RTI कानून में बदलाव कितना जरूरी, परिवर्तन से सरकार की जवाबदारी होगी कम?

मोदी सरकार के इस बिल में प्रस्तावित बदलाव पर नजर डालें तो सूचना का अधिकार 2005 के दो सेक्शन में बदलाव हुए हैं। सेक्शन 13 और सेक्शन 16 में बदलाव किए गए हैं। साल 2005 के कानून में सेक्शन 13 में मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त की तनख्वाह का जिक्र है। मुख्य सूचना आयुक्त की तनख्वाह मुख्य चुनाव आयुक्त के बराबर होगी। सूचना आयुक्त की सैलरी निर्वाचन आयुक्त की सैलरी के बराबर होगी। 2019 के संशोधन के अनुसार मुख्य सूचना आयुक्त की सैलरी और सूचना आयुक्त की सैलरी केंद्र सरकार तय करेगी। यानि वो तय करेगी कि किसे कितने पैसे दिए जाए।
आम आदमी सरकार से भ्रष्टाचार या मानव अधिकार के हनन के बारे में सूचना मांगता है और नहीं मिलने की सूरत में वो सूचना आयोग की ओर रूख करता है। लेकिन अगर आयोग में जो आयुक्त बैठे हैं वो कमज़ोर हो जाते हैं तो लोगों की सूचना लेने की प्रक्रिया कमज़ोर हो जायेगी और वो ऐसी सूचना नहीं ले सकेंगे। नतीजतन सरकार को जवाबदेह बनाने की प्रक्रिया में भी बाधा उत्तपन्न हो जाएगी। सूचना का अधिकार संशोधन विधेयक 22 जुलाई 2019 को लोकसभा में पास हुआ। जिसके पक्ष में पड़े 218 और विरोध में 89 वोट। इस बिल को राज्यसभा में पास करवाने को लेकर जद्दोजहद जारी है। राज्यसभा से पास हो जाने के बाद फिर इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा। वहां से मंजूरी मिलने के बाद इस बिल में बदलाव हो जाएगा। लोकसभा में इस बिल के पास होने के बाद से ही बवाल शुरू हो गया।
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