दक्षिण एशिया के बाहर भी भारत की ऐक्ट ईस्ट, पड़ोस प्रथम नीतियों का प्रभाव: जयशंकर

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जयशंकर ने कहा, हमने वास्तव में इस जटिल परियोजना के साथ संघर्ष किया है, लेकिन हम इसे पूरा करने के लिए पहले से कहीं अधिक दृढ़ हैं। इस परियोजना के मार्च 2023 में चालू होने की उम्मीद है और यह समुद्र के माध्यम से म्यांमा के रखाइन प्रांत स्थित सित्तवे बंदरगाह से पूर्वी भारतीय बंदरगाह कोलकाता को जोड़ती है।

गुवाहाटी। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शनिवार को कहा कि ऐक्ट ईस्ट और पड़ोस प्रथम नीतियों के एक साथ आने से भारत के लिए दक्षिण एशिया की सीमाओं से परे भी व्यापक प्रभाव होगा। जयशंकर ने यहां ‘नैचुरल एलाइज इन डेवलपमेंट एंड इंटरडिपेंडेंस (एनएडीआई)’ सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि इसका अहसास बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में बिम्सटेक की क्षमता से स्पष्ट है। उन्होंने कहा कि म्यांमा के माध्यम से भूमि संपर्क और बांग्लादेश के जरिये समुद्री संपर्क वियतनाम तथा फिलीपीन के लिए सभी रास्ते खोल देगा। विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘एक बार जब यह वाणिज्यिक स्तर पर व्यवहार्य हो जाएगा तो यह महाद्वीप के लिए व्यापक परिणामों के साथ एक पूर्व-पश्चिम पहलू का निर्माण करेगा।’’ उन्होंने कहा कि यह न केवल आसियान देशों और जापान के साथ साझेदारी निर्माण करेगा, बल्कि निर्माणाधीन हिंद-प्रशांत आर्थिक अवसंरचना में भी वास्तव में फर्क लाएगा। जयशंकर ने कहा, ‘‘यदि हम राजनीति और अर्थशास्त्र को सही कर सके तो यह निश्चित रूप से भूगोल पर जीत पाने और इतिहास को फिर से लिखने की हमारी क्षमता के दायरे में है।’’ उन्होंने कहा कि आसियान देशों और उससे आगे तक पहुंच में सुधार के लिए बांग्लादेश, नेपाल, भूटान तथा म्यांमा के साथ संपर्क बढ़ाकर इस दृष्टिकोण को सफलतापूर्वक साकार किया जा सकता है। विदेश मंत्री ने कहा कि 1965 से निष्क्रिय पड़े छह ऐतिहासिक सीमा पार रेल संपर्कों की बहाली बांग्लादेश, विशेषकर पूर्वोत्तर के साथ संपर्क की दिशा में एक बड़ा कदम है। जयशंकर ने बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और म्यांमा में चल रहीं विभिन्न परियोजनाओं पर प्रकाश डाला जिससे इन देशों के साथ विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग की शुरुआत हुई है। उन्होंने कहा कि म्यांमा की ओर से कलादान मल्टी मोडल ट्रांजिट परिवहन परियोजना का कार्यान्वयन इसकी स्थलाकृति और उग्रवाद के कारण सबसे कठिन है। 

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जयशंकर ने कहा, हमने वास्तव में इस जटिल परियोजना के साथ संघर्ष किया है, लेकिन हम इसे पूरा करने के लिए पहले से कहीं अधिक दृढ़ हैं। इस परियोजना के मार्च 2023 में चालू होने की उम्मीद है और यह समुद्र के माध्यम से म्यांमा के रखाइन प्रांत स्थित सित्तवे बंदरगाह से पूर्वी भारतीय बंदरगाह कोलकाता को जोड़ती है। उन्होंने कहा, हम भूटान और भारत के बीच क्रॉस-कंट्री रेल लाइन बनाने, असम से होकर गुजरने और नेपाल तथा भूटान के प्रतिष्ठित धार्मिक स्थलों को सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से जोड़ने के लिए बौद्ध सर्किट का विस्तार करने की व्यवहार्यता पर भी विचार कर रहे हैं... ये सभी परियोजनाएं उम्मीद से परिपूर्ण भविष्य का व्यावहारिक उदाहरण हैं। जयशंकर ने कहा कि ये प्रयास सचमुच आसियान को करीब लाएंगे और यदि पूर्वोत्तर, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और म्यांमार अधिक गहराई से जुड़ते हैं, तो उनमें से प्रत्येक को अधिक पहुंच, अवसर, संसाधनों और बाजारों का लाभ मिलेगा। भारत-जापान ऐक्ट ईस्ट फोरम को 2017 में सभी हितधारकों को एक साथ लाने और जापानी सहायता से शुरू की जा रही परियोजनाओं पर समन्वय करने के लिए एक मंच के रूप में शुरू किया गया था। जयशंकर ने कहा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्वोत्तर को जो प्राथमिकता दी है, उसे देखते हुए हमें विभिन्न क्षेत्रों में अपने सबसे भरोसेमंद वैश्विक भागीदारों के साथ काम करना चाहिए। उन्होंने गुवाहाटी के स्थानीय महत्व पर प्रकाश डाला और कहा कि यह न केवल क्षेत्र तथा पड़ोसी देशों के लिए बल्कि इसके बाहर के भौगोलिक क्षेत्रों के लिए भी बहुत बड़ी संभावना रखता है।

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विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘अवरोध हैं और इसमें कोई संदेह नहीं है कि इन्हें स्थलाकृति की भौतिक बाधाओं की तरह दूर करने की आवश्यकता है, जिन्हें इंजीनियरिंग और मानव कौशल से सबसे अच्छी तरह हल किया जा सकता है। मानवीय बाधाएं हैं, जो अतीत में किए गए कुछ विकल्पों से उत्पन्न हुईं। क्षेत्रीय सहयोग के साझा लाभों को साकार करने वाले दृष्टिकोण से इनका सबसे अच्छा समाधान होता है।’’ कनेक्टिविटी के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि यह सड़कों और जलमार्गों के साथ शुरू हो सकती है, लेकिन अब पावर ग्रिड और डेटा कॉरिडोर, शिक्षा और पर्यटन, ऊर्जा प्रवाह और सांस्कृतिक संदर्भ के साथ भी इसकी अवधारणा है। जयशंकर ने कहा, ‘‘वास्तव में, जो कुछ भी जोड़ता है वह कनेक्टिविटी है। साक्ष्य बताते हैं कि हम अपने पड़ोसियों के साथ जुड़ने में महत्वपूर्ण प्रगति करने में सफल रहे हैं। पूर्वोत्तर से जुड़ी एक भारतीय मुख्य भूमि जो हमारे पड़ोसियों से भी जुड़ी है, का मतलब क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था का पूर्ण परिवर्तन होगा।’’ उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर क्षेत्र को केवल एक सीमा के रूप में मानने के बजाय, अपने आप में एक केंद्र (हब) के रूप में माना जाएगा और इसके संसाधनों तथा कौशल को बड़े और तैयार बाजार मिलेंगे।

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