How Punjab was Divided | भारत के हाथ में आते-आते कैसे छिटका लाहौर | Matrubhoomi

Punjab
Prabhasakshi
अभिनय आकाश । May 31 2025 7:56PM

3 जून 1947 को विभाजन की मंजूरी मिल गई थी। वहीं, 15 अगस्त को सत्ता हस्तांतरण किया जाना था। भारत को आजाद करने और नया राष्ट्र पाकिस्तान बनाने के लिए ब्रिटिश बेचैन थे। ब्रिटिश सरकार चाहती थी कि यह दोनों काम जल्द से जल्द निपटाया जाए। वहीं, पंडित नेहरू और मोहम्मद अली जिन्ना भी चाहते थे कि दोनों देश का जल्द से जल्द बंटवारा हो। पंजाब की स्थिति लगातार बिगड़ रही थी।

आज आपको एक ऐसे राज्य की कहानी बताएंगे जिसे भारत पाकिस्तान के विभाजन की वजह से सबसे ज्यादा नुकसान झेलना पड़ा। पंजाब भारत का अभिन्न अंग है और तलवार भुजा ने हमेशा भारत को विषैले तत्वों से बचाया है और समय-समय पर भारत को आध्यात्मिक मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया है। भारत और पाकिस्तान के विभाजन के वक्त पंजाब को सबसे ज्यादा असर झेलना पड़ा था। वर्ष 1947 में विभाजन के कारण मानव जाति के इतिहास में सबसे विनाशकारी विस्थापनों में से एक देखा गया। बंटवारे के दौरान भड़के दंगे और हिंसा में लाखों लोगों की जान चली गई। ऐसी भीषण त्रासदी थी, जिसमें करीब बीस लाख लोग मारे गए और डेढ़ करोड़ लोगों का पलायन हुआ था। किसी दौर में पंजाब का बार्डर अफगानिस्तान के बॉर्डर को टच करता था। लेकिन विभाजन के बाद पंजाब का एक छोटा सा हिस्सा ही हमारे पास रहा है। भारत के पंजाब प्रान्त को पश्चिमी पाकिस्तान के पंजाब प्रांत और भारत के पंजाब राज्य में बांट दिया गया। 

इसे भी पढ़ें: India-Pakistan Partition | जिन्ना के छोड़े गए सफेद कागज में ऐसा क्या था, हो गया भारत-पाक का बंटवारा | Matrubhoomi

पंजाब विभाजन से पहले 

पुराने वक्त में पंजाब के काफ अलग अलग नाम थे। जिनमें एक सप्तसिंधु था। जिसका अनुवाद 'सात नदियों की भूमि' है। सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, सतलज, ब्यास हैं जिन्हें भारत में सबसे पवित्र माना जाता है। बंटवारे से पहले पंजाब में 29 जिले थे। उनमें से 16 पाकिस्तान को मिले। बाकी 13 बचे भारत को मिले। 29 जिले अंबाला, जांलधर, लाहौर, रावलपिंडी, मुल्तान यानी पांच डिवीजन में बंटे हुए थे। हरेक डिलीजन में छह छह जिले थे। जबकि जालंधर में पांच जिले आते थे। बंटवारे के बाद लाहौर के दो जिले अमृतसर और गुरदासपुर भारत को मिला था। 

कैसे धर्म के आधार पर बंट गया पंजाब 

3 जून 1947 को विभाजन की मंजूरी मिल गई थी। वहीं, 15 अगस्त को सत्ता हस्तांतरण किया जाना था। भारत को आजाद करने और नया राष्ट्र पाकिस्तान बनाने के लिए ब्रिटिश बेचैन थे। ब्रिटिश सरकार चाहती थी कि यह दोनों काम जल्द से जल्द निपटाया जाए। वहीं, पंडित नेहरू और मोहम्मद अली जिन्ना भी चाहते थे कि दोनों देश का जल्द से जल्द बंटवारा हो। पंजाब की स्थिति लगातार बिगड़ रही थी। वहां से रोज सैकड़ों लोगों के मारे जाने की खबरें आ रही थीं। बंगाल की हालत भी कोई अलग नहीं थी। कई रियासतों ने विलय पर हस्ताक्षर कर दिए। बड़े पैमाने पर पंजाब और सिंध के इलाकों से भारत की ओर पलायन से खाद्यान्न की हालत बहुत खराब थी। 

लाहौर भारत का हिस्सा क्यों नहीं बन सका? 

एक ऐसा सच है कि वो अगर सही में सच हो जाता तो भारत और पाकिस्तान का नक्शा ही अलग अलग होता। आज अमृतसर पाकिस्तान में होता। सोचिए कि गोल्डन टेंपल के दर्शन के लिए आपको पाकिस्तान की इजाजत लेनी पड़ती। वहीं लाहौर की गलियों में हिंदुस्तानी घूमा करते। क्योंकि लाहौर भारत की झोली में आता। इतना ही नहीं पंजाब के कई महत्वपूर्ण शहर जैसे फिरोजपुर और गुरदासपुर भी पाकिस्तान में चले जाते। लेकिन ऐसा हो नहीं सका। अंग्रेजों की नीतियों ने भारत और पाकिस्तान को धर्म के नाम पर अलग करवाया। लेकिन जब धर्म के नाम पर भारत के विभाजन की बात हो रही थी तो उस वक्त सभी दिग्गज जानकार का मानना था कि ये लाहौर भारत के हिस्से में ही आएगा। आज लाहौर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की राजधानी है। करांची के बाद लाहौर पाकिस्तान का दूसरा सबसे बड़ा आबादी वाला शहर है। लाहौर एक ऐसा शहर है जिसका अपना ही ऐतिहासिक महत्व है। दरअसल, 17 अगस्त 1947 को आजादी मिले दो दिन हो चुके थे। लेकिन करोड़ों लोग हैरान और परेशान थे। उन्हें पता ही नहीं था कि उनका घर, शहर, मुहल्ला भारत में है या फिर पाकिस्तान में है। इसी दिन दोपहर 2 बजे रेड क्लिप लाइन का ऐलान हुआ यानी दो मुल्कों को बांटने वाली विभाजन रेखा। भारत और पाकिस्तान को बांटने वाली लाइन खिची जाती इससे पहले ही पाकिस्तान ने अमृतसर, फिरदौसपुर और गुरदासपुर पर अपना दावा कर रखा था। वहीं सबको लग रहा था कि लाहौर तो भारत का था ही। क्योंकि लाहौर में ज्यादातर आबादी सिखों और हिंदुओं की थी। लेकिन रेड क्लिप साहब के एक ख्याल ने उसे पाकिस्तान को दे दिया। 

भारत से बिल्कुल भी अंजान रेड क्लिफ ने खींच दी लकीरें 

जब लॉर्ड माउंटबेटन को ये कहा गया कि आपको एक मुल्क को दो हिस्सों में बांटना है। एक में हिंदू बहुल आबादी रहेगी और दूसरे में मुस्लिम बहुल आबादी रहेगी। माउंटबेटन ने ये काम अपने दोस्त रेडक्लिप को सौंप दी। सर सिरील रेडक्लिफ को भारत का मैप दिया गया और कहा गया कि अगले 10 से 12 दिनों में वो इस काम को कर डाले। कई शहर पाकिस्तान को दिए गए और कई को लेकर क्या तर्क दिए गए वो भी काफी रोचक हैं। भारत से बिल्कुल भी अंजान पेशे से वकील सिरील रेडक्लिफ ने बंटवारे की लकीरें खींचनी शुरू कर दी। यही कारण रहा कि बंटवारे के दौरान ऐसी कई गलतियां हुई कि कई स्थान इधर से उधर हो गए। फिर बंटवारे के बाद लाखों लोगों को जान भी गंवानी पड़ी। कहा जाता है कि रेडक्लिप खुद अपने काम से खुश नहीं थे। भारत से वापस लंदन जाने के बाद विभाजन से जुड़े सारे दस्तावेज और नक्शे को उन्होंने जला दिया था। बाद में भी उन्होंने इस मसले को लेकर ज्यादा बातें कभी नहीं की। 

सीमा निर्धारण में रेडक्लिफ की मनमानी 

कमीशन के सामने पंजाब और बंगाल के विभाजन का मुख्य आधार धार्मिक जनसंख्या थी। पंजाब में सिख आबादी और उनके तीर्थ स्थल पूरे पंजाब में फैले हुए थे। उनकी मांग थी कि उनके सारे तीर्थ स्थल भारत के हिस्से में आने वाले पूर्वी पंजाब में शामिल किए जाएं। उधर लीग की ओर से तत्कालीन पंजाब के अम्बाला डिवीजन के पांच जिलों अम्बाला,करनाल, रोहतक, हिसार को छोड़कर शेष पंजाब की मांग थी। रेडक्लिफ़ का फैसला चौंकाने वाला था। लाहौर में हिदू-सिख आबादी का बहुमत था लेकिन वह पाकिस्तान के हिस्से में गया। लाहौर को पाकिस्तान को दिए जाने का आधार रेडकिल्फ़ के ही शब्दों में मैंने पहले लाहौर हिंदुस्तान को दे दिया था। लेकिन फिर मुझे लगा कि मुसलमानों को पंजाब में कोई बड़ा शहर देना होगा, क्योंकि उनके पास राजधानी नही थी।

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़