India-Pakistan Partition | जिन्ना के छोड़े गए सफेद कागज में ऐसा क्या था, हो गया भारत-पाक का बंटवारा | Matrubhoomi

टवारे को 78 साल हो चुके हैं। लेकिन आज भी आपको लोग ये बहस करते हुए दिख जाएंगे कि बंटवारा हुआ वो सही हुआ या गलत। क्या सच में ऐसी कोई चीज हो सकती थी जो इस बंटवारे को रोक देती। इसका जिम्मेदार कौन था? जिस तरह से हमारे लिए जिन्ना विलेन है उसी तरीके से आप पाकिस्तान में जाकर बात करोगे तो नेहरू और महात्मा गांधी को गलत बताया जाता है।
ये मैला सा उजाला, ये रात की आहत सुबह
जिसका इंतजार था हमे ये वो सुबह तो नहीं
फैज अहमद फैज ने अपनी कविता में लिखा था। ये आजादी की सुबह की बात कर रहे थे। स्वतंत्रता दिवस जहां भारत के लिए एक तरफ जश्न मनाने वाली बात थी तो वहीं दूसरी तरफ देश का भयंकर बंटवारा भी हुआ था। बंटवारे के बारे में आप किसी से पूछोगे तो लोगों के पास कई सारी जबरदस्त कहानियां सुनाने को होती है। उनमें से ही एक व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी से निकलकर सामने आती है कि पंडित नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना और एडविना माउंटबेटन को लेकर है। ये तीनों लंदन के हैरिस कॉलेज में साथ पढ़े थे। इन तीनों के बीच एक लव ट्रांगल चल रहा था। फिर एडविना ने अपने पति लुईस माउंटबेटन से जाकर कहा कि भारत का विभाजन कर दो जिससे नेहरू और जिन्ना दोनों प्रधानमंत्री बन सके। हालंकि ये फैक्चुअल रूप से सरासर गलत है क्योंकि जिन्ना ने अपनी लॉ की पढ़ाई लिंकन इन 1892 में जब कि थी तो नेहरू महज 3 साल के थे। वहीं एडविना तो तब पैदा भी नहीं हुई थी। बहरहाल, व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के ज्ञान से निकलकर वास्तविकता की ओर चलते हैं। देश को आजादी मिल गई थी। लेकिन ऐसी क्या मजबूरी आ गई थी कि देश का विभाजन करना पड़ा। बड़े से बड़े दिग्गज इसे रोक क्यों नहीं पाए। बंटवारे को 78 साल हो चुके हैं। लेकिन आज भी आपको लोग ये बहस करते हुए दिख जाएंगे कि बंटवारा हुआ वो सही हुआ या गलत। क्या सच में ऐसी कोई चीज हो सकती थी जो इस बंटवारे को रोक देती। इसका जिम्मेदार कौन था? जिस तरह से हमारे लिए जिन्ना विलेन है उसी तरीके से आप पाकिस्तान में जाकर बात करोगे तो नेहरू और महात्मा गांधी को गलत बताया जाता है। कुछ का ये भी मानना है कि सरदार वल्लभ भाई पटेल या नेताजी बोस होते तो इस मुद्दे को वहीं पर सॉल्व कर लिया गया होता। बंटवारा नहीं होता तो वो खूनखराबा, जिसने 10 लाख से ज्यादा लोगों की जान ले ली वो भी नहीं होता। ऐतिहासिक किरदारों और घटनाओं को लेकर हमेशा अटकलें और अनुमान लगाई जाती रही हैं। अंग्रेजी का एक जुमला 'व्हाट इफ' यूं होता तो क्या होता? क्या 1947 में देश का बंटवारा रोका जा सकता था? पिछले 78 सालों से ये सवाल देश को कचोटता रहा है। ऐसे में एक एक डिटेल मैं आपके सामने रखूंगा। जिससे की अगली बार जब आपके सामने कोई बंटवारे की बात करे तो आपको सही तथ्यात्मक जानकारी हो।
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16 अगस्त 1946 की एक तारीख ने बंटवारे की हकीकत पर मुहर लगा दी
पन्नों में वर्षों का हिसाब सिमट जाता है और वर्षों का हिसाब रखने वाली शख्सियतें गजों में दफ्न हो जाती है। हिन्दुस्तान के इतिहास ने भी ऐसे ही कद्दावर नेता देखें हैं। जिनका असर आम लोगों के सिर चढ़कर बोलता था। मोहनदास करमचंद गांधी, पंडित नेहरू, सरदार पटेल और मोहम्मद अली जिन्ना। 16 अगस्त 1946 की एक तारीख हिन्दुस्तान की आजादी के इतिहास की ऐसी ही तारीख है जिसने बंटवारे की हकीकत पर मुहर लगा दी। मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में अपने स्वार्थ के लिए एक धड़े ने भारत को बांटने का दावा पेश कर दिया था। उनकी मांग थी पश्चिम के पेशावर से लेकर पंजाब के अमृतसर और कोलकाता समेत एक अलग राष्ट्र जो सिर्फ मुसलमानो के लिए बनेगा और जिसका नाम होगा पाकिस्तान। डा श्यामा प्रसाद मुखर्जी का एक देश, एक विधान, एक निशान और एक संविधान का नारा पूरे देश में गूंज रहा था। लेकिन मुस्लिम लीग की डायरेक्ट एक्शन डे की घोषणा ने पूरे देश को आग से खेलने पर मजबूर कर दिया था। जिन्ना ने कहा कि अगर समय पर बंगाल का सही फैसला नहीं मिला तो...हमें अपनी ताकत दिखानी पड़ेगी। भारत से हमें कोई लेना-देना नहीं। हमें तो पाकिस्तान चाहिए, स्वाधीन पाकिस्तान चाहे भारत को स्वाधीनता मिले या न मिले। गोली और बम की आवाज से कांप उठी थी भारत मां की धरती। पूर्वी बंगाल का नोआखाली जिला। मुस्लिम बहुल इस जिले में हिंदुओं का व्यापक कत्लेआम हुआ था। कलकत्ता में 72 घंटों के भीतर 6 हजार से अधिक लोग मारे गए थे। 20 हजार से अधिक घायल हो गए थे। 1 लाख से अधिक बेघर हो गए थे। इसे ग्रेट कलकत्ता किलिंग भी कहा जाता है।
पाकिस्तान पर मुहर लगवाने के लिए क्या-क्या हथकंडे अपनाए
2 जून 1947, नॉर्थ कोट, नई दिल्ली: जब मीटिंग के बाद जब जिन्ना उठे तो मेज पर सादा कागज छोड़ गए। उस कागज पर रॉकेट, टेनिस रैकेट, उड़ते हुए गुब्बारों की तस्वीर के साथ बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था- गवर्नर जनरल। मतलब साफ था कि जिन्ना को गवर्नर जनरल बनना था लेकिन भारत का नहीं बल्कि पाकिस्तान का गवर्नर जनरल बनना था। मीटिंग के बाद जिन्ना मेज पर सादा कागज छोड़ गए थे वो लॉर्ड माउंटबेटन द्वारा बुलाई गई थी। बैठक में माउंटबेटन के साथ कांग्रेस और मुस्लिम लीग के प्रतिनिधि के तौर पर मोहम्मद अली जिन्ना मौजूद थे। जाहिर था कि 2 जून 1947 की तारीख तक जिन्ना अपने भावी पदनाम के बारे में सोच चुके थे। जिन्ना को बखूबी पता था कि गवर्नर जनरल का पद उन्हें हिन्दुस्तान में नहीं मिल सकता। इसलिए इस कुर्सी तक पहुंचने के लिए जिन्ना पाकिस्तान बनाने की खूनी जिद पाल चुके थे।
जिन्ना ने मजहबी एजेंडे को मजबूती से थामा
गांधी जी भारत का बंटवारा किसी भी कीमत पर नहीं चाहते थे। दूसरी तरफ मुस्लिम लीग थी जो मुसलमानों के लिए अलग पाकिस्तान की मांग कर रही थी। भारतीयों को सत्ता सौंपने के उद्देश्य से 24 मार्च 1947 को ब्रिटिश सरकार ने कैबिनेट मिशन को दिल्ली भेजा। कैबिनेट मिशन ने कांग्रेस और लीग नेताओं से चर्चा शुरू की। उस वक्त समूचे हिन्दुस्तान में कांग्रेस का दबदबा था। महात्मा गांधी सबसे बड़े लीडर थे जिनके सहयोगी पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, मौलाना अबुल कलाम जैसे नेता। दूसरी तरफ मुस्लिम आबादी पर मुस्लिम लीग की बेशुमार पकड़ थी। मोहम्मद अली जिन्ना इसके सुप्रीम नेता था। 1940 के दशक में जिन्ना ने बहुत ही चालाकी के साथ अपना राजनीतिक भविष्य तैयार किया। उन्हें पता था कि कांग्रेस में उनका भविष्य नहीं है। क्योंकि मुस्लिम लीग की सांप्रदायिक राजनीति को गांधी जी कभी स्वीकार नहीं करेंगे। उन्होंने लॉजिक दिया कि बहुसंख्यक रूप से हिंदू हैं और चुनाव होंगे तो हिंदू जीतेगा। कानून भी हिंदू ही बनाएगा तो ऐसी सूरत में मुस्लिम कहां जाएंगे। इंडियन नेशनल कांग्रेस तो हिंदू पार्टी है। 6 % नेताओं को छोड़ दिया जाए तो सारे हिंदू हैं। जिन्ना ने मजहबी एजेंडे को मजबूती से थामा।
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क्या देश के विभाजन के लिए गांधी और नेहरू भी उतने ही जिम्मेदार थे, जितने जिन्ना?
स्टेनली वॉलपर्ट ने जिन्ना की जीवनी 'जिन्ना ऑफ़ पाकिस्तान' के अनुसार माउंटबेटन को गांधी जी ने जिन्ना को सरकार गठित करने का पहला मौका देने की बात कही। बीबीसी में किताब के हवाले से प्रकाशित किए गए संदर्भ के अनुसार गांधी ने माउंटबेटन के सामने जिन्ना को सरकार गठिक करने का पहला मौके दिए जाने की बात कही। अगर वह ये प्रस्ताव स्वीकार कर लें तो कांग्रेस ईमानदारी से खुल कर उनसे सहयोग की गारंटी दे बशर्ते जिन्ना की मंत्रिपरिषद भारतीय जनता के हित में काम करे। माउंटबेटन इस प्रस्ताव को देखकर चौंक गए। माउंटबेटन ने गांधी से पूछा कि इस पेशकश पर जिन्ना क्या कहेंगे? गांधी का जवाब था कि अगर आप उन्हें बताएंगे कि ये फॉर्मूला मैंने तैयार किया है तो उनका जवाब होगा 'उस धूर्त गांधी ने। बहरहाल, गांधी की ये पेशकश जिन्ना को कभी बताई ही नहीं गई। हां, लेकिन ये जरूर है कि माउंटबेटन ने इस मसले पर नेहरू से बात जरूर की थी। लेकिन नेहरू की प्रतिक्रिया इसको लेकर पूरी तरह नकारात्मक थी। स्टेनली वॉलपर्ट की किताब के अनुसार नेहरू को ये जानकर बड़ी ठेस लगी कि उनके महात्मा उनकी जगह क़ायद-ए-आज़म को प्रधानमंत्री बनाने के लिए तैयार हैं। गांधी जिन्ना को अच्छी तरह से समझते थे। वो जानते थे कि इस तरह का प्रस्ताव जिन्ना के अहम को कितना मीठा स्पर्श दे सकता है। लेकिन नेहरू ने माउंटबेटन से कहा कि ये सुझाव एकदम अव्यावहारिक है।
78 साल बाद भी हिंदू मुस्लिम एक नहीं वाली थ्योरी पर अटका पाकिस्तान
15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों ने इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट पर नई दिल्ली में रात के 12:00 बजे दस्तखत किए थे कई सदियों बाद भारत को आजादी मिली लेकिन बंटवारे के तौर पर इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी भारत की छाती पर खींची लकीर से दूसरी तरफ एक नया मुल्क पाकिस्तान बन गया देश के दो टुकड़े हो गए शुरुआती 2 साल तक पाकिस्तान में 15 अगस्त को ही स्वतंत्र दिवस मनाया गया लेकिन फिर इसे बदलकर 14 अगस्त कर दिया गया । लाशों के ढेर पर मुल्क का बंटवारा और पाकिस्तान के क़ायद-ए-आज़म बनने की सनक पाले जिन्ना ने पाकिस्तान तो बना दिया। लेकिन इसके बाद भी दो राष्ट्र सिद्धांत पर बना उनका मुल्क आज भी वहीं अटका पड़ा है। पाकिस्तान के जनरल हिन्दू और मुसलमान के बीच खाई पैदा करने वाला जहरीला बयान देते हैं। टू स्टेट थ्योरी की बात को 78 साल बाद भी दोहराते नजर आते हैं। वो कहते हैं कि हमारे पूर्वजों का मानना था कि हम हर तरह से हिंदुओं से अलग हैं। हमारा मजहब, रिवाज, परंपरा, सोच और मकसद सब अलग हैं। ये टू स्टेट सिद्धांत का आधार है। हम एक नहीं, बल्कि दो राष्ट्र हैं। मुनीर के इस विषैले और सांप्रदायिक बयान के बाद ही पहलगाम में आतंकवादियों धर्म पूछकर पर्यटकों का नरसंहार किया था।
भारत समृद्धि के नए आयाम लिख रहा, पाक बना आतंक का अड्डा
एक साथ आजाद हुए दोनों देशों के बीच वर्तमान समय में बहुत बड़ा अंतर है। एक तरफ भारत जो समृद्धि के नए आयाम लिख रहा है और दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर बढ़ रहा है। वहीं, पाकिस्तान आतंक का अड्डा बना हुआ है। भारत की इकोनॉमी से जुड़ी तीन रिपोर्ट आईं। तीनों में इस बात के लिए भारत की सराहना की गई है कि ग्लोबल स्तर पर अनिश्चितता के बावजूद इकोनॉमी अच्छा प्रदर्शन कर रही है। एक रिपोर्ट में भारत की विकास दर (India GDP growth 2025) का अनुमान भी बढ़ाया गया है। एक रिपोर्ट पाकिस्तान की इकोनॉमी पर भी आई है, जिसमें बताया गया है कि उसकी ग्रोथ रेट लक्ष्य से बहुत पीछे है। भारत की तुलना में पाकिस्तान की ग्रोथ रेट आधी भी नहीं है। भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना हुआ है। विश्व बैंक के 2024 के आंकड़े को देखें तो भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 3.88 ट्रिलियन डॉलर के करीब है, जो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था (केवल 0.37 ट्रिलियन डॉलर) के आकार से 10 गुना अधिक है।अर्थव्यवस्था के सभी पैमानों पर भारत अपने पड़ोसी पाकिस्तान से मीलों आगे है। देश का विदेशी मुद्रा भंडार 688 अरब डॉलर पर है। वहीं, पाकिस्तान के पास केवल 15 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है और आर्थिक पतन की कगार पर है।
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