Shaurya Path: Pulwama Attack, Russia-Ukraine War, China-Taiwan, India-Britain, Sudan Situation पर Brigadier (R) DS Tripathi से बातचीत

ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) डीएस त्रिपाठी ने कहा कि इसमें कोई दो राय नहीं कि यदि हम और सतर्क होते तो पुलवामा हमला टाला जा सकता था लेकिन यह किसकी विफलता थी यह तय करना किसी राजनीतिज्ञ का काम नहीं बल्कि जांच एजेंसियों का काम है।
नमस्कार प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में आप सभी का स्वागत है। आज के कार्यक्रम में बात करेंगे पुलवामा हमले को लेकर हो रही राजनीति की, रूस और यूक्रेन युद्ध की, रूसी उप्रधानमंत्री के भारत दौरे की, चीन में सैन्य भर्ती के नये नियमों की और चीन-ताइवान के बीच बढ़ते विवाद की तथा चीन की ओर से इजराइल और फिलस्तीन के बीच शांति वार्ता कराने के प्रस्ताव की। साथ ही बात करेंगे ब्रिटेन के सीडीएस की भारत यात्रा की और जानेंगे सूडान में हिंसा का प्रमुख कारण क्या है। इन सब मुद्दों पर बातचीत के लिए हमारे साथ कार्यक्रम में हमेशा की तरह मौजूद रहे ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) श्री डीएस त्रिपाठी जी।
प्रश्न-1. पुलवामा हमला मामला एक बार फिर सुर्खियों में है। एक पूर्व राज्यपाल के बयान के आधार पर सरकार से मांग की जा रही है कि वह इस मुद्दे पर श्वेतपत्र लाये। एक राजनीतिक पार्टी ने पूर्व सेनाध्यक्ष शंकर रॉय चौधरी का इस संबंध में एक संवाददाता सम्मेलन भी कराया। तमाम तरह के आरोपों पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
उत्तर- आतंकवादी हमलों और सेना से जुड़े मसलों पर राजनीति करना गलत है। जब भी कोई जवान शहीद होता है तो उसकी शहादत का सम्मान किया जाना चाहिए ना कि उसकी शहादत के जरिये अपनी राजनीति चमकानी चाहिए। इसमें कोई दो राय नहीं कि यदि हम और सतर्क होते तो पुलवामा हमला टाला जा सकता था लेकिन यह किसकी विफलता थी यह तय करना किसी राजनीतिज्ञ का काम नहीं बल्कि जांच एजेंसियों का काम है। पूर्व सेना प्रमुख शंकर रॉय चौधरी ने पूरे मामले पर चिंता जताई है और कहा है कि उचित कदम उठाया जाता तो जवानों की जान बच सकती थी। लोग बार-बार सरकार से मांग करते हैं कि जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाये लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि सुरक्षा कारणों से कई मसले सबके सामने नहीं रखे जा सकते। लेकिन इतना तो तय है कि जैसे हमले के लिए बालाकोट में घुस कर पाकिस्तान को सबक सिखाया गया था वैसे ही चूक के लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर भी निश्चित ही कार्रवाई हुई होगी।
प्रश्न-2. रूस और यूक्रेन युद्ध के बीच दोनों देशों के राष्ट्रपति यूक्रेन के युद्धग्रस्त क्षेत्रों का दौरा कर अपनी अपनी सेना का मनोबल बढ़ा रहे हैं और फोटो खिंचवा रहे हैं। क्या इससे यह साबित नहीं होता कि युद्ध के समाप्त होने के फिलहाल कोई आसार नहीं हैं। साथ ही रूस के उप प्रधानमंत्री हाल ही में भारत यात्रा पर थे, इसे कैसे देखते हैं आप?
उत्तर- दोनों राष्ट्रपतियों के लिए यह जरूरी है कि वह युद्ध मैदान में साल भर से ज्यादा समय से डटे अपनी अपनी सेना का मनोबल बढ़ाएं। इसीलिए व्लादीमिर पुतिन और वोलोदिमीर जेलेंस्की अपने सैनिकों से मिल रहे हैं और उनके साथ फोटो खिंचवा रहे हैं ताकि नीचे से ऊपर तक यह संदेश जा सके कि वह यह जंग जीतने के लिए लड़ रहे हैं। इससे यह भी लग रहा है कि युद्ध समाप्त होने के फिलहाल आसार नहीं हैं, वैसे भी अमेरिका और नाटो देश जिस तरह से यूक्रेन को हथियारों की सप्ताई बढ़ाते जा रहे हैं वह युद्ध समाप्त करने के प्रयास तो नहीं ही हैं। जहां तक रूसी उपप्रधानमंत्री की भारत यात्रा की बात है तो वह काफी सार्थक रही है। इससे ठीक पहले यूक्रेन की उप विदेश मंत्री भी भारत आई थीं और रूस के खिलाफ भारत का सहयोग मांगा था।
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विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा भी है कि भारत-रूस के रिश्ते प्रमुख वैश्विक संबंधों में सबसे ‘स्थायी’ हैं। इसके साथ ही उन्होंने व्यापार असंतुलन के मुद्दे से निपटने और द्विपक्षीय आर्थिक सहयोग बढ़ाने की जरूरत को भी रेखांकित किया है। रूसी उप प्रधानमंत्री डेनिस मेनतुरोव के साथ एक समारोह में हिस्सा लेते हुए जयशंकर ने कहा कि ऐसे समय में जब रूस एशिया की ओर अधिक देख रहा है, रूसी संसाधन एवं प्रौद्योगिकी भारत की प्रगति में मजबूत योगदान कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि विविध क्षेत्रों में दोनों देशों में द्विपक्षीय सम्पर्क के विस्तार की संभावनाएं है। यहां ध्यान देने वाली बात यह भी है कि यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद भारत और रूस के बीच कारोबारी संबंध आगे की ओर बढ़ रहे हैं, हालांकि पश्चिमी ताकतों की ओर से इस पर असंतोष जताया गया है।
जयशंकर के अलावा रूसी उप प्रधानमंत्री की राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल से भी मुलाकात हुई। इस दौरान दोनों ने भारत-रूस रणनीतिक साझेदारी से जुड़े व्यापक मुद्दों पर चर्चा की। इसके अलावा, व्यापार, आर्थिक, वैज्ञानिक, तकनीकी और सांस्कृतिक सहयोग पर अंतर-सरकारी रूस-भारत आयोग के सह-अध्यक्ष के रूप में जयशंकर और मेनतुरोव ने दोनों देशों के कारोबारी प्रतिनिधियों से भी मुलाकात की। मेनतुरोव की यह यात्रा भारत-रूस के व्यापारिक रिश्तों में फिर से बढ़ोतरी होने, खासकर नयी दिल्ली द्वारा रूस से रियायती दाम पर कच्चा तेल खरीदने की पृष्ठभूमि में हुई। यहां यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि भारत ने यूक्रेन पर रूस के हमले की अब तक निंदा नहीं की है और कहा है कि संकट को कूटनीति और संवाद के जरिए हल किया जाना चाहिए।
प्रश्न-3. बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव के बीच चीन ने सैन्य भर्ती के लिए जो नये नियम जारी किये हैं उसका असल मकसद क्या है? साथ ही हम यह भी जानना चाहते हैं कि चीनी राष्ट्रपति ने अपने हालिया भाषण में समुद्री अधिकारों की रक्षा पर जोर क्यों दिया है? हम यह भी जानना चाहते हैं कि क्या ताइवान के साथ जिस तरह के तनाव चल रहे हैं उसको देखते हुए दोनों देशों के बीच युद्ध की संभावनाएं हैं? साथ ही चीन ने इजराइल और फिलस्तीन के बीच शांति वार्ता कराने का प्रस्ताव दिया है। इसे कैसे देखते हैं आप?
उत्तर- चीन ने युद्धकाल में सैन्य भर्ती के लिए संशोधित नियमों का एक नया ‘सेट’ जारी किया है, जिसमें पूर्व सैनिकों को प्राथमिकता देना, अधिक क्षमता वाले सैनिकों को नियुक्त करना, अनिवार्य सैन्य सेवा का मानकीकरण करना आदि शामिल हैं। उसके इस कदम को ताइवान के साथ युद्ध की तैयारियों के तौर पर देखा जा रहा है। सैन्य भर्ती से जुड़े संशोधित नियमों को स्टेट काउंसिल और केंद्रीय सैन्य आयोग (सीएमसी) ने जारी किया है। सीएमसी चीन की सेना का शीर्ष निकाय है, जिसके अध्यक्ष राष्ट्रपति शी जिनपिंग हैं। सीएमसी का लक्ष्य राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूती प्रदान करने के लिए संस्थागत गारंटी मुहैया करना और मजबूत सशस्त्र बल बनाना है। 11 अध्यायों में 74 अनुच्छेद वाले नये नियमों में अधिक क्षमता वाले सैनिकों की भर्ती पर जोर देना, अनिवार्य सैन्य भर्ती का मानकीकरण करना और प्रणाली की क्षमता को बढ़ाना है। नये नियम अगले महीने से प्रभावी होंगे। नियमों में कहा गया है कि भर्ती प्रक्रिया में युद्ध की तैयारी को ध्यान में रखा जाए और अधिक क्षमता वाले रंगरुटों को शामिल कर सेना की क्षमता बढ़ानी चाहिए। पहली बार, युद्धकाल में भर्ती पर एक अलग अध्याय नियमों में शामिल किया गया है, जिससे यह पता चलता है कि पूर्व सैनिकों को भर्ती में प्राथमिकता दी जाएगी और उन्हें उनकी मूल इकाइयों या समान पदों पर नियुक्त किये जाने की संभावना है। बताया जा रहा है कि जिन नागरिकों को युद्धकाल के दौरान भर्ती का नोटिस मिला है उन्हें अपना नाम दर्ज कराने के लिए समय पर निर्दिष्ट स्थान पर अवश्य जाना चाहिए, अन्यथा उन्हें दंड का सामना करना पड़ेगा। इसके अलावा, दक्षिण चीन सागर सहित कई मोर्चों पर और विशेष रूप से ताइवान जलडमरुमध्य में चीन के भू-राजनीतिक तनावों का सामना करने के मद्देनजर नये नियम जारी किये गये हैं। साथ ही राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पीएलए के दक्षिणी सैन्य कमान के दौरे पर सेना के प्रशिक्षण को मजबूत करने और सभी मोर्चों पर सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण के स्तर को बढ़ावा देने के उपायों में तेजी लाने पर जोर दिया।
जहां तक चीनी राष्ट्रपति के भाषण की बात है तो ताइवान और दक्षिण चीन सागर को लेकर बढ़ते तनाव के बीच जिनपिंग ने सेना से देश की संप्रभुता और समुद्री अधिकारों तथा हितों की दृढ़ता से रक्षा करने एवं आसपास के क्षेत्रों की समग्र स्थिरता बनाए रखने का प्रयास करने को कहा है। शी चीनी सेना के उच्च कमान ‘केंद्रीय सैन्य आयोग’ के अध्यक्ष भी हैं। उन्होंने दक्षिणी थिएटर कमांड में सैनिकों का निरीक्षण करने के बाद प्रशिक्षण को मजबूत करने और सभी मोर्चों पर सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण के स्तर को बढ़ावा देने के उपायों में तेजी लाने पर जोर दिया। उन्होंने सशस्त्र बलों से सत्तारुढ़ कम्युनिस्ट पार्टी और लोगों द्वारा सौंपे गए कर्तव्यों को दृढ़ता से पूरा करने का आह्वान किया। दक्षिणी थिएटर कमांड के नौसेना मुख्यालय में शी ने कहा कि सशस्त्र बलों को राजनीतिक दृष्टिकोण से सैन्य मुद्दों का विश्लेषण और समाधान करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जटिल परिस्थितियों में समय पर और उचित प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने की क्षमता को बढ़ाना चाहिए।
इसके अलावा, जहां तक चीनी शांति प्रस्ताव की बात है तो चीन के विदेश मंत्री ने इज़राइल और फलस्तीन के अपने समकक्षों से कहा है कि उनका देश क्षेत्र में मध्यस्थता के ताजा प्रयासों के तहत दोनों पक्षों के बीच शांति वार्ता में मदद करने को तैयार है। चीनी विदेश मंत्रालय के बयान के अनुसार, चीन के विदेश मंत्री छिन कांग ने इज़राइल और फिलस्तीन के अधिकारियों को सोमवार को फोन किया और दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव को लेकर बीजिंग की चिंता जाहिर की। बयान के मुताबिक, किन ने शांति वार्ता की बहाली के लिए समर्थन भी व्यक्त किया। उल्लेखनीय है कि चीन ने सऊदी अरब और ईरान के 2016 से ठप पड़े राजनयिक संबंधों को बहाल करने में मदद की थी। यह चीन की कूटनीति का एक नाटकीय क्षण था, जिसके जरिये उसने पश्चिम एशिया में एक राजनयिक खिलाड़ी के तौर पर अपनी क्षमताओं को दर्शाया था। कांग ने इज़राइल के विदेश मंत्री एली कोहेन के साथ अपनी बातचीत में जोर देकर कहा कि सऊदी अरब और ईरान ने बातचीत के जरिये मतभेदों को दूर करने का एक अच्छा उदाहरण पेश किया है। उन्होंने कोहेन से कहा कि चीन इज़राइलियों और फलस्तीनियों को राजनीतिक इच्छा शक्ति दिखाने और शांति वार्ता को फिर से शुरू करने के लिए कदम उठाने के वास्ते प्रोत्साहित करता है।
प्रश्न-4. हाल ही में सीडीएस अनिल चौहान ब्रिटेन यात्रा पर थे, इस दौरान दोनों देशों के बीच रक्षा संबंधों में क्या प्रगति हुई? साथ ही हम यह भी जानना चाहते हैं कि ब्रिटेन ने हाल ही में भारतीय सैनिकों के चित्र के निर्यात पर प्रतिबंध क्यों लगाया?
उत्तर- सीडीएस अनिल चौहान की ब्रिटेन यात्रा काफी सार्थक रही। इस दौरान ब्रिटेन के प्रमुख रक्षा अध्यक्ष एडमिरल सर टोनी रेडाकिन ने कहा कि भारत और ब्रिटेन एक ऐसी दुनिया में ‘‘स्वाभाविक भागीदार’’ हैं जो अधिक ‘‘प्रतिस्पर्धी और अस्थिर’’ होती जा रही है। दोनों देशों के बीच रणनीतिक संबंधों में प्रगति के साथ एडमिरल रेडाकिन ने भारत के तीन दिवसीय दौरे में उच्च स्तरीय बैठकों में भाग लिया। रेडाकिन ने अपने भारतीय समकक्ष जनरल अनिल चौहान के साथ पहली मुलाकात में यह बात कही। इस बीच, ब्रिटेन के रक्षा मंत्री बेन वालेस भी भारत आये हुए हैं, उन्होंने भारत को एक ‘‘मूल्यवान रक्षा भागीदार’’ बताया और कहा कि दोनों देश रणनीतिक हिंद-प्रशांत क्षेत्र की स्थिरता और समृद्धि के लिए प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने भी कहा था कि दोनों देश हिंद-प्रशांत क्षेत्र की स्थिरता और समृद्धि के लिए प्रतिबद्ध हैं और हम इस क्षेत्र में सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए अपने भारतीय भागीदारों के साथ प्रशिक्षण और संचालन जारी रखेंगे। यही नहीं, ब्रिटेन सरकार के एक बयान में भी कहा गया था कि दोनों सीडीएस ने ब्रिटेन-भारत रक्षा साझेदारी के विभिन्न आयामों पर प्रगति की समीक्षा की और सभी क्षेत्रों में संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए विचारों का आदान-प्रदान किया।
जहां तक ब्रिटेन की ओर से भारतीय सैनिकों के चित्र के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की बात है तो यह मामला इस प्रकार है कि आंग्ल-हंगरी चित्रकार फिलिप डी लाजलो द्वारा प्रथम विश्वयुद्ध में हिस्सा लेने वाले दो भारतीय सैनिकों के बनाए चित्र पर ब्रिटिश सरकार ने अस्थायी निर्यात प्रतिबंध लगाया है, ताकि उसे देश से बाहर ले जाने से रोका जा सके। ब्रिटेन सरकार ने देश के एक संस्थान को इस ‘‘शानदार तथा संवेदनशील’’ चित्र को खरीदने का समय देने के लिए यह प्रतिबंध लगाया है। करीब साढ़े छह करोड़ रुपये कीमत वाले इस चित्र में घुड़सवार अधिकारी रिसालदार जगत सिंह और रिसालदार मान सिंह को दर्शाया गया है, जो फ्रांस में सॉम के युद्ध में सेवा देने वाले ब्रिटिश-भारतीय सेना के एक्सपीडिशनरी फोर्स में जूनियर कमांडर थे। ऐसा माना जाता है कि दोनों युद्ध के दौरान ही वीरगति को प्राप्त हुए थे। यह चित्र काफी दुर्लभ है, जो प्रथम विश्व युद्ध में भारतीयों की सक्रिय भागीदारी को दिखाता है। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान करीब 15 लाख भारतीय सैनिकों को तैनात किया गया था और रिकॉर्ड के अनुसार, चित्र में मौजूद दोनों सैनिक लड़ाई के लिए फ्रांस भेजे जाने से दो महीने पहले लंदन में फिलिप डी लाजलो के सामने बैठे थे, ताकि वह उनकी छवि को कैनवास पर उकेर सकें। ऐसा माना जाता है कि डी लाजलो ने इस चित्र को अपने संग्रह के लिए बनाया था और यह 1937 में उनके निधन तक उनके स्टूडियो में ही रखा हुआ था। ब्रिटेन सरकार ने एक समिति की सलाह पर इस चित्र के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया है। समिति ने युद्ध में भारतीयों के योगदान के अध्ययन की महत्ता के आधार पर यह सिफारिश की है।
प्रश्न-5. सूडान में हिंसा का प्रमुख कारण क्या है? वहां फंसे भारतीयों को निकालने के क्या प्रयास चल रहे हैं?
उत्तर- सूडान में पिछले कई दिनों से देश की सेना और एक अर्धसैनिक समूह के बीच घातक संघर्ष जारी है, जिसमें सैंकड़ों लोग मारे जा चुके हैं। दरअसल सूडान की सेना ने अक्टूबर 2021 में तख्तापलट कर सत्ता पर कब्जा कर लिया था और तब से वह एक संप्रभु परिषद के माध्यम से देश चला रही है। सूडान पर नियंत्रण को लेकर देश की सेना तथा शक्तिशाली अर्द्धसैनिक बल के बीच लगातार खींचतान जारी है। इस बीच वहां फंसे भारतीयों को लेकर देश में चिंता व्यक्त की जा रही है। इस मुद्दे पर भारत सरकार सूडान से तो संपर्क बनाये ही हुए है साथ ही आसपास के उन देशों से भी संपर्क साध रही है जो सूडान में भारत के काम आ सकते हैं। इसी के चलते विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने हिंसाग्रस्त सूडान की स्थिति पर सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के विदेश मंत्रियों के साथ चर्चा की है।
सूडान में जमीनी हालात गंभीर हैं और इस समय लोगों की आवाजाही जोखिम भरी होगी। इसलिए फिलहाल किसी को निकाल पाना मुश्किल लग रहा है। भारत की प्राथमिकता यह सुनिश्चित करना है कि आवाजाही सुरक्षित हो और लोग जहां कहीं भी हों, सही हों। अमेरिका, ब्रिटेन, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की सूडान में अहम भूमिका है और भारत इसीलिए उनसे बातचीत कर रहा है। विदेश मंत्रालय और सूडान की राजधानी खार्तूम स्थित भारतीय दूतावास अफ्रीकी देश में स्थिति की लगातार निगरानी कर रहे हैं।
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