कोरोना के खिलाफ लड़ाई में इटली जैसी गलती नहीं करेगा भारत, अस्पतालों ने अपनाया रोटेशन फॉर्मूला

AIIMS
अंकित सिंह । Mar 28 2020 5:02PM

कायदे से देखें तो जिस तरीके की यह महामारी है, उसके अनुसार अस्पतालों में एक साथ सभी डॉक्टर्स को लगा दिया जाना चाहिए। लेकिन भारत में ऐसा नहीं हो रहा है। कोरोना महामारी के इस संकट के बीच भारत के अस्पतालों में रोटेशन पॉलिसी के तहत डॉक्टरों और नर्सों की तैनाती की जा रही है।

इस समय पूरे विश्व में कोरोना वायरस की महामारी है। भारत समेत विश्व के सभी बड़े देश इस महामारी की चपेट में है। तमाम उपाय किए जा रहे हैं पर यह महामारी लगातार विकराल रूप धारण करता जा रहा है। इस महामारी को देखते हुए अस्पतालों में उपचार की कई सुविधाएं बढ़ाए गए ह, डॉक्टरों की तैनाती बढ़ा दी गई है और लोगों से सतर्क रहने को कहा गया है। कायदे से देखें तो जिस तरीके की यह महामारी है, उसके अनुसार अस्पतालों में एक साथ सभी डॉक्टर्स को लगा दिया जाना चाहिए। लेकिन भारत में ऐसा नहीं हो रहा है। कोरोना महामारी के इस संकट के बीच भारत के अस्पतालों में रोटेशन पॉलिसी के तहत डॉक्टरों और नर्सों की तैनाती की जा रही है।

आखिर ऐसा क्यों किया जा रहा है

दरअसल यह माना जा रहा है कि अगर एक साथ सभी डॉक्टर और नर्सों को हम अस्पताल में तैनात करते हैं तो उन्हें इस संक्रमण का खतरा हो सकता है। अगर किसी एक डॉक्टर नर्स को कोरोना संक्रमण होता है तो उससे उस वक्त काम करने वाले तमाम लोगों को हो सकता है। इसी को देखते हुए अस्पतालों में रोटेशन पॉलिसी बनाया गया है। इस पॉलिसी के तहत डॉक्टर, नर्स समेत तमाम हॉस्पिटल के स्टाफ को तीन भागों में बांटा गया है। ग्रुप ए, ग्रुप बी और ग्रुप सी।

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कैसे काम कर रहा है यह ग्रुप

कोरोना महामारी के बीच में अगर अस्पतालों में एक ग्रुप एक सप्ताह काम करता है तो दूसरा ग्रुप स्टैंडबाई मोड में चला जाता है। इसी तरह अगर बी और सी ग्रुप काम करते हैं तो एक ग्रुप स्टैंड ब्वॉय मोड में चला जाता है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि डॉक्टर और नर्स 1 सप्ताह की ड्यूटी के बाद 2 सप्ताह की छुट्टी पर चले जा रहे हैं। यह फार्मूला अपनाने वालों में दिल्ली, जोधपुर, भोपाल में एम्स, दिल्ली के सफदरजंग और लोकनायक अस्पताल आदि जैसे बड़े अस्पताल शामिल हैं। एक अधिकारी ने बताया कि अगर कोरोना से किसी एक ग्रुप में संक्रमण का खतरा भी पैदा होता है तो दो ग्रुप इस संक्रमण से लड़ने के लिए तैयार रहते हैं। एम्स के डायरेक्टर डॉक्टर रणदीप गुलेरिया के अनुसार यह फार्मूला अस्पतालों में सोशल डिस्टेंसिंग को भी सुनिश्चित करता है और यह हमारी तैयारी को और भी आगे बढ़ाता है।

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इटली से सबक

दरअसल कोरोना महामारी से निपटने में इटली ने जो गलती की वह भारत नहीं दोहराना चाहता है। इटली ने कोरोना वायरस से लड़ाई के दौरान अपने अस्पतालों के सभी डॉक्टर को एक साथ ड्यूटी पर लगा दिया था जिसके बाद यह हुआ कि उसके डॉक्टर और नर्स लगातार कोरोना वायरस के संक्रमण में आते गए। आंकड़ों की मानें तो अब तक के इटली में 50 से अधिक डॉक्टरों की मौत हो चुकी है जबकि 6000 से ज्यादा डॉक्टर कोरोना वायरस के संक्रमण में आ चुके हैं। फिलहाल इटली की हालत भयावह हो गई है। वहां मौत का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है।

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अस्पतालों में जरूरी उपकरणों का अभाव

कोरोना संकट के इस महामारी के बीच देश के कई अस्पतालों में जरूरी उपकरणों का भयंकर अभाव है। ऐसे में अगर सभी डॉक्टर्स एक साथ ड्यूटी पर काम करने लगे तो उन्हें सब को एक साथ जरूरी उपकरण प्रदान कर पाना चुनौती बन सकता है। साथ ही साथ w.h.o. रेकमेंडेट हजामत सूट्स भी भारत में इतनी तादाद में उपलब्ध नहीं है। यह सूट उन डॉक्टरों के लिए पहनना बेहद ही जरूरी है जो कोविड-19 मरीज का इलाज कर रहे हैं।

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खैर, बात जो भी हो लेकिन एक बात तो तय है कि भारत एक प्लान के तहत कोरोना का खिलाफ जंग में आगे बढ़ रहा है। जो गलतियां यूरोप और अमेरिका जैसे देशों ने किया, वह भारत नहीं कर रहा है। लॉकडाउन करने का ही फैसला भारत ने सही समय पर उठाया। लोगों की आवाजाही को रोकने का फैसला भारत ने सही समय पर किया। अब देखना होगा कि भारत किस तरीके से इस कोरोना महामारी के खिलाफ जंग लड़ता है और इससे जीत हासिल करता है।

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