Prabhasakshi Exclusive: Musharraf कैसे पाकिस्तान के लिए भी बेहद खतरनाक साबित हुए थे?

pervez musharraf
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ब्रिगेडियर सेवानिवृत्त श्री डीएस त्रिपाठी ने कहा कि अफगानिस्तान पर आक्रमण मुशर्रफ के लिए अधिक उपयुक्त समय पर नहीं हुआ, क्योंकि उस समय सैन्य तख्तापलट के बाद वह वैधता हासिल करने के लिए अंधेरे में हाथ-पांव मार रहे थे।

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में हमने ब्रिगेडियर सेवानिवृत्त श्री डीएस त्रिपाठी से जानना चाहा कि भारत-पाकिस्तान संबंधों को खराब करने में पाकिस्तान के पूर्व सैन्य तानाशाह परवेज मुशर्रफ का कितना हाथ रहा? हमने यह भी जानना चाहा कि खुद पाकिस्तान के लिए मुशर्रफ का नेतृत्व कितना खतरनाक रहा। इसके जवाब में उन्होंने कहा कि जहां तक मुशर्रफ के खुद पाकिस्तान के लिए मुश्किलें खड़ी करने की बात है तो आपको बता दें कि अमेरिका में 11 सितम्बर 2001 को हुए हमलों के बाद आतंकवाद के खिलाफ अमेरिकी लड़ाई में साथ देने की पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की अफगान नीति और तालिबान के प्रति उनका नरम रुख उनके देश (पाकिस्तान) के लिए दोधारी तलवार साबित हुआ। मुशर्रफ की इन नीतियों का परिणाम यह हुआ कि चरमपंथी समूह उनके खिलाफ हो गये तथा पाकिस्तान में आतंकवादी हमले हुए। पाकिस्तान के पूर्व सैन्य तानाशाह और 1999 में करगिल युद्ध के मुख्य सूत्रधार जनरल मुशर्रफ ने 1999 में रक्तहीन सैन्य तख्तापलट के बाद सत्ता पर कब्जा कर लिया और 2008 तक प्रभारी बने रहे। 11 सितम्बर 2001 के हमलों का मुख्य साजिशकर्ता अल-कायदा का नेता ओसामा बिन लादेन था, जिसे तालिबान अफगानिस्तान में शरण दे रहे थे।

ब्रिगेडियर सेवानिवृत्त श्री डीएस त्रिपाठी ने कहा कि अफगानिस्तान पर आक्रमण मुशर्रफ के लिए अधिक उपयुक्त समय पर नहीं हुआ, क्योंकि उस समय सैन्य तख्तापलट के बाद वह वैधता हासिल करने के लिए अंधेरे में हाथ-पांव मार रहे थे। लेकिन, तब वह अमेरिका के साथ हो लिये तथा पाकिस्तान के लिए अमेरिकी डॉलर का रास्ता खोल दिया। इस फैसले के दूरगामी परिणाम हुए। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में चरमपंथी समूह उनके खिलाफ हो गए और न केवल अफगान आतंकवादियों को समर्थन प्रदान किया, बल्कि देश के अंदर हमले भी शुरू कर दिए। अफगानिस्तान के साथ स्थानीय गतिशीलता और सीमा पर सुरक्षा के इंतजाम के अभाव में मुशर्रफ आतंकवादियों को सीमा में प्रवेश से रोक नहीं सके। उन्होंने कहा कि पश्चिमी देशों ने इस ‘दोहरे खेल’ के लिए उन्हें दोषी ठहराया, लेकिन वे पाकिस्तान और तालिबान के बीच सांठगांठ को तोड़ने में विफल रहे। मुशर्रफ के राजनीतिक परिदृश्य से गायब होने के लंबे समय बाद, तालिबान अंततः 2021 में अफगानिस्तान की सत्ता में लौट आए।

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उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में नाटो और अमेरिकी सेना के घुसने के लिए पाकिस्तान को एक ट्रांजिट मार्ग के रूप में इस्तेमाल किया गया था और मुशर्रफ ने पाकिस्तान के बीहड़ सीमावर्ती इलाकों में संदिग्ध आतंकवादियों के खिलाफ अमेरिकी सेना द्वारा शुरू किए गए हमलों को सहन किया। मुशर्रफ की अफगान नीति के कारण 2007 में सामने आए तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) जैसे आतंकवादी संगठनों के समक्ष पाकिस्तान की दुर्बलता उजागर हुई। उन्होंने बताया कि टीटीपी को पूरे पाकिस्तान में कई घातक हमलों के लिए दोषी ठहराया गया है, जिसमें 2009 में सेना मुख्यालय पर हमला, सैन्य ठिकानों पर हमले और 2008 में इस्लामाबाद में मैरियट होटल में बमबारी शामिल है।

ब्रिगेडियर सेवानिवृत्त श्री डीएस त्रिपाठी ने कहा कि इसके अलावा परवेज मुशर्रफ अपने पीछे एक ‘‘विवादित विरासत’’ छोड़ गए हैं। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के पूर्व सैन्य तानाशाह परवेज मुशर्रफ 1999 के करगिल युद्ध के सूत्रधार थे। हालांकि, बाद में मुशर्रफ को एहसास हुआ कि उन्हें अपने देश की स्थिरता के लिए भारत के साथ अच्छे संबंध रखने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि मुशर्रफ करगिल युद्ध के सूत्रधार थे और उन्हें विश्वास था कि वह करगिल में पूरे पहाड़ी क्षेत्रों पर नियंत्रण करने में सफल होंगे और हमारे संचार तंत्र को प्रभावित कर सकेंगे। लेकिन करगिल युद्ध में हार के बाद मुशर्रफ को अपने देश में आलोचनाओं का सामना करना पड़ा।

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