुआ कि मांस-मछली खाना छोड़ दिया और जीव हत्या को पाप मान कर पूरी तरह से अहिंसक बन गए।
झारखंड राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) प्रमुख शिबू सोरेन के करीब पांच दशक का राजनीतिक सफर काफी संघर्षपूर्ण रहा है। सोरेन का जन्म आज से ठीक 81 साल 11 जनवरी 1944 को हुआ था। बचपन में ही एक चिड़िया की मौत से उन्हें इतना दुःख हुआ कि मांस-मछली खाना छोड़ दिया और जीव हत्या को पाप मान कर पूरी तरह से अहिंसक बन गए। शिबू सोरेन कुछ बड़े हुए तो गांव से दूर शहर में एक छात्रावास में रहकर पढ़ाई करने लगे। लेकिन इसी दौरान उनके पिता की हत्या कर दी गई। पिता की हत्या ने शिबू सोरेन को राजनीति की राह दिखाई। इसके बाद से ही उनके सामाजिक और राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई।
पिता की धोखे से हुई हत्या
जेएमएम सुप्रीमो शिबू सोरेन के दादा चरण मांझी तत्कालीन रामगढ़ राजा कामाख्या नारायण सिंह के टैक्स तहसीलदार थे। उनकी जमीन-जायदाद के साथ घर की आर्थिक स्थित बेहतर थी। इस बीच उनके दादा चरण मांझी ने 1.25 एकड़ जमीन एक घटवार परिवार को दे दी। शिबू सोरेन के पिता सोबरन मांझी ने इस जमीन पर एक मंदिर बनाने का आग्रह किया। इसके कारण गांव में ही रहने वाले कुछ महाजनों के साथ परिवार का विवाद शुरू हो गया। शिबू सोरेन अपने बड़े भाई राजाराम सोरेन के साथ इस दौरान गोला स्थित आदिवासी छात्रावास में रहकर पढ़ाई कर रहे थे।
सोबरन सोरेन के दो पुत्रों को स्कूल में पढ़ता देखकर गांव के ही कुछ लोग चिढ़ने लगे। 27 नवंबर 1957 को सोबरन सोरेन अपने एक सहयोगी के साथ दोनों पुत्रों के लिए छात्रावास में चावल और अन्य सामान पहुंचाने के लिए घर से निकले। पैतृक गांव ‘नेमरा’ से गोला के लिए पैदल ही सफर पर निकले सोबरन सोरेन की रास्ते में ही लुकरैयाटांड़ गांव के निकट हत्या कर दी गई। शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन कई बार सीएम रहे लेकिन आज तक पुलिस यह पता नहीं सोबरन सोरेन की हत्या किसने की थी।
पिता की हत्या के बाद शिबू सोरेन राजनीति में उतरे
शिबू सोरेन के जीवन में पिता सोबरन सोरेन की हत्या टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। इसके बाद पढ़ाई से उनका मन पूरी तरह से टूट गया था। घर से भाग की शिबू सोरेन हजारीबाग में रहने वाले फारवर्ड ब्लॉक नेता लाल केदार नाथ सिन्हा के घर पहुंचे। शिबू सोरेन के लिए संघर्ष का दौर घर से निकलने के बाद ही शुरू हो चुका था। उन्होंने कुछ दिनों तक छोटी-मोटी ठेकेदारी का काम भी किया।
इस बीच शिबू सोरेन पतरातू-बड़काकाना रेल लाइन निर्माण के दौरान कुली का काम भी मिला था, लेकिन मजदूरों के लिए विशेष तौर पर बने बड़े-बड़े जूते उन्हें पसंद नहीं कर पाया, जिसके बाद उन्होंने काम छोड़ दिया। काम छोड़ने के बाद उनकी परेशानी और बढ़ गई। इसी दौरान उनके सामाजिक और राजनीतिक जीवन की भी शुरुआत हुई। सबसे पहले शिबू सोरेन ने बड़दंगा पंचायत से मुखिया का चुनाव लड़ा, लेकिन सफलता नहीं मिली। बाद में जरीडीह विधानसभा सीट से चुनाव लड़े, इस चुनाव में भी वे हार गए।
राजनीति में जमाई राज्य की धाक
शिबू सोरेन 1980, 1989, 1991, 1996, 2002, 2004, 2009 और 2014 में दुमका लोकसभा सीट के लिए चुने गए। जबकि तीन बार राज्यसभा के लिए चुने गए। वहीं केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे। 2 मार्च 2005 को शिबू सोरेन पहली बार झारखंड के सीएम बने, लेकिन 11 मार्च 2005 को उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा। इस बीच शशिनाथ हत्याकांड में जेल गए और ऊपरी अदालत से दोषमुक्त हुए। जिसके बाद 27 अगस्त 2008 को दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। लेकिन तमाड़ विधानसभा चुनाव में हार के कारण 11 जनवरी 2009 को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद वर्ष 2009, दिसंबर में तीसरी बाद सीएम बने, लेकिन कुछ ही दिनों में त्यागपत्र देना पड़ा।
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