उच्च न्यायालय ने 4 मेडिकल कॉलेज में आरक्षित सीटों को लेकर उप्र सरकार की अपील पर फैसला सुरक्षित रखा

Lucknow High court
ANI

नीट-2025 में 523 अंक और अखिल भारतीय रैंक 29,061 प्राप्त करने वाली याचिकाकर्ता ने दलील दी कि 2010 और 2015 के बीच जारी किए गए कई सरकारी आदेशों ने आरक्षण की सीमा को गैरकानूनी रूप से बढ़ा दिया।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने आंबेडकर नगर, कन्नौज, जालौन और सहारनपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में आरक्षित वर्ग के लिए 79 प्रतिशत से अधिक सीट आरक्षित करने संबंधी राज्य सरकार के आदेश को रद्द करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर चार सितंबर को फैसला आएगा।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने मंगलवार को राज्य सरकार द्वारा दायर विशेष अपील पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें एकल न्यायाधीश पीठ के फैसले को चुनौती दी गई थी।

न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ला की पीठ ने राज्य सरकार के चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा दायर विशेष अपील पर यह आदेश पारित किया। राज्य सरकार ने इस मामले में बहस करने के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता जे एन माथुर और संजय भसीन के साथ-साथ अधिवक्ता सैयद मोहम्मद हैदर रिजवी सहित विशेष निजी वकीलों की एक टोली को नियुक्त किया था, जबकि लखनऊ पीठ में दस अतिरिक्त महाधिवक्ता मौजूद थे ताकि किसी भी तरह से आरक्षण बहाल हो सके।

वकीलों के समूह ने दलील दी थी कि उच्चतम न्यायालय ने इंदिरा साहनी मामले में प्रवेश में पचास प्रतिशत से अधिक आरक्षण कोटा की अनुमति दी थी। इसके पहले न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की पीठ ने राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) अभ्यर्थी सबरा अहमद द्वारा दायर एक याचिका पर पिछले बृहस्पतिवार को फैसला दिया था।

नीट-2025 में 523 अंक और अखिल भारतीय रैंक 29,061 प्राप्त करने वाली याचिकाकर्ता ने दलील दी कि 2010 और 2015 के बीच जारी किए गए कई सरकारी आदेशों ने आरक्षण की सीमा को गैरकानूनी रूप से बढ़ा दिया।

याचिका में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि इन कॉलेजों में राज्य सरकार के कोटे में 85-85 सीट हैं, लेकिन अनारक्षित वर्ग को केवल सात सीट आवंटित की जा रही हैं। इसे उस दीर्घकालिक सिद्धांत का स्पष्ट उल्लंघन बताया गया कि आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। राज्य सरकार ने एकल पीठ के फैसले को दो न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष विशेष अपील में चुनौती दी है।

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