Shaurya Path: Manipur Violence, Kosovo-Serbia, Russia-Ukraine, India-China, Pakistan से जुड़े मुद्दों पर Brigadier DS Tripathi (R) से बातचीत

Brigadier DS Tripathi
Prabhasakshi

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि मणिपुर के हालात को देखते हुए केंद्र सरकार ने तत्परता से काम किया वरना नुकसान ज्यादा बड़ा हो सकता था। सेना की तत्काल तैनाती करने से हालात संभल गये। थलसेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे ने भी पिछले सप्ताह मणिपुर का दो दिवसीय दौरा कर हालात की समीक्षा की थी।

नमस्कार प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह मणिपुर के हालात की, यूरोप में एक और युद्ध की आहट, रूस-यूक्रेन युद्ध के भीषण रूप लेने, भारत-चीन संबंधों की और पाकिस्तान के हालात पर ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) से बातचीत की गयी। पेश है विस्तृत साक्षात्कार-

प्रश्न-1. किसी राज्य में स्थिति बिगड़ने पर सेना को ही क्यों बुलाया जाता है। मणिपुर में भी सेना तैनात है। हाल में सेनाध्यक्ष ने भी वहां का दौरा किया और अब सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने कहा है कि मणिपुर में चुनौतियां खत्म नहीं हुई हैं हालांकि उन्होंने कहा है कि मौजूदा स्थिति का उग्रवाद से संबंध नहीं है। इसे कैसे देखते हैं आप?

उत्तर- देखा जाये तो जब भी किसी राज्य में कानून व्यवस्था के हालात बेकाबू हो जाते हैं, प्राकृतिक आपदा आ जाती है या अन्य किसी प्रकार का संकट आता है तो सेना को ही राहत कार्यों के लिए बुलाया जाता है। दरअसल सेना को हर तरह के हालात से निबटने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है और सेना के पास सारे संसाधन भी होते हैं इसलिए सेना को किसी भी राज्य में स्थिति के बिगड़ने पर राज्य सरकार के आग्रह पर केंद्र द्वारा भेजा जाता है। लेकिन यहां सवाल राज्य सरकार की खुफिया और सुरक्षा इकाइयों पर भी है कि क्यों वह पहले से हालात बिगड़ने का अनुमान नहीं लगा पाते। इसके अलावा, मणिपुर के हालात को देखते हुए केंद्र सरकार ने तत्परता से काम किया वरना नुकसान ज्यादा बड़ा हो सकता था। सेना की तत्काल तैनाती करने से हालात संभल गये। थलसेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे ने भी पिछले सप्ताह मणिपुर का दो दिवसीय दौरा कर हालात की समीक्षा की थी। सेना की पूर्वी कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ लेफ्टिनेंट जनरल राणा प्रताप कलिता के साथ सेनाध्यक्ष ने मणिपुर में जारी जातीय झड़पों की पृष्ठभूमि में जमीनी स्थिति की समीक्षा की थी। उन्होंने राज्यपाल, मुख्यमंत्री और सुरक्षा सलाहकार से मुलाकात के अलावा स्थिति की जानकारी लेने के लिए विभिन्न इलाकों का दौरा किया और सैनिकों से भी बात की। सेना ने इसके अलावा कुछ गांवों में अभियान चलाकर हथियार भी बरामद किए। दरअसल यह सामने आ रहा था कि विभिन्न समुदाय आग्नेयास्त्रों से एक-दूसरे पर हमला कर रहे हैं। कुछ मामलों में लोगों की हत्या की जा रही है...अचानक से हथियारों के आने से पूरी शांति प्रक्रिया में देरी हो रही थी इसलिए छापा मारा गया। सेना ने इसके अलावा राजमार्गों की रक्षा की ताकि वहां कोई अप्रिय घटना न हो क्योंकि करीब 250 ट्रक हर दिन इसका इस्तेमाल करते हैं और आवश्यक सामान लेकर यहां से गुजरते हैं।

प्रमुख रक्षा अध्यक्ष (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने भी कहा है कि मणिपुर में चुनौतियां खत्म नहीं हुई हैं और उम्मीद है कि कुछ समय में चीजें सही हो जाएंगी। जनरल चौहान ने सही कहा है कि पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में मौजूदा स्थिति का उग्रवाद से संबंध नहीं है। उन्होंने वह कारण भी बताया है कि क्यों मणिपुर से पूर्व में सेना हटाई गयी थी। सीडीएस ने बताया है कि मणिपुर में 2020 से पहले सेना, असम राइफल्स तैनात थी। चूंकि उत्तरी सीमाओं से संबंधित चुनौतियां कहीं अधिक थीं, इसलिए हमने सेना को हटा लिया। चूंकि उग्रवाद से उपजी स्थिति सामान्य हो गई थी, इसलिए हमने ऐसा किया। इस समय मणिपुर में सेना समस्या के समाधान के लिए राज्य सरकार की मदद कर रही है। सशस्त्र बलों और असम राइफल्स ने वहां उत्कृष्ट काम किया है और बड़ी संख्या में लोगों की जान बचाई है। सीडीएस ने कहा है कि उम्मीद है कि जल्द समाधान निकलेगा और वहां सरकार सीएपीएफ (केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल) आदि की मदद से काम कर पाएगी।

सरकार ने इसके अलावा मणिपुर में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) में महानिरीक्षक (आईजी) राजीव सिंह को हिंसा प्रभावित राज्य मणिपुर भेजा है। भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के वरिष्ठ अधिकारी राजीव सिंह को राज्य की मौजूदा सुरक्षा स्थिति को संभालने के लिए किसी महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त किया जा सकता है। केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी आदेश के मुताबिक उनकी नियुक्ति तीन साल की अवधि के लिए होगी। इससे पहले, पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में तीन मई को हिंसा भड़कने के तुरंत बाद केंद्र सरकार ने सीआरपीएफ के पूर्व प्रमुख कुलदीप सिंह को मणिपुर सरकार का सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया था।

इसके अलावा, खुद केंद्रीय गृह मंत्री ने मणिपुर का तीन दिवसीय दौरा कर हालात की समीक्षा की, मृतकों के लिए मुआवजे का ऐलान किया और तमाम प्रतिनिधिमंडलों के साथ बैठक कर उनकी बात सुनी और समस्याओं का समाधान किया और सर्वदलीय बैठक कर सभी दलों के सुझावों को भी सुना। इसके अलावा गृह मंत्री ने सीमाई क्षेत्रों का दौरा कर भी वहां के लोगों की समस्याओं को सुना। यह सब दर्शाता है कि मणिपुर के हालात को लेकर केंद्र सरकार बहुत गंभीर है और उसका प्रयास है कि किसी भी सूरत में मणिपुर पुरानी स्थिति में नहीं जाये।

प्रश्न-2. क्या यूरोप में एक और युद्ध की आहट देखी जा रही है? जिस तरह कोसोवो में नाटो के सैनिकों की पिटाई हुई है, वह क्या दर्शाता है? इसके अलावा जापान में संपर्क कर्यालय खोलने जा रहे नाटो के इस कदम को क्या एशिया के सुरक्षा तंत्र में यूरोपीय दखल नहीं माना जाना चाहिए?

उत्तर- जहां तक एशिया के सुरक्षा तंत्र में यूरोपीय दखल की बात है तो इस पर विवाद होना तय है। उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) की हिंद-प्रशांत क्षेत्र में मौजूदगी ऐसा कदम है जो क्षेत्रीय संघर्ष तथा तनाव को बढ़ाएगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि नाटो को यूरोपीय उपनिवेशवाद तथा साम्राज्यवाद के उसके इतिहास से अलग नहीं किया जा सकता, जिसने आधुनिक एशिया को आकार दिया तथा आज वह चीनी राष्ट्रवाद में अहम भूमिका निभाता है। नाटो ने 2022 में घोषणा की थी कि चीन सहयोगियों के ‘‘हितों, सुरक्षा तथा मूल्यों’’ के लिए ‘‘चुनौती’’ है। अब हाल में नाटो ने तर्क दिया कि यू्क्रेन के खिलाफ युद्ध में चीन का रूस को संभावित सहयोग, चीन को यूरोप के लिए सैन्य खतरा बनाता है। अब नाटो जापान में एक संपर्क कर्यालय खोल रहा है और यह जापान, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड तथा दक्षिण कोरिया के साथ साझेदार है। यह एशिया के सुरक्षा तंत्र में यूरोपीय दखल को गहरा करने का पहला कदम हो सकता है। जापान का तर्क है कि यूक्रेन युद्ध ने दुनिया को अस्थिर कर दिया है और उसने चीन को रोकने के लिए नाटो को हिंद प्रशांत में आमंत्रित किया है। हालांकि नाटो पर गैर पश्चिमी देशों में ज्यादा भरोसा नहीं किया जाता।

देखा जाये तो शीत युद्ध की समाप्ति के बाद से नाटो ने अमेरिकी शक्ति के विस्तार की तरह काम किया है। कोसोवो और सर्बिया पर 1999 में नाटो की बमबारी ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर का उल्लंघन किया। अफगानिस्तान में नाटो के हस्तक्षेप को संयुक्त राष्ट्र द्वारा अधिकृत किया गया था, लेकिन इसने इराक पर अवैध और विनाशकारी आक्रमण में अमेरिका की सहायता की। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने भी लीबिया में नाटो के हस्तक्षेप को हरी झंडी दे दी लेकिन नाटो के सदस्य देशों ने उत्तरी अफ्रीकी देश में अपने राजनीतिक और आर्थिक उद्देश्यों को बढ़ाने के लिए उस प्रस्ताव की शर्तों का उल्लंघन किया। देखा जाये तो बहुत कम देश यूक्रेन पर रूस के आक्रमण का समर्थन करते हैं।

दूसरी ओर कोसोवो में सर्बिया के प्रदर्शनकारियों के हमले में नाटो के शांतिरक्षक सैनिकों के घायल होने की खबर की बात करें तो यह विवाद इसलिए खड़ा हुआ क्योंकि नाटो ने फैसला किया है कि वह 700 अतिरिक्त सैनिकों को भेजेगा। फिलहाल नाटो के 3800 शांतिरक्षक सैनिक कोसोवो में तैनात हैं। इसके चलते सर्बिया ने अपनी सेना को सर्वोच्च अलर्ट पर कर दिया है। दरअसल, कोसोवो में 1998 से ही विवाद चल रहा है जब जातीय अल्बानी विद्रोहियों ने सर्बिया के शासन के खिलाफ विद्रोह कर दिया था। इस विद्रोह के खिलाफ उस समय सर्बिया ने बहुत क्रूर अभियान चलाया था जिसमें 13 हजार से ज्यादा लोग मारे गये थे। बताया जाता है कि मारे गये लोगों में ज्यादातर अल्बानिया के नागरिक थे। इस घटनाक्रम के बाद नाटो ने 1999 में हस्तक्षेप किया और सर्बिया को कोसोवो के इलाके से पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया। इसके बाद वहां पर शांतिरक्षक सैनिकों की तैनाती की गई। सर्बिया ने कोसोवो को देश के रूप में मान्यता देने से इंकार कर दिया है। कोसोवो में विवाद इसलिए भी होता रहता है क्योंकि अल्बानियाई लोगों की बहुलता होने के बावजूद देश के उत्तरी इलाके में बड़ी संख्या में सर्बिया मूल के लोग भी रहते हैं। नया विवाद तब शुरू हुआ जब एक स्थानीय चुनाव में अल्बानिया मूल का व्यक्ति चुन लिया गया। इस चुनाव का सर्बिया मूल के लोगों ने बहिष्कार किया था। जब निर्वाचित प्रतिनिधि स्थानीय निकाय की इमारत में घुसे तो सर्बिया के लोगों ने तगड़ा विरोध किया। इसके बाद कोसोवो पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े जिससे भगदड़ मच गयी। यहां यह जानना भी जरूरी है कि सर्बिया को चीन और रूस का पूरा समर्थन है। यूक्रेन के खिलाफ लड़ाई में सर्बिया रूस के साथ खड़ा है। हाल ही में इस प्रकार की भी रिपोर्टें आईं कि चीन ने कई बड़े घातक हथियार सर्बिया को दिये हैं।

प्रश्न-3. रूस और यूक्रेन युद्ध गंभीर रूप लेता जा रहा है क्योंकि हमले अब मास्को तक पहुँचने लग गये हैं। इसे कैसे देखते हैं आप?

उत्तर- रूस और यूक्रेन युद्ध सचमुच अब गंभीर रूप लेता जा रहा है क्योंकि रूस किसी भी कीमत पर यह बर्दाश्त नहीं करेगा कि विरोधी के ड्रोन मास्को या अन्य किसी रूसी इलाके तक पहुँचें और नुकसान पहुँचाएं। यूक्रेन अब जिस तरह से युद्ध को संचालित कर रहा है उससे व्यक्तिगत तौर पर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की प्रतिष्ठा भी दांव पर लग गयी है। क्योंकि रूस पर होने वाला हर हमला या पलटवार पुतिन की शक्ति को चुनौती होता है। वैसे हाल में जिस तरह यूक्रेन लगभग शांत बैठा था और उसके राष्ट्रपति वोलोदमीर जेलेंस्की विदेशी दौरों के जरिये मदद एकत्रित करने और अपने सैनिकों को विदेशों में प्रशिक्षण दिलवाने के अभियान पर लगे हुए थे उससे लगता है कि यूक्रेन ने रूस पर बड़े पलटवार से पहले पूरी तैयारी कर ली है। लेकिन यहां खतरा परमाणु बम को लेकर है। दुनिया को डर है कि कहीं पुतिन एक बार में युद्ध खत्म करने के लिए परमाणु हमला ना कर दें इसलिए संयुक्त राष्ट्र परमाणु प्रमुख ने रूस और यूक्रेन से परमाणु संयंत्रों पर हमला प्रतिबंधित करने की भी अपील की है।

देखा जाये तो यूक्रेन और रूस के बीच संघर्ष के समाधान की अभी उम्मीद करना जल्दबाजी होगी, क्योंकि वर्तमान में अनाज गलियारे, परमाणु मुद्दों और युद्ध बंदियों के आदान-प्रदान से संबंधित मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। रूस जिस प्रकार कीव पर हमला कर रहा है वह दर्शा रहा है कि यूक्रेन ने ज्यादा चुनौती पेश की तो पुतिन अपनी साख बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।

प्रश्न-4. माना जा रहा था कि एससीओ शिखर सम्मेलन के लिए चीन और रूस के राष्ट्रपति तथा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री भारत आयेंगे लेकिन संभवतः रिश्तों में तनाव के कारण यह बैठक अब ऑनलाइन होगी। इस बीच सीडीएस ने कहा है कि उत्तरी सीमा पर पीएलए की लगातार तैनाती एक चुनौती बनी हुई है। इसे कैसे देखते हैं आप? चीन से जुड़ा एक और सवाल यह है कि चीन ने नए मानवयुक्त अंतरिक्ष यान का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण कर पहली बार आम नागरिक को वहां भेजा है साथ ही चीन ने कहा है कि वह 2030 तक अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर भेजेगा। अंतरिक्ष में चीन की बढ़ती ताकत हमारे लिये कितना बड़ा खतरा है?

उत्तर- चीन और पाकिस्तान, दोनों ही देशों के साथ भारत के रिश्ते तनावपूर्ण चल रहे हैं और चीन के साथ हालिया द्विपक्षीय बैठकों के बावजूद दोनों देशों के बीच कई मुद्दों पर गतिरोध बना हुआ है। इसके अलावा भारत की ओर से जी-20 बैठकों का आयोजन अरुणाचल प्रदेश और कश्मीर में किये जाने पर चीन और पाकिस्तान की ओर से जतायी गयी आपत्तियों को जिस तरह भारत ने खारिज करते हुए कड़ी प्रतिक्रिया जताई थी उससे भी संबंधों में तनाव बढ़ा है। यही नहीं, एससीओ विदेश मंत्रियों की बैठक के दौरान पाकिस्तान के विदेश मंत्री को जिस तरह भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने खरी-खरी सुनाई थी उसको लेकर भी पाकिस्तान बुरी तरह चिढ़ा हुआ है। इसके अलावा यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में जिस तरह नये मोड़ सामने आ रहे हैं उसको देखते हुए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी शायद तत्काल भारत यात्रा से बचना चाहते थे। इसी बात को देखते हुए एससीओ शिखर सम्मेलन में कई बड़े नेताओं की भागीदारी को लेकर संशय के बादल दिखने लगे थे और आखिरकार आशंकाएं सच साबित हो गयी हैं क्योंकि भारत अब चार जुलाई को डिजिटल तरीके से शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के वार्षिक शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा।

दूसरी ओर, दोनों देशों के संबंधों संबंधी ताजा खबरों की बात करें तो आपको बता दें कि भारत और चीन ने प्रत्यक्ष राजनयिक वार्ता की है और इस दौरान पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर गतिरोध के अन्य बिंदुओं से सैनिकों के पीछे हटने के प्रस्ताव पर ‘स्पष्ट और खुले’ तरीके से चर्चा हुई। इस बारे में भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा है कि शांति और सद्भाव की बहाली द्विपक्षीय संबंधों के लिए अनुकूल स्थिति तैयार करने में मदद करेगी और इस उद्देश्य के लिए दोनों पक्ष जल्द से जल्द अगले दौर की सैन्य वार्ता आयोजित करने पर सहमत हुए हैं। यह बैठक भारत-चीन सीमा मामलों पर परामर्श और समन्वय के कार्य तंत्र ढांचे (डब्ल्यूएमसीसी) के तहत हुई। विदेश मंत्रालय ने कहा है कि दोनों पक्षों ने भारत-चीन सीमा के पश्चिमी क्षेत्र में एलएसी पर हालात की समीक्षा की और बाकी क्षेत्रों से पीछे हटने के प्रस्ताव पर स्पष्ट और खुले रूप से चर्चा की।

जहां तक अंतरिक्ष में चीन की कामयाबी की बात है तो उसमें कोई दो राय नहीं कि वह लगातार आगे बढ़ रहा है। चीन ने मानवयुक्त अंतरिक्ष यान शेनझोउ-16 का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया और अपने अंतरिक्ष स्टेशन में मिशन के लिए पहली बार एक आम नागरिक सहित तीन अंतरिक्ष यात्रियों को रवाना किया। इसे चीन के महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए एक और बड़ा कदम माना जा रहा है। अंतरिक्ष केंद्र में मौजूद चालक दल को बदलने के लिए इस मिशन को संचालित किया जा रहा है। चीन ने पहली बार अंतरिक्ष केंद्र के लिए एक आम नागरिक को भेजा है, अन्यथा सैन्य कर्मी ही इस तरह के अभियान पर जाते रहे हैं। ऐसा दूसरी बार हुआ है कि अंतरिक्ष की कक्षा में छह चीनी अंतरिक्ष यात्री एक साथ जमा हुए। बीजिंग में बेइहांग विश्वविद्यालय के प्रोफेसर गुई हाइचाओ इन तीन अंतरिक्ष यात्रियों में शामिल हैं जिन्हें ‘पेलोड’ विशेषज्ञ माना जाता है। अन्य अंतरिक्ष यात्रियों में मिशन के कमांडर जिंग हैपेंग हैं, जिन्होंने रिकॉर्ड चौथी बार अंतरिक्ष में जाने वाले पहले चीनी अंतरिक्ष यात्री बनकर इतिहास रचा है। वहीं अंतरिक्ष यात्री उड़ान इंजीनियर झू यांगझू अंतरिक्ष की अपनी पहली यात्रा पर हैं। इसके साथ ही चीन ने पश्चिमी देशों के साथ अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा के बीच वैज्ञानिक अन्वेषण के लिए 2030 तक चंद्रमा पर मानव मिशन भेजने की योजना की घोषणा की है। ‘चाइना मैन्ड स्पेस एजेंसी’ (सीएमएसए) के उपनिदेशक लिन शिकियांग के हवाले से चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने कहा कि कुल मिलाकर लक्ष्य 2030 तक चंद्रमा पर चीन के पहले मानव मिशन को भेजना और चंद्र वैज्ञानिक अन्वेषण तथा संबंधित तकनीकी प्रयोग करना है। यह भी ध्यान रखने की बात है कि चीन ने चंद्रमा पर अपना मानव मिशन भेजने की घोषणा ऐसे समय की है जब अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का लक्ष्य जमे हुए पानी के संबंध में दक्षिणी ध्रुव पर अन्वेषण के लिए 2025 तक चंद्रमा पर दूसरा मानवयुक्त मिशन भेजने का है। चीन की चालों को देखते हुए भारत को भी अपना अंतरिक्ष कार्यक्रम तेजी से आगे बढ़ाने की जरूरत है क्योंकि भविष्य की लड़ाइयां आमने सामने नहीं बल्कि साइबर और अंतरिक्ष क्षेत्र में ही लड़ी जाएंगी।

जहां तक चीन के साथ संबंधों को लेकर सीडीएस जनरल अनिल चौहान के बयान की बात है तो उन्होंने सही कहा है कि भारत की उत्तरी सीमा पर चीन की ‘पीपुल्स लिबरेशन आर्मी’ (पीएलए) की लगातार तैनाती एक ‘चुनौती’ है। हालांकि सशस्त्र बल नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर देश के दावों की वैधता को कायम रखने को प्रतिबद्ध हैं। पुणे स्थित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) की 144वीं पाठ्यक्रम के पासिंग आउट परेड को संबोधित करते हुए जनरल चौहान ने कहा है कि सशस्त्र बल न केवल निकट पड़ोस में, बल्कि विस्तारित पड़ोस में भी शांति और स्थिरता कायम रखने में रचनात्मक भूमिका निभाने को लेकर प्रतिबद्ध हैं। 

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बाद में संवाददाताओं से बातचीत में सीडीएस ने कहा कि उत्तरी सीमा पर पीएलए की तैनाती दिन-ब-दिन नहीं बढ़ रही है और उसके सैनिकों की संख्या उतनी ही है, जितनी 2020 में थी। इसलिए वहां चुनौती है और सशस्त्र बल वे सभी कदम उठा रहे हैं, ताकि कोई प्रतिकूल स्थिति उत्पन्न नहीं हो। सीडीएस ने बताया है कि हम डेमचोक और डेपसांग को छोड़कर सभी स्थानों को वापस पाने में सफल रहे हैं। वार्ता जारी है। उम्मीद है कि वार्ता के नतीजे आएंगे, हम आशान्वित हैं। जनरल चौहान ने कहा है कि इन सब के पीछे का विचार यह है कि हमें दावा रेखा की वैधता को बनाए रखने में सक्षम होना चाहिए। हमें उन इलाकों में गश्त करने में सक्षम होना चाहिए, जहां पर वर्ष 2020 में संकट शुरू होने से पहले वास्तव में (गश्त) करते थे। सीडीएस चौहान ने कहा कि सीमा विवाद का समाधान अलग चीज है, लेकिन अभी समय अपने दावे वाली रेखा के पास जाना, किसी तरह का यथास्थिति कायम करने का है। उन्होंने कहा कि जब तक वह स्थिति नहीं बनती, सीमा पर लगातार निगरानी रखने की जरूरत है, साथ ही यह भी सुनिश्चित करना है कि ऐसा करते समय हम सीमा पर कोई गैर जरूरी संकट पैदा नहीं करें।

इसके अलावा, इस समय सेनाओं के समक्ष कितनी चुनौतियां हैं इसके लिए सीडीएस चौहान के उस बयान पर भी गौर करना चाहिए जिसमें उन्होंने कहा है कि हम ऐसे समय में रह रहे हैं जब वैश्विक सुरक्षा अपनी बेहतरीन अवस्था में नहीं है और अंतरराष्ट्रीय भू राजनीति व्यवस्था में अनिश्चितता है। यूरोप में युद्ध चल रहा है, हमारी उत्तरी सीमा पर पीएलए की लगातार तैनाती है, हमारे पड़ोसी देशों में राजनीतिक और आर्थिक उथल-पुथल है। ये सभी भारतीय सेना के लिये अलग तरह की चुनौतियां पेश करते हैं।

प्रश्न-5. पाकिस्तान के हालात को आप कैसे देखते हैं क्योंकि अब तो यह स्पष्ट हो गया है कि इमरान खान पर सैन्य अदालत में मुकदमा चलेगा?

उत्तर- पाकिस्तान के हालात तेजी से बिगड़ते जा रहे हैं। वैसे दुनिया में कोई भी नहीं चाहता कि पाकिस्तान अस्थिर हो क्योंकि अस्थिर पाकिस्तान और बड़ा खतरा है। पाकिस्तान ने अपने चेहरे पर जितने नकाब लगाये थे वह सब उतर चुके हैं। फिलहाल तो इस देश में जनता सरकार और सेना से भिड़ी हुई है और सेना राजनीतिज्ञों खासकर इमरान खान और उनकी पार्टी के नेताओं से भिड़ी हुई है। इसी के साथ पाकिस्तान का आर्थिक संकट बढ़ता जा रहा है लेकिन पाकिस्तान सरकार को इसकी कोई फिक्र नहीं है। वहां तो एक दूसरे को निपटाने का जो खेल चल रहा है उसके चलते यह देश ही निबट सकता है।

जहां तक इमरान खान के खिलाफ मामलों की बात है तो जब शहबाज शरीफ सरकार ने देखा कि पूर्व प्रधानमंत्री को हर अदालत से राहत मिल जा रही है तो उनके खिलाफ मामला सैन्य अदालत में चलाने का फैसला किया गया। सैन्य अदालत में क्या होगा, कौन क्या पक्ष रखेगा यह सब कभी सामने नहीं आयेगा और अचानक एक दिन इमरान खान को सजा सुना दी जायेगी। हो सकता है कि उन्हें फांसी भी दे दी जाये जिसकी आशंका खुद इमरान खान भी व्यक्त कर चुके हैं।

पाकिस्तान सरकार ने पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के प्रमुख इमरान खान पर अपनी गिरफ्तारी से पहले व्यक्तिगत रूप से सैन्य प्रतिष्ठानों पर हमलों की योजना बनाने का आरोप लगाया है। सरकार का कहना है कि इस आरोप को साबित करने के लिए सबूत भी हैं। इससे पहले पाकिस्तान सरकार ने इमरान खान को मानसिक रूप से बीमार बताया था। यही नहीं यहां तक दावा किया था कि इमरान खान के मूत्र के नमूने में शराब और कोकीन जैसे तत्वों की उपस्थिति थी। इस पर इमरान खान ने पाकिस्तान के स्वास्थ्य मंत्री अब्दुल कादिर पटेल को 10 अरब रुपये का मानहानि का नोटिस भी भेजा है। दूसरी ओर, जहां तक पाकिस्तान सरकार और विपक्ष में सुलह की उम्मीद की बात है तो वह दिखाई नहीं देती क्योंकि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने संकेत दिया है कि उनकी सरकार इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के साथ बातचीत करने को तैयार नहीं है। शहबाज शरीफ ने साफ कहा है कि नेताओं का चोला ओढ़े ‘‘अराजकतावादी’’ जो देश के प्रतीकों पर हमला करते हैं वे बातचीत किये जाने के योग्य नहीं हैं।

दूसरी ओर, इमरान की पार्टी की बात करें तो क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी अपने गठन के 27 साल बाद सबसे मुश्किल समय का सामना कर रही है। इस महीने की शुरुआत में, सैन्य प्रतिष्ठानों पर हुए हमलों के मद्देनजर पीएमएल-एन के नेतृत्व वाली मौजूदा गठबंधन सरकार द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री की पार्टी पर पाबंदी लगाये जाने की संभावना है। सैन्य प्रतिष्ठानों द्वारा समर्थित एवं मुख्यधारा के दल- पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन), पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) और जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम पाकिस्तान-फजल (जेयूआई-एफ) चरमपंथ और हिंसा को बढ़ाने देने को लेकर इमरान की पार्टी पर प्रतिबंध लगाने के पक्ष में हैं। रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ पहले ही संकेत दे चुके हैं कि सत्तारुढ़ गठबंधन इमरान की पार्टी पर प्रतिबंध लगाने के लिए संसद में जल्द ही एक प्रस्ताव लाएगा।

इमरान ने 25 अप्रैल 1996 को लाहौर में पार्टी का गठन किया था, जो अब तक के सबसे मुश्किल समय का सामना कर रही है। पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के 60 से अधिक नेताओं ने सैन्य प्रतिष्ठानों पर हुए हमलों का हवाला देते हुए पार्टी और इमरान खान से अलग होने की घोषणा की है। ऐसी खबरें हैं कि आने वाले दिनों में पार्टी में विभिन्न स्तरों पर नेता इस्तीफा दे देंगे। अब तक इस्तीफा देने वाले पार्टी के नेताओं में पूर्व मंत्री असद उमर, शिरीन मजारी, फवाद चौधरी और फिरदौस आशिक अवान शामिल हैं। वहीं, इमरान खान का कहना है कि पार्टी में अकेले रहने पर भी उनकी लड़ाई जारी रहेगी। इमरान की पार्टी अपने गठन के बाद, पहले 15 वर्षों में संसद में एक छोटी पार्टी या एक सीट वाली पार्टी रही थी। इमरान ने 2002 के आम चुनाव में पंजाब जिले में अपने गृहनगर मियांवाली से नेशनल असेंबली चुनाव जीता। उनकी पार्टी ने यही एकमात्र सीट जीती थी। इसके बाद, इमरान की पार्टी ने 2008 के चुनावों का बहिष्कार करते हुए कहा था कि वह सैन्य तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ के तहत चुनाव नहीं लड़ेगी। हालांकि, इसके बाद पार्टी के लिए ऐतिहासिक क्षण आया, जब 30 अक्टूबर 2011 में लाहौर के मीनार-ए-पाकिस्तान में आयोजित जलसा (सार्वजनिक बैठक) में हजारों लोग खासकर युवा और महिलाएं बड़ी संख्या में शामिल हुईं।

इमरान खान के नेतृत्व में पार्टी ने ‘‘चोर और भ्रष्ट’’ के नारे के साथ अपने राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाना शुरू किया और भ्रष्टाचार के खिलाफ एक अभियान छेड़ा। उनके नेतृत्व में पार्टी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के खिलाफ 2013 की चुनावी धांधली को लेकर पद छोड़ने के लिए उन पर दबाव डालने के लिए 2014 में इस्लामाबाद में 126 दिन तक धरना दिया था। वहीं, 2018 के चुनाव में इमरान की पार्टी पहली बार केंद्र में सत्ता में आई। चुनाव से पहले 60 से अधिक शीर्ष नेता पार्टी में शामिल हो गए थे। पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) ने सेना पर इन नेताओं को इमरान की पार्टी का साथ देने के लिए मजबूर करने का आरोप लगाया था। हालांकि, इमरान के सैन्य नेतृत्व के साथ संबंध मुख्य रूप से आईएसआई प्रमुख नदीम अंजुम की नियुक्ति के साथ बिगड़ते चले गए। बाद में, उन्हें अप्रैल 2022 में अविश्वास प्रस्ताव के जरिए प्रधानमंत्री पद से हटा दिया गया। अपने निष्कासन के बाद इमरान खान ने सेना विरोधी एक अभियान शुरू किया, जिसे देश में सैन्य प्रतिष्ठानों पर नौ मई के हमलों के पीछे का मुख्य कारण बताया जा रहा है। अब सैन्य प्रतिष्ठान ने सैद्धांतिक रूप से इमरान खान और उनकी पार्टी को ‘‘खत्म’’ करने का फैसला किया है, ताकि उसे राजनीति से बाहर किया जा सके। देखा जाये तो नौ मई की घटनाओं ने पाकिस्तान के राजनीतिक परिदृश्य को बदल दिया है, जिससे इमरान की पार्टी और सुरक्षा प्रतिष्ठान के बीच गतिरोध चरम पर पहुंच गया है। कहा जा सकता है कि भले ही इमरान की पार्टी पर अब तक प्रतिबंध नहीं लगाया गया हो, लेकिन कई नेताओं के उसका साथ छोड़ने और पूर्व प्रधानमंत्री के भविष्य को लेकर अनिश्चितताओं के बीच पार्टी अगले चुनाव में अप्रासंगिक हो सकती है।

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