Shaurya Path: Rajnath Singh Maldives Visit, Ajit Doval Iran Visit, Kashmir Terror Attack, SCO Summu, Russia-Ukraine War Updates संबंधी मुद्दों पर Brigadier (R) DS Tripathi से बातचीत

Brigadier DS Tripathi
Prabhasakshi

ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) श्री डीएस त्रिपाठी जी ने कहा कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने माले में एक कार्यक्रम में भारत की ओर से तोहफे के तौर पर मालदीव को एक तेज गश्ती पोत और एक नौका सौंपी तथा हिंद महासागर में चुनौतियों का समाधान करने के लिए समान विचारधारा वाले देशों के बीच सहयोग बढ़ाने का आह्वान किया।

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में आप सभी का स्वागत है। आज के कार्यक्रम में हमने बात की भारत के पड़ोसी देशों पर धाक जमाते चीन की, जम्मू-कश्मीर में बढ़ते आतंकी हमलों की, एनएसए अजित डोभाल की ईरान यात्रा की, एससीओ बैठक की और रूस-यूक्रेन युद्ध की। इन सब मुद्दों पर बातचीत के लिए हमारे साथ हमेशा की तरह मौजूद रहे ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) श्री डीएस त्रिपाठी जी। आइये डालते हैं इस विस्तृत साक्षात्कार पर एक नजर।

प्रश्न-1. ऐसे में जबकि चीन भारत के पड़ोसी देशों पर अपना प्रभाव जमा रहा है, उस समय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की मालदीव यात्रा को किन संदर्भों में देखा जाना चाहिए?

उत्तर- रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने माले में एक कार्यक्रम में भारत की ओर से तोहफे के तौर पर मालदीव को एक तेज गश्ती पोत और एक नौका सौंपी तथा हिंद महासागर में चुनौतियों का समाधान करने के लिए समान विचारधारा वाले देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने का आह्वान किया। उल्लेखनीय है कि हिंद महासागर क्षेत्र में अकसर चीन की आक्रामकता दिखाई देती है। द्वीप राष्ट्र की अपनी यात्रा के दूसरे दिन राजनाथ सिंह ने मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह से रक्षा संबंधों को और विस्तार देने पर बातचीत की तथा उन्हें देश के प्रति भारत का समर्थन जारी रहने का आश्वासन दिया। सोलिह के साथ राजनाथ सिंह की मुलाकात पर दिल्ली में रक्षा मंत्रालय ने कहा कि मालदीव के राष्ट्रपति ने विभिन्न क्षेत्रों में देश को भारत की निरंतर सहायता और समर्थन के लिए आभार व्यक्त किया। द्वीप राष्ट्र के शीर्ष अधिकारियों की उपस्थिति में राजनाथ सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि भारत-मालदीव का रिश्ता "वास्तव में विशेष" है और यह पूरे क्षेत्र के अनुसरण के लिए एक मॉडल के रूप में विकसित हुआ है। रक्षा मंत्री ने हिंद महासागर क्षेत्र में चुनौतियों से निपटने में सहयोग बढ़ाने के लिए भारत, मालदीव और क्षेत्र के अन्य समान विचारधारा वाले देशों के बीच सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला।

पोत सौंपने से संबंधित समारोह में सोलिह ने समुद्री गश्ती पोत को मालदीव राष्ट्रीय रक्षा बल (एमएनडीएफ) में शामिल किया। राजनाथ सिंह ने कहा, "भारत-मालदीव का रिश्ता वास्तव में विशेष है। हमारे संबंध समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं और हमने हमेशा जरूरत के समय एक-दूसरे का समर्थन किया है।" पोत सौंपने के समारोह से पहले राजनाथ सिंह ने सोलिह से मुलाकात की तथा भारत-मालदीव के संबंधों को और प्रगाढ़ बनाने के तौर-तरीकों पर चर्चा की। रक्षा मंत्री ने समारोह में कहा कि दोनों देशों के बीच संबंध पूरे क्षेत्र के अनुसरण के लिए एक मॉडल के रूप में विकसित हुए हैं। उन्होंने कहा, "हिंद महासागर क्षेत्र से संबंधित चुनौतियों को दूर करने की दिशा में भारत, मालदीव और क्षेत्र के अन्य समान विचारधारा वाले देशों को अपना सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता है।" राजनाथ सिंह ने कहा, "इसलिए, हमें यह सुनिश्चित करने के लिए सहयोगात्मक प्रयास करना चाहिए कि हिंद महासागर का समुद्री विस्तार शांतिपूर्ण हो और क्षेत्रीय समृद्धि के लिए समुद्री संसाधनों का अधिकतम उपयोग हो।" हिंद महासागर क्षेत्र में सामरिक प्रभाव बढ़ाने के चीन के बढ़ते प्रयासों के बीच भारत ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण समुद्री पड़ोसियों में से एक मालदीव को दो समुद्री वाहन सौंपे। राजनाथ सिंह ने कहा, "हम सहयोगात्मक संबंध बनाना चाहते हैं, जहां हम एक-दूसरे से सीख सकते हैं, एक साथ आगे बढ़ सकते हैं तथा सभी के लिए लाभ की स्थिति बना सकते हैं। हम आपको यह भी आश्वस्त करना चाहते हैं कि एमएनडीएफ और मालदीव का समर्थन करने की भारत की प्रतिबद्धता समय के साथ और बेहतर एवं मजबूत होगी।" रक्षा मंत्री ने कहा कि भारत ने अपनी रक्षा क्षमताओं में काफी वृद्धि की है जिससे वह अपने सहयोगी देशों की क्षमता निर्माण पहलों को और समर्थन देने में सक्षम हुआ है। उन्होंने कहा, "भारत मित्रवत विदेशी देशों को उनकी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुरूप अधिक रक्षा साझेदारी की पेशकश करता है।" राजनाथ सिंह ने कहा, "मालदीव के साथ भारत का मजबूत और जीवंत रक्षा सहयोग 'पड़ोसी प्रथम' और 'सागर'- क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा एवं विकास की हमारी दो नीतियों से निकलता है।" रक्षा मंत्रालय के अनुसार, बैठक में सोलिह ने भारत के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए मालदीव की प्रतिबद्धता से सिंह को अवगत कराया।

मालदीव के राष्ट्रपति कार्यालय ने एक ट्वीट में कहा कि एमएनडीएफ की समुद्री रक्षा और सुरक्षा क्षमताओं में तटरक्षक पोत की मदद से काफी सुधार आएगा। माले में भारतीय उच्चायोग ने ट्वीट किया, "ये भारत निर्मित पोत एमएनडीएफ तटरक्षक बल की अपतटीय/तटीय निगरानी की क्षमता को काफी बढ़ाएंगे और मानव एवं मादक पदार्थों की तस्करी, आतंकवाद और हिंसक चरमपंथ के मुद्दों से निपटने में मदद करेंगे। यह एमएनडीएफ की क्षमता बढ़ाने के लिए भारत की प्रतिबद्धता का प्रतिबिंब है।" राजनाथ सिंह ने ट्वीट किया, "माले में राष्ट्रपति कार्यालय में माननीय इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के साथ शानदार बैठक हुई। हमने भारत तथा मालदीव के बीच संबंधों को और मजबूत करने के लिए कई मुद्दों पर चर्चा की।" तीन दिवसीय यात्रा पर सोमवार को द्वीप राष्ट्र पहुंचने के कुछ घंटे बाद राजनाथ सिंह ने माले में मालदीव की अपनी समकक्ष मरिया दीदी और विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद के साथ द्विपक्षीय रणनीतिक संबंधों के विस्तार पर व्यापक चर्चा की। मालदीव के रक्षा मंत्रालय ने कहा कि सिंह की यात्रा "दोनों देशों के बीच संबंधों में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है क्योंकि यह पहले से ही अच्छे रक्षा संबंधों में गतिशीलता और गति का एक नया स्तर लाएगी।" 

प्रश्न-2. जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। हमारे जवान शहीद हो रहे हैं जिससे देश में गुस्सा भी देखने को मिल रहा है। क्या आतंक से लड़ने की सरकार की नीति में कहीं कोई कमी दिखाई दे रही है?

उत्तर- जम्मू-कश्मीर में जिस तरह आतंकी घटनाएं बढ़ी हैं वह दर्शा रही हैं कि सुरक्षा बलों की निगाह से स्लीपर सेल बचे हुए हैं। भारत में एससीओ और जी-20 की बैठकों के बीच देश के सुरक्षा परिदृश्य पर सवाल उठाने के लिए सीमापार से निर्देश मिलने के बाद स्लीपर सेल को सक्रिय कर आतंकी वारदातें करवायी जा रही हैं ताकि कश्मीर पर विवाद को जिंदा रखा जा सके। इसलिए समय आ गया है कि सरकार को जम्मू-कश्मीर के सुरक्षा परिदृश्य से जुड़े हर पहलू की विस्तृत समीक्षा करनी चाहिए और यदि जरूरत हो तो वहां फौज की संख्या बढ़ानी चाहिए। कश्मीर में जिस तरह शांति दिख रही थी उससे देश आश्वस्त हो चला था लेकिन एक दिन पहले विस्फोट में हमारे पांच जवानों का शहीद हो जाना और ईद से पहले हुए हमले में हमारे चार जवानों की जो शहादत हुई है उससे देश में गम और गुस्सा है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने जम्मू-कश्मीर जाकर हालात का जायजा लिया है और आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ तथा आतंकवादियों के समर्थकों और उन्हें पनाह देने वालों की धरपकड़ भी जारी है लेकिन अब विपक्ष भी सरकार से सवाल पूछ रहा है कि उसने अनुच्छेद 370 हटाये जाने से जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद खत्म होने का जो दावा किया था उसका क्या हुआ? मुझे लगता है कि सरकार ने फौज की जो संख्या घटाई थी उसे वापस से बढ़ाये जाने का समय आ गया है क्योंकि जम्मू के राजौरी और पुंछ को एक दशक से अधिक समय पहले आतंकवाद-मुक्त घोषित कर दिया गया था अब वहां फिर से हमले बढ़ रहे हैं जोकि चिंताजनक बात है।

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प्रश्न-3. हाल ही में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल की ईरान यात्रा संपन्न हुई। यह यात्रा द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूत बनाने के लिए थी या फिर इसका कोई वैश्विक रणनीतिक महत्व था?

उत्तर- ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने तेहरान में, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल के साथ एक बैठक के दौरान भारत-ईरान संबंधों को विशेष रूप से आर्थिक और वाणिज्यिक क्षेत्रों में एक ‘नये मुकाम’ पर ले जाने की हिमायत की है। ईरान के राष्ट्रपति कार्यालय द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, सोमवार को हुई बैठक में रईसी ने डोभाल को इस बात से भी अवगत कराया कि शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) और ब्रिक्स जैसे समूह वैश्विक भू-राजनीतिक बदलावों के मद्देनजर बहुत प्रभावकारी साबित हो सकते हैं। डोभाल इस सप्ताह एक दिन के दौरे पर सोमवार को ईरान में थे। रईसी से मुलाकात करने के अलावा, उन्होंने अपने ईरानी समकक्ष अली शमखनी और विदेश मंत्री हुसैन अमीरअब्दुल्लाहियान के साथ अलग-अलग वार्ता भी की। डोभाल और अमीरअब्दुल्लाहियान ने अपनी बैठक के दौरान चाबहार बंदरगाह के विकास, आतंकवाद से निपटने के तरीकों, द्विपक्षीय बैंकिंग से जुड़े मुद्दों और अफगानिस्तान में स्थिति पर चर्चा की।

बयान के अनुसार, ईरानी विदेश मंत्री ने व्यापार संबंध प्रगाढ़ करने की अपील की और उम्मीद जताई कि तेहरान में संयुक्त आर्थिक आयोग की बैठक किये जाने से संबंधों को नयी गति मिलेगी। इसमें कहा गया है कि डोभाल ने विश्वभर में हो रहे घटनाक्रमों पर चर्चा की और उन क्षेत्रों का उल्लेख किया जिनमें तेहरान और नयी दिल्ली साथ मिलकर काम कर सकते हैं। बयान में कहा गया है, ‘‘इसके बाद डोभाल ने एक दीर्घकालिक साझेदारी के ढांचे के तहत दोनों देशों के बीच सहयोग का एक ‘रोडमैप’ तैयार करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया।’’ मंत्रालय ने कहा कि चाबहार बंदरगाह परियोजना में सहयोग का मुद्दा भी वार्ता में उठा और डोभाल ने इसके महत्व को रेखांकित किया। मंत्रालय ने कहा, ‘‘अमीरअब्दुल्लाहियान और डोभाल ने अफगानिस्तान के विकास सहित चाबहार में ईरान और भारत के संयुक्त कार्य, द्विपक्षीय बैंकिंग मुद्दे, प्रतिबंध हटाने की वार्ता और क्षेत्रीय मुद्दों पर भी विचारों का आदान-प्रदान किया।’’

ईरानी राष्ट्रपति कार्यालय ने एक बयान में कहा कि बैठक में रईसी ने पिछले साल सितंबर में उज्बेकिस्तान के शहर समरकंद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हुई बैठक का उल्लेख किया। साथ ही, दोनों पक्षों ने आर्थिक और वाणिज्यिक क्षेत्रों में संबंध विस्तारित करने की इच्छा जताई। बयान में कहा गया है कि रईसी ने इस बात उल्लेख किया कि ईरान और भारत अपने सहयोग को एक नये मुकाम तक ले जा सकते हैं जो नयी विश्व व्यवस्था के कारण पैदा हुए घटनाक्रमों पर प्रभाव डालेगा। इस सप्ताह गोवा में शंघाई सहयोग संगठन के विदेश मंत्रियों की बैठक से पहले डोभाल ने ईरान की यात्रा की। भारत, एससीओ का मौजूदा अध्यक्ष है और इस साल के अंत में समूह के वार्षिक शिखर सम्मेलन में ईरान को इसका स्थायी सदस्य बनाया जाना है। उल्लेखनीय है कि ईरान, भारत द्वारा इस खाड़ी देश से कच्चे तेल का आयात बहाल करने की अपील कर रहा है।

प्रश्न-4. एससीओ के विदेश मंत्रियों की बैठक को किस रूप में देखते हैं आप? भारत-चीन, भारत-रूस के विदेश मंत्रियों की द्विपक्षीय बैठकें भी हुईं मगर पाकिस्तान के विदेश मंत्री के साथ कोई द्विपक्षीय बैठक नहीं हुई उल्टा पाकिस्तान को खरी खरी सुना दी गयी। 

उत्तर- भारत ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक के दौरान आतंकवाद के मुद्दे पर जहां पाकिस्तान को मुंह पर खरी-खरी सुना दी वहीं चीन से द्विपक्षीय मुलाकात के दौरान स्पष्ट संकेत दे दिया कि उसकी विस्तारवादी नीति भारत के सामने नहीं कामयाब होगी। यह भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर की स्पष्टवादिता का ही कमाल रहा कि पाकिस्तान भी आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होकर मुकाबला करने का आह्वान करने पर मजबूर हो गया तो वहीं चीन ने कह दिया कि भारत-पाक संबंधों में सब ठीक है, कोई चिंता की बात नहीं है। जहां तक चीन से भारत की वार्ता की बात है तो आपको बता दें कि विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने चीनी समकक्ष छिन कांग से मुलाकात के एक दिन बाद कहा कि पूर्वी लद्दाख की सीमा पर स्थिति ‘असमान्य’ है और भारत और चीन के रिश्ते सामान्य नहीं हो सकते अगर सीमावर्ती इलाकों में शांति और स्थिरता की स्थिति बाधित हो। जयशंकर ने यह भी कहा कि सैनिकों को पीछे हटाने की प्रक्रिया को आगे ले जाने की जरूरत है। जयशंकर और चीनी विदेश मंत्री ने बृहस्पतिवार को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के विदेश मंत्रियों की परिषद की बैठक से इतर द्विपक्षीय वार्ता की। जयशंकर ने इस मुलाकात के बारे में बताया है कि मुझे लगता है कि मुद्दा यह है कि सीमावर्ती क्षेत्रों में एक असामान्य स्थिति है। हमने इस बारे में खुलकर बात की। जयशंकर ने कहा, ‘‘हमें सैनिकों को पीछे हटाने की प्रक्रिया को आगे ले जाना होगा और हमनें सार्वजनिक रूप से भी इसे स्पष्ट किया है। जो मैं बंद कमरे में कहता हूं, वह जो बाहर कहता हूं, उससे अलग नहीं है... भारत और चीन के संबंध सामान्य नहीं हैं एवं ये सामान्य नहीं हो सकते अगर सीमा पर शांति और स्थिरता बाधित हो।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मैं इस बारे में बहुत स्पष्ट रहा हूं, मैं इस बारे में लगातार कहता रहा हूं और इस रुख में बैठक के दौरान भी कोई बदलाव नहीं आया।’’ जब चीन के इस दावे के बारे में पूछा गया कि सीमा पर स्थिति स्थिर है तो जयशंकर ने संकेत दिया कि ऐसा नहीं है।

जहां तक पाकिस्तान के साथ वार्ता की बात है तो कोई द्विपक्षीय मुलाकात तो हुई नहीं लेकिन बहुपक्षीय मंच पर भारत ने पाकिस्तान को जोरदार तरीके से आड़े हाथ लिया। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सीमा पार आतंकवाद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की और उनके पाकिस्तानी समकक्ष बिलावल भुट्टो-जरदारी ने ‘‘कूटनीतिक फायदे के लिए आतंकवाद को हथियार’’ के तौर पर इस्तेमाल नहीं करने का आह्वान किया। गोवा में भारत द्वारा आयोजित एससीओ के सम्मेलन में विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि सीमा पार आतंकवाद सहित सभी तरह के आतंकवाद को रोका जाना चाहिए। वहीं, बिलावल ने ‘‘अंतरराष्ट्रीय कानून के उल्लंघन’’ का मुद्दा उठाया, जिसे कश्मीर के परोक्ष संदर्भ के रूप में देखा गया। सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे जयशंकर ने परोक्ष रूप से पाकिस्तान की ओर इशारा करते हुए कहा कि आतंकवाद की अनदेखी करना समूह के सुरक्षा हितों के लिए हानिकारक होगा और जब दुनिया कोविड-19 महामारी तथा उसके प्रभावों से निपटने में लगी थी, तब भी आतंकवाद की समस्या ज्यों की त्यों बनी रही।

प्रश्न-5. रूस-यूक्रेन युद्ध किस ओर आगे बढ़ रहा है। एक खबर आई कि पुतिन को मारने का प्रयास हुआ अब यूक्रेन को डर है कि कहीं तगड़ा पलटवार ना हो जाये। इस बीच एक खबर यह भी है कि यूक्रेन के कब्जाये क्षेत्रों में रूसी सेना परेशान होने लगी है क्योंकि वहां बुनियादी सुविधाओं की कमी है।

उत्तर- अमेरिका का इतिहास है कि वह जिस भी युद्ध में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से घुसा है उसे जल्द समाप्त नहीं होने दिया है। अगले साल अमेरिका में राष्ट्रपति पद के चुनाव हैं इसलिए जो बाइडन नहीं चाहेंगे कि यह युद्ध उससे पहले समाप्त हो। दूसरी ओर यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के भी हाथ में यह युद्ध नहीं रह गया है। यह सारा युद्ध इस समय अमेरिका और नाटो के हाथ में चला गया है इसलिए जेलेंस्की चाह कर भी कुछ नहीं कर पाएंगे। वैसे भी वह इस समय अपने देश को बेहाल छोड़ कर विदेशों में मदद मांगने के लिए घूम रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि जेलेंस्की को अब अपनी जान की परवाह होने लगी है इसीलिए वह बाहर ही दिखाई दे रहे हैं। जेलेंस्की ने अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय (आईसीसी) का दौरा भी किया है। वैसे उनका दौरा इस मायने में महत्वपूर्ण है कि आईसीसी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पर युद्ध अपराधों का आरोप लगाया है। लेकिन इस सबसे पुतिन को कोई फर्क नहीं पड़ता। आज की तारीख में यूक्रेन उन्हीं क्षेत्रों पर हमला कर रहा है जो रूस कब्जा चुका है। एक प्रकार पुतिन और जेलेंस्की दोनों ही यूक्रेन को बर्बाद करने पर तुले हैं।

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