Jan Gan Man: आतंकवाद के खिलाफ Zero-Tolerance Policy रखने वाले भारत में Mumbai Train Blasts के सारे आरोपी बरी कैसे हो गये?

Mumbai Train Blasts Verdict 2025
ANI

पीड़ितों के मनोविज्ञान पर प्रभाव की बात करें तो जो लोग मुंबई लोकल ट्रेन बम धमाकों में अपने घर के सदस्यों को या अपने स्वजन को इस आतंकवादी घटना में खो चुके हैं, उनके लिए यह फैसला निश्चित तौर पर भावनात्मक रूप से गहरा आघात है।

11 जुलाई 2006 की शाम मुंबई के उपनगरीय रेल नेटवर्क पर हुए श्रृंखलाबद्ध धमाकों ने न केवल 180 मासूम लोगों की जान ले ली थी, बल्कि पूरे देश को दहला कर रख दिया था। इस हमले को भारत के शहरी जीवन के ताने-बाने पर सीधा हमला माना गया। लेकिन लगभग दो दशकों तक चले मुकदमे के बाद बंबई उच्च न्यायालय ने सभी 12 आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। यह फैसला जहां कानूनी दृष्टि से न्यायपालिका के सिद्धांतों के अनुरूप है, वहीं समाज और पीड़ितों के मन में अनेक सवाल और पीड़ा छोड़ गया है।

पीड़ितों के मनोविज्ञान पर प्रभाव की बात करें तो जो लोग अपने घर के सदस्यों को या अपने स्वजन को इस आतंकवादी घटना में खो चुके हैं, उनके लिए यह फैसला निश्चित तौर पर भावनात्मक रूप से गहरा आघात है। वर्षों तक अदालतों के चक्कर लगाने के बाद, जब न्याय की उम्मीद दम तोड़ देती है, तो पीड़ित परिवारों के मन में यह भावना गहरी होती है कि ‘हमारा दुख कभी सुना ही नहीं गया।’ उनके लिए यह सिर्फ 12 लोगों के बरी होने का मामला नहीं, बल्कि अपने साथ हुई अन्याय की स्मृति को फिर से जीने का क्षण है। आम नागरिक के मन में यह अविश्वास भी पनपता है कि इतने बड़े आतंकी हमले में कोई दोषी सिद्ध नहीं हो पाया, तो क्या आतंकियों को पकड़ने और सबूत जुटाने की हमारी व्यवस्था इतनी कमजोर है?

इसे भी पढ़ें: मुंबई ट्रेन ब्लास्ट केस- हाई कोर्ट का फैसला जांच एजेंसी के लिए बड़ा झटका, पीड़ितों को कब मिलेगा न्याय?

वहीं दूसरी ओर, भारत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह बात दोहरा रहा है कि आतंकवाद के खिलाफ उसकी नीति ‘ज़ीरो टॉलरेंस’ वाली है। इस दृष्टि से देखा जाए तो यह फैसला वैश्विक स्तर पर भारत की उस कठोर छवि को आघात पहुंचाता है। सवाल यह उठता है कि यदि देश के सबसे बड़े आतंकी हमलों में से एक में हम किसी को दोषी नहीं ठहरा सके, तो दुनिया हमें आतंक के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ने वाले के रूप में कैसे देखेगी? इससे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान जैसे देशों को भारत के खिलाफ यह तर्क देने का अवसर मिलेगा कि भारत के आतंकवाद के आरोपों की बुनियाद ही मजबूत नहीं होती।

चूक कहां हुई? यदि इस पहलू पर गौर करें तो सबसे पहले यह समझना होगा कि न्यायालय का दायित्व केवल सबूतों के आधार पर फैसला देना है। इसलिए जब उच्च न्यायालय ने आरोपियों को बरी किया, तो यह स्वतः स्पष्ट है कि जांच और अभियोजन पक्ष कहीं न कहीं असफल रहे। सबसे बड़ी विफलता जांच एजेंसियों की रही। जांच की गुणवत्ता, सबूत जुटाने की कार्यप्रणाली और केस को मजबूत बनाने की प्रक्रिया में भारी चूक हुई। अदालत का फैसला दर्शा रहा है कि स्वीकार्य और सुसंगत सबूत नहीं रखे गये, जिससे अदालत को यह यकीन नहीं हो सका कि इन 12 व्यक्तियों ने ही यह कृत्य किया। तकनीकी तौर पर देखा जाए तो महाराष्ट्र एटीएस और अन्य एजेंसियों की पड़ताल में विरोधाभास और स्पष्टता की कमी रही। इसलिए गवाहों की गवाही और सबूतों के बीच मेल नहीं बैठा और अदालत में यह मामला टिक नहीं पाया।

इस फैसले से दो तरह के संदेश निकले हैं। पहला संदेश कानून के लिहाज से सकारात्मक है। यह संदेश है कि भारत में कानून किसी पूर्वाग्रह के आधार पर नहीं, केवल सबूतों के आधार पर चलता है। न्यायपालिका स्वतंत्र और निष्पक्ष है। यदि सबूत नहीं हैं, तो कोई भी कितना भी बड़ा अभियुक्त क्यों न हो, उसे दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

दूसरा संदेश व्यवस्था के लिहाज से नकारात्मक है। यह दर्शाता है कि हमारी जांच प्रणाली और अभियोजन प्रणाली अब भी उन मानकों तक नहीं पहुंच सकी, जो आतंक जैसे संवेदनशील मामलों में अपेक्षित हैं। इससे अपराधियों में यह विश्वास पनप सकता है कि भारत में कानून का शिकंजा ढीला है।

बहरहाल, मुंबई ट्रेन धमाकों में बंबई उच्च न्यायालय का फैसला कानूनी दृष्टि से भले ही उचित हो, लेकिन यह भारत की आतंकी विरोधी रणनीति और न्याय-व्यवस्था की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े करता है। भारत को यदि आतंक के विरुद्ध अपनी अंतरराष्ट्रीय साख को मजबूत रखना है, तो केवल बयानबाज़ी से नहीं, बल्कि सटीक, तकनीकी रूप से मजबूत और विश्वसनीय जांच-पड़ताल और अभियोजन प्रणाली खड़ी करनी होगी। इस प्रकरण ने यह भी स्पष्ट किया है कि आतंक के विरुद्ध युद्ध केवल राजनीति या विदेश नीति का प्रश्न नहीं, बल्कि पुलिसिंग, जांच और न्यायिक तैयारी के स्तर पर भी हमारी तैयारी की परीक्षा है।

अब जबकि महाराष्ट्र सरकार ने बंबई उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का रुख किया है तो देखना होगा कि शीर्ष न्यायालय का रुख क्या रहता है। उच्चतम न्यायालय ने मुंबई ट्रेन बम विस्फोट मामले में 12 आरोपियों को बरी करने के बंबई उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार की याचिका पर 24 जुलाई को सुनवाई करने पर सहमति जताई है। देखा जाये तो अब महाराष्ट्र सरकार के कंधों पर पहले से ज्यादा बड़ी जिम्मेदारी आ गयी है क्योंकि उसे 180 मृतकों के परिजनों की उम्मीद पर तो खरा उतरना ही है साथ ही आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक स्तर पर मोर्चा खोल चुके भारत की साख भी बचानी है।

All the updates here:

अन्य न्यूज़